Thursday 31 January 2019

दुर्बुद्धों की याचिका पर मूढ़ों की पंचायत..!


प्रभात रंजन दीन
‘असतो मा सद्गमय... तमसो मा ज्योतिर्गमय... मृत्योर्मा अमृतम् गमय...’ इस प्रार्थना के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल हुई है। इस प्रार्थना के गाने या न गाने पर विचार करने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने पांच जजों की संवैधानिक पीठ गठित कर दी। 29 जनवरी को आप सबने यह खबर दबी-कुचली हुई हालत में अखबारों में छपी देखी होगी। समाचार चैनेलों से तो यह खबर बिल्कुल ही गायब थी। जिस दिन सुप्रीम कोर्ट ने याचिका मंजूर की, वह दिन मनुष्यता और चेतनता के अंधकार में डूबने की तरफ उद्धत होने की सनद देने वाला काला दिन साबित हुआ। तमसो मा ज्योतिर्गमय... अंधकार से प्रकाश की ओर ले चलो, शायद इसी दिन को देख कर दूरद्रष्टाओं ने यह प्रार्थना रची होगी। अबौद्धिकता के अंधकार से निकाल कर ज्ञान के प्रकाश की तरफ ले चलने की प्रार्थना, याचिका दाखिल करने वाले से लेकर याचिका स्वीकृत करने वालों तक के लिए है... इस मसले पर अपनी चिंता साझा करने के लिए ‘इंडिया वाच’ पर विचार-गोष्ठी आयोजित की गई। समाचार चैनेलों पर ऐसे विषय विचार (डिबेट) के लिए नहीं चुने जाते, जिनका कोई सार्थक उद्देश्य हो। निरर्थक शोर-गुल, छीना-झपटी और आरोपों-प्रत्यारोपों का आयोजन पता नहीं किन प्रयोजनों से होता है, जिसे आम नागरिक भी पसंद नहीं करता... फिर भी वह टीवी चैनेलों पर चलता रहता है। खैर, हम सब मिल कर 'तमसो मा ज्योतिर्गमय' की सामाजिक और मानवीय आवश्यकता पर विचार-विमर्श कर ही रहे थे कि डिबेट पर अचानक अंधकार छा गया। शॉर्ट-सर्किट के कारण डिबेट आधा ही चल पाया और युग की भेंट चढ़ गया। लेकिन विचार-गोष्ठी का आधा-अधूरा हिस्सा भी अपनी बात तो कह ही देता है... आप भी वह आधा सुनें और अपूर्ण को अपनी चेतना से पूर्ण कर लें... इसी प्रार्थना के साथ।

Tuesday 29 January 2019

योगी आदित्यनाथ के अफसर गोमती रिवर फ्रंट घोटाले में लिप्त कंपनियों के एजेंट हैं...


गोमती रिवर फ्रंट घोटाले में शामिल रही कंपनियों के खिलाफ इन्फोर्समेंट डायरेक्टरेट की लखनऊ समेत देश के कई अन्य शहरों में की गई छापेमारियां पिछले दिनों सुर्खियों में रहीं। इस कार्रवाई पर प्रदेश की भाजपा सरकार ने अपनी पीठ ठोकी और अखबारों ने भी सरकार की पीठ ठोकने में कोई कोताही नहीं की। इन्फोर्समेंट डायरेक्टरेट की कार्रवाई भ्रष्टाचार के खिलाफ योगी सरकार की पारदर्शिता का अर्धसत्य है। सत्य का आधा हिस्सा खौफनाक है। शीर्ष सत्ता गलियारे में शीर्ष पदों पर आसीन सरकार के कुछ खास नौकरशाह मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के ईमानदार चेहरे पर कालिख पोतने में लगे हैं, लेकिन योगी को प्रधानमंत्री होने के ‘वर्चुअल-ड्रीम’ में कुलांचे मारने से फुर्सत नहीं। यह स्वप्न भी उन्हीं नौकरशाहों द्वारा प्रोजेक्टेड ‘हैलुसिनेशन’ है, जिसमें वे सीएम को फंसा कर रखना चाहते थे, और योगी उसमें फंस भी गए।
योगी सरकार के भ्रष्ट नौकरशाहों ने गोमती रिवर फ्रंट घोटाले के नामजद अभियुक्तों की लिस्ट में शामिल कंपनी ‘केके स्पन इंडिया लिमिटेड’ को स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट में ढाई सौ करोड़ रुपए का ठेका दे दिया। अब आलमबाग में सैकड़ों करोड़ के सीवर प्रोजेक्ट का ठेका भी इसी कंपनी को देने की तैयारी है। इसके अलावा रिवर फ्रंट घोटाले की एक अन्य अभियुक्त कंपनी गैमन-इंडिया को भी बड़ा ठेका देने का कुचक्र चल रहा है। यह ‘पुनीत-कर्म’ नगर विकास विभाग के प्रमुख सचिव मनोज सिंह और जल निगम के एमडी एके श्रीवास्तव ने किया। इन भ्रष्टों का दुस्साहस देखिए कि ये गोमती रिवर फ्रंट घोटाले की अभियुक्त कंपनी को सैकड़ों करोड़ का ठेका देने से नहीं हिचक रहे। मुख्यमंत्री को अगर जमीन पर टिके होने के यथार्थ का एहसास होता तो उन्हें यह पता होता कि जिस घोटाले की सीबीआई से जांच कराने की सिफारिश उन्होंने की, उसी घोटाले के अभियुक्तों को उन्हीं के नौकरशाह सैकड़ों करोड़ का ठेका बांट रहे हैं। योगी के नौकरशाह क्या यह धतकरम मुफ्त में कर रहे हैं..?  इस सवाल का जवाब स्पष्ट है।
इस प्रसंग का एक और पक्ष आपके समक्ष रख ही देना चाहिए, हालांकि चर्चा में भी यह संक्षिप्त तौर पर आया है। जब संदर्भित खबर का प्रोमो दोपहर से चलने लगा तब खबर को ‘समझ-बूझ’ कर चलाने की सांकेतिक धमकी वाली हिदायत भिजवाई गई। हिदायत देने वाले अधिकारी तक यह प्रति-संदेश भी भेज दिया गया कि खबर तो चलेगी ही... हम उनकी भी करतूतों के धागे जल्दी ही धुनेंगे’... गोमती रिवर फ्रंट घोटाले में लिप्त कंपनी को सैकड़ों करोड़ का ठेका देने वाले एक भ्रष्ट अफसर ने राजभवन की चाय-पार्टी में कहा, ‘टीवी पर दिखा देने से क्या फर्क पड़ता है..!’ यह है हमारी लोकतांत्रिक-व्यवस्था का नैतिक-स्तर। जरा देखिए, निकृष्ट-धन ने ऐसे अफसरों की खाल कितनी फिसलन भरी बना दी है कि शर्म-हया कहीं टिक नहीं रही... भ्रष्टाचार के खिलाफ कार्रवाई समग्रता से हो तभी उसकी सार्थकता स्थापित होती है। ईमानदारी तो शीशे की तरह होती है... इस पार से उस पार साफ साफ... ईमानदार छवि के योगी अपने ही भ्रष्ट नौकरशाहों पर ध्यान नहीं दे रहे, यह वाकई दुर्भाग्यपूर्ण है।
‘इंडिया वाच’ ने ‘ब्रेकिंग न्यूज़’ के साथ-साथ ही इस विषय पर खास चर्चा भी आयोजित की... आप भी सुनें... राय दें... साथ शरीक हों...

Sunday 27 January 2019

डरावने धारावाहिक जैसा है अवैध खनन...

उत्तर प्रदेश में अवैध खनन को लेकर हो रही सीबीआई कार्रवाई की अंतरकथा के दो एपिसोड हमने तैयार किए। ‘इंडिया वाच’ के खास और खोजी खबरों पर आधारित विशेष कार्यक्रम ‘डंके की चोट पर’ में खनन-इनसाइड की पहली स्टोरी शनिवार 12 जनवरी को प्रस्तुत हुई। इस स्टोरी को दोबारा पेश किए जाने की मांग हुई तो इसे 19 जनवरी को फिर प्रसारित किया गया। खनन-इनसाइड का दूसरा एपिसोड 26 जनवरी को प्रसारित हुआ। इसे भी हम आपके लिए प्रस्तुत करते हैं... 

Friday 18 January 2019

चंदा है पर गंदा है ये...

प्रभात रंजन दीन
राजनीतिक दलों का चंदा देश के नागरिकों के ध्यान-केंद्र में है। चंदा का गंदा धंधा राजनीतिक दलों का असली चारित्रिक सत्य है। ये दुकान खोले बैठे हैं। जिस पार्टी की सत्ता, उसे अधिक मिलेगा चंदा, बाकी का धंधा मंदा। इस देश के राजनीतिक-धंधे का यही तौर-तरीका है। इसीलिए सारे राजनीतिक दल किसी तरह सत्ता मिल जाए, उसी लीचड़-रेस में लगे रहते हैं। अभी केंद्र में भाजपा की सरकार है तो सिक्के भाजपा की दहलीज पर खनखना रहे हैं। जब कांग्रेस की सत्ता थी तो सिक्के कांग्रेस की दहलीज पर नाचते थे। सारे राजनीतिक दल अलग-अलग किस्म के वोटर के लिए अलग-अलग किस्म के पशुओं की तरह लड़ते दिखते हैं, लेकिन मुद्रा-हड्डी चूसने के लिए सब एक हो जाते हैं। तभी तो सूचना के अधिकार से राजनीतिक दलों को परे रखने के लिए सब एक हो जाते हैं। विदेश से धन प्राप्त करने के लिए संसद में एक होकर ध्वनिमत से विदेशी मुद्रा अधिनियम में संशोधन करा लेते हैं और तभी 20 हजार रुपए के चंदे का जुगाड़ कर बचाव का समवेत सुर से रास्ता निकाल लेते हैं। चंदा लेने के लिए कारपोरेट और औद्योगिक घरानों का बाकायदा ट्रस्ट गठित कर लेते हैं और लोकतंत्र-लोकहित के नाम पर हर तरफ आम लोगों को धोखा देते फिरते हैं। राजनीतिक पार्टियां चौर्य-कला-केंद्र बन चुकी हैं और इस कला के माहिर लोग राजनीति के धंधे में खूब फल-फूल रहे हैं। पार्टियों को मिल रहा चंदा ‘इंडिया वाच’ पर चर्चा का विषय था। आप भी सुनें... 

Sunday 13 January 2019

सीबीआई छापेमारी की ‘इनसाइड-स्टोरी’... गायत्री को सरकारी गवाह बना रही सीबीआई



प्रभात रंजन दीन
इंडिया वाच में खास और खोजी खबरों पर आधारित विशेष कार्यक्रम ‘डंके की चोट पर’ का यह दूसरा एपिसोड है। साथियो आपको बहुत बहुत धन्यवाद... आपने अखिलेश-कमलनाथ की कारस्तानी से उत्तर प्रदेश को हो रहे हजारों करोड़ रुपए के सालाना नुकसान को लेकर पेश की गई पहली खोज-खबर बड़े व्यापक पैमाने पर देखी, पढ़ी, सराही और रेस्पॉन्स दिया। दूसरे एपिसोड के लिए हमने अवैध खनन पर सीबीआई की कार्रवाई की अंतरकथा ‘इनसाइड-स्टोरी’ निकाली। अखबारों या चैनेलों पर छापे की रुटीन सूचना और राजनीतिक आरोपों-प्रत्यारोपों के बरक्स हम यह खोज कर लाए कि अवैध खनन के सिलसिले में सीबीआई की बहुचर्चित कार्रवाई के पीछे दरअसल चल क्या रहा है।
आपने अभी तक तो यह जाना कि उत्तर प्रदेश में अवैध तरीके से हो रहे खनन के गोरखधंधे की छानबीन के सिलसिले में सीबीआई ने निवर्तमान मुख्यमंत्री अखिलेश यादव की चहेती रहीं आईएएस अधिकारी बी चंद्रकला के लखनऊ से लेकर तेलंगाना तक के ठिकानों पर छापेमारी की। सीबीआई ने समाजवादी पार्टी के एमएलसी रमेश कुमार मिश्र, उसके भाई दिनेश कुमार मिश्रा, पूर्ववर्ती सत्ता के करीबी अंबिका तिवारी, बसपा से चुनाव लड़ चुके संजय दीक्षित, पट्टाधारक सत्यदेव दीक्षित, लीज होल्डर आदिल खान, खनन विभाग के रिटायर्ड क्लर्क राम अवतार सिंह, करण सिंह, हमीरपुर के माइनिंग अफसर मोईनुद्दीन, हमीरपुर के खनन क्लर्क रामआसरे प्रजापति के ठिकाने खंगाले। सपाई एमएलसी रमेश मिश्र अखिलेश यादव के काफी करीबी रहे हैं और प्रजापति के साथ खनन के गोरखधंधे में लिप्त रहे हैं। आईएएस अफसर चंद्रकला समेत सीबीआई ने अभी 11 लोगों को नामजद अभियुक्त बनाया है। इसके पहले सीबीआई शामली खनन घोटाले में भी गायत्री के करीबी विकास वर्मा, अमरेंद्र सिंह, शामली के तत्कालीन असिस्टेंट जियोलॉजिस्ट डॉ. अदल सिंह, आमिर सिद्दीकी, जेपी पांडेय, सतीश कुमार, संदीप राठी, मंगल सेन वर्मा, रमेश कुमार गहलयान समेत कई लोगों के खिलाफ 23 फरवरी 2017 को ही एफआईआर दर्ज कर चुकी है। तत्कालीन खनन मंत्री गायत्री प्रजापति पहले से जेल में है। आप जानते ही हैं कि प्रजापति अवैध खनन के साथ-साथ बलात्कार के भी एक मामले में अंदर है।
समाजवादी पार्टी के शासनकाल में मुख्यमंत्री अखिलेश यादव और पूर्व मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव की खनन में अत्यधिक दिलचस्पी थी। खनन को लेकर बाप-बेटे में खींचतान मची थी। सीबीआई ने अवैध खनन मामले की जांच दो अगस्त 2016 को शुरू की थी। चपेट में आने के डर से मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने गायत्री प्रजापति को 11 सितम्बर 2016 को मंत्रिमंडल से बाहर निकाल दिया था। लेकिन मुलायम सिंह यादव ने अखिलेश पर इतना दबाव बढ़ाया कि निष्कासन के 13 दिन बाद ही 25 सितम्बर 2016 को अखिलेश यादव ने गायत्री प्रजापति को फिर से मंत्रिमंडल में शामिल कर लिया और फिर खनन विभाग ही दे दिया। अखिलेश पर मुलायम का दबाव था या समझौता। हम यह कहते हैं कि गायत्री प्रजापति को मंत्रिमंडल में वापस लेने और फिर से खनन विभाग देने के पीछे कोई दबाव नहीं था, बल्कि पिता-पुत्र में समझौता था। खनन मामले की जांच कराने वाले तत्कालीन लोकायुक्त एनके मेहरोत्रा कहते हैं... ‘सही बात यह है कि खनन को लेकर ही दो समाजवादी पार्टी बनी। इस माइन्स (खदान) के झगड़े को लेकर ही परिवार में झगड़ा हुआ। और कुछ नहीं था, सिर्फ माइन्स माइन्स। और मुलायम सिंह जी ने इनको (अखिलेश को) राय दी थी कि तुम छोड़ दो खनन विभाग। तुम्हारे भले के लिए कह रहा हूं, तुम्हारे भविष्य के लिए कह रहा हूं। तब अखिलेश ने खनन विभाग छोड़ा था।’
तो देखा आपने... मुलायम परिवार में खनन को लेकर ही झगड़ा शुरू हुआ और खनन को लेकर ही पिता-पुत्र में समझौता भी हुआ। समझौते के बाद गायत्री प्रजापति ने मुलायम के साथ-साथ अखिलेश की भी सेवा शुरू कर दी। दोबारा मंत्री बनते ही गायत्री ने सारे लोकलाज छोड़ कर राज्यपाल के सामने ही मुख्यमंत्री अखिलेश के एक बार नहीं, तीन-तीन बार पैर छुए और सबको यह संदेश दिया कि दूसरे टर्म में वे अखिलेश के लिए क्या-क्या करेंगे। गायत्री ने मुलायम को भगवान कहा और उनके आगे दंडवत लेट गए। मुलायम भी बड़े प्रसन्न दिखे। उस समय भी सपा के ही नेता यह कहते फिर रहे थे कि गायत्री की पुनरवापसी समझौता-फार्मूले के तहत हुई है। वह समझौता फार्मूला क्या था, इसे आप अच्छी तरह समझते हैं। बेटे अखिलेश को अलर्ट करने वाले पिता मुलायम अपने चहेते गायत्री को भी बार-बार सतर्क कर रहे थे। आप थोड़ा फ्लैशबैक में चलें... अप्रैल 2016... पिछड़ों के सम्मेलन में मुलायम ने कहा था, गायत्री कागज पत्तर दुरुस्त कर लो, सीबीआई से मत डरना। अनुभवी मुलायम जानते थे कि अकूत कमाई का मामला कहां तक जाएगा।
गायत्री के लिए मुलायम के हृदय में इतना प्रेम रहा है कि वे गायत्री से मिलने जेल तक चले गए। पहले दिन गए तो मुलाकात की इजाजत नहीं मिली। मुलायम दूसरे दिन भी जेल पहुंच गए और गायत्री से मिल कर ही माने। जेल में एक घंटे से अधिक समय तक हुई इस एकांत मुलाकात के गहरे मतलब हैं। आज के डेवलपमेंट के प्रसंग में उस समय की मुलाकात के मतलब समझे जा सकते हैं।
खनन और आबकारी ऐसे दो महकमे हैं, जो सरकार को सबसे अधिक राजस्व देते हैं। इन्हीं दो महकमों में लूट सबसे अधिक है। खनन से इतना अकूत धन निकलता है कि सारे दबाव वहीं दम तोड़ देते हैं। धन के समुचित बंटवारे का समझौता ही तब एकमात्र विकल्प रह जाता है। अभी तो सीबीआई ने एक लॉकर और दो बैंक खाते जब्त किए हैं। लॉकर और बैंक खाते हमीरपुर की जिलाधिकारी रहीं बी. चंद्रकला के हैं। क्लर्क राम अवतार सिंह के घर से भी दो करोड़ रुपए और दो किलो सोना जब्त किया गया है। लेकिन अभी असली तिजोरियां तो खुलना बाकी हैं। चंद्रकला ने शीर्ष सत्ता के इशारे पर ई-टेंडर के प्रावधान को ताक पर रख कर मौरंग खनन के 60 पट्टे खनन माफियाओं को अवैध तरीके से बांट दिए थे। ऐसी अंधेरगर्दी पूरे प्रदेश में मची हुई थी।
अवैध खनन की अकूत कमाई का जब तिलिस्म खुलेगा तो अखिलेश, मुलायम के अलावा कई नेताओं के चेहरे नजर आएंगे। इसमें केवल समाजवादी पार्टी के नेता ही नहीं बल्कि कांग्रेस के भी नेता और उनके रिश्तेदार हैं, जिनके चेहरे हम आपको बाद में दिखाएंगे। इन नेताओं के रिश्तेदारों ने अखिलेश सरकार के खनन मंत्री गायत्री प्रजापति के गुर्गों के साथ मिल कर धंधे किए, अवैध कमाई के धन से दुबई तक जाकर कंपनियां खोलीं, स्कूल खोले, फिल्में बनाईं और हमारे-आपके पैसे से खूब गुलछर्रे उड़ाए। हम क्रमशः पर्दा उठाएंगे, आप देखते जाएं। नेताओं, माफियाओं, नौकरशाहों ने प्रदेश को किस तरह लूटा है उसका भी एक जायजा लेते चलते हैं।
उत्तर प्रदेश के तकरीबन सभी जिलों में बड़े पैमाने पर अवैध खनन हो रहा है। सोनभद्र में तो जंगल की एक लाख हेक्टेयर से ज्यादा जमीन पर खनन-माफिया कब्जा जमाए बैठे हैं। सरकार झूठ कहती है कि भूमाफियाओं के खिलाफ कार्रवाई हो रही है। नेशनल ग्रीन ट्रिब्युनल ने सोनभद्र की वन-भूमि को खनन माफियाओं के कब्जे से मुक्त करने का राज्य सरकार को आदेश दे रखा है, लेकिन सरकार इस आदेश को कोई तवज्जो नहीं देती। प्रधानमंत्री मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी और पड़ोस के जिले मिर्जापुर का भी यही हाल है। वाराणसी के जाल्हूपुर और उससे सटे इलाकों में वरुणा नदी के किनारे की सैकड़ों एकड़ जमीन पर माफिया कब्जा जमाए बैठे हैं। मिर्जापुर में पत्थर कटान से लोग आजिज हैं। आप याद करें तत्कालीन मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने राष्ट्रीय राजधानी से जुड़े नोएडा में अवैध खनन के खिलाफ अभियान चलाने वाली आईएएस अधिकारी दुर्गाशक्ति नागपाल को निलंबित कर दिया था। नोएडा और ग्रेटर नोएडा क्षेत्र में अवैध खनन का सिलसिला निर्बाध रूप से जारी है। ग्रेटर नोएडा के जागनपुर, अफजलपुर, जागनपुर दोआबा, दनकौर, अट्टा गुजरान, गुनपुरा, फलेदा, टेकपुर, शेरगढ़, मेहंदी, घरबारा जैसे दर्जनों गांवों में अवैध खनन जारी है। वीभत्स स्थिति यह हो गई है कि गौतमबुद्धनगर यानी नोएडा में अवैध खनन के चलते यमुना नदी कई सौमीटर नोएडा की तरफ खिसक आई है। पश्चिमी उत्तर प्रदेश में बरेली, मुरादाबाद, सहारनपुर और मेरठ, अवध क्षेत्र में बहराइच, गोंडा और बलरामपुर पूर्वांचल में देवरिया, श्रावस्ती, कुशीनगर समेत तमाम जिले खनन माफियाओं के चंगुल में हैं। प्रदेश में अवैध खनन का सालाना कारोबार पांच हजार करोड़ रुपए से ज्यादा का है। सरकारी नुमाइंदे ही बताते हैं कि हर साल करीब 20 करोड़ ट्रक माल अवैध रूप से इधर से उधर होता है। बरेली की बहेड़ी तहसील में किच्छा नदी, फरीदपुर में कैलाश नदी और सदर तहसील में रामगंगा नदी पर अवैध खनन बड़े पैमाने पर चल रहा है। मेरठ में धनैटा के जंगलों मेंअवैध खनन चलता ही रहता है। बुंदेलखंड में चंबल, नर्मदा, यमुना और टोंस नदियों के किनारे-किनारे भारी पैमाने पर अवैध खनन चल रहा है। फैजाबाद के गुप्तारघाट के नजदीकबना बांध अवैध खनन के कारण खतरे में है। हमीरपुर के सरीला तहसील के विरहट इस्लामपुर गांव की तलहटी से बेतवा नदी के किनारे-किनारे बेतहाशा अवैध खनन हो रहा है।
स्वाभाविक प्रश्न उठा कि अवैध खनन की जांच की प्रक्रिया में सीबीआई को ऐसा कौन सा ब्रह्मास्त्र हाथ लग गया कि आईएएस अफसर समेत दर्जनभर लोगों पर सीबीआई ने सीधे हाथ डाल दिया..! इसका जवाब यह है कि सीबीआई तत्कालीन खनन मंत्री गायत्री प्रजापति को अपना ब्रह्मास्त्र बनाने में जुटी है। गायत्री प्रजापति को सरकारी गवाह बनाने की कोशिश चल रही है। गायत्री ने सरकारी गवाह बनने की सहमति दे दी है। सीबीआई प्यादे से सुल्तान को धराशाई करने की जुगत में है। अखिलेश यादव को कसने के लिए अखिलेश के ही प्यादे का इस्तेमाल किए जाने का फार्मूला बना है। यह फार्मूला भले ही भाजपाई-थिंकटैंक से निकला हो, लेकिन दांव पर तो सीबीआई ही है।
सीबीआई को अखिलेश यादव के खिलाफ डायरेक्ट एविडेंस चाहिए। इसके लिए सबसे कारगर औजार गायत्री प्रजापति है, जिसकी मदद से सीबीआई डायरेक्ट एविडेंस हासिल करेगी। सरकारी गवाह बनने के एवज में प्रजापति को सजा में काफी रियायत मिल जाएगी। बलात्कार जैसे गंभीर मामले में गायत्री को सजा तय है। लेकिन सीबीआई के हाथ में बलात्कार पीड़िता के दो बयान हैं। भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 164 के तहत दिए बयान में पहले महिला ने बलात्कार में गायत्री की भूमिका से इन्कार किया था। बाद में 164 के तहत महिला का दोबारा बयान दर्ज कराया गया, जिसमें उसी महिला ने गायत्री को बलात्कार में शामिल होने की बात कही। गायत्री प्रजापति सरकारी गवाह बना तो महिला पहले बयान के आधार पर कोर्ट में अपना स्टैंड बदल सकती है। इसके अलावा खनन घोटाले में भी सरकारी गवाह होने के नाते उसे सजा में काफी रियायतें मिल जाएंगी। दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 337 नई धारा 306 सजा में छूट या माफी का प्रावधान करती है। सीबीआई इसी बिसात पर लगातार काम कर रही है।
राजीव गांधी हत्याकांड की गुत्थियां सुलझाने वाले सीबीआई अफसर आर श्रीकुमार सरकारी गवाह बनने-बनाने के कानूनी प्रावधान के बारे में कहते हैं कि सरकारी गवाह खुद उस अपराध का एक प्रमुख अभियुक्त होता है। अपराध से सम्बन्धित महत्वपूर्ण सबूत और तथ्य हासिल कराने के एवज में सरकारी गवाह की सजा में रियायत या छूट का कानूनी प्रावधान है। सरकारी गवाह के सबूत को ठोस माना जाता है, क्योंकि सबूतों की विश्वसनीयता को ठोस तथ्यों, दस्तावेजों और प्रमाणों से साबित कराना भी सरकारी गवाह की जिम्मेदारी होती है। अभियुक्त स्वेच्छा से भी सरकारी गवाह बन सकता है या एजेंसी भी उसे सरकारी गवाह बनने के लिए राजी कर सकती है।
गायत्री प्रजापति को सरकारी गवाह बना कर अखिलेश यादव के खिलाफ उसका इस्तेमाल करेगी सीबीआई। सरकारी गवाह बनाने के बाद सीबीआई के लिए गायत्री की डायरी और अन्य सबूतों की प्रामाणिकता पर मुहर लग जाएगी, जिसकी उसे जरूरत है। गायत्री की डायरी में तमाम बड़ी-बड़ी हस्तियों से हुए लेन-देन का ब्यौरा लिखा है। गायत्री के सरकारी गवाह बनने की सहमति मिलने के बाद ही सीबीआई ने उसकी डायरी में दर्ज ब्यौरों की प्रामाणिकता हासिल करने की कवायद शुरू की। हाल में हुई छापेमारियों के पीछे उस कवायद का बड़ा रोल है। इसी कवायद में मुलायम परिवार के एक रिश्तेदार की संदेहास्पद भूमिका भी उजागर हुई है। मुलायम परिवार के इस सदस्य की अखिलेश से नहीं बनती, या ऐसा भी कह सकते हैं कि अखिलेश की इस सदस्य से नहीं बनती। बहरहाल, मुलायम परिवार के इस सदस्य का नाम हम बाद में बताएंगे। हां, अखिलेश सरकार में खनन विभाग के प्रमुख सचिव गुरदीप सिंह का नाम हम जरूर बता रहे हैं, जिनसे सीबीआई पहले भी पूछताछ कर चुकी है, अब उन्हें फिर से सीबीआई में सम्मन किया जाएगा। अखिलेश के प्रसंग में कुछ और अधिकारी सीबीआई में तलब किए जाने वाले हैं, जो उनके मुख्यमंत्रित्वकाल में उनके सचिवालय में तैनात रहे हैं।
गायत्री प्रजापति को सरकारी गवाह बनाने की सीबीआई की कोशिशों पर पूर्व लोकायुक्त एनके मेहरोत्रा से पूछा कि क्या सीबीआई की यह कोशिश लॉजिकल है, तार्किक है? क्या यह लीगल है, कानूनी है? यूपी में अवैध खनन का मामला मेहरोत्रा साहब के कार्यकाल में ही परवान चढ़ा और सुर्खियों में रहा। इसलिए उनकी राय बेहद महत्वपूर्ण है। लोकायुक्त ने कहा... ‘इसे इल्लीगल (गैर-कानूनी) नहीं कह सकते क्योंकि कानून में इसका प्रोविजन तो है ही। लेकिन यह लॉजिकल (तार्किक) नहीं है। गायत्री प्रजापति को सरकारी गवाह बनाना अनुचित है। इससे मौजूदा गवर्नमेंट की और इमेज गिरेगी। जैसे सीबीआई मामले में हुआ। जैसे ज्युडिशियरी के केस में आप देख रहे हैं रोज ही कुछ न कुछ हो रहा है।’
पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव को घेरने के लिए भाजपा कोई भी हथकंडा आजमाने के मूड में है। आपने देखा ही कि सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने के दूसरे ही दिन केंद्र ने सीबीआई के निदेशक आलोक वर्मा को फिर से हटा दिया। सीबीआई ने अवैध खनन मामले की जांच जुलाई 2017 में शुरू की। जबकि इलाहाबाद हाईकोर्ट ने जुलाई 2016 में ही सीबीआई को जांच करने का आदेश दिया था। आईएएस अफसर चंद्रकला समेत दर्जभर लोगों के ठिकानों पर की गई छापामारी दो जनवरी 2019 में दर्ज की गई तीसरी एफआईआर के आधार पर की गई। शामली और कौशाम्बी के खनन घोटाले की एफआईआर पिछले साल ही दर्ज हो चुकी है। अब फतेहपुर, देवरिया, सहारनपुर, सिद्धार्थनगर समेत कुछ अन्य जिलों के खनन घोटाले के मामले में एफआईआर दर्ज किए जाने की औपचारिकताएं पूरी हो रही हैं। ताजा एफआईआर में सीबीआई के डीएसपी केपी शर्मा लिखते हैं कि आईएएस बी. चंद्रकला ने 10 अन्य लोगों के साथ मिलकर आपराधिक षडयंत्र किया और बड़े पैमाने पर हमीरपुर में अवैध खनन करवाया। यह बड़ा संकेत है कि आपराधिक षडयंत्र (भारतीय दंड विधान की धारा 120-बी) के तहत कई और लोग कानून की परिधि में लिए जाएंगे। इनमें अखिलेश यादव भी हो सकते हैं।
खनन घोटाले की जांच करने वाली सीबीआई की टीम में शामिल अधिकारी कहते हैं कि पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के खिलाफ कई ठोस सबूत हैं और कई और प्राप्त हो रहे हैं। बस, उनके कोरोबोरेशन अर्थात पुष्टिकरण का काम चल रहा है। लोकायुक्त की जांच के दस्तावेज देखें तो उसमें पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव की पृष्ठ-भूमिका नजर आएगी। तत्कालीन लोकायुक्त एनके मेहरोत्रा कहते हैं... ‘खनन मामले में अखिलेश के खिलाफ भी एविडेंस मेरे सामने आए, लेकिन मुख्यमंत्री लोकायुक्त के विधिक अधिकार के बाहर होते हैं, इसलिए मैं उन्हें छू नहीं सकता था। सारे एविडेंस थे, लेकिन मेरे कार्यक्षेत्र में खनन राज्य मंत्री थे। खनन विभाग के तत्कालीन प्रमुख सचिव गुरमीत सिंह ने मुझसे कहा भी था कि मुझे बार-बार क्यों बुलाते हैं। जब मुख्यमंत्री आपके विधिक क्षेत्र में आते ही नहीं तो क्यों कर रहे हैं जांच। सीबीआई द्वारा जांच टेकओवर करने के बाद अब सारे एविडेंस सीबीआई के पास हैं। स्वाभाविक है अखिलेश यादव से जुड़े एविडेंस भी सीबीआई के पास हैं।’
तत्कालीन लोकायुक्त जस्टिस एनके मेहरोत्रा की जांच के दस्तावेज बताते हैं कि शीर्ष सत्ता के इशारे और मिलीभगत से प्रदेश में अवैध खनन का धंधा चल रहा था। उस समय अवैध खनन का कारोबार हर महीने करीब दो सौ करोड़ का था। इस कारोबार में शीर्ष सत्ता पर आसीन और शीर्ष सत्ता पर प्रभावी नेता, अफसर, कुछ पत्रकार और भूमाफिया लिप्त थे। लोकायुक्त ने इस मिलीभगत को 'सिंडिकेट' नाम दिया था। अवैध खनन के साथ ही रॉयल्टी और टैक्स चोरी भी की जाती थी। लोकायुक्त की अदालत में ऐसे तमाम सूबत आए थे जो अवैध खनन के जरिए राजस्व की भयावह लूट का पर्दाफाश करते थे। खनन से अरबों की कमाई होती थी, लेकिन सरकार को रॉयल्टी अत्यंत कम दी जाती थी। रॉयल्टी का चुराया हुआ धन नेता, खनन ठेकेदार, सिंडिकेट और अफसरों के बीच बंटता था।ट्रांसपोर्टेशन में भी लूट मची थी। खदान के गेट पर सिंडीकेट का बैरियर लगता था, जिसमें हर ट्रक से अवैध वसूली कर कच्ची रसीद दी जाती थी। यह रसीद ही ट्रक चालक के लिए परमिट का काम करती थी। पूरा तंत्र कच्ची रसीद देख कर ही ट्रकों को पास करता था। वसूली का हिस्सा सिंडीकेट, अफसर, थाने, चौकियों तक हर महीने पहुंचता रहता था।
इतने संवेदनशील मुद्दे पर राजनीति कतई नहीं होनी चाहिए। ऐसी भयावह लूट पर अगर कार्रवाई न हो तो यह दुर्भाग्यपूर्ण ही होगा। पूर्व लोकायुक्त एनके मेहरोत्रा सही कहते हैं कि ‘निर्णायक स्थिति तब आएगी जब राजनीतिक दल एक दूसरे के दुश्मन हो जाएंगे। जिस दिन फिर हाथ मिला लिया तो कुछ नहीं होगा। निर्णायक स्थिति निर्भर करती है राजनीतिक इक्वेशंस पर। अगर इक्वेशंस ठीक हो गए तो कुछ नहीं होना और इक्वेशंस ठीक नहीं हुए तो बहुत भयानक परिणाम निकल सकता है।’
लगता है कि खनन घोटाले को लेकर सीबीआई वाकई गंभीर है। इसका संकेत तभी मिलने लगा था जब लखनऊ जोन के सीबीआई के संयुक्त निदेशक डॉ. जीके गोस्वामी को सीबीआई मुख्यालय दिल्ली में एंटी करप्शन इकाई के प्रमुख का अतिरिक्त कार्यभार दिया गया। सीबीआई मुख्यालय के एंटी करप्शन यूनिट के प्रमुख वी मुरुगेशन को हटा कर ईमानदार और प्रखर छवि वाले आईपीएस अफसर डॉ. जीके गोस्वामी को बिठाए जाने के खास मतलब तो हैं ही। लखनऊ जोन के संयुक्त निदेशक डॉ. जीके गोस्वामी को एंटी करप्शन युनिट के प्रमुख का अतिरिक्त कार्यभार दिए जाने का यह सटीक समय था। डॉ. गोस्वामी के होते हुए सीबीआई गायत्री प्रजापति को सरकारी गवाह कैसे बनाती है और इसमें डॉ. गोस्वामी की क्या भूमिका होती है... यह देखना है। 

Friday 11 January 2019

अखिलेश-कमलनाथ की कारस्तानी पर क्या कहते हैं ऊर्जा विशेषज्ञ...


Debate with power experts on 'Akhilesh Kamalnath Karastani', special story on 'Danke ki Chot par'

'इंडिया वाच' न्यूज़ चैनल का विशेष कार्यक्रम 'डंके की चोट पर' अपनी पहली खास-खोजी खबर 'अखिलेश-कमलनाथ की कारस्तानी से यूपी को 25 साल लगता रहेगा साढ़े चार हजार करोड़ रुपए का सालाना झटका' के प्रसारण के साथ शुरू हुआ। यह खबर बड़ी संख्या में देखी गई। अखबार होता तो कहता कि बड़ी संख्या में पाठक मिले। न्यूज़ चैनल है तो अब शब्द बदलता हूं और कहता हूं कि बड़ी संख्या में दर्शक मिले... वैसे, पठनीयता दर्शनीयता के बिना संभव नहीं और दर्शनीयता में पठनीयता निहित है। उस खबर पर इतना अधिक और इतना अच्छा रेस्पॉन्स मिला कि ऊर्जा घोटाले की उसी खबर पर ऊर्जा विशेषज्ञों के साथ विशेष चर्चा आयोजित करने की मांग हुई। पिछले दिनों प्राइम-टाइम में 'इंडिया वाच' के सेंट्रल-डिबेट में इसी विषय पर विशेष चर्चा आयोजित की गई, जिसमें ऊर्जा क्षेत्र के प्रमुख विशेषज्ञ शामिल हुए। आप फिर से 'डंके की चोट पर' की उस विशेष खबर को ध्यान में रखते हुए यह विशेष चर्चा सुनें और अभियान के साथ शरीक हों... प्रभात रंजन दीन

Tuesday 8 January 2019

‘इंडिया वाच’ का विशेष... ‘डंके की चोट पर’ यूपी की खाते भी हैं, गरियाते भी हैं कमलनाथ

प्रभात रंजन दीन
‘इंडिया वाच’ न्यूज़ चैनल पर खास और खोजी खबरों पर आधारित विशेष कार्यक्रम शुरू हुआ। कार्यक्रम का नाम रखा गया है... ‘डंके की चोट पर’। इस विशेष कार्यक्रम में ऐसी खबरें ली जाएंगी जो हमारे-आपके सरोकार से जुड़ी हों, ऐसी खबरें जो लोकतंत्र को जिंदा रखने के लिए जरूरी हों, ऐसी खबरें जिसे दबाने के लिए भारी दबाव हो और ऐसी खबरें जो दबाव और लुभाव में दबा दी जाती हों। ऐसी ही खबरों को हम ‘इंडिया वाच’ न्यूज़ चैनल पर जिंदा करेंगे, उसका फॉलोअप करेंगे, उस खबर का पीछा करेंगे। हम आपसे भी आग्रह करेंगे कि आप ऐसी किसी स्थिति से गुजर रहे हों जो विशेष खबर बनती हो, या आप किसी गंभीर खबर की जानकारी रखते हों, या किसी गंभीर मसले में आपकी कोई नहीं सुन रहा हो, तो हमारे पास आएं। हमें prabhatranjandeen@gmail.com पर सूचित करें। हम आपकी समस्या को मजबूत आवाज देंगे, हम आपकी समस्याओं को अपनी समस्या मानेंगे और व्यवस्था तंत्र से जवाब मांगेंगे, डंके की चोट पर...
हमने कार्यक्रम की शुरुआत की मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री कमलनाथ से... कमलनाथ ने उत्तर प्रदेश के लोगों के आत्मसम्मान पर प्रहार किया है। मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री का पदभार ग्रहण करते ही कमलनाथ ने उत्तर प्रदेश पर हमला बोला कि यूपी के लोग एमपी का रोजगार खा रहे हैं। मध्यप्रदेश का जो नेता उत्तर प्रदेश का हजारों करोड़ रुपया सिलसिलेवार तरीके से डकार रहा है, वह कहता है कि यूपी के लोग एमपी का रोजगार खा रहे हैं। चमकदार शीशे के घर में रहने वाले कमलनाथ ने यूपी के नौजवानों पर पत्थर फेंका है। हमने उस पत्थर का जवाब दिया है। सरकार ऊंचा सुनती है तो सुना करे। आम लोग सुनें... नौजवान सुनें... फिर इतना दबाव बने कि यूपी सरकार का नैतिक बोध जगे और मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री कमलनाथ यूपी के बेरोजगारों के अपमान का हर्जाना भरने के लिए विवश हो जाएं।
मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री कमलनाथ और उनके कुछ खास रिश्तेदारों की वजह से उत्तर प्रदेश को हर साल चार हजार करोड़ रुपए का सिलसिलेवार नुकसान हो रहा है। यूपी की पिछली सरकार, यानी अखिलेश यादव की सरकार ने तत्कालीन केंद्रीय मंत्री और एमपी के मौजूदा मुख्यमंत्री कमलनाथ को उपकृत करने के लिए उत्तर प्रदेश के सारे हित ताक पर रख दिए थे। तत्कालीन मुख्यमंत्री अखिलेश यादव की दरियादिली की वजह से उत्तर प्रदेश को तकरीबन चार हजार करोड़ का सालाना झटका 25 साल तक लगता रहेगा। अखिलेश यादव और कमलनाथ की साठगांठ का यह महज एक पहलू है। इसने उत्तर प्रदेश को कई तरफ से नुकसान पहुंचाया है। इस नुकसान का सिलसिला लगातार जारी है... योगी सरकार भी इस क्रमिक नुकसान की तरफ आंखें मूंदे हुई है।
कांग्रेस नेता कमलनाथ, कमलनाथ की बहन नीता पुरी, बहनोई दीपक पुरी और भांजे रातुल पुरी के आगे अखिलेश यादव की सरकार बिछ गई थी। यह बिछना-बिछौना इतना प्रगाढ़ हुआ कि यूपी को लूटने का दरवाजा खोल दिया गया। ईस्ट इंडिया कंपनी की तरह पहले एक कंपनी यूपी में घुसी। फिर कई कंपनियों ने यहां पैर पसार लिए। यहां तक कि नाम बदल-बदल कर ‘कमलनाथों’ की कंपनियां प्रदेश के खजाने से खेल रही हैं। ...और कमलनाथ समेत उनके रिश्तेदार भारी मुनाफा कमा रहे हैं। इस कमाई का उच्छिष्ट सपाई सत्ता के नेता और नौकरशाह पहले ही चाट चुके हैं।
तत्कालीन केंद्रीय मंत्री कमलनाथ से प्रभावित होने के बाद यूपी के तत्कालीन मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने बिजली खरीदने के लिए उस कम्पनी के साथ 25 सालाना करार किया जिसने निविदा में बिजली की ऊंची दर कोट की थी। निविदा में शामिल सात कम्पनियों में 'मोज़र बेयर' छठे नम्बर पर थी। लेकिन प्रदेश सरकार केंद्रीय मंत्री कमलनाथ के कारण 'मोज़र बेयर' को उपकृत करने पर आमादा थी। लिहाजा, सरकार ने निविदा में शामिल सातों कम्पनियों से बिजली खरीदने का फैसला कर लिया। छठे नम्बर की कम्पनी को फायदा पहुंचाने के लिए सातवें नम्बर की कम्पनी की भी लॉटरी खुल गई। जिन कम्पनियों ने न्यूनतम दर कोट की थी, उन्हें अखिलेश यादव ने बेवकूफ बना दिया। 'मोज़र बेयर' कम्पनी कांग्रेस नेता कमलनाथ के बहनोई दीपक पुरी की है। 2016-17 से 25 साल के लिए बिजली खरीदने का करार करने की अखिलेश यादव को इतनी छटपटाहट थी कि उन्होंने 2013 में ही इसका वारान्यारा कर दिया।
2017 से 25 साल के लिए करार। यानी, अखिलेश सरकार ने वर्ष 2042 तक के लिए यह करार किया। इस करार के लिए अखिलेश इतने बेकरार क्यों थे? इसकी वजहें तो हम भी समझते हैं और आप भी समझते हैं। नेताओं की समाजसेवा के यही असली निहितार्थ हैं...
अब हम मामले की तफसील में चलते हैं... अखिलेश सरकार ने छह हजार मेगावाट बिजली खरीदने के लिए निविदा आमंत्रित की थी। इसमें कुल 17 कम्पनियों ने हिस्सा लिया था। इनमें से ऊपर की सात कंपनियां उठा ली गईं, क्योंकि छठे नंबर पर कमलनाथ के बहनोई दीपक पुरी की कंपनी मोज़र बेयर अंटकी थी। सात कंपनियों में एनएसएल पावर ने तीन सौ मेगावाट बिजली देने के लिए सबसे कम 4.48 रुपए प्रति युनिट की कीमत कोट की थी। टीआरएन इनर्जी ने 390 मेगावाट बिजली देने के लिए 4.886 रुपए प्रति युनिट, लैंको-बाबंध ने 390 मेगावाट बिजली देने के लिए 5.074 रुपए प्रति युनिट, आरकेएम पावरग्रीन ने 350 मेगावाट बिजली देने के लिए 5.088 रुपए प्रति युनिट, केएसके इनर्जी ने 1000 मेगावाट बिजली देने के लिए 5.443 रुपए, मोज़र बेयर ने 361 मेगावाट बिजली देने के लिए 5.730 रुपए प्रति युनिट और नवयुग पावर ने 800 मेगावाट बिजली देने के लिए 5.843 रुपए प्रति युनिट कीमत कोट की थी।
न्यूनतम दर कोट करने वाली तीन कंपनियों का हाल कांग्रेस नेता कमलनाथ के प्रभाव और पूंजी के दबाव में भारतीय लोकतंत्र जैसा हो गया। तीनों कंपनियां अपनी जमानत राशि जमा कर फंस गईं। काम छोड़ा तो जमानत जब्त और काम पकड़ा तो घाटे का सौदा...
न्यूनतम दर कोट करने वाली तीन कम्पनियों 'एनएसएल पावर्स', 'टीआरएन इनर्जी' और 'लैंको बाबंध' के साथ सरकार का 'पावर परचेज़ एग्रीमेंट' पूरा भी हो गया था। लेकिन अचानक शीर्ष सत्ता की तरफ सेकेंद्रीय मंत्री कमलनाथ का संदर्भ सामने आया। संकेत पाते ही नौकरशाही ने तिकड़म बुनना शुरू कर दिया। उत्तर प्रदेश पावर कारपोरेशन लिमिटेड की निविदा आकलन समिति (बिड इवैलुएशन कमेटी) ने पांचवें, छठे और सातवें नम्बर की कम्पनी को भी चयनित कम्पनियों की सूची में डाल लिया। 'मोज़र बेयर' छठे नम्बर पर थी। तो उसके एक ऊपर और एक नीचे वाले के भी 'भाग' खुल गए। अखिलेश सरकार ने सबसे ऊंची बोली लगाने वाली तीन कंपनियों को छह हजार में से दो हजार मेगावाट बिजली खरीदने का ठेका दे दिया। ...'सत्यमेव जयते दिवस' के एक दिन पहले एक अक्टूबर 2013 को अखिलेश सरकार ने 'कमलनाथ जयते दिवस' मना लिया। कमलनाथ मोज़र बेयर कंपनी के बड़े शेयरधारक हैं। आप खुद देखिए इस शपथनामे में उनकी यह स्वीकारोक्ति।
कमलनाथ पर इतना उपकार करने के बाद भी अखिलेश का मन नहीं भरा। आप आश्चर्य करेंगे कि अखिलेश यादव ने बिजली की सबसे ऊंची कीमत कोट करने वाली तीनों कंपनियों को दो हजार मेगावाट बिजली खरीदने के अलावा 2160 मेगावाट और अतिरिक्त बिजली खरीदने की परमिट भी दे दी। जिस समय यह करार हुआ उस समय ऊर्जा विभाग के प्रमुख सचिव संजय अग्रवाल थे। अग्रवाल योगी सरकार के भी उतने ही चहेते हैं, जितने अखिलेश सरकार के थे। तत्कालीन मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ही ऊर्जा विभाग के प्रभारी मंत्री भी थे। सत्ता संभालने के बाद अखिलेश यादव यही कहते रहे कि मायावती सरकार 25 हजार करोड़ का बोझ डाल कर गईं। लेकिन अखिलेश यादव खुद 25 साल तक साढ़े चार हजार करोड़ रुपए के सालाना झटके का इंतजाम करके गए। योगी को इसका हिसाब-किताब करने की फुर्सत नहीं है। आपको यह बताने का प्रसंग भी बनता है कि वर्ष 2013 में केंद्रीय मंत्री कमलनाथ अपने प्रभाव का इस्तेमाल कर बहनोई दीपक पुरी की कंपनी को उत्तर प्रदेश में हजारों करोड़ का ठेका दिलाने में लगे थे, उसके दो साल पहले वे अपने प्रभाव के बूते बहनोई को पद्मश्री की उपाधि भी दिला चुके थे।
अखिलेश यादव ने कमलनाथ के बहनोई दीपक पुरी को तो फायदा पहुंचाया ही, कमलनाथ के भांजे रातुल पुरी के लिए भी सरकारी खजाना खोल दिया। कमलनाथ के भांजे को फायदा पहुंचाने के लिए नियम कानून और सरकारी प्रावधानों के साथ खुली धोखाधड़ी की गई। इस धोखाधड़ी पर कार्रवाई करने के बजाय अखिलेश सरकार ने इस धोखाधड़ी पर मुहर लगा दी। सरकार ने यूपी इलेक्ट्रिसिटी रेगुलेटरी कमीशन यानी उत्तर प्रदेश विद्युत नियामक आयोग के जरिए इस धोखाधड़ी पर आधिकारिक मुहर लगवाई। इस कुचक्र में आयोग के तत्कालीन चेयरमैन देशदीपक वर्मा, सदस्य इंदुभूषण पांडेय और संजय अग्रवाल शामिल थे।
अखिलेश सरकार ने सौर ऊर्जा के नाम पर भी कमलनाथ के बहनोई दीपक पुरी की कंपनी मोज़र बेयर के साथ 25 वर्षीय करार किया। 130 मेगावाट बिजली के उत्पादन के लिए जिन सात कंपनियों के साथ ‘पावर परचेज़ एग्रीमेंट’ किया गया था उनमें कमलनाथ के बहनोई की कंपनी मोज़र बेयर शामिल थी, जिसे 20 मेगावाट प्रोजेक्ट की मंजूरी मिली थी। प्रोजेक्ट शुरू करने की मियाद 13 महीने तय थी। लेकिन अखिलेश सरकार करार पर हस्ताक्षर कर तारीख भूल गई। जनवरी 2015 में करार हुआ और 13 महीने क्या, 39 महीने बीत गए। अब तक प्रोजेक्ट गति नहीं पकड़ सका। हर गांव में बिजली पहुंचाने का खोखला दावा करने वाली योगी सरकार को भी इससे कोई मतलब नहीं है कि कौन प्रोजेक्ट शुरू हुआ, कौन नहीं। पर सवाल सामने है कि ऐसा क्यों हुआ? सरकार के साथ मिलीभगत करके किस तरह हुई धोखाधड़ी... इसे जानना जरूरी है...
आश्चर्यजनक तथ्य यह है कि अचानक स्पिनेल इनर्जी एंड इंफ्रास्ट्रक्चर लिमिटेड और हिंदुस्तान क्लीन-इनर्जी लिमिटेड नामकी दो कंपनियोंने मोज़र बेयर के साथ हुए करार पर अपना दावा ठोक दिया। दावा ठोकने वाली दोनों कंपनियों ने कहा कि कि वे ही मोज़र बेयर कंपनी हैं। यह सब पूर्व प्रायोजित था। दो कंपनियों का दावा याचिका (Petition No. 1029 of 2015) की शक्ल में उत्तर प्रदेश राज्य विद्युत नियामक आयोग के समक्ष पहुंचा। याचिका में मांग की गई कि सोलर पावर प्रोजेक्ट का काम उन्हें ही दिया जाए। सौर ऊर्जा वाला विभाग यूपी-नेडा कहता रहा कि प्रोजेक्ट का करार मोज़र बेयर के साथ हुआ है, दूसरी कंपनी का दावा गैर कानूनी है। मोज़र बेयर होने का दावा करने वाली दोनों कंपनियों के मालिक कमलनाथ के भांजे रातुल पुरी निकले। फिर नियम-कानून कहां चलने वाला था। यूपी का खजाना लूटने के लिए सियासी हस्तियों के रिश्तेदारों ने धोखा-फरेब की इंतिहा कर दी।
सत्ता और पूंजी के दबाव के आगे नेडा की क्या चलती। कमलनाथ के बहनोई को ऑबलाइज़ करने के बाद बारी कमलनाथ के भांजे को उपकृत करने की थी.राज्य विद्युत नियामक आयोग सरकारी दस्तावेजों पर तारीख दर तारीख का रायता फैलाता रहा और आखिरकार एक दिन इस धोखाधड़ी पर स्वीकृति की आधिकारिक मुहर लगा दी... यह मंजूरी वर्ष 2016 में अखिलेश सरकार के जाने और योगी सरकार के आने के पहले ऐन मौके पर दी गई। बुंदेलखंड के उन ग्रामीणों की भी सुनिए जिनकी जमीनें स्पिनेल कंपनी ने लीज़ पर लीं, हर साल साढ़े सात फीसदी बढ़ा कर किराया देने का वादा किया, लेकिन वादा भूल गई। सरकारी करार मोज़र बेयर के नाम पर और जमीन लीज़ पर लेकर काम कर रही है स्पिनेल इनर्जी... है न यह दुख, आश्चर्य और हास्य देने वाला अपना मजाकिया सिस्टम..!
बुंदेलखंड के महोबा जिले में चरखारी तहसील के सूपा गांव में स्पिनेल इनर्जी एंड इन्फ्रास्ट्रक्चर लिमिटेड और हिन्दुस्तान ईपीसी कम्पनी की संयुक्त ईकाई ने 20 मेगावाट सोलर पावर प्रोजेक्ट के लिए वर्ष 2015 में लगभग एक दर्जन किसानों की करीब सौ एकड़ भूमि 29 साल के लिए लीज़ पर ली है। किसानों को 16 हजार रुपए प्रति एकड़ की दर से भुगतान किया जा रहा है। किसान ठगा सा महसूस करते हैं, क्योंकि उनसे कहा गया था कि हर साल 7.50 प्रतिशत बढ़ाकर पैसा मिलेगा। लेकिन कंपनी ने यह वादा नहीं निभाया। यह भी विचित्र है कि कमलनाथ के बहनोई दीपक पुरी की मोज़र बेयर कंपनी को बुंदेलखंड के महोबा जिले में कुलपहाड़ तहसील में सोलर पावर प्रोजेक्ट लगाने का करार हुआ था। लेकिन दीपक पुरी के बेटे रातुल पुरी यानी कमलनाथ के भांजे की कंपनी स्पिनेल इनर्जी ने चरखारी तहसील के सूपा गांव में प्रोजेक्ट लगाया है। 

Sunday 6 January 2019

‘प्लाएबल’ और ‘प्रेस्टिट्यूट’ में फंसी पत्रकारिता

प्रभात रंजन दीन
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का इंटरव्यू करने वाली पत्रकारा के सम्बन्ध में कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने ‘प्लाएबल’ शब्द का इस्तेमाल कर दिया तो देशभर में शोर मच गया। भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह किसी भी पत्रकार को कहीं भी डाट देते हैं और हेयता से भरा बर्ताव करते हैं तो शोर नहीं मचता। कांग्रेस नेता ‘प्लाएबल’ कहता है, ‘अपना-पत्रकार’ कहता है। भाजपा नेता ‘प्रेस्टिट्यूट’ कहता है... पत्रकारों ने अपना चरित्र और कृतित्व ही ऐसा बना लिया है, कि उसे इस तरह की अपमानजनक संज्ञाएं दी जा रही हैं। अपमान पर भी पत्रकार इस समझ-बूझ के साथ चिहुंकता है कि यह अपमान फलां पार्टी ने किया तो आपत्तिजनक और फलां पार्टी ने किया तो स्वीकार्य।

नेताओं ने पत्रकारों को भ्रष्ट करने के सिवा किया क्या आज तक..! पत्रकार नैतिक जमीन पर मजबूती से खड़े हों, तो नेताओं का उससे नुकसान होगा। सो, उन्होंने बड़े नियोजित तरीके से पत्रकारों को चुन-चुन कर भ्रष्ट बनाने का काम किया। कोई अखबार का मालिक बन गया तो कोई चैनल चलाने लगा। किसी को राज्यसभा का सदस्य बना दिया तो किसी को पद्मश्री पकड़ा दिया। फिर ‘प्लाएबल’ कह ही दिया तो केंचुआनुकूलित पत्रकारों पर क्या फर्क पड़ता है... या ‘प्रेस्टिट्यूट’ ही कह दिया तो उससे वेश्यानुकूलित पत्रकारों पर क्या फर्क पड़ता है..! ‘ट्रेंड्स जरनल’ के प्रकाशक गेराल्ड सेलेंटे ने दरअसल सबसे पहले ‘प्रेस्टिट्यूट’ शब्द का इस्तेमाल किया। खबरों के साथ बेईमानी और सौदेबाजी करने वाले पत्रकारों के लिए सेलेंटे ने ‘प्रेस’ और ‘प्रॉस्टिट्यूट’ को मिला कर ‘प्रेस्टिट्यूट’ शब्द रच दिया था।

बहरहाल, राजनीतिक दलों द्वारा पत्रकारों के लिए इस्तेमाल की जाने वाली ऐसी ही शब्दावलियों को लेकर ‘इंडिया वाच’ समाचार चैनल ने एक खास बहस आयोजित की। इस बहस में केवल दो राजनीतिक दलों को आमंत्रित किया गया, एक कांग्रेस और दूसरी भाजपा। दोनों ही पार्टियां इस मसले में पक्षकार हैं। बहस में निष्पक्ष समाजसेवी को शामिल किया गया जो राजनीतिक दलों और पत्रकारों दोनों को आईना दिखा सके। बहस में शामिल होने वालों पत्रकारों के लिए यह खास तौर पर ध्यान रखा गया कि ऐसे पत्रकार बहस के जरिए आत्ममंथन की प्रक्रिया में शरीक हों, जो सत्ता और पूंजी की दहलीज पर कभी मत्था नहीं टेकते...