Wednesday 30 April 2014

सबसे खतरनाक होता है सपनों का मर जाना

प्रभात रंजन दीन
एक मई को श्रम दिवस है। इसमें कुछ भी नया नहीं है। हर साल आता है। हर साल इस दिन के पहले वाली शाम को मजदूरी करती महिलाएं या पुरुषों की फोटो फाइल होती है। हम उसे छापते हैं और श्रम दिवसों के विभिन्न आयोजनों में 'हम होंगे कामयाब एक दिन' गाते हुए अपने आप को गाली देते हुए घर लौट आते हैं। हम ऐसे ही श्रमिक हैं। या कुछ ऐसे भी छद्मी श्रमिक हमारी जमात में शामिल हैं, जो सत्ता-पूंजी-पीठों के दलाल हैं, उन्हीं का खाते हैं, उन्हीं का गाते हैं और हमें भरमाते हैं। हमारे सपने मर रहे हैं, सबसे चिंताजनक बात यही है। आज वोट डालते समय एक मजदूर किस्म का आदमी काफी देर होने पर झुंझला कर बोल पड़ा, 'देर हो रही है, काम नहीं हुआ तो खाएंगे क्या आज, वोट तो हर साल देते हैं, वोट ही देते-देते तो आज खाने खाने को मोहताज हो गए। क्या मिलेगा वोट डालने से। बस कुछ लोगन के चक्कर में आ जाते हैं। अब तो बंद कर देंगे वोट डालना, अगर कुछ भी नहीं बदलना है तो वोट क्यों डालना?' एक  श्रमिक की बोली यह संदेश दे रही थी कि अब देश के श्रमिकों का सपना मर रहा है। पत्रकार भी खुद को श्रमजीवी कहते हैं, गंदे रास्ते से अगर पत्रकारों के वित्तीय स्रोत बंद हो जाएं तो उनकी भी दशा उसी मजदूर की तरह है, जिसे अब सपने देखना भी गवारा नहीं। श्रम दिवस की पूर्व संध्या पर श्रमिक के मरते स्वप्न पर हृदय से श्रद्धांजलि देता हूं। आज के सम्पादकीय में बस श्रद्धांजलि के इन्हीं कुछ शब्दों के साथ महान कवि अवतार सिंह पाश की वह कविता आपके सामने रखता हूं, जो जब तक जिया सपनों के मुरदा होने के खिलाफ जीता रहा और युवा अवस्था में ही जिसे मौत के घाट उतार दिया गया। आप वह कविता भी पढ़ें और हम सब जतन करें कि हमारे सपने जिंदा रहें, ताकि कभी तो हम हों कामयाब एक दिन..!
...मेहनत की लूट सबसे खतरनाक नहीं होती
पुलिस की मार सबसे खतरनाक नहीं होती
गद्दारी और लोभ की मुट्ठी सबसे खतरनाक नहीं होती
बैठे-बिठाए पकड़े जाना- बुरा तो है
सहमी-सी चुप में जकड़े जाना- बुरा तो है
पर सबसे खतरनाक नहीं होता
कपट के शोर में
सही होते हुए भी दब जाना- बुरा तो है
जुगनुओं की लौ में पढऩा- बुरा तो है
मुट्ठियां भींचकर बस वक्त निकाल लेना - बुरा तो है
सबसे खतरनाक नहीं होता
सबसे खतरनाक होता है
मुर्दा शांति से भर जाना
तड़प का न होना सब सहन कर जाना
घर से निकलना काम पर
और काम से लौटकर घर जाना
सबसे खतरनाक होता है
हमारे सपनों का मर जाना
सबसे खतरनाक वो घड़ी होती है
आपकी कलाई पर चलती हुई भी जो
आपकी नजर में रुकी होती है
सबसे खतरनाक वो आंख होती है
जो सबकुछ देखती हुई जमी बर्फ होती है
जिसकी नजर दुनिया को मोहब्बत से चूमना भूल जाती है
जो चीजों से उठती अंधेपन की भाप पर ढुलक जाती है
जो रोजमर्रा के क्रम को पीती हुई
एक लक्ष्यहीन दुहराव के उलटफेर में खो जाती है
सबसे खतरनाक वो चांद होता है
जो हर हत्याकांड के बाद
वीरान हुए आंगन में चढ़ता है
लेकिन आपकी आंखों में मिर्चों की तरह नहीं गड़ता
सबसे खतरनाक वो गीत होता है
आपके कानो तक पहुंचने के लिए
जो मरसिए पढ़ता है
आतंकित लोगों के दरवाजों पर
जो गुंडों की तरह अकड़ता है
सबसे खतरनाक वह रात होती है
जो जिंदा रूह के आसमानों पर ढलती है
जिसमें सिर्फ उल्लू बोलते और हुआं हुआं करते गीदड़
हमेशा के अंधेरे बंद दरवाजों-चौखठों पर चिपक जाते हैं
सबसे खतरनाक वो दिशा होती है
जिसमें आत्मा का सूरज डूब जाए
और जिसकी मुर्दा धूप का कोई टुकड़ा
आपके जिस्म के पूरब में चुभ जाए
मेहनत की लूट सबसे खतरनाक नहीं होती
पुलिस की मार सबसे खतरनाक नहीं होती
गद्दारी और लोभ की मुट्ठी सबसे खतरनाक नहीं होती ।
सबसे खतरनाक होता है, हमारे सपनों का मर जाना...

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