Friday 25 May 2018

योगी का इशारा या योगी के खिलाफ बगावत..!

प्रभात रंजन दीन
भाजपा के कुछ वरिष्ठ नेताओं ने जिस समय यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की सरकार को अस्थिर करने की बिसात बिछाई ठीक उसी समय हिंदू युवा वाहिनी का प्रकरण सतह पर कैसे आ गया? इस सवाल का जवाब तलाशने में दो और सवाल उभर कर सामने आए. क्या हिंदू युवा वाहिनी का अचानक सतह पर आना योगी आदित्यनाथ के इशारे पर अख्तियार की गई ‘प्रेशर-टैक्टिक्स’ है या भाजपा के संगठन मंत्री सुनील बंसल शाह की शह पर हिंदू युवा वाहिनी के ‘विक्षुब्ध’ नेताओं को हवा दे रहे हैं?
हिंदू युवा वाहिनी के ‘विक्षुब्ध’ नेता योगी आदित्यनाथ के विरोध में एक शब्द नहीं कहते, पर वाहिनी की स्वतंत्र ताकतवर राजनीतिक पहचान की छटपटाहट भी दिखाते हैं. हिंदू युवा वाहिनी के टूटने, अलग पार्टी के रूप में आने और 2019 के लोकसभा चुनाव के पहले राजनीतिक रूप से शक्तिशाली होने की अभी अचानक फिर से उजागर होने लगी महत्वाकांक्षा के गहरे राजनीतिक निहितार्थ हैं. अगर हम थोड़ी देर के लिए यह मान भी लें कि योगी विरोधी सुनील बंसल और उनके कुछ पिट्ठू नेता हिंदू युवा वाहिनी के ‘विक्षुब्ध’ नेताओं को शह दे रहे हैं तो ऐसा करके वे योगी का क्या बिगाड़ लेंगे? इस स्वाभाविक सवाल का स्वाभाविक जवाब यह है कि योगी अब भाजपा के स्थापित नेता हैं. उन्हें हिंदू युवा वाहिनी के छोटे फ्रेम में कस कर देखना राजनीति की गति और योगी के बड़े होते सियासी कैनवस की अनदेखी करने जैसा होगा. भाजपा के वरिष्ठ नेता भी कहते हैं कि भाजपा का भला इसी में है कि वे योगी को भाजपा का वरिष्ठ नेता मन से स्वीकार कर लें, उन्हें हिंदू युवा वाहिनी का नेता मानने की अदूरदर्शिता न करें, क्योंकि ऐसा करने से भाजपा को ही भविष्य में नुकसान होगा और उत्तर प्रदेश में भी भाजपा के समानान्तर एक शिवसेना खड़ी हो जाएगी. वाहिनी के ‘विक्षुब्ध’ नेताओं की महत्वाकांक्षा को हवा देने की सतही सियासत से बंसल-गैंग को कुछ हासिल नहीं होने वाला. 
पिछले दिनों लखनऊ के सबसे महत्वपूर्ण सरकारी गेस्ट हाउस में हिंदू युवा वाहिनी की बैठक होने से अचानक सरगर्मी फैल गई. वाहिनी की इस बैठक से लेकर बाद की गतिविधियों तक आप समीक्षात्मक निगाह डालें तो बहुत सारे पहलू खुलते दिखेंगे. वीवीआईपी गेस्ट हाउस की बैठक में वाहिनी ने क्या विचार-विमर्श किया और क्या रणनीति तय की, इस पर चर्चा होने के बजाय, गेस्ट हाउस के प्रबंधक आरपी सिंह के निलंबन को लेकर अधिक चर्चा रही. गेस्ट हाउस प्रबंधक ने हिंदू युवा वाहिनी को बैठक करने की इजाजत कैसे दे दी? पता चला कि मोहनलालगंज से भाजपा सांसद कौशल किशोर ने हिंदू युवा वाहिनी के पत्र पर अपनी औपचारिक सिफारिश भेजी थी. सांसद कौशल किशोर ने ‘चौथी दुनिया’ से कहा, ‘वाहिनी के कार्यकर्ता मेवालाल उनके पास आए थे और उन्होंने गेस्ट हाउस में वाहिनी के अध्यक्ष सुनील सिंह के रुकने के लिए कमरा देने की सिफारिश करने का औपचारिक आग्रह किया था. मैंने उस पत्र को अग्रसारित कर दिया. हिंदू युवा वाहिनी या सुनील सिंह को लेकर कोई भारी विवाद भी है, यह मुझे नहीं पता था. मैंने गेस्ट हाउस के कमरे में सुनील सिंह के रुकने के लिए प्रेषित आग्रह पत्र को अग्रसारित किया था, वहां बैठक करने के लिए नहीं.’ आपने भाजपा सांसद कौशल किशोर की बातें ध्यान से सुनीं कि उन्हें यह नहीं पता था कि वाहिनी में कोई भारी विवाद चल रहा है. यह सच भी है कि वाहिनी के अंदर कोई भारी विवाद नहीं है, जो कुछ है वह बाहर-बाहर अधिक प्रक्षेपित है. खैर, भाजपा सांसद ने जब एक व्यक्ति के रुकने के लिए कमरा देने की सिफारिश की थी, फिर वाहिनी को वहां बैठक करने की इजाजत कैसे दे दी गई? गेस्ट हाउस के बैठक कक्ष में वाहिनी की बैठक हुई, इसे आप तस्वीर में साफ-साफ देख सकते हैं. गृह विभाग के एक अधिकारी ने कहा कि हिंदू युवा वाहिनी का विवाद संवेदनशील स्तर का रहता तो सारे सरकारी महकमों को इस बारे में पहले से सूचना रहती. यूपी पुलिस की स्थानीय खुफिया इकाई (लोकल इंटेलिजेंस यूनिट) सरकार को ऐसी ही खुफिया सूचनाएं देने और सतर्क करने के लिए बनी है. ‘एलआईयू’ ने वीवीआईपी गेस्ट हाउस में हिंदू युवा वाहिनी की बैठक के बारे में सरकार को सूचना क्यों नहीं दी? क्या ‘एलआईयू’ ने अपनी ड्यूटी में कोताही की? फिर ‘एलआईयू’ के सम्बद्ध अधिकारियों को निलंबित क्यों नहीं किया गया? अकेले गेस्ट हाउस के प्रबंधक पर गाज क्यों गिरी? हिंदू युवा वाहिनी के एक नेता ने कहा कि वाहिनी की बैठक कहीं और भी हो सकती थी, वीवीआईपी में ही क्यों की गई? उनके इस सवाल ने कई सवालों के जवाब दे दिए. हालांकि सुनील कहते हैं कि बैठक के लिए पहले पिकैडली होटल तय किया गया था, लेकिन वहां खर्च बहुत अधिक पड़ रहा था, इसीलिए उसे वीवीआईपी शिफ्ट किया गया. सत्ता गलियारे की नाक के नीचे वीवीआईपी गेस्ट हाउस को ही बैठक के लिए क्यों चुना गया? इस सवाल पर सुनील कहते हैं कि सस्ता-सुविस्ता होने के कारण चुना गया. लेकिन गेस्ट हाउस में तो केवल रुकने के लिए कमरा दिया गया था, बैठक कक्ष में बैठक करने के लिए नहीं? बीच में ही सुनील कहते हैं, ‘आप कहीं बाहर गेस्ट हाउस में रुकेंगे और आपको जानने वाले वहां आ जाएंगे तो आप उन लोगों के साथ बैठेंगे कि नहीं!’ सुनील सिंह के इस वक्तव्य में ही कई सवाल निहित हैं, मसलन, वीवीआईपी गेस्ट हाउस में हिंदू वाहिनी की बैठक क्या अचानक हो गई? अचानक हुई बैठक में डेढ़ सौ से दो सौ लोगों की जमात कैसे जुट गई? वगैरह, वगैरह. इन सारे सवालों के जवाब आपको खुद ब खुद मिलते जाएंगे.
आपको थोड़ा फ्लैशबैक में लिए चलते हैं. पिछले साल जब प्रदेश में विधानसभा चुनाव की तैयारियां चल रही थीं और टिकटों के बंटवारे की प्रक्रिया चल रही थी, उस समय भी योगी को कोई तरजीह नहीं दी जा रही थी. यहां तक कि योगी को चुनाव प्रबंध समिति में भी नहीं रखा गया था. टिकट देने में सुनील बंसल मनमानी कर रहे थे और खास तौर पर योगी की पसंद के प्रत्याशियों को टिकट नहीं दिया जा रहा था. उस समय भी हिंदू युवा वाहिनी ने प्रदेशभर में अपने प्रत्याशी खड़ा कर प्रकारांतर से भाजपा का नुकसान करने की घोषणा की थी. वाहिनी की ओर से दर्जनभर से अधिक प्रत्याशियों की घोषणा भी हो गई थी. इस दबाव से भाजपा आलाकमान इतना चिंतित हो गया कि राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह को लखनऊ आना पड़ा. योगी भी लखनऊ आए. बीच-बचाव हुआ. तब योगी ने हिंदू युवा वाहिनी के गैर-राजनीतिक संगठन होने का बयान जारी किया और प्रदेश अध्यक्ष सुनील सिंह पर अनुशासनिक कार्रवाई की बात कही. तब योगी ने ‘चौथी दुनिया’ से कहा था, ‘प्रत्याशी खड़ा करने की घोषणा करने वाले वाहिनी के पदाधिकारियों के खिलाफ अनुशासनिक कार्रवाई की जाएगी. वाहिनी एक सामाजिक संगठन है और उसके राजनीति में प्रवेश करने की कोई योजना नहीं है. वाहिनी के जो लोग राजनीति में घुसने की कोशिश कर रहे हैं, उनके खिलाफ कार्रवाई की जाएगी क्योंकि यह अवैध है और वाहिनी की नीतियों और विचारों के खिलाफ है.’ वाहिनी के प्रदेश अध्यक्ष सुनील सिंह ने उस समय ‘चौथी दुनिया’ से कहा था कि वे योगी के सम्मान की रक्षा के लिए किसी भी हद तक कुर्बानी देने के लिए तैयार हैं. सुनील ने कहा था, ‘ मेरी बगावत योगी के अपमान का बदला है. पिछले पच्चीस साल में जब-जब योगी आदित्यनाथ का अपमान हुआ, हमने उसका बदला लिया है. इस बार भी भाजपा ने योगी का अपमान किया है. हम चुनाव में इसका बदला लेंगे. लोग चाहते थे कि योगी को मुख्यमंत्री पद का चेहरा घोषित किया जाए, भाजपा पहले राजी थी, लेकिन बाद में इसे टाल दिया. दूसरी तरफ पार्टी ने योगी को चुनाव प्रबंध समिति में भी नहीं रखा. योगी ने करीब एक दर्जन उम्मीदवारों की सूची दी थी, लेकिन भाजपा ने उनमें से मात्र दो को टिकट दिया. इसे हम किसी भी स्थिति में बर्दाश्त नहीं कर सकते.’ सुनील सिंह ने तब कहा था, ‘भाजपा अगर योगी को मुख्यमंत्री उम्मीदवार घोषित कर दे तो मैं पूरे पांच साल तक भाजपा कार्यालय पर कप प्लेट धोऊंगा.’
विधानसभा चुनाव में भारी जीत के बाद भी भाजपा ने योगी को हाशिए पर ही रखने की कोशिश की. मुख्यमंत्री के रूप में योगी का नाम विचार में नहीं था. केशव मौर्य और डॉ. दिनेश शर्मा समेत अगड़े-पिछड़े-दलित नेताओं के नाम की चर्चा होती हुई मनोज सिन्हा पर आकर बात टिक गई. फिर जब योगी ने दिल्ली जाकर अमित शाह से दो-टूक की और संघ ने बात संभाली, तब अचानक स्थिति बदली और चार्टर प्लेन से दिल्ली बुलाकर योगी को सीएम चुने जाने का निर्णय सुनाया गया. जानकार बताते हैं कि योगी-शाह के बीच हुई दो-टूक वार्ता में भी वाहिनी को समानान्तर खड़ा करने की ‘चेतावनी’ का औजार इस्तेमाल किया गया था.
बहरहाल, वीवीआईपी गेस्ट हाउस में बैठक कर हिंदू युवा वाहिनी भारत का खुद को राष्ट्रीय अध्यक्ष घोषित करने वाले सुनील सिंह से इस संवाददाता की फिर लंबी बातचीत हुई. इस बातचीत में सुनील सिंह ने योगी के खिलाफ बगावत का एक शब्द भी इस्तेमाल नहीं किया. सुनील सिंह कहते हैं, ‘भारतीय जनता पार्टी हमारे गुरु का लगातार अपमान कर रही है. स्वामी प्रसाद मौर्या और नरेश अग्रवाल जैसे तमाम लोग जो गौरी-गणेश को गाली देते रहे, उन्हें भाजपा में तरजीह दी जा रही है. हिंदुत्व के लिए बलिदान करने वाले प्रतिबद्ध लोगों का पार्टी में कोई भाव नहीं है. भाजपा अपने मूल विचार से भटक गई है. लेकिन हमारे गुरु चुप्पी साधे हैं. भाजपाइयों ने हमारे गुरु पर काला जादू कर दिया है. अब हमारे गुरु ताजमहल जैसे मजारों के आगे झाड़ू लगाने लगे हैं. हम तो उन्हें उनकी शक्ति याद दिलाते हैं. वे हमारे गुरु थे, गुरु हैं और गुरु रहेंगे. हम तो उन्हीं का भजन गाते हैं. हां, हम जैसे तमाम कार्यकर्ता घनघोर रूप से उपेक्षित हैं. हम पर अनाप-शनाप मुकदमे लदे हुए हैं. हमने वाहिनी को पूर्वांचल में ताकतवर बनाने के बाद उसे पूरे प्रदेश में फैलाया और सीमाई राज्यों में पहचान बनाई. हमारी प्रतिबद्धता का यह इनाम क्यों? हम तो यही चाहते हैं न कि राम मंदिर बने, धारा 370 हटे, समान नागरिक संहिता कायम हो, लव जेहाद पर रोक लगे! भाजपा इन्हीं मसलों पर लोगों का समर्थन लेकर तो सत्ता तक आई थी, फिर जन-आकांक्षाओं की उपेक्षा क्यों की जा रही है?’ सुनील सिंह ने बात खत्म करते हुए जो बात कही, वह खास तौर पर रेखांकित करने वाली है. सुनील ने कहा, ‘हिंदू युवा वाहिनी को अब राष्ट्रीय स्तर पर मजबूत करना होगा. 2019 के लोकसभा चुनाव के पहले वाहिनी इतनी मजबूत हो कि उसकी उपेक्षा करना भाजपा के लिए असंभव हो जाए.’ वाहिनी से अपने निष्कासन को सुनील अप्रासंगिक बताते हैं और संगठन के संविधान का हवाला देते हुए कहते हैं कि निष्कासन का फैसला एक व्यक्ति कर ही नहीं सकता.

क्या राजग में घटक दल के बतौर शामिल होगी हिंदू युवा वाहिनी!
भाजपाई गलियारे में चर्चा है कि हिंदू युवा वाहिनी राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) में एक राजनीतिक पार्टी के रूप में शामिल हो सकती है. हालांकि वाहिनी के संरक्षक योगी आदित्यनाथ इसे गैर-राजनीतिक संगठन बताते रहे हैं, लेकिन वाहिनी के अधिसंख्य कार्यकर्ता अब इसे गैर-राजनीतिक संगठन मानने से इन्कार कर रहे हैं. जानकार कहते हैं कि पर्दे के पीछे से योगी भी ऐसा ही चाहते हैं. वाहिनी के नेता सुनील सिंह का कहना है कि योगी आदित्यनाथ अब भाजपा के मुख्यमंत्री हैं और भाजपा के विधान परिषद सदस्य हैं. इसी तरह वाहिनी के राघवेंद्र प्रताप सिंह भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़कर विधायक बन चुके हैं. यानि, वे भाजपाई हैं. ऐसे में उन्हें यह तय करना है कि वे वाहिनी के हैं या भाजपा के. इसका एक ही उपाय है कि वाहिनी एक राजनीतिक दल के रूप में राजग में शामिल हो.

हिंदूवादी राजनीति का बेहतर विकल्प बनेगी हिंदू युवा वाहिनी
राजनीतिक विश्लेषक यह मानते हैं कि हिंदू युवा वाहिनी उत्तर प्रदेश में हिंदूवादी राजनीति का बेहतर विकल्प बन कर उभरेगी. यूपी में एक और ‘शिवसेना’ को ताकतवर बनने से रोकना है तो भाजपा को अपनी नीतियों में बदलाव लाना होगा. आने वाले दिनों में धर्मीय ध्रुवीकरण की सियासत जैसे-जैसे परवान चढ़ेगी, हिंदू युवा वाहिनी की मांग बढ़ेगी. वाहिनी कार्यकर्ताओं को जाग्रत करने के इरादे से ही पिछले दिनों योगी ने कार्यकर्ताओं को यह निर्देश दिया कि वे भ्रष्ट नौकरशाहों की स्टिंग करें, भ्रष्टाचार के खिलाफ सबूत जुटाएं. इस पर सरकार सख्त कार्रवाई करेगी. योगी ने गोरखनाथ मंदिर के तिलक सभागार में हिंदू युवा वाहिनी के संभाग और विभाग पदाधिकारियों के साथ बैठक की थी और एक कार्ययोजना की जिम्मेदारी सौंपी थी. योगी ने हिंदू युवा वाहिनी को समाज से भावनात्मक तौर पर जुड़ने का आह्वान किया था. इसमें गरीबजन की बेटियों की शादी की व्यवस्था करने से लेकर दलितों के साथ समरसता बनाने का निर्देश भी शामिल है.

Wednesday 16 May 2018

सौदेबाजी से नहीं तो सीबीआई से मानेंगी मायावती

प्रभात रंजन दीन
मायावती से सौदेबाजी की तमाम मशक्कतें करने और उसमें नाकाम होने के बाद भाजपा के शीर्ष नेताओं ने फिर से योगी को आगे कर चीनी मिल घोटाले की सीबीआई जांच शुरू करा दी. मीडिया ने भी कुछ ऐसा ही ‘प्ले’ किया कि भ्रष्टाचार के खिलाफ सरकार ने सीबीआई जांच कराई, लेकिन ऐसा कुछ नहीं है. सीबीआई की इस जांच का भ्रष्टाचार के खिलाफ कार्रवाई से कुछ लेना-देना नहीं है. यह आने वाले लोकसभा चुनाव के पहले लिया गया एक अहम राजनीतिक फैसला है. यूपी की 21 चीनी मिलें बेचे जाने का घोटाला मायावती के कार्यकाल के दरम्यान वर्ष 2010-11 में हुआ था. उसके बाद प्रदेश में सपा की सरकार आई और अब भाजपा की सरकार है. योगी आदित्यनाथ के मुख्यमंत्री बने करीब सवा साल हो चुके हैं. इस बीच सीबीआई जांच क्यों नहीं शुरू हुई? योगी सरकार के छह महीने पूरे होने पर जो श्वेत-पत्र जारी हुआ था उसमें भी चीनी मिल बिक्री घोटाले की जांच का उल्लेख किया था और सत्तारूढ़ होने के अगले ही महीने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने घोटाले की जांच कराने की घोषणा भी की थी. फिर जांच में देरी क्यों हुई? केंद्रीय मंत्री अरुण जेटली के कॉरपोरेट अफेयर मंत्रालय ने इस मामले में रायता क्यों बिखेरा? फिर केंद्र ने दो-दो परस्पर विरोधी जांचें क्यों कराईं? ये ऐसे अहम सवाल हैं, जिनके बारे में भाजपाई अलमबरदारों से सवाल वही पूछ सकता है जो इसकी अंतरकथा जानता हो. 
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ चीनी मिल बिक्री घोटाले की सीबीआई से जांच कराना चाहते थे, लेकिन केंद्र की सत्ता पर विराजमान भाजपा के कुछ शीर्ष नेता ऐसा नहीं चाहते थे. यही कारण है कि मुख्यमंत्री जब-जब सीबीआई जांच की बात कहते तब-तब केंद्र कुछ ‘फर्जी’ जांचें करा कर लीपापोती कर देता. घोटाले की सीबीआई जांच की गंभीरता को फिस्स करने के लिए ऐसी हरकतें की जाती रहीं. इसके पीछे क्या चल रहा था? इसके पीछे सियासत और सौदेबाजी चल रही थी. मायावती को ‘रास्ते पर लाने’ के लिए ‘साम-दाम-दंड-भेद’ की नीति अपनाई जा रही थी. ‘साम-दाम-भेद’ का फार्मूला फेल होने पर अब ‘दंड’ का फार्मूला आजमाया जा रहा है. ‘दंड’ फार्मूले के तहत सीबीआई ने चीनी मिल बिक्री घोटाले की जांच शुरू कर दी है. सीबीआई को जांच सौंपे जाने के बारे में उत्तर प्रदेश सरकार ने बाकायदा अधिसूचना भी जारी कर दी और इसे सीबीआई को हस्तगत भी करा दिया. इस मामले में जो भी एफआईआर दर्ज की गई थी, उसकी प्रतियां सीबीआई को औपचारिक रूप से ‘हैंडओवर’ कर दी गई हैं. 
केंद्रीय वित्त मंत्री अरुण जेटली के कॉरपोरेट अफेयर मंत्रालय ने चीनी मिल बिक्री घोटाले से मायावती को बचाने के लिए सारे अवांछित तिकड़म किए. जेटली वित्त के साथ-साथ कॉरपोरेट अफेयर विभाग के भी मंत्री हैं. चीनी-मिल बिक्री घोटाले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले को प्रभावित करने के इरादे से कॉरपोरेट अफेयर मंत्रालय के राष्ट्रीय प्रतिस्पर्धा आयोग (कम्पीटीशन कमीशन ऑफ इंडिया) ने कानूनी रोड़े खड़े किए जिससे घोटाला साबित होने में मुश्किल खड़ी हो. राष्ट्रीय प्रतिस्पर्धा आयोग ने मई 2017 में ही अपना फैसला सुना दिया था कि मायावती सरकार ने चीनी मिलों की बिक्री में कोई गड़बड़ी नहीं की. आयोग ने चार मई 2017 को दिए अपने फैसले में कहा कि ऐसा कोई भी सबूत नहीं मिला जिसमें कहीं कोई गड़बड़ी पाई गई हो. इस फैसले पर राष्ट्रीय प्रतिस्पर्धा आयोग के चेयरमैन देवेंद्र कुमार सीकरी और सदस्य न्यायमूर्ति जीपी मित्तल, यूसी नाहटा और ऑगस्टीन पीटर के हस्ताक्षर हैं. शर्मनाक यह है कि उसी राष्ट्रीय प्रतिस्पर्धा आयोग के महानिदेशक (विजिलेंस) की जांच रिपोर्ट चीनी मिल बिक्री में महाघोटाले की पुष्टि करती है. लेकिन आयोग ने अपने ही विजिलेंस महानिदेशक की रिपोर्ट दबा दी और मायावती को क्लीन-चिट दे दी. इसके पहले महालेखाकार (सीएजी) की जांच में भी चीनी मिल बिक्री प्रकरण में घनघोर अनियमितता की आधिकारिक पुष्टि हो चुकी थी. राष्ट्रीय प्रतिस्पर्धा आयोग का 103 पेज का फैसला ‘चौथी दुनिया’ के पास है. इस फैसले को पढ़ें तो आप इसमें कानूनी त्रुटियों और विरोधाभासों का मलबा पाएंगे. आयोग के डीजी विजिलेंस की जांच रिपोर्ट भी ‘चौथी दुनिया’ के पास है. सीएजी और आयोग के डीजी विजिलेंस, दोनों की जांच रिपोर्टें बताती हैं कि चीनी मिलों की बिक्री में शामिल नौकरशाहों ने पूंजीपतियों के दलालों की तरह काम किया. निविदा शुरू होने के पहले ही यह तय कर लिया गया था कि चीनी मिलें किसे बेचनी हैं. निविदा में भाग लेने वाली कुछ खास कंपनियों को सरकार की बिड-दर पहले ही बता दी गई थी और प्रक्रिया के बीच में भी अपनी मर्जी से नियम बदले गए. मिलों की जमीनें, मशीनें और उपकरणों की कीमत निर्धारित करने में मनमानी की गई. बिक्री के बाद रजिस्ट्री के लिए स्टाम्प ड्यूटी भी कम कर दी गई. कैग का कहना है कि चीनी मिलें बेचने में सरकार को 1179.84 करोड़ रुपए का सीधा नुकसान हुआ. यानि, उत्तर प्रदेश राज्य चीनी निगम लिमिटेड की चालू हालत की 10 चीनी मिलों को बेचने पर सरकार को 841.54 करोड़ का नुकसान हुआ और उत्तर प्रदेश राज्य चीनी एवं गन्ना विकास निगम लिमिटेड की बंद 11 चीनी मिलों को बेचने की प्रक्रिया में 338.30 करोड़ रुपए का नुकसान हुआ.
राष्ट्रीय प्रतिस्पर्धा आयोग के तिकड़मी फैसले और उसके बरक्स आयोग के डीजी विजिलेंस की रिपोर्ट के ‘चौथी दुनिया’ के नौ से 14 अक्टूबर 2017 के अंक में उजागर होते ही केंद्र ने एक नया कानूनी पैंतरा अख्तियार किया. अरुण जेटली के जिस कॉरपोरेट अफेयर मंत्रालय के राष्ट्रीय प्रतिस्पर्धा आयोग ने मायावती को बेदाग बताया, उसी मंत्रालय के एक अन्य विभाग ‘सीरियस फ्रॉड इन्वेस्टिगेशन ऑफिस’ (सीआईएफओ) को चीनी मिलों की बिक्री मामले की फिर से जांच सौंप दी गई. मंत्रालय के ही एक अधिकारी ने तब बताया था कि यह जांच ‘बलि का बकरा’ तलाशने के लिए है ताकि मायावती को बचाया जा सके. जब दो-दो जांचें घोटाले की पुष्टि कर चुकी हैं, फिर तीसरी जांच की क्या जरूरत थी? ‘चौथी दुनिया’ ने यह सवाल कॉरपोरेट अफेयर मंत्रालय के एक आला अधिकारी से पूछा. उन्होंने बड़ी साफगोई से ‘ऑफ रिकॉर्ड’ कहा था कि सीबीआई से मामले की जांच न हो, इसके लिए सारी पेशबंदियां हो रही हैं. कॉरपोरेट अफेयर मंत्रालय के ‘सीरियस फ्रॉड इन्वेस्टिगेशन ऑफिस’ को चीनी मिल बिक्री प्रकरण की जांच दिए जाने के विषय पर केंद्र सरकार ने गोपनीयता क्यों बरती? जब कॉरपोरेट अफेयर मंत्रालय के ही एक महकमे ने मायावती को क्लीन-चिट दे दी थी, फिर उसी मंत्रालय के दूसरे विभाग को जांच क्यों दी गई? उक्त अधिकारी ने इन बेहद जरूरी सवालों के सांकेतिक जवाब दिए, जो केंद्र के कुछ नेताओं की संदेहास्पद मंशा जाहिर कर रहे थे. उक्त अधिकारी के उस समय के सांकेतिक जवाब कुछ ही दिनों बाद यथार्थ होते दिखने लगे. ‘सीरियस फ्रॉड इन्वेस्टिगेशन ऑफिस’ ने अपनी जांच में मात्र दो कम्पनियों को चीनी मिल बिक्री मामले में दोषी पाया. जबकि आम लोगों को भी पता है कि चीनी मिल बिक्री प्रकरण में शराब माफिया पौंटी चड्ढा की कंपनी ने कुछ अन्य कंपनियों के साथ सिंडिकेट बना कर घपला किया था. लेकिन ‘सीरियस फ्रॉड इन्वेस्टिगेशन ऑफिस’ ने केवल नम्रता मार्केटिंग प्राइवेट लिमिटेड और गिरियाशो कंपनी प्राइवेट लिमिटेड को दोषी बताया और इस आधार पर राज्य चीनी निगम लिमिटेड के प्रधान प्रबंधक एसके मेहरा ने आनन-फानन लखनऊ के गोमतीनगर थाने में एफआईआर दर्ज करा दी.

तिकड़म से बिकी थीं यूपी की 21 चीनी मिलें
उत्तर प्रदेश राज्य चीनी निगम लिमिटेड की 10 चालू हालत की चीनी मिलों की बिक्री प्रक्रिया में पहले 10 कंपनियां शरीक हुई थीं. लेकिन आखिर में केवल तीन कंपनियां वेव इंडस्ट्रीज़ प्राइवेट लिमिटेड, पीबीएस फूड्स प्राइवेट लिमिटेड और इंडियन पोटाश लिमिटेड ही रह गईं. उन तीन कंपनियों में पहले से ‘पैक्ट’ था. जिन मिलों को खरीदने में पौंटी चड्ढा की कंपनी ‘वेव’ की रुचि थी, वहां अन्य दो कंपनियों ने कम दर की बिड-प्राइस भरी और जिन मिलों में दूसरी कंपनियों को रुचि थी, वहां वेव ने काफी दम दर की निविदा दाखिल की. इस तरह बहराइच की जरवल रोड चीनी मिल, कुशीनगर की खड्डा चीनी मिल, मुजफ्फरनगर की रोहनकलां चीनी मिल, मेरठ की सकोती टांडा चीनी मिल और महराजगंज की सिसवां बाजार चीनी मिल समेत पांच चीनी मिलें इंडियन पोटाश लिमिटेड ने खरीदीं और अमरोहा चीनी मिल, बिजनौर चीनी मिल, बुलंदशहर चीनी मिल व सहारनपुर चीनी मिल समेत चार चीनी मिलें वेव इंडस्ट्रीज़ प्राइवेट लिमिटेड को मिल गईं. दसवीं चीनी मिल की खरीद में रोचक खेल हुआ. बिजनौर की चांदपुर चीनी मिल की नीलामी के लिए इंडियन पोटाश लिमिटेड ने 91.80 करोड़ की निविदा दर (बिड प्राइस) कोट की. पीबीएस फूड्स ने 90 करोड़ की प्राइस कोट की, जबकि इसमें वेव कंपनी ने महज 8.40 करोड़ की बिड-प्राइस कोट की थी. बिड-प्राइस के मुताबिक चांदपुर चीनी मिल खरीदने का अधिकार इंडियन पोटाश लिमिटेड को मिलता, लेकिन ऐन मौके पर पोटाश लिमिटेड नीलामी की प्रक्रिया से खुद बाहर हो गई. लिहाजा, चांदपुर चीनी मिल पीबीएस फूड्स को मिल गई. नीलामी प्रक्रिया से बाहर हो जाने के कारण इंडियन पोटाश की बिड राशि जब्त हो गई, लेकिन पीबीएस फूड्स के लिए उसने प्रायोजित-शहादत दे दी. जांच में यह भी तथ्य खुला था कि पौंटी चड्ढा की कंपनी वेव इंडस्ट्रीज़ प्राइवेट लिमिटेड और पीबीएस फूड्स प्राइवेट लिमिटेड, दोनों के निदेशक त्रिलोचन सिंह हैं. त्रिलोचन सिंह के वेव कंपनी समूह का निदेशक होने के साथ-साथ पीबीएस कंपनी का निदेशक और शेयरहोल्डर होने की भी आधिकारिक पुष्टि हुई. इसी तरह वेव कंपनी की विभिन्न सम्बद्ध कंपनियों के निदेशक भूपेंद्र सिंह, जुनैद अहमद और शिशिर रावत पीबीएस फूड्स के भी निदेशक मंडल में शामिल पाए गए. मनमीत सिंह वेव कंपनी में अतिरिक्त निदेशक थे तो पीबीएस फूड्स में भी शेयर होल्डर थे. इस तरह वेव कंपनी और पीबीएस फूड्स की साठगांठ और एक ही कंपनी का हिस्सा होने का दस्तावेजी तथ्य सामने आया. यहां तक कि वेव कंपनी और पीबीएस फूड्स द्वारा निविदा प्रपत्र खरीदने से लेकर बैंक गारंटी दाखिल करने और स्टाम्प पेपर तक के नम्बर एक ही क्रम में पाए गए. जांच में पाया गया कि दोनों कंपनियां मिलीभगत से काम कर रही थीं.
उत्तर प्रदेश राज्य चीनी एवं गन्ना विकास निगम लिमिटेड की बंद पड़ी 11 चीनी मिलों की बिक्री में भी ऐसा ही ‘खेल’ हुआ. नीलामी में कुल 10 कंपनियां शरीक हुईं, लेकिन आखिरी समय में तीन कंपनियां मेरठ की आनंद ट्रिपलेक्स बोर्ड लिमिटेड, वाराणसी की गौतम रियलटर्स प्राइवेट लिमिटेड और नोएडा की श्रीसिद्धार्थ इस्पात प्राइवेट लिमिटेड मैदान छोड़ गईं. जो कंपनियां रह गईं उनमें पौंटी चड्ढा की कंपनी वेव इंडस्ट्रीज़ के साथ नीलगिरी फूड्स प्राइवेट लिमिटेड, नम्रता, त्रिकाल, गिरियाशो, एसआर बिल्डकॉन और आईबी ट्रेडिंग प्राइवेट लिमिटेड शामिल थीं. इनमें भी आपस में ‘पैक्ट’ था. नीलगिरी फूड्स ने बैतालपुर, देवरिया, बाराबंकी और हरदोई चीनी मिलों के लिए निविदा दाखिल की थी, लेकिन आखिर में बैतालपुर चीनी मिल छोड़ कर उसने अन्य से अपना दावा वापस कर लिया. इसके लिए उसे जमानत राशि भी गंवानी पड़ी. बैतालपुर चीनी मिल खरीदने के बाद नीलगिरी ने उसे भी कैनयन फाइनैंशियल सर्विसेज़ लिमिटेड के हाथों बेच डाला. इसी तरह त्रिकाल ने भटनी, छितौनी और घुघली चीनी मिलों के लिए निविदा दाखिल की थी, लेकिन आखिरी समय में जमानत राशि गंवाते हुए उसने छितौनी और घुघली चीनी मिलों से अपना दावा हटा लिया. वेव कंपनी ने भी बरेली, रामकोला और शाहगंज की बंद पड़ी चीनी मिलों को खरीदने के लिए निविदा दाखिल की थी. लेकिन उसने बाद में बरेली और रामकोला से अपना दावा छोड़ दिया और शाहगंज चीनी मिल खरीद ली. बाराबंकी, छितौनी और रामकोला की बंद पड़ी चीनी मिलें खरीदने वाली कंपनी गिरियाशो और बरेली, हरदोई, लक्ष्मीगंज और देवरिया की चीनी मिलें खरीदने वाली कंपनी नम्रता में वही सारी संदेहास्पद-समानताएं पाई गईं जो वेव इंडस्ट्रीज़ और पीबीएस फूड्स लिमिटेड में पाई गई थीं. यह भी पाया गया कि गिरियाशो, नम्रता और कैनयन, इन तीनों कंपनियों का दिल्ली के सरिता विहार में एक ही पता है. बंद पड़ी 11 चीनी मिलें खरीदने वाली सभी कंपनियां एक-दूसरे से जुड़ी थीं, खास तौर पर वे पौंटी चड्ढा की वेव इंडस्ट्रीज़ प्राइवेट लिमिटेड से सम्बद्ध पाई गईं.

Monday 14 May 2018

केवल जिन्ना जिन्ना क्यों रटते हो भाई..!

प्रभात रंजन दीन
साथियो..! कभी-कभी कुछ बातें आपको भीतर तक इतनी चुभा देती हैं कि उस निरूपित-पीड़ा के खिलाफ आपकी जानकारी और आपकी समझ बगावत करने लगती है. आज के अखबारों में कांग्रेसी नेता स्वनामधन्य शशि थरुर का बयान सुर्खियों में छपा है. अखबार वालों से तो आप अब उम्मीद ही न करें कि वो कोई खबर देश-समाज के हित को ध्यान में रख कर छापते हैं. अखबार और मीडिया की सोच-समझ बहुत शातिराना है. किन बातों से समाज में विद्वेष फैलेगा, किन बातों से कटुता फैलेगी, नफरत का सृजन होगा, उन्माद भड़केगा और अराज कायम होगा, ऐसे विषय अखबारों और चैनलों में खबर बनते हैं. मीडिया का दोनों पक्ष अतिवाद का शिकार है. एक पक्ष विरोध की अति पर है दो दूसरा पक्ष चाटुकारिता की अति पर. दोनों ही पक्ष विश्वास-हीन हैं. हम उस दौर में पहुंच गए हैं जहां आपको अपनी खुद की समझ से समझदारी विकसित करनी है, आप मीडिया को समाज का दिग्दर्शक समझने की भूल न करें, वो आपको गहरे अंधे खड्ड की तरफ ले जा रहे हैं.
खैर, गुस्सा आ गया इसलिए थोड़ा इधर-उधर हो गया. कांग्रेस नेता शशि थरुर लखनए आए थे और वे कांग्रेस के प्रबुद्धजनों को संबोधित कर रहे थे. उन्होंने जिन्ना का प्रकरण उठाया और कहा कि यह जनता का ध्यान भटकाने के लिए किया गया है. थरुर ने फिर ‘भारत माता की जय’ का मसला उठाया और संविधान को सामने लाते हुए कहा कि ‘भारत माता की जय’ बोलने के लिए हमें संविधान बाध्य नहीं करता. थरुर ने यह भी कहा कि मुसलमानों के मजहब में इसे बोलने से मनाही है. यह कैसी बौद्धिक सभा थी कि सारे लोग थरुर का अबौद्धिक वक्तव्य सुनते रहे, किसी ने कोई प्रति-प्रश्न नहीं किया और अखबार वालों ने भी उसे हूबहू छाप दिया! भारतीय संविधान के भाग चार (क) का अनुच्छेद 51 (क) नागरिकों के मूल कर्तव्य को पारिभाषित करता है. संविधान में 10 मूल कर्तव्य उल्लेखित हैं. लेकिन यहां मैं आपको पहले तीन कर्तव्य की याद दिलाता हूं:-

1. संविधान का पालन करें और उसके आदर्शों, संस्थाओं, राष्ट्र-ध्वज और राष्ट्र-गान का सम्मान करें.
2. स्वतंत्रता के लिए हमारे राष्ट्रीय आंदोलन को प्रेरित करने वाले उच्च आदर्शों को हृदय से संजोए रखें और उसका पालन करें.
3. भारत की प्रभुता, एकता और अखंडता की रक्षा करें और उसे अक्षुण्ण रखें.

संविधान का कंधा इस्तेमाल कर थरुर ने समाज में विद्वेष फैलाने वाली कुत्सित बात कही. संविधान में कहां लिखा है कि ‘भारत माता की जय’ मत बोलो! संविधान में यह भी नहीं लिखा है कि ‘भारत माता की जय’ बोलो, लेकिन संविधान में यह जरूर लिखा है कि ‘स्वतंत्रता के लिए हमारे राष्ट्रीय आंदोलन को प्रेरित करने वाले उच्च आदर्शों को हृदय से संजोए रखें और उसका पालन करें.’ ...‘भारत माता की जय’ का नारा राष्ट्रीय आंदोलन से जुड़े क्रांतिकारियों ने दिया था. हम उन उच्च आदर्शों को हृदय में संजोए रखने और पीढ़ियों तक उस संस्कार को ले जाने के लिए कहते हैं, ‘भारत माता की जय’. संविधान कहता है कि हमें भारत की सम्प्रभुता, एकता और अखंडता की रक्षा करनी है और उसे अक्षुण्ण रखना है, इसलिए हमारा ‘भारत माता की जय’ कहना सबसे बड़ा और प्राथमिक धर्म है.
शशि थरुर नामका अबौद्धिक व्यक्ति कहता है कि मुसलमानों में ‘भारत माता की जय’ कहना मना है. अरे..! यह कैसा पढ़ा-लिखा व्यक्ति है..! ‘मादरे वतन भारत की जय’ कहना क्या है..? 1857 में जब स्वतंत्रता संग्राम की पहली क्रांति शुरू हुई थी, तभी अजीमुल्लाह खान ने ‘मादरे वतन भारत की जय’ का नारा दिया था... यह ‘भारत माता की जय’ का ही तो उर्दू तरजुमा था! हम सब बड़े गर्व से ‘जय हिंद’ कहते हैं. इसमें कहां कोई धर्म आड़े आता है! ‘जय हिंद’ का नारा आबिद हसन सफरानी ने दिया था, थरुर साहब! बात कड़वी जरूर है, लेकिन थरुर साहब के लिए सटीक है... आप पहले अपनी पत्नी के प्रति वफादार होना सीख लें, देश के प्रति वफादारी आ जाएगी.
बहरहाल, जिन्ना पर आते हैं. जिस जिन्ना ने खुद कभी इस्लाम की शिक्षा नहीं मानी और हर वे हरकतें कीं जो इस्लाम के खिलाफ मानी जाती हैं, उसी जिन्ना को लेकर कुछ मुसलमान बेवजह फना हुए जा रहे हैं. लेकिन जिन लोगों ने जिन्ना की तस्वीर का मसला उठाया है, उसके पीछे उनकी कोई राष्ट्र-भक्ति नहीं, वह केवल वोट-भक्ति है. यह कांग्रेस के पैंसठ साल तक चले फार्मूले का प्रति-फार्मूला है, जिसे भाजपा आजमा रही है.
भारत के विभाजन के लिए अकेले जिन्ना दोषी नहीं हैं. भारत के विभाजन के लिए जिन्ना के साथ-साथ नेहरू और गांधी भी दोषी हैं. साथ-साथ वे सब दोषी हैं जिन्होंने एक तरफ जिन्ना का साथ दिया तो दूसरी तरफ नेहरू का. इन सब लोगों ने मिल कर देश विभाजन का आपराधिक कृत्य किया. हम अकेले जिन्ना जिन्ना क्यों रट लगा रहे हैं..? गांधी को राष्ट्रपिता का सम्मान हासिल था. पिता जब तक जीवित रहता है, घर का बंटवारा नहीं होता. भाई आपस में चाहे जितना मनमुटाव रखें, पर पिता के सामने उनकी नहीं चलती. पिता का आखिरी हथियार होता है, ‘मेरी लाश पर ही घर का बंटवारा होगा.’ यह कह कर पिता घर को बांधे रहता है. लेकिन राष्ट्रपिता गांधी ने राष्ट्र-गृह का विभाजन रोकने के लिए ऐसा क्या किया..? अगर वह जिन्ना और नेहरू की सत्ता-लालसा के आगे इतने ही निरीह हो गए थे, तो देश के समक्ष जिन्ना-नेहरू की लिप्सा उजागर करते और देश के बंटवारे के मसले को देश की जनता के जिम्मे छोड़ देते! गांधी ने ऐसा क्यों नहीं किया..? जिन्ना को पहला प्रधानमंत्री बनाने का प्रस्ताव देकर नेहरू मुस्लिम लीग की दुर्भावना पर पानी फेर सकते थे और आम चुनाव के जरिए देश का दूसरा प्रधानमंत्री बनने का रास्ता अपना सकते थे. लेकिन जिन्ना और नेहरू दोनों पर ही ‘प्रथम’ होने की सनक सवार थी. इसी सनक पर देश बंट गया और देश के लोगों से पूछा भी नहीं गया. देश को जिन्ना और नेहरू ने अपनी-अपनी बपौती समझ कर बांट लिया. हम इन दोनों को अपने-अपने देश में महान बनाए बैठे हैं. देश के बंटवारे के मसौदे पर नेहरू और जिन्ना ने हस्ताक्षर किए, गांधी मूक बने बैठे रह गए. नेहरू अगर राष्ट्रभक्त होते तो बंटवारे के मसौदे पर साइन करने से इन्कार कर देते..! फिर कुछ दिन और आजादी की लड़ाई लड़ी जाती. जूझारू क्रांतिकारी विनायक दामोदर सावरकर ने ‘टू-नेशन थ्योरी’ का पुरजोर विरोध किया था और बंटवारे के खिलाफ आवाज बुलंद की थी. लेकिन दुर्भाग्य यह है कि सावरकर को भावी नस्लों के सामने विलेन की तरह पेश किया गया और हमने भी बिना सोचे समझे सावरकर को विलेन कहना शुरू कर दिया. यह बंटवारा-परस्तों का षडयंत्र था, जिसने हमारा दिमाग ग्रस लिया. सत्ता के भांड इतिहासकारों ने तथ्यों को तोड़-मरोड़ कर उलट-पलट कर हमारे सामने पेश किया. हमने इसे इतिहास समझ लिया, साजिश नहीं समझा.
हम महात्मा गांधी को राष्ट्रपिता कहते हैं, क्योंकि हमें ऐसा कहने को कहा गया. हमें अपना राष्ट्रपिता चुनने का अधिकार नहीं. वैसे ही जैसे हमें अपने देश को एक बनाए रखने का अधिकार नहीं था. भारतवर्ष के राष्ट्रपिता का व्यक्तित्व बाबा साहब भीमराव अंबेडकर में था. भ्रमित-खंडित देश ने इस पर ध्यान ही नहीं दिया. भारत राष्ट्र और भारतीय समाज को लेकर एक बाप की तरह की पीड़ा थी बाबा साहब में, इस पर हमने सोचा ही नहीं. धारा 370 को लेकर आज भाजपा जो भी राजनीति करती रहे, बाबा साहब ने इसे लागू करने को लेकर पुरजोर विरोध किया था, यहां तक कि शेख अब्दुल्ला को अपने कक्ष से बाहर निकाल दिया था. फिर नेहरू, पटेल और अब्दुल्ला ने षडयंत्र करके संविधान निर्माण प्रारूप समिति के अध्यक्ष और कानून मंत्री बाबा साहब को दरकिनार कर संसद से धारा 370 का प्रस्ताव पारित कराया.
राष्ट्रपिता बाबा साहब अंबेडकर ने भारत के विभाजन का तगड़ा विरोध किया था. लेकिन बाबा साहब की एक नहीं सुनी गई. बाबा साहब की किताब ‘थॉट्स ऑन पाकिस्‍तान’ पढ़ें तो ‘महापुरुषों’ के कुकृत्य देख कर आपके रोंगटे खड़े हो जाएंगे और मन वितृष्णा से भर जाएगा. सत्ता-लोलुपता से ग्रस्त ‘महापुरुष’ देश के टुकड़े करने से बाज नहीं आए और इसके लिए क्या क्या हरकतें नहीं कीं! बाबा साहब ने अपनी किताब में सावरकर का जिक्र करते हुए लिखा है कि सावरकर देश बंटवारे के विरोध में थे. यहां तक कि सावरकर ने दो देश बनने के बावजूद एक ही संविधान रखने की आखिरी कोशिश की थी, लेकिन उसमें भी वे नाकाम रहे. देश का विभाजन करने पर आमादा जिन्ना और नेहरू को बाबा साहब ने बुरी तरह लताड़ा था. 1940 में लिखी इस किताब में उन्होंने एक तरफ मुस्लिम लीग तो दूसरी तरफ कांग्रेस की खूब छीछालेदर की थी. बाबा साहब भारतवर्ष को अखंड देखना चाहते थे. उनका मानना था कि देश को दो भागों में बांटना व्‍यवहारिक रूप से अनुचित है और इससे मनुष्‍यता का सबसे बड़ा नुकसान होगा. और ऐसा ही हुआ. विभाजन के दौरान हुई भीषण हिंसा आज भी आंखों में लहू उतार देती है. कौन-कौन दोषी हैं इसके लिए..? क्या अकेले जिन्ना..? या साथ में नेहरू भी..? और साथ में गांधी भी..? बाबा साहब भारतवर्ष को भौगोलिक और सांस्कृतिक नजरिए से एक समग्र राष्ट्र के रूप में देखते थे. जैसा एक राष्ट्रपिता देखता है... आप ‘भारत माता की जय बोलें’, आप ‘मादरे वतन भारत की जय बोलें’ और आप बोलें ‘राष्ट्रपिता बाबा साहब अंबेडकर की जय’... यह बोलने में धर्म, जाति, वर्ण, सवर्ण सब भूल जाएं, केवल राष्ट्र याद रखें... 

Thursday 10 May 2018

कौन हिला रहा है योगी सरकार..!

प्रभात रंजन दीन
योगी सरकार कौन चला रहा है? इस सवाल से अधिक महत्वपूर्ण है कि योगी सरकार कौन हिला रहा है? योगी कैसे मुख्यमंत्री बने और अचानक वे प्रदेश की राजनीति की धुरि कैसे बन गए, यह पार्टी के शीर्ष नेताओं को पता है. राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह से दिल्ली में मुलाकात के बाद योगी आदित्यनाथ गोरखपुर चले गए थे. 18 मार्च 2017 की सुबह अमित शाह ने योगी से फोन पर बात की और दिल्ली बुलाया. दिल्ली लाने के लिए चार्टर विमान भेजा... यह ऐसे ही थोड़े हो गया! अमित शाह जिस समय योगी को दिल्ली बुला रहे थे, उस समय मोदी-प्रिय केंद्रीय मंत्री मनोज सिन्हा खुद के मुख्यमंत्री बनने की वाराणसी में पुष्टि-पूजा कर रहे थे. 17 मार्च की शाम को वे अपने नजदीकियों को शानदार पार्टी भी दे चुके थे. सारा परिदृश्य अचानक कैसे बदल गया? इस सवाल का जवाब वे लोग जानते हैं जो योगी के पूरे व्यक्तित्व को ठीक से पहचानते हैं. वे यह कहते हैं कि योगी सरकार योगी ही चला रहे हैं, लेकिन कई लोग सरकार को हिलाने की कोशिश जरूर कर रहे हैं. आज हम इस बात की विस्तार से चर्चा करेंगे कि योगी सरकार को कौन लोग हिला रहे हैं!
अमित शाह समय की संवेदनशीलता समझते हैं. 2019 के चुनाव के पहले पार्टी किसी अहितकारी परिस्थिति का सामना करे, यह शाह को गवारा नहीं. इसीलिए वे योगी सरकार को हिलाने वाले नेताओं को आगाह करने और शांत करने के लिए पिछले दिनों लखनऊ आए थे. अमित शाह योगी सरकार को गिराना या हिलाना अब नहीं चाहते. शाह योगी को मजबूत भी नहीं होने देना चाहते. इसमें अमित शाह मोदी की मंशा के साथ खड़े हैं. इसी इरादे से एक तरफ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने कार्यालय के प्रमुख सचिव नृपेंद्र मिश्र के हाथ में यूपी के शीर्ष नौकरशाहों की नकेल थमा दी तो दूसरी तरफ राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने प्रदेश भाजपा के संगठन मंत्री सुनील बंसल को सत्ता के समानान्तर खड़ा करने की कोशिश की. मोदी का प्रयोग तो चल गया लेकिन शाह का प्रयोग कामयाब नहीं हो पाया. शाह-प्रयोग से संगठन कमजोर हुआ. बंसल की समानान्तर सत्ता भ्रष्टाचार में लिप्त हो गई. योगी पर अनैतिकता और भ्रष्टाचार के आरोप तो नहीं लगे, लेकिन बंसल इन सबसे खूब ‘महिमा-भूषित’ हुए. जब बंसल अपने कृत्यों, अपनी संगतों और अपनी बदसलूकियों के कारण सुनाम बटोरने लगे, तब बड़े ही नियोजित तरीके से ओमप्रकाश राजभर, स्वामी प्रसाद मौर्य, सांसद छोटेलाल खरवार, हरीश द्विवेदी, विधायक हरीराम चेरो, भाजपा नेता रमाकांत यादव जैसे तमाम लोग खड़े किए जाने लगे. योगी की अनुभवहीनता, योगी का दुर्व्यवहार, योगी के नौकरशाहों की अराजकता, योगी से कार्यकर्ताओं में असंतोष, पूजा-पाठ करने वाले व्यक्ति को मुख्यमंत्री बनाना अनुचित, जैसी सार्वजनिक टिप्पणियां बंसल-बदनामी का नियोजित प्रति-उत्पाद हैं. योगी सरकार के शीर्ष नौकरशाहों की अराजकता की बात में कुछ वास्तविकता है, इसकी चर्चा हम बाद में करते हैं. प्रदेश की राजनीति की नब्ज जानने-समझने वाले विश्लेषक कहते हैं कि उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य की अपनी राजनीतिक महत्वाकांक्षाएं हो सकती हैं, जिस वजह से वे योगी के मातहत होने को असहजता से ले रहे हैं. लेकिन बंसल तो पार्टी को मजबूती देने के लिए राजस्थान से बुलाए गए थे. उनका सत्ता और सरकार से क्या लेना देना कि वे सरकार की लगाम अपने हाथ में लेने की हसरतें पालने लगे और बेजा हरकतें करने लगे! इसी हरकत में बंसल उप चुनाव से लेकर राज्यसभा और विधान परिषद चुनाव तक प्रत्याशी चुनने में अड़ंगा डालने की कसरत करने लगे. राजनीतिक विश्लेषक यह मानते हैं कि इससे पार्टी पर नकारात्मक असर पड़ा और आगे मुश्किलें खड़ी होंगी.
योगी सरकार को कौन लोग हिला रहे हैं इस पर चर्चा आगे बढ़ रही है, लेकिन इस बीच एक प्रसंग सामने रख दें कि बात रह न जाए. चलाने-हिलाने के बरक्स बचाने का मसला भी चर्चा में रहना चाहिए. मसलन, वक्फ घोटाले से लेकर गोमती रिवर फ्रंट घोटाले में शरीक रहे पूर्व सपा नेता बुक्कल नवाब को विधान परिषद भेजे जाने पर योगी सहमत नहीं थे. फिर बुक्कल नवाब को कौन बचा रहा है? सेंट्रल वक्फ काउंसिल की फैक्ट फाइंडिंग कमेटी की रिपोर्ट ने कहा कि यूपी सरकार में मंत्री मोहसिन रजा वक्फ घोटाले के दोषी हैं और उन पर मुकदमा भी दर्ज है. फिर मोहसिन रजा को कौन बचा रहा है? वक्फ घोटाले में सपा नेता आजम खान लिप्त हैं, सेंट्रल वक्फ काउंसिल ने मामले की सीबीआई जांच की सिफारिश कर रखी है, लेकिन जांच नहीं हो पा रही है. सपा नेता आजम खान को कौन बचा रहा है? यह सवाल अपने मन में बनाए रखिए, इसके विस्तार में हम थोड़ी देर बाद चलते हैं.
अभी हाल ही 11 अप्रैल को लखनऊ आए भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह की मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से उनके आवास पर काफी देर बातचीत हुई. शाह उस दिन मुख्यमंत्री आवास पर ही रहे. राष्ट्रीय अध्यक्ष के सामने उस दिन यह स्पष्ट कर दिया गया कि यूपी सरकार कौन चला रहा है और कौन हिला रहा है. सरकार हिलाने में लगे कई तत्व शाह ने ही खड़े किए थे. भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह उस दिन भाजपा के प्रदेश दफ्तर नहीं गए. जबकि प्रदेश दफ्तर में उनके जाने का कार्यक्रम पूर्व निर्धारित था. शाह पूरे दिन मुख्यमंत्री आवास पर ही रहे और वहीं पर दोनों उप मुख्यमंत्रियों केशव मौर्य और डॉ. दिनेश शर्मा, संगठन मंत्री सुनील बंसल समेत अन्य नेताओं से मिले. राष्ट्रीय अध्यक्ष मुख्यमंत्री आवास से ही सीधे एयरपोर्ट चले गए. शाह ने ऐसा करके पूरी प्रदेश इकाई को यह स्पष्ट संदेश दिया कि अब तक जो कुछ भी हुआ, वह अब आगे नहीं होगा. शाह के जाने के बाद सरकार हिलाने का कार्यक्रम थोड़ा थम गया है. इसके बाद अमित शाह ने एक टीवी चैनल के जरिए भी प्रदेश संगठन और नेताओं को यह कहते हुए संदेश दिया कि योगी आदित्यनाथ की सरकार उत्तर प्रदेश की बेहतरीन सरकार है.
खैर, राष्ट्रीय अध्यक्ष जब लखनऊ आए थे, उसके 15 दिन बाद ही विधान परिषद का चुनाव होना था. विधान परिषद के कई प्रत्याशियों को लेकर योगी पहले से असहमत थे, लेकिन पार्टी के नीतिगत फैसलों को लागू करने को लेकर कोई अड़चन खड़ी नहीं हुई. जिस दिन शाह लखनऊ आए, मोहसिन रजा तो उसी दिन निर्विरोध निर्वाचित घोषित कर दिए गए थे, लेकिन बुक्कल नवाब का नामांकन नहीं हुआ था. बुक्कल का नाम ड्रॉप होने और धर्मेंद्र सिंह का नाम शामिल होने की चर्चा थी. शाह-योगी की वार्ता के बाद बुक्कल का रास्ता आखिरी तौर पर साफ हुआ और 17 अप्रैल को नामांकन दाखिल हो सका. शाह ने दोनों उप मुख्यमंत्रियों से भी मुलाकात की और बंसल से भी बात की. राजभर की भी गलबहियां लीं और आशीष पटेल को विधान परिषद भेज कर अनुप्रिया पटेल को भी मनाया. शाह ने योगी को भी समझाया कि किन परिस्थितियों में यशवंत सिंह राज्यसभा नहीं भेजे जा सके और किन परिस्थितियों में धर्मेंद्र सिंह विधान परिषद नहीं जा सके. योगी निकाय चुनाव के समय धर्मेंद्र सिंह को भाजपा का प्रत्याशी बना कर मेयर बनवाना चाहते थे. लेकिन बंसल ने अड़ंगा लगा दिया. फिर गोरखपुर लोकसभा उप चुनाव में धर्मेंद्र सिंह को प्रत्याशी बनाने का प्रस्ताव दिया, इसे भी नकार दिया गया. धर्मेंद्र का नाम कटने पर योगी ने गोरखधाम के दलित संन्यासी कमलनाथ का नाम रखा. लेकिन शाह और बंसल ने इसे भी नामंजूर कर दिया. दोनों ने धर्मेंद्र को न प्रत्याशी बनने दिया, न राज्यसभा भेजा और न विधान परिषद. पार्टी ने उप चुनाव में इसका खामियाजा भुगत लिया. विधान परिषद चुनाव के पहले हुए राज्यसभा चुनाव में भी शाह-बंसल ने योगी की पसंदगी-नापसंदगी का ख्याल नहीं रखा. योगी के लिए विधान परिषद से इस्तीफा देने वाले यशवंत सिंह को वे राज्यसभा भेजना चाहते थे. लेकिन बंसल ने एटा के हरनाथ सिंह यादव को सामने रख दिया. विधानसभा चुनाव की ऐतिहासिक जीत में योगी का योगदान पार्टी नेतृत्व को याद नहीं रहा.
बिहार विधानसभा चुनाव में मिली भीषण हार के मनोवैज्ञानिक भय से दबी भारतीय जनता पार्टी ने उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव मोदी और योगी के चेहरे को आगे रख कर लड़ा. विधानसभा चुनाव में अप्रत्याशित जीत के बाद योगी को किनारे कर दिया गया. उत्तर प्रदेश का मुख्यमंत्री चुनने की पार्टी आलाकमान की विचार-प्रक्रिया में योगी कहीं शामिल नहीं थे. पिछड़े का पक्ष देखते हुए पहले मौर्य का पलड़ा भारी रहा, फिर छवि-पक्ष के नजरिए से डॉ. दिनेश शर्मा का नाम उभरा, लेकिन सब पर मोदी के पसंद केंद्रीय मंत्री मनोज सिन्हा का नाम एकबारगी छा गया. मनोज सिन्हा गाजीपुर में जोरदार सभा का आयोजन कर मोदी को पहले से प्रसन्न कर चुके थे. इस बीच अमित शाह और संघ के अलमबरदारों से योगी की दिल्ली में मुलाकात हुई. विधानसभा चुनाव में मिली ऐतिहासिक विजय के मौके पर शाह और संघ दोनों ही भाजपा के सामने स्वतंत्र रेखा खींचने का हिंदू युवा वाहिनी को मौका नहीं देना चाहते थे. विधानसभा चुनाव में प्रत्याशी उतारने की समानान्तर घोषणा को कितनी जद्दोजहद के बाद न्यूट्रल किया जा सका था, यह आलाकमान को याद था. खैर, उसके बाद परिदृश्य बदला और योगी मुख्यमंत्री के लिए चुन लिए गए. इसके साथ ही योगी को हिलाते रहने की भी रूपरेखा रची गई, ताकि योगी मजबूत जड़ न जमा पाएं. नृपेंद्र मिश्र और सुनील बंसल के इर्द-गिर्द शक्ति-पुंज रचा गया जिससे तंत्र योगी-केंद्रित न होने पाए. नौकरशाहों की तैनाती तबादले भी नृपेंद्र मिश्र और सुनील बंसल ही तय करने लगे. प्रमुख सचिव और सचिव नियुक्त करने तक के मुख्यमंत्री के अधिकार में अड़ंगेबाजी होती रही. योगी को अपनी पसंद का मुख्य सचिव नहीं नियुक्त करने दिया गया. योगी ने ओपी सिंह को डीजीपी नियुक्त करने का प्रस्ताव भेजा तो उसे काफी दिन लटकाए रखा गया. उत्तर प्रदेश पुलिस संगठन करीब एक महीने तक बिना डीजीपी के रहा, लेकिन योगी नहीं माने. आखिरकार केंद्र को ओपी सिंह को रिलीव करना ही पड़ा.
न केवल योगी की मुख्यमंत्री की कुर्सी को कमजोर करने का कुचक्र किया गया, बल्कि उनकी पारम्परिक गोरखपुर संसदीय सीट पर भी योगी की पकड़ ढीली कर उनका राजनीतिक भविष्य धूमिल करने का षडयंत्र रचा गया. योगी के मुख्यमंत्री बनने से खाली हुई गोरखपुर लोकसभा सीट के उप चुनाव में बंसल ने इसी इरादे से योगी की पसंद का प्रत्याशी न देकर योगी के धुर विरोधी शिवप्रताप शुक्ल के खास आदमी उपेंद्र शुक्ल को टिकट दिला दिया. इसके साथ बंसल ने यह भी तिकड़म रचा कि उपेंद्र शुक्ल भी उप चुनाव हार जाएं, ताकि हार का पूरा ठीकरा योगी के सिर फोड़ दिया जाए. बंसल के इशारे पर भाजपाइयों ने ही बसपा नेता हरिशंकर तिवारी समेत कई विरोधी पक्षों के साथ मिल कर भाजपा प्रत्याशी के खिलाफ वोट डलवाए. उप चुनाव में अपने प्रत्याशी के चुनाव प्रचार में न शाह गए और न मोदी. मजा देखिए कि संघ के वरिष्ठ पदाधिकारी दत्तात्रेय होसबोले ने भी लखनऊ की बैठक में संघ के कार्यकर्ताओं से उप चुनावों के बजाय 2019 के आम चुनाव पर ध्यान केंद्रित करने को कहा. उस बैठक में योगी भी मौजूद थे और बंसल भी.
बहरहाल, ऊपर शिवप्रताप शुक्ल का नाम आया तो वह प्रसंग भी ध्यान में रखते चलें. शुक्ल और योगी का विरोध जगजाहिर है. योगी के कारण ही वर्ष 2002 के बाद शुक्ल कभी कोई चुनाव नहीं जीत पाए. 2002 के विधानसभा चुनाव में योगी ने भाजपा प्रत्याशी शिवप्रताप शुक्ल के सामने राधा मोहन अग्रवाल को निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़वा दिया. अग्रवाल चुनाव जीत गए और शुक्ल हार गए. उसके बाद शुक्ल राजनीतिक वृष्टिछाया क्षेत्र में चले गए. योगी को हिलाने की काट तैयार कर रहे शाह-बंसल का ध्यान शुक्ल की तरफ गया और अचानक शुक्ल फिर से मुख्य धारा में ला दिए गए. शुक्ल राज्यसभा भी पहुंच गए और केंद्र में राज्य मंत्री भी बना दिए गए.
राजनीतिक गतिविधियों पर बेबाक टिप्पणी करने वाले पूर्व आईएएस अफसर सूर्य प्रताप सिंह कहते हैं कि योगी को विवश मुख्यमंत्री बना कर रखे जाने की कोशिश हुई. दो उप मुख्यमंत्रियों के साथ सुनील बंसल के रूप में 'सुपर सीएम' रखने की हरकत आखिर क्या बताती है! प्रदेश में विभाजित नेतृत्व देकर भारतीय जनता पार्टी आखिर कौन सा लक्ष्य साधना चाहती है! नौकरशाही की तैनाती जब दिल्ली से तय होगी तो नौकरशाह सीएम की क्यों सुनेंगे! सिंह कहते हैं कि नौकरशाही की अराजकता केंद्र प्रेरित है और इसका खामियाजा पार्टी को भुगतना पड़ेगा. सिंह यह भी कहते हैं कि खनन, परिवहन, पीडब्लूडी, आबकारी, पंजीरी, गन्ना, पंचायती राज जैसे कई विभागों में भ्रष्टाचार की पकड़ बढ़ाने के लिए शासन में योजनाबद्ध अराजकता फैलाई गई. थानों और तहसील स्तर पर बिना घूस दिए कोई काम नहीं हो रहा है और अन्य दलों से भाजपा में आए लोग खुली दलाली कर रहे हैं. बंसल जैसे नेताओं की ‘कृपा’ से भाजपा के ईमानदार और निष्ठावान कार्यकर्ताओं का काम नहीं हो रहा है.

मोहसिन, रिजवी, बुक्कल और आजम को कौन बचा रहा है?
अब उस सवाल पर फिर से आते हैं कि घोटालों में लिप्त नेताओं को मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ कानून के शिकंजे में लाना चाहते हैं तो आखिर वे ऐसा क्यों नहीं कर पा रहे हैं? इन नेताओं में से एक भाजपा में पहले से हैं, एक सपा छोड़ कर आए हैं और तीसरे अभी भी सपा में हैं. इन नेताओं को आखिर कौन ताकतवर नेता बचा रहा है? हजारों करोड़ के वक्फ घोटाले में यूपी सरकार के मंत्री मोहसिन रजा, सपा छोड़ कर भाजपा में आए विधान परिषद सदस्य बुक्कल नवाब उर्फ मजहर अली खां और सपा नेता आजम खान के नाम हैं. सेंट्रल वक्फ काउंसिल (सीडब्लूसी) की फैक्ट फाइंडिंग कमेटी की रिपोर्ट भीषण वक्फ घोटाले का पर्दाफाश करती है. कमेटी ने इस मामले की फौरन सीबीआई से जांच कराने की सिफारिश की, लेकिन केंद्रीय अल्पसंख्यक कार्य मंत्री मुख्तार अब्बास नकवी ने कमेटी की रिपोर्ट दबा दी और फैक्ट फाइंडिंग कमेटी के प्रमुख डॉ. सैयद एजाज अब्बास नकवी को सेंट्रल वक्फ काउंसिल से बाहर कर दिया. मुख्तार अब्बास नकवी सेंट्रल वक्फ काउंसिल (सीडब्लूसी) के चेयरमैन भी हैं. सीडब्लूसी की फैक्ट फाइंडिंग कमेटी के अध्यक्ष रहे डॉ. एजाज अब्बास नकवी ने ‘चौथी दुनिया’ से कहा, ‘अल्पसंख्यक मंत्री मुख्तार अब्बास नकवी ने पहले तो मुझसे कहा कि वक्फ घोटाले की रिपोर्ट से मोहसिन रजा का नाम हटा दे. मैंने मंत्री को ड्राफ्ट रिपोर्ट ही भेजी थी. ड्राफ्ट रिपोर्ट फाइनल नहीं होती. मुझे मंत्री का आदेश मानना था. लेकिन मंत्री महोदय ने मेरी ड्राफ्ट रिपोर्ट को ही सार्वजनिक कर दिया, जबकि उन्हें ऐसा नहीं करके फाइनल रिपोर्ट को सार्वजनिक करना चाहिए था. इसके बाद मंत्री महोदय ड्राफ्ट रिपोर्ट और फाइनल रिपोर्ट के बीच खेलने लगे. इसका सीधा तात्पर्य था कि वे मोहसिन रजा को दबाव में लेकर उन पर उपकार लादना चाहते थे, ताकि मोहसिन उनसे हमेशा उपकृत रहें. मैंने इसका लिखित विरोध किया. इस पर उन्होंने मुझसे यूपी का प्रभार ले लिया और चंडीगढ़ भेज दिया, जहां वक्फ है ही नहीं. फिर मुझे काउंसिल से ही हटा दिया. मंत्री ने फैक्ट फाइंडिंग कमेटी की रिपोर्ट दबा दी, ताकि उसकी सीबीआई जांच ही न हो सके. इस तरह मुख्तार अब्बास नकवी न केवल मोहसिन रजा को बल्कि बुक्कल नवाब, आजम खान और शिया वक्फ बोर्ड के चेयरमैन वसीम रिजवी को भी बचा रहे हैं.’
यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ अपनी सरकार के एक मंत्री के घोटाले में फंसने के विवाद से बचना चाहते थे. खास तौर पर वे बुक्कल नवाब को विधान परिषद भेजे जाने के पक्ष में नहीं थे. बुक्कल नवाब पर वक्फ के साथ-साथ गोमती रिवर फ्रंट घोटाले में भी एफआईआर दर्ज है. रिवर फ्रंट घोटाले के खिलाफ सख्त कार्रवाई का फैसला मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का ही था. लेकिन केंद्र के कद्दावर मंत्री की अजीबोगरीब सियासत आड़े आ गई. मुख्तार अब्बास नकवी को अमित शाह का साथ भी मिल गया. मुख्यमंत्री ने शिया वक्फ बोर्ड के छह सदस्यों अख्तर हसन रिज़वी, सैयद वली हैदर, अफशा ज़ैदी, सैयद अज़ीम हुसैन, विशेष सचिव नजमुल हसन रिज़वी और आलिमा ज़ैदी को हटा कर कार्रवाई की रस्म अदायगी कर ली. मामले की सीबीआई जांच का मसला पेचों में ही उलझ कर रह गया. सेंट्रल वक्फ काउंसिल की फैक्ट फाइंडिग कमेटी की रिपोर्ट के साथ-साथ सेंट्रल शिया वक्फ बोर्ड के चेयरमैन वसीम रिजवी भी यह सार्वजनिक तौर पर कह चुके हैं कि वक्फ घोटाले की सीबीआई जांच होगी तो उसमें सबसे पहले यूपी सरकार के मंत्री मोहसिन रजा फंसेंगे. मोहसिन रजा ने लखनऊ में चौक स्थित पुरानी मोती मस्जिद की जमीन पर अवैध कब्जा करके अपना घर बनवा रखा है. इसके अलावा मोहसिन रजा ने उन्नाव के सफीपुर में भी वक्फ सम्पत्ति बेची थी जिसमें कब्रिस्तान भी शामिल था. बोर्ड की जांच में यह बात सही पाई गई कि मोहसिन रजा ने वक्फ आलिया बेगम सफीपुर उन्नाव के केयर टेकर (मुतवल्ली) रहते हुए वक्फ सम्पत्ति बेच दी थी. वक्फ की सम्पत्ति तीन हिस्सों में पहली वर्ष 2005 में, दूसरी 2006 और तीसरी मार्च 2011 में बेची गई.
सेंट्रल वक्फ काउंसिल की रिपोर्ट के मुताबिक वक्फ घोटाले में सपा नेता आजम खान और उनकी पत्नी तंजीम फातिमा के नाम हैं. जौहर यूनिवर्सिटी में वक्फ की जमीन रजिस्ट्री कराने और प्रभाव का इस्तेमाल कर शत्रु सम्पत्ति को जौहर यूनिवर्सिटी में शामिल करने के मामले में काउंसिल ने सीबीआई जांच की सिफारिश कर रखी है. सेंट्रल वक्फ काउंसिल की फैक्ट फाइंडिंग कमेटी ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि सपा सरकार में मंत्री रहे आजम खान ने मौलाना जौहर अली एजुकेशन ट्रस्ट का गठन कर उसके लिए वक्फ बोर्ड का फंड आवंटित कर दिया. कमेटी ने यह भी कहा कि आजम खान की सरपरस्ती के कारण सुन्नी वक्फ बोर्ड ने लंबे समय से सम्पत्तियों का सर्वे नहीं कराया. बोर्ड के चेयरमैन जुफर फारुकी ने चार साल में 90 करोड़ रुपए की सम्पत्ति बनाई, जबकि उन्हें कोई मासिक वेतन नहीं मिलता. रिपोर्ट में कहा गया है कि सुन्नी वक्फ बोर्ड की एक लाख 50 हजार सम्पत्तियां थीं जो घटकर एक लाख 30 हजार हो गई हैं. भौतिक निरीक्षण में सुन्नी वक्फ सम्पत्तियां महज 32 हजार बची पाई गई हैं, बाकी सब पर अवैध कब्जा हो चुका है, या सम्पत्तियां बेची जा चुकी हैं. ऐसा ही हाल उत्तर प्रदेश में शिया वक्फ सम्पत्तियों का भी हुआ है. शिया वक्फ बोर्ड की प्रदेश में आठ हजार सम्पत्तियां थीं जो घटकर तीन हजार रह गईं. पांच हजार वक्फ सम्पत्तियों पर मोटी रकम लेकर अवैध कब्जा करा दिया गया या उन्हें बेच डाला गया.
सेंट्रल वक्फ कौंसिल ने वक्फ सम्पत्तियों की हेराफेरी पर प्रदेश सरकार को श्वेत पत्र जारी करने की सलाह दी थी और सीबीआई से जांच कराने को कहा था. इस सिफारिश पर केंद्रीय अल्पसंख्यक कल्याण मंत्री मुख्तार अब्बास नकवी ने राज्य सरकार को कार्रवाई के लिए पत्र लिखने की औपचारिकता तो पूरी की, लेकिन कमेटी की रिपोर्ट यूपी सरकार को नहीं भेजी. केंद्र के इशारे पर नाचने वाले प्रदेश के नौकरशाह भी इस पर ठंडे पड़ गए. जबकि प्रदेश के अल्पसंख्यक कल्याण मंत्री लक्ष्मी नारायण चौधरी ने यह स्पष्ट कहा था कि पिछली सरकार के कार्यकाल में शिया और सुन्नी वक्फ बोर्ड में हजारों करोड़ रुपए के घोटाले हुए. इसे देखते हुए सरकार ने शिया और सुन्नी वक्फ बोर्ड के घोटालों की सीबीआई जांच के लिए केंद्रीय गृह मंत्रालय को पत्र लिखा है. मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने भी इस पर अपनी सहमति की मुहर लगाई, फिर भी मामला अटका रह गया.

सम्पत्ति के बड़े भुक्खड़ निकले बुक्कल
समाजवादी पार्टी छोड़ कर भारतीय जनता पार्टी में शामिल हुए बुक्कल नवाब सम्पत्तियों के बड़े भुक्खड़ निकले. सेंट्रल वक्फ काउंसिल की फैक्ट फाइंडिंग कमेटी की रिपोर्ट यही कहती है. गोमती रिवर फ्रंट घोटाले में बुक्कल नवाब के खिलाफ वजीरगंज थाने में मुकदमा दर्ज है. सदर तहसीलदार की शिकायत पर बुक्कल के खिलाफ आईपीसी की धारा 420, 467, 468 और 471 के तहत केस दर्ज किया गया था. बुक्कल पर गोमती रिवर फ्रंट योजना के अंतर्गत जमीन देने के एवज में गलत तरीके से करोड़ों रुपए का मुआवज़ा लेने का आरोप है. बुक्कल ने ऊंचा मुआवजा लेने के लिए गोमती नदी की जमीन को अपना बताया और अपने दावे को सही ठहराने के लिए जाली दस्तावेज तैयार कराए. इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ खंडपीठ के आदेश पर बनी उच्च स्तरीय जांच समिति की रिपोर्ट के आधार पर तहसीलदार सदर ने यह मुकदमा दर्ज कराया. जांच समिति ने कहा कि बुक्कल नवाब ने गोमती नदी के जियामऊ स्थित जमीन को अपना बताने के लिए 22 अगस्त 1977 के जिस फैसले का सहारा लिया वह संदेहास्पद है. तब राजस्व विभाग के तत्कालीन प्रमुख सचिव अरविंद कुमार ने अदालत के समक्ष हाजिर होकर बताया था कि अगस्त 1977 में बेगम फखरजहां के निधन के बाद नायब तहसीलदार ने जियामऊ गांव की जमीन मजहर अली खान उर्फ बुक्कल नवाब पुत्र आबिद अली खां निवासी शीशमहल के नाम कर दी थी. लेकिन हाईकोर्ट के निर्देश में बनी जांच समिति ने कहा कि अगस्त 1977 का निर्णय और राजस्व रिकॉर्ड में दर्ज जानकारी दोनों ही संदेहास्पद है. इसके बाद ही इस मामले में एफआईआर दर्ज कराई गई, जिसके बाद शिया सेंट्रल वक्फ बोर्ड ने बुक्कल नवाब को लखनऊ के वक्फ मोती मस्जिद के मुतवल्ली पद से बर्खास्त कर दिया था. बुक्कल पर वक्फ की जमीन की प्लॉटिंग कर उसे बेचने का भी आरोप है. उन्होंने अपनी पत्नी महजबीं आरा को वक्फ की सम्पत्ति उपहार में दे दी. इस सम्पत्ति की कीमत सौ करोड़ से अधिक है. सभी जानते हैं कि इन्हीं घोटालों से बचने के लिए बुक्कल नवाब ने भाजपा की शरण ली. प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ इस बोझ को ढोना नहीं चाहते थे, लेकिन आखिरकार वे भी विवश हो गए.

नाईक भी नहीं करा पाए आजम के खिलाफ कार्रवाई
वक्फ घोटाले की सीबीआई जांच कराने में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ तो असफल हुए ही, राज्यपाल राम नाईक भी कामयाब नहीं हो पाए. राज्यपाल ने वक्फ घोटाले के आरोपियों पर सख्त कानूनी कार्रवाई के लिए राज्य सरकार को पत्र लिखा, लेकिन आलाकमान ने हरी झंडी नहीं दिखाई. राज्यपाल राम नाईक ने सपा सरकार में मंत्री रहे आजम खान के खिलाफ सरकारी और वक्फ बोर्ड की सम्पत्ति के दुरुपयोग को लेकर कार्रवाई करने की लिखित अनुशंसा की थी. आजम खान पर सरकारी सम्पत्तियों और वक्फ बोर्ड की सम्पत्तियों पर कब्जे के साथ-साथ हेराफेरी और सरकारी खजाने का दुरुपयोग करने के गंभीर आरोप हैं. मदरसा आलिया पर कब्जा करने के साथ-साथ आजम खान पर उनके निजी जौहर विश्वविद्यालय में सरकारी गेस्ट हाउस बनवाने और स्पोर्ट्स स्टेडियम का सामान रामपुर ले जाने का भी आरोप है. राम नाईक ने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को पत्र लिख कर कहा था कि भ्रष्टाचार के ऐसे गंभीर मामलों में त्वरित कानूनी कार्रवाई आवश्यक है. राज्यपाल का यह पत्र राष्ट्रपति और केंद्र सरकार को भी भेजा गया, लेकिन वह रास्ते में ही कहीं खो गया.

किसके हाथ में योगी के नौकरशाहों की नकेल
योगी सरकार के शीर्ष नौकरशाहों की नकेल किसके हाथ में है, यह कोई छुपी-छुपाई बात नहीं है. योगी आदित्यनाथ के मुख्यमंत्री बनते ही प्रधानमंत्री कार्यालय ने यूपी की नौकरशाही का सेटअप कैसा रहेगा, इस पर कवायद शुरू कर दी थी. स्वाभाविक है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के निर्देश पर ही यह हुआ होगा. यूपी की नौकरशाही तय करने की जिम्मेदारी संभाली थी प्रधानमंत्री के प्रमुख सचिव नृपेंद्र मिश्र ने. मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने राजीव भटनागर को मुख्य सचिव के रूप में जारी रखने का मन बना लिया था, लेकिन नृपेंद्र मिश्र कुछ और गुणा-गणित में लगे थे. फिर अचानक योगी को केंद्र से यह संदेश मिला कि वे राजीव कुमार को यूपी का मुख्य सचिव बनाए जाने के आदेश पर हस्ताक्षर कर दें. राजीव कुमार नृपेंद्र मिश्र के बहुत ही खास रहे हैं. मुख्यमंत्री के लिए यह अप्रत्याशित था, लेकिन राजीव कुमार की छवि और क्षमता को लेकर कोई नैतिक संकट या सवाल नहीं था, लिहाजा योगी ने उस पर अपने हस्ताक्षर कर दिए. राजीव कुमार के मुख्य सचिव बनने के बाद योगी को बड़ा झटका तब लगा जब उन्हें अपने प्रमुख सचिव पद से अवनीश अवस्थी को हटाना पड़ा. मुख्यमंत्री के प्रमुख सचिव के रूप में अवनीश दो महीने काम कर चुके थे, तब उन्हें वहां से हटा कर सूचना विभाग का प्रमुख सचिव बनाया गया. ऐसा इसलिए हुआ कि पीएमओ के प्रमुख सचिव नृपेंद्र मिश्र ने अपने दूसरे विश्वासपात्र आईएएस अफसर एसपी गोयल को मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का प्रमुख सचिव बनाने का निर्णय ले लिया था. इन फैसलों के जरिए प्रधानमंत्री मोदी योगी को यह संदेश दे रहे थे कि यूपी भी मोदी ही चलाएंगे, योगी नहीं. यही वजह है कि मोदी ने योगी के मुख्यमंत्री बनते ही नृपेंद्र मिश्र को जरूरी सलाह देने के लिए लखनऊ भेजा और नीति आयोग के उपाध्यक्ष अरविंद पनगढ़िया के नेतृत्व में योजनाकारों की पूरी टीम अलग से लखनऊ भेजी थी.
मुख्यमंत्री सचिवालय पर अपने खास नौकरशाह बिठाकर प्रधानमंत्री कार्यालय ने कोई अच्छा लोकतांत्रिक संदेश नहीं दिया. प्रदेशभर में यही संदेश प्रसारित हुआ कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री सचिवालय में अपने जासूस बिठा रखे हैं. इस तरह की चर्चा परिचर्चाओं ने प्रदेश की शीर्ष नौकरशाही को अराजक होने का मौका दिया. योगी के संत मित्र ने कहा कि जासूसी तो उसकी होती है जिसका कुछ छुपा हुआ होता है, जिसका जीवन पारदर्शी हो, उसकी कोई क्या जासूसी कर लेगा.

भाजपा नहीं सुधरी तो हिंदूवादी राजनीति का बेहतर विकल्प बनेगी हिंदू युवा वाहिनी
राजनीतिक विश्लेषक यह मानते हैं कि भारतीय जनता पार्टी के शीर्ष नेता अपने ही नेताओं के पैर खींचने और अपने कद से ऊपर किसी को बर्दाश्त नहीं करने की मनोवैज्ञानिक बीमारी से मुक्त नहीं हुए तो हिंदू युवा वाहिनी उत्तर प्रदेश में हिंदूवादी राजनीति का बेहतर विकल्प बन कर उभर जाएगी. यूपी में एक और ‘शिव सेना’ को ताकतवर तरीके से खड़े होने से रोकना है तो भाजपा के शीर्ष नेताओं को अपने व्यवहार और अपनी नीतियों में बदलाव लाना होगा. किसी को मुख्यमंत्री बना कर उसकी सरकार हिलाने की हरकतों से बाज आना होगा. राजनीतिक पंडितों का कहना है कि हिंदू युवा वाहिनी की सबसे बड़ी ‘यूएसपी’ उसके नेता का बेदाग चरित्र है, जो आम लोगों को काफी प्रभावित करता है. आने वाले दिनों में धर्मीय ध्रुवीकरण की सियासत जैसे-जैसे परवान चढ़ेगी, हिंदू युवा वाहिनी की मांग बढ़ेगी.
भ्रष्टाचार के खिलाफ आम जन भावना भांपते हुए ही मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने वाहिनी कार्यकर्ताओं को यह निर्देश दिया कि वे भ्रष्ट नौकरशाहों की स्टिंग करें, भ्रष्टाचार के खिलाफ सबूत जुटाएं. इस पर सख्त कार्रवाई की जाएगी. ऐसा कह कर योगी ने विधानसभा चुनाव परिणाम के बाद निष्पंद पड़े वाहिनी कार्यकर्ताओं को फिर से जाग्रत करने का काम किया. योगी ने गोरखनाथ मंदिर के तिलक सभागार में हिंदू युवा वाहिनी के संभाग और विभाग पदाधिकारियों के साथ बैठक की और तैयार की गई कार्ययोजना के कार्यान्वयन की उन्हें जिम्मेदारी सौंपी. योगी ने वाहिनी के कार्यकर्ताओं से यह भी कहा कि ग्राम स्वराज अभियान के तहत चलाई जा रही सभी 15 योजनाओं के क्रियान्वयन पर वे कड़ी नजर रखें और इसमें गड़बड़ी करने वाले अफसरों और कर्मचारियों को चिह्नित करें. अगर कहीं लापरवाही और भ्रष्टाचार नजर आए तो खुद मोर्चा न खोलें बल्कि फौरन सरकार के संज्ञान में लाएं. जरूरत पड़े तो अधिकारियों के भ्रष्टाचार का स्टिंग भी करें और सबूत जुटाएं. मुख्यमंत्री ने कहा कि हिंदू युवा वाहिनी के पदाधिकारियों और कार्यकर्ताओं को गरीब बेटियों की शादी के लिए भी आगे आना चाहिए. इसके लिए जहां भी 11 जोड़े तैयार हो जाएं, वहां फौरन ही सामूहिक विवाह की व्यवस्था कराई जाए. मुख्यमंत्री ने वाहिनी के कार्यकर्ताओं से दलित बस्तियों में जाने, उनके साथ नियमित सहभोज करने और उन्हें मुख्यधारा में लाने का जतन करने का भी निर्देश दिया और उन्हें इस बात के लिए भी सतर्क किया कि वे इस पर नजर रखें कि दलितों को सरकारी योजनाओं का लाभ समुचित तरीके से मिल रहा है कि नहीं. हिंदू युवा वाहिनी का सक्रिय होना बेवजह नहीं है. अब अचानक सक्रिय दिखने लगी हिंदू युवा वाहिनी गोरखपुर उप चुनाव में कहीं नहीं दिखी. इसका अर्थ भाजपा आलाकमान को समझ में आ गया है.
दूसरी तरफ अलीगढ मुस्लिम विश्वविद्यालय में मोहम्मद अली जिन्ना की तस्वीर हटाने के मामले में हिंदू युवा वाहिनी के कूद पड़ने का भी अपना राजनीतिक मतलब है. इस मसले में कूदते हुए हिंदू युवा वाहिनी ने अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय से 48 घंटे के भीतर जिन्ना की तस्वीर हटा लेने का अल्टिमेटम दे डाला. वाहिनी ने कहा है कि निर्धारित समय सीमा में अगर जिन्ना की तस्वीर नहीं हटाई गई तो वाहिनी के कार्यकर्ता जबरन उस तस्वीर को वहां से हटा देंगे. विश्वविद्यालय में जिन्ना की तस्वीर का मसला उठाया भाजपा सांसद सतीश गौतम ने, लेकिन इसे ले उड़ी हिंदू युवा वाहिनी. अब वाहिनी के उपाध्यक्ष आदित्य पंडित कह रहे हैं कि एएमयू से जिन्ना की तस्वीर हटाने के लिए उन्होंने कसम खा रखी है. आप क्या यह समझ रहे हैं कि हिंदू युवा वाहिनी की यह सक्रियता बेवजह है? वाहिनी का बढ़ता कद भी भाजपा में योगी के लिए मुश्किलें खड़ी कर रहा है. हिंदू युवा वाहिनी पहले पूर्वांचल में प्रभावशाली थी, लेकिन धीरे-धीरे यह पूरे प्रदेश में मजबूत होती गई. योगी के मुख्यमंत्री बनने के बाद हिंदू युवा वाहिनी के सदस्यों की तादाद बेतहाशा बढ़ गई. उप मुख्यमंत्री केशव मौर्य की नाराजगी या ईर्ष्या का बड़ा कारण यह भी रहा है. मौर्य यह कह भी चुके हैं कि ‘बाहरियों’ के बढ़ते प्रभाव को बर्दाशत नहीं किया जाएगा. विडंबना यही है कि भाजपाइयों को सपाई या बसपाई बाहरी नहीं दिखते. योगी जब मुख्यमंत्री चुने गए थे तब भी भाजपा के कुछ नेताओं ने हिंदू युवा वाहिनी का मसला उठाया था. तब यह कहा गया था कि हिंदू युवा वाहिनी संघ में विलीन हो जाएगा. वाहिनी के बढ़ते कद से बेचैन भाजपाइयों ने वाहिनी पर गुंडागर्दी में लिप्त रहने जैसे आरोप लगाने शुरू कर दिए हैं. इस पर योगी को सार्वजनिक बयान देना पड़ा. योगी ने कहा कि हिन्दू युवा वाहिनी कहीं भी गुंडागर्दी नहीं कर रही है. ऐसा एक भी मामला सामने नहीं आया है. योगी ने कहा कि अगर हिंदू युवा वाहिनी के कार्यकर्ताओं द्वारा गुंडागर्दी किए जाने के मामले सामने आते हैं तो उनके खिलाफ सख्त से सख्त कार्रवाई की जाएगी. लेकिन गुंडागर्दी की बातें कहना वाहिनी के खिलाफ महज एक दुष्प्रचार है, क्योंकि समाज में वाहिनी की प्रतिष्ठा उसके पदाधिकारियों और कार्यकर्ताओं के अनुशासित और मर्यादित रहने के कारण है. हिंदू युवा वाहिनी के एक वरिष्ठ पदाधिकारी ने कहा, ‘योगी आदित्यनाथ के मुख्यमंत्री बनने के बाद से अब तक वाहिनी चुप रही, लेकिन स्थितियों पर निगरानी और उसके विश्लेषण का काम तो चल ही रहा था. हमारे नेता के साथ भाजपा जैसा व्यवहार कर रही है, हम उसे भी देख रहे हैं और भाजपा नेताओं के बयानों और टिप्पणियों पर नजर भी रख रहे हैं. हम अपने नेता के सम्मान को सर्वाधिक प्राथमिकता देते हैं. आत्मसम्मान ही हिंदू युवा वाहिनी का रक्त और संस्कार है. उत्तर प्रदेश का मुख्यमंत्री बन कर योगी आदित्यनाथ ने हिंदू युवा वाहिनी की ताकत पूरे देश और दुनिया को दिखा दी है. हम अब अधिक प्रभावकारी ताकत दिखाने के लिए समर्थ हैं. अब हमारा ध्यान और लक्ष्य 2019 का लोकसभा चुनाव है.’ हिंदू युवा वाहिनी के उक्त नेता की यह टिप्पणी सरकार चलाने के आत्मविश्वास का संदेश देने वाली और सरकार हिलाने वालों को संभल जाने की चेतावनी देने वाली है...

Thursday 3 May 2018

योगी कमज़ोर क्यों हो रहे हैं..!

प्रभात रंजन दीन
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने भू-माफियाओं पर कार्रवाई के लिए बड़े-बड़े आदेश जारी किए, बड़ी-बड़ी घोषणाएं कीं और बड़े-बड़े विज्ञापनों के कंधे पर सवार होकर ‘एंटी-भू-माफिया पोर्टल’ जारी किया, लेकिन नतीजा क्या निकला? इसका नतीजा प्रदेश के आम लोग भुगत रहे हैं, जिनकी जमीनें और घर भू-माफियाओं के कब्जे में हैं और शासन-प्रशासन के सम्बद्ध अधिकारी भू-माफियाओं का साथ दे रहे हैं. कार्रवाई के नाम पर बांस की लंबी लचीली खपच्ची से घास हटाने का उपक्रम हो रहा है, ठीक वैसे ही जैसे मोदी का स्वच्छता अभियान चल रहा है. समाज में चारों तरफ माफिया फैले हैं या गंदगी फैली है.
आपको भू-माफियाओं का नंगा राज देखना हो तो उत्तर प्रदेश के राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र का दौरा कर लें. केवल नोएडा और ग्रेटर नोएडा क्षेत्र का ही जायजा ले लें तो ‘एंटी-भू-माफिया ऑपरेशन’ की भौंडी हकीकत से आप ठीक से परिचित हो जाएंगे. योगी सरकार की घोषणा और कार्रवाई की एक विचित्र सच्चाई यह भी है कि भू-माफियाओं के खिलाफ की गई कार्रवाई का कोई ब्यौरा सरकार के ‘एंटी-भू-माफिया पोर्टल’ पर उपलब्ध नहीं है. यहां तक कि भू-माफियाओं के खिलाफ कार्रवाई का दो आदेश जारी करने के बाद सरकार मस्त हो गई. एक शासनादेश एक मई 2017 को निकला और दूसरा सात दिन बाद आठ मई 2017 को. उसके बाद सरकार को कोई आदेश जारी करने की जरूरत ही नहीं पड़ी. योगी सरकार ने भू-माफियाओं के खिलाफ की गई कार्रवाई का सभी जिलों से न कोई लेखा-जोखा लिया और न दोषी अधिकारियों-कर्मचारियों के खिलाफ कोई सजा मुकर्रर की. गृह विभाग के एक आला अधिकारी ने दावे से कहा कि भू-माफियाओं के खिलाफ कार्रवाइयां की गई हैं. फिर कार्रवाइयों का ब्यौरा सरकारी पोर्टल पर सार्वजनिक क्यों नहीं किया गया? माफियाओं का नाम सार्वजनिक करने में सरकार को संकोच क्यों हो रहा है? इसके पीछे कौन सी राजनीतिक मंशा है? यह सवाल पूछने पर उक्त अधिकारी कोई जवाब देने के बजाय यह आग्रह करने लगे कि उनका नाम न छापा जाए. यह कहते हुए अधिकारी महोदय ने माना कि शुरुआत में कुछ जिलों से कार्रवाई के बारे में पूछताछ जरूरी की गई और कृत कार्रवाई का ब्यौरा भी मंगाया गया, लेकिन बाद में सब पुरानी रफ्तार में आ गया. यह है सरकार के सामाजिक सरोकार की सक्रियता और पारदर्शिता...
अब आप थोड़ा और केंद्र में आएं, फोटो साफ-साफ देखने के लिए जिस तरह ज़ूम करना पड़ता है उसी तरह अगर आप एक खास क्षेत्र गौतम बुद्ध नगर को फोकस करें तो आपको स्पष्ट दिखने लगेगा कि आज की तारीख में सबसे बेशकीमती जमीनी क्षेत्र का स्वामी गौतम बुद्ध नगर किस तरह ‘दीमकों’ से भरा पड़ा है. भू-माफिया, दलाल, भ्रष्ट अफसर और कर्मचारी दीमक की तरह नोएडा और ग्रेटर नोएडा क्षेत्र को चूस-चूस कर खोखला किए जा रहे हैं. मुख्यमंत्री ‘एंटी-भू-माफिया पोर्टल’ जारी कर निश्चिंत हैं.
नोएडा और ग्रेटर नोएडा में तो भू-माफिया न केवल जमीनों मकानों पर कब्जा कर रहे हैं, बल्कि वे सरकारी जमीनों को भी बंधक रख कर बैंक से लोन उठा रहे हैं. इस गोरखधंधे में राष्ट्रीयकृत बैंक के अधिकारी लिप्त हैं. बैंक की मिलीभगत से जमीन के दस्तावेजों में आपराधिक फेरबदल कर उस पर भी लाखों रुपए का लोन हासिल किया जा रहा है. एक ही जमीन पर बैंक कई-कई बार लोन दे रहा है. लोन लूट की ऐसी अंधेरगर्दी मची है कि सवर्ण भू-माफिया दलित जाति के भूस्वामी को अपना नाना-दादा बता कर उन जमीनों को अपना दिखा रहे हैं और उस पर लोन ले रहे हैं. मुसलमान भू-माफिया दलित भूस्वामी को अपना सगा रिश्तेदार बताने से संकोच नहीं कर रहा और ऐसे ही दस्तावेज भी बनवा लाया है. ये भू-माफिया नोएडा अथॉरिटी को जमीन देकर एक तरफ भारी मुआवजा कमा रहे हैं तो दूसरी तरफ उसी जमीन को बंधक रख कर बैंक से लोन भी ले रहे हैं. भू-माफियाओं की शासन-प्रशासन पर इतनी पकड़ है कि कोई चूं तक नहीं कर सकता. जिन जमीनों का मालिकाना हक नोएडा प्राधिकरण के नाम हो चुका है, उन जमीनों पर भी भू-माफियाओं द्वारा बैंक से लाखों रुपए का बार-बार लोन लेना यही बताता है कि तंत्र पर भू-माफियाओं की कितनी पकड़ है.
अब आपको एक खास ‘केस-स्टडी’ से वाकिफ कराते हैं. गौतम बुद्ध नगर के दादरी तहसील के जारचा गांव को ग्रेटर नोएडा अथॉरिटी, दादरी तहसील के अधिकारियों और भू-माफियाओं ने मिल कर राजस्व लूट का अड्डा बना रखा है. प्रशासनिक अराजकता का हाल यह है कि दलितों और कुछ अन्य कमजोर वर्ग के लोगों की नियमानुसार खरीदी गई जमीनों और मुसलमानों की कब्रगाह की जमीन को भी सरकारी भूमि दिखा कर जब्त कर लिया गया है. इन जमीनों पर पहले से दलितों के मकान, दुकान और मुसलमानों का कब्रिस्तान था. इसी में प्रसिद्ध फिल्म अभिनेता जगदीप के दादा मरहूम अलमदार हुसैन जाफरी की भी कब्र है. भू-माफिया अब उन्हीं जब्तशुदा जमीनों को मॉरगेज करके बैंक से ऋण ले रहे हैं और कब्रिस्तान की जमीन पर मार्केटिंग कॉम्प्लेक्स बनाने की तैयारी में लगे हैं. दलितों और अन्य लोगों के मकानों और दुकानों पर तहसील का ताला जड़ दिया गया है, जबकि कुछ लोग भ्रष्ट अधिकारियों और माफियाओं से मिलीभगत करके ताले खुलवा कर रह रहे हैं.
यह मामला आला अधिकारियों की नोटिस में भी लाया गया, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं की गई. विडंबना यह है कि मशहूर फिल्म अभिनेता सैयद इश्तियाक अहमद जाफरी उर्फ जगदीप के परिवार और उनके तमाम नजदीकी रिश्तेदारों, मसलन, आरिफ अब्बास जाफरी, बू अली जाफरी वगैरह की पुश्तैनी कब्रगाह गाटा संख्या-1403 में दर्ज थी. लेकिन कागजातों में फर्जीवाड़ा करके इसे सरकारी राजस्व भूमि में दर्ज कर दिया गया. एक तरफ इसे सरकारी भूमि में दर्ज कर दिया गया तो दूसरी तरफ भू-माफियाओं ने प्राधिकरण और तहसील के अधिकारियों से मिलीभगत करके वहां मार्केटिंग कॉम्प्लेक्स बनाने की तैयारी शुरू कर दी. उक्त जमीन पर शिया मुसलमानों के पुश्तैनी कब्रिस्तान होने के ऐतिहासिक दस्तावेज और साथ-साथ चकबंदी और राजस्व के सारे पुराने रिकॉर्ड पेश किए गए, लेकिन रिश्वत में पगे अफसरों ने इस पर कोई ध्यान नहीं दिया. उस कब्रगाह में फिल्म अभिनेता जगदीप के दादा अलमदार हुसैन जाफरी समेत कई शख्सियतों की कब्रें आज भी अपनी गवाही पेश कर रही हैं, लेकिन भू-माफिया इसे मिटा देने पर आमादा हैं. भ्रष्टाचार का विचित्र पहलू यह भी है कि कब्रिस्तान की जमीन को भी बंधक रख कर भू-माफियाओं ने सिंडिकेट बैंक से लोन ले रखा है. आप क्या यह समझते हैं कि तहसील, प्राधिकरण, राजस्व विभाग या सिंडिकेट बैंक के अधिकारी यह सब नहीं जानते? सारे अधिकारी इसे जानते हैं, वे भू-माफियाओं से घूस लेते हैं, राजस्व लूट में हिस्सेदारी निभाते हैं और समझ-बूझ कर माफियाओं को संरक्षण देते हैं.
ग्रेटर नोएडा के दादरी तहसील का जारचा गांव ‘शोले’ टाइप की फिल्म का प्लॉट बन गया है, जहां डकैत गब्बर सिंह का तो नहीं, पर बब्बर माफियाओं, दलालों और अफसरों का आतंक कायम है. इत्तिफाक ही है कि उस ‘शोले’ फिल्म में जगदीप भी एक प्रमुख पात्र थे जो मूल रूप से इसी जारचा गांव के रहने वाले हैं. बाद में उनका परिवार दतिया (मध्य प्रदेश) चला गया. जारचा गांव के उन्हीं बब्बर माफियाओं से मिलीभगत करके तहसील अधिकारियों ने नियम कानून से जमीनें खरीदने वाले दलितों और अन्य कमजोर वर्ग के लोगों की जमीनों को सरकारी जमीन बताकर उसे जब्त कर लिया है. ऐसे दर्जनों दलित और अन्य वर्ग के लोग मिले, जिनकी जमीनें सरकारी जमीन बता कर जब्त कर ली गईं, जबकि उन्हीं जमीनों को अपना बता कर भू-माफिया मुआवजा ले रहे हैं और उसे बंधक रख कर बैंक से लोन भी ले रहे हैं. ऐसे भुक्तभोगियों में जय जाटव पुत्र भरता जाटव, बुद्धि जाटव पुत्र सूखा जाटव, गजराज जाटव पुत्र छज्जू जाटव, धनीराम जाटव पुत्र मंगला जाटव, राम सिंह पुत्र मोमराज जाटव, बालू पुत्र यादू, हरिओम पुत्र ब्रह्मानंद, हनीफ़ पुत्र शकूर, राजेंद्र और नरेंद्र पुत्र राजपाल, शकुंतला देवी पुत्री शीशराम जाटव, ग्राम मुर्शिदपुरा, हारून और रईसुद्दीन पुत्र महमूद, निवासी ग्राम कलौंदा, तहसील दादरी, आरिफ़ अब्बास जाफरी पुत्र बू अली जाफरी, बू अली जाफरी पुत्र स्व. सफदर अब्बास जाफरी, जान मोहम्मद पुत्र मुनीर खां, निवासी ग्राम कलौंदा, तहसील दादरी वगैरह शामिल हैं. इन जैसे कई दूसरे भुक्तभोगी भी अपनी आपबीती किसी भी कानूनी और सार्वजनिक मंच पर बयान करने के लिए तैयार हैं. इन भुक्तभोगियों में जारचा गांव के बुजुर्ग बू अली जाफरी भी शामिल हैं जिनकी जमीन पर फर्जी दस्तावेजों के जरिए भू-माफिया कैसरुल इस्लाम उर्फ शन्नू और उसके गुर्गों ने कब्जा जमा रखा है. स्थानीय लोग बताते हैं कि शन्नू और उसके बेटे वकार अब्बास के साथ मिल कर ताहिर, अंतेश, हरीशचंद्र, गंगा, खेमचंद्र, वगैरह जमीन पर कब्जा करने और उस पर लोन लेने का धंधा करते हैं. बू अली जाफरी फिल्म अभिनेता जगदीप के नजदीकी रिश्तेदार हैं. इनकी जमीन पर भू-माफियाओं के कब्जे के मसले पर तहसीलदार और राजस्व विभाग के अधिकारी मोटी रिश्वत लेकर चुप बैठे हैं. रिश्वत का लेन-देन खुलेआम बैंकों के जरिए हो रहा है, उसके ठोस प्रमाण शासन में बैठे शीर्ष अधिकारियों को दिए जा रहे हैं, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हो रही है. खूबी यह है कि जो भू-माफिया दादरी तहसील या नोएडा-ग्रेटर नोएडा में सक्रिय हैं, उनके नाम भू-माफियाओं की सरकारी लिस्ट में दर्ज नहीं किए जा रहे हैं.
ग्रेटर नोएडा क्षेत्र में मुआवजे और लोन की ऐसी लूट मची है कि जो जमीनें ‘कस्टोडियन’ खाते में दर्ज हैं, उनके भी फर्जी वारिस उभर कर सामने आ रहे हैं. जो जमीनें हिंदू दलितों के नाम की हैं उन जमीनों के मुसलमान वारिस उभर कर सामने आ रहे हैं और आधिकारिक तौर पर यह बयान दे रहे हैं कि हिंदू दलित उनके नाना थे या कोई अन्य रिश्तेदार थे. आप यह जानते हैं कि विभाजन के वक्त जो लोग पाकिस्तान चले गए उनकी जमीनें ‘कस्टोडियन’ खाते में दर्ज हो गईं और उन्हें सरकारी जमीन मान लिया गया. मुआवजा पाने की होड़ में हिंदू दलित की जमीनों के सवर्ण मुसलमान वारिस या सवर्ण हिंदू वारिसों की कतार लगी है. उदाहरण के तौर पर खाता संख्या-711 व खसरा संख्या-909 का एक नायाब मसला सामने आया. इसमें जमीन के मालिक जारचा गांव के बुधवन जाटव पुत्र मोहन जाटव हैं, लेकिन उनके वारिस होने का दावा ठोक रहे हैं तहसीन अब्बास, गौहर अब्बास, गय्यूर अब्बास और जरगाम अब्बास. वारिस होने का दावा ठोकने वाले लोगों का कहना है कि बुधवन जाटव उनके नाना मज़हर हुसैन के सगे भाई थे. फिर ये दावेदार यह भी कहते हैं कि वे बुधवन जाटव की भतीजी मजहर बानो के पुत्र हैं. उन्हें यह जमीन 28 अगस्त 2008 को पंजीकृत वसीयत के जरिए मिली. अब किसी को भी इस विचित्र किस्से का न सिरा समझ में आ रहा है और न उसका कोई छोर मिल रहा है. हिंदू दलित जाति के बुधवन जाटव के रिश्तेदारों के मुसलमान बन जाने का कोई रिकॉर्ड भी नहीं है और न जमीन के दावेदार ऐसा कोई रिकॉर्ड उपलब्ध करा पा रहे हैं. राजस्व विभाग के एक अधिकारी ने बताया कि उक्त चारों दावेदार क्षेत्र के बड़े कुख्यात भू-माफिया हैं. उनके पिता अज़हर अब्बास पहले जारचा गांव के प्रधान थे. उन्होंने ही चकबंदी अधिकारी को ‘प्रभाव’ में लेकर ग्रामसभा की ‘कस्टोडियन’ और अन्य सरकारी जमीनों को अपने बेटों के नाम दर्ज करने का फर्जीवाड़ा रचा था. उस ग्राम प्रधान ने अपने बेटों को जारचा गांव की लगभग 80 बीघा जमीन का मालिक बना दिया था. इस अंधेरगर्दी की सीबीआई से जांच कराने की मांग की जा रही है. स्पष्ट है कि फर्जी दस्तावेजों को आधार बना कर भू-माफिया मुआवजे भी ले रहे हैं और उन्हीं जमीनों को बंधक रख कर बैंक से लोन भी ले रहे हैं. इस पर प्रशासन तंत्र के अधिकारी-कर्मचारी जानबूझ कर अंधे बने हुए हैं. इन भू-माफियाओं और दलालों में से कई लोग जारचा के चर्चित मीर अली हत्याकांड के अभियुक्त भी हैं, लेकिन स्थानीय पुलिस भी इन दबंगों को संरक्षण दे रही है. लोन-लूट में सिंडिकेट बैंक की जारचा शाखा बेहिचक शामिल है और बैंकिंग के नियम-कानून की धज्जियां उड़ा रही है.
जैसा आपको ऊपर बताया कि जो जमीनें ‘कस्टोडियन’, दलित वर्ग या सरकारी भूमि में दर्ज हैं, उनके दस्तावेजों में आपराधिक हेराफेरी करके करोड़ों रुपए का मुआवजा भी उठाया जा रहा है और उन्हीं जमीनों को बंधक रख कर बैंक से लाखों रुपए का लोन भी लिया जा रहा है. इसका एक नायाब उदाहरण देखिए. खाता संख्या-514 के खसरा नंबर-491 की जमीनों के मालिकों को सरकारी मुआवजा देने के बाद ग्रेटर नोएडा औद्योगिक विकास प्राधिकरण ने खरीदार के रूप में उन जमीनों को अधिग्रहीत करके उसे तहसीलदार के नाम बैनामा कर दिया. लेकिन भू-माफियाओं ने उन्हीं जमीनों को बंधक रख कर सिंडिकेट बैंक से लाखों रुपए का लोन ले लिया. ऐसे दर्जनों उदाहरण सामने आए हैं और ‘चौथी दुनिया’ के पास इसके दस्तावेजी प्रमाण हैं.
ऐसे ही अजीबोगरीब उदाहरणों का एक और हिस्सा आपके सामने है कि 28 अप्रैल 2006 को राजस्व परिषद के सदस्य वरिष्ठ आईएएस टी जॉर्ज जोसफ ने आदेश जारी कर जिन जमीनों को बेचने, बंधक रखने और ट्रांसफर करने पर रोक लगा थी और जिसे बाकायदा सरकारी भूमि घोषित कर दिया था, उन जमीनों को भी बंधक रख कर सिंडिकेट बैंक ने भू-माफिया जरगम अब्बास, गय्यूर अब्बास, तहसीन अब्बास, गौहर अब्बास, शन्नू उर्फ कैसरूल इस्लाम, वक़ार उर्फ कैसरुल इस्लाम, ताहिर, नईम अब्बास, मज़हर अब्बास उर्फ बाबू और अकील राज चौहान उर्फ अकीलुद्दीन को लाखों रुपए के लोन दे दिए. इन भू-माफियाओं ने जिन जमीनों को अपना बताया था, वे सारी जमीनें ग्रामसभा यानि, सरकार की थीं. यहां तक कि इलाके के भू-माफियाओं और दलालों के जरिए सारे अधिकारी वर्ल्ड बैंक की फंडिंग से चल रही भारत सरकार की राष्ट्रीय राजमार्ग योजना और ग्रेटर नोएडा औद्योगिक विकास प्राधिकरण के विकास के लिए दी जा रही अरबों रुपए की धनराशि की भीषण लूट में लगे हैं.

एक ही जमीन को बंधक दिखा कर सिंडिकेट बैंक बार-बार देता रहा लोन
गौतमबुद्ध नगर स्थित दादरी तहसील के जारचा गांव की किसी भी जमीन की खरीद-बिक्री पर राजस्व परिषद की तरफ से रोक लगा दी गई थी. राजस्व परिषद सदस्य टी जॉर्ज जोसफ के उक्त आदेश के हवाले से दादरी के एसडीएम ने भी आदेश (पत्रांकः 2654/रीडर-एसडीएम दादरी/06 दिनांकः 28-4-06) जारी कर ग्राम जारचा के कुल नम्बरों पर विक्रय करने, बंधक रखने और हस्तांतरण करने पर रोक लगा दिया था. इसके बावजूद जारचा की जमीनों को बंधक रखने और सिंडिकेट बैंक द्वारा आंख मूद कर लोन जारी करने का खेल जारी रहा. लोन लूट का यह खेल अब भी जारी है.
दादरी के एसडीएम ने जारचा के खाता संख्या 439 की जमीनों पर तहसीन अब्बास, जरगांव अब्बास, गौहर अब्बास, गय्यूर अब्बास पुत्र अजहर अब्बास का नाम रद्द करते हुए पूर्व की तरह उस जमीन को ग्रामसभा में निहित कर दिया था. इसके बावजूद सिडिकेंट बैंक ने उसी जमीन को बंधक रख कर जरगम अब्बास को 49 हजार रुपए का लोन जारी कर दिया. सिंडिकेट ने उसी जमीन के एवज में गय्यूर अब्बास को भी 49 हजार का लोन दे दिया. सिंडिकेट बैंक ने तहसीन अब्बास को पौन पांच लाख रुपए का लोन दिया. सिंडिकेट बैंक ने प्रतिबंधित जमीन में से ही एक हिस्से को बंधक रख कर गौहर अब्बास को साढ़े चार लाख रुपए का लोन जारी कर दिया. जरगांव अब्बास को भी सिंडिकेट बैंक से एक लाख 70 हजार रुपए का लोन मिल गया. उन्हीं जमीनों को बंधक रख कर गय्यूर अब्बास ने सिंडिकेट बैंक से फिर दो लाख 90 हजार का लोन ले लिया. लोन की लूट बेतहाशा जारी रही. फिर 2010 में गौहर अब्बास ने उसी जमीन को बंधक रख कर एक लाख 40 हजार का लोन ले लिया.
इस तरह अन्य जमीनों को भी बंधक रख कर सिंडिकेट बैंक से लोन लेने का खेल जारी रहा. 2012 में गौहर अब्बास ने तीन लाख का लोन लिया तो उसी साल गय्यूर अब्बास ने भी तीन लाख का लोन ले लिया. इस बीच दादरी तहसील ने खाता नंबर 514 के तहत खसरा नंबर 491 की जमीन से तहसीन अब्बास, जरगांव अब्बास, गौहर अब्बास और गय्यूर अब्बास का नाम खारिज कर दिया. लेकिन लोन का खेल बंद नहीं हुआ. वर्ष 2015 में जरगांव अब्बास ने उस पर छह लाख का लोन लिया तो गय्यूर अब्बास ने वर्ष 2016 में पौने छह लाख रुपए का लोन ले लिया. अगले साल 2017 में जरगांव अब्बास को सिंडिकेट बैंक ने ढाई लाख रुपए का लोन दे दिया.

लूट में खुद लिप्त है तो जवाब क्या देगा सिंडिकेट बैंक!
गैर कानूनी तरीके से लोन दिए जाने, एक ही जमीन को बार-बार बंधक रख कर लोन लेने-देने का क्रम जारी रखने, सरकारी जमीनों को भी बंधक रख कर कुछ खास लोगों द्वारा लोन लिए जाने के मसलों पर सिंडिकेट बैंक का भौंडा जवाब माफियाओं और बैंक की मिलीभगत (नेक्सस) उजागर करता है. सरकारी जमीनों को बंधक रख कर लिए गए लाखों रुपए के लोन का आरटीआई के जरिए ब्यौरा मांगने पर समाजसेवी अल्लामा जमीर नकवी को भेजे गए जवाब में सिंडिकेट बैंक कहता है कि ग्राहकों की गोपनीयता का ध्यान रखते हुए बैंक प्रबंधन इसका ब्यौरा नहीं दे सकता. जबकि भाजपा सांसद साक्षी महाराज ने सिंडिकेट बैंक के जोनल प्रबंधक डी सम्पत कुमार चारी को पूर्व में ही यह जानकारी दे दी थी कि सिंडिकेट बैंक की जारचा शाखा के अधिकारी भू-माफियाओं से साठगांठ करके सरकारी भूमि पर भी धड़ल्ले से बड़े ऋण जारी कर रहे हैं. सांसद ने बैंक प्रबंधन को जारचा शाखा के भ्रष्टाचार की गहराई से जांच करने की भी मांग की थी. लेकिन बैंक प्रबंधन ने सांसद की मांग हवा में उड़ा दी.

फेल हो गया टोटल, एंटी भू-माफिया पोर्टल
सरकार की ओर से चलाए गए एंटी भू-माफिया अभियान को धार देने के इरादे से ‘एंटी भू-माफिया पोर्टल’ शुरू किया गया था, जिसमें आम नागरिक ठोस प्रमाण के साथ अपनी शिकायतें पोर्टल पर डाल सकें ताकि शासन त्वरित कार्रवाई सुनिश्चित करा सके. लेकिन शासन तंत्र ने पोर्टल का हाल बेहाल कर रखा है. पोर्टल पर दर्ज कराई गई शिकायतों पर कोई कार्रवाई नहीं हो रही और बचने के लिए पोर्टल को अपडेट भी नहीं किया जाता. पोर्टल को इस लायक नहीं छोड़ा गया है कि भू-माफियाओं के खिलाफ की गई कार्रवाइयों से आम नागरिक अवगत हो सकें. यह कोई तकनीकी या मानवीय भूल नहीं है, यह सुनियोजित है. नौकरशाह बहुत शातिर हैं, वे ऐसा रास्ता नहीं खोलते, जिससे वे खुद पकड़े जाएं.
ऊपर आपको नोएडा-ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण की करतूतें बताईं. प्रदेश के सारे प्राधिकरणों के कृत्य एक जैसे हैं. पूरे प्रदेश में प्राधिकरण और सम्बन्धित तहसीलों के अधिकारी भू-माफियाओं और दलालों के साथ लिप्त हैं. राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र के नोएडा, ग्रेटर नोएडा, गाजियाबाद से लेकर लखनऊ, वाराणसी, गोरखपुर, इलाहाबाद, कानपुर, बरेली से इलाहाबाद तक जहां भी नजर दौड़ा लें, सभी विकास प्राधिकरणों का काम किसानों की जमीनें छीनना और भू-माफियाओं को कब्जा दिलाना रह गया है. प्रदेश के सभी जिलों के विकास प्राधिकरण भू-माफियाओं के चंगुल में हैं. शहरों के कीमती प्लॉट्स पहले ही भू-माफियाओं, दलालों या दबंग पूंजीपतियों को आवंटित कर दिए जाते हैं. कोई शिकायत करता है तो उसे पोर्टल के जाल में फंसा दिया जाता है. भ्रष्ट अधिकारी सार्वजनिक भूमि और पार्कों तक को बेच डाल रहे हैं. इलाहाबाद का उदाहरण सामने है जहां एशिया का सबसे बड़ा नेहरू पार्क बनाने के नाम पर किसानों की करीब 50 एकड़ जमीन अधिग्रहीत की गई, लेकिन पार्क नहीं बना. किसानों को मुआवजा भी नहीं दिया और जमीन की प्लॉटिंग करके उसे बिल्डर रूपधारी भू-माफियाओं के हाथों बेच डाला गया.
यही हाल राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में शामिल गाजियाबाद में हिंडन नदी के किनारे साढ़े तीन सौ एकड़ में प्रस्तावित सिटी फॉरेस्ट का हुआ. गाजियाबाद विकास प्राधिकरण का यह प्रोजेक्ट आज भू-माफियाओं के कब्जे में है. वहां दुकानें लगाने, कैंटीन चलाने, झील में नाव चलाने, जीप सफारी, घोडा और ऊंट सफारी से लेकर वाहन स्टैंड तक के सारे ठेके माफिया के हाथ में हैं.
क्या भू-माफियाओं और अधिकारियों की इन करतूतों की जानकारी ‘एंटी भू-माफिया पोर्टल’ पर दर्ज नहीं कराई जातीं? शिकायतें खूब दर्ज होती हैं, लेकिन उस पर कोई कार्रवाई नहीं होती. उल्टा लोगों में यह भय व्याप्त हो गया है कि पोर्टल पर शिकायत दर्ज कराने के बाद अधिकारी ही माफिया को शिकायतकर्ता के बारे में बता देते हैं और शिकायतकर्ता की जान उल्टे फंस जाती है. यहां तक कि ‘एंटी भू-माफिया पोर्टल’ या ‘जन सुनवाई पोर्टल’ को ही भ्रष्ट अधिकारियों ने वसूली का जरिया बना लिया है. इसका भी एक नायाब उदाहरण देखिए. प्रतापगढ़ जिले में रानीगंज तहसील के नजियापुर गांव में भू-माफियाओं ने चक रोड पर ही कब्जा कर लिया. इसकी शिकायत की गई तो सरकारी कारिंदों का जो जवाब आया उसे सुनें तो राजू श्रीवास्तव का चुटकुला फेल. खंड विकास अधिकारी ने रिपोर्ट दी कि मौके पर कोई चकरोड़ ही नहीं है. राजस्व अधिकारी की रिपोर्ट आई कि मौके पर चकरोड़ बिल्कुल खाली है, उस पर कोई कब्जा नहीं है. इस हास्यास्पद जवाब के बाद शिकायत बाकायदा ‘जन सुनवाई पोर्टल’ पर अपलोड की गई. फिर क्या था, राजस्व विभाग के घूसानंद अधिकारियों ने पोर्टल पर फर्जी आख्या (फेक स्टेटस रिपोर्ट) डाल दी और भू-माफियाओं के खिलाफ कार्रवाई हो गई. दुखद किंतु दिलचस्प तथ्य यह है कि फेक-रिपोर्ट के साथ-साथ कार्रवाई के फर्जी दस्तावेज भी पोर्टल पर अपलोड कर दिए गए. मॉनिटरिंग की कोई व्यवस्था नहीं है, और न शासन को इसकी चिंता है.

कहा था तो क्यों नहीं की अभियान की मॉनिटरिंग?
प्रदेश के आम लोगों के मन में यह स्वाभाविक प्रश्न उठता है कि जब मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा था कि वे एंटी भू-माफिया अभियान की खुद मॉनिटरिंग करेंगे तो वे ऐसा क्यों नहीं कर पाए? कहीं वे भू-माफियाओं के दबाव में तो नहीं आ गए? कहीं मुख्यमंत्री के ऊपर पार्टी संगठन के अलमबरदारों से दबाव तो नहीं पड़ गया कि वे सामर्थ्यवान भू-माफियाओं पर सख्ती न बरतें? पारदर्शिता के हिमायती मुख्यमंत्री को इन सवालों का ईमानदार जवाब देना चाहिए. 
पिछले साल जून महीने की 23 या 24 तारीख रही होगी जब मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने भू-माफियाओं के खिलाफ सख्त अभियान को धार देने के लिए ‘एंटी भू-माफिया टास्क फोर्स’ और ‘एंटी भू-माफिया पोर्टल’ शुरू किया था. तब योगी ने कहा था कि वे इस अभियान की खुद मॉनिटरिंग करेंगे. योगी ने उस वक्त कहा था कि प्रदेश में 1035 भू-माफियाओं की शिनाख्त की गई है, उनमें 42 पर गैंग्स्टर एक्ट लगा है और 70 भू-माफियाओं पर आपराधिक मुकदमे दर्ज कर कार्रवाई की गई है. फिर सरकार ने शब्दावली बदली और माफियाओं के बजाय अतिक्रमणकारी शब्द का इस्तेमाल शुरू किया. सरकार ने कहा कि 153808 अतिक्रमणकारियों को चिन्हित किया गया, जिनमें 940 मामलों में कानूनी कार्रवाई की गई है. तब सरकार ने कहा था कि 6,794 हेक्टेयर भूमि अवैध कब्जे से कराई गई है. यह जमीनें किस तरह की थीं और भू-माफिया या अतिक्रमणकारी कौन थे, इसका ब्यौरा सरकार ने जनता के समक्ष कभी नहीं रखा.

इनके नाम लिस्ट में, पर असली भू-माफिया हैं कहां?
गौतम बुद्ध जिला प्रशासन की सूची में नोएडा के 43 भू-माफिया के नाम हैं. जानकार बताते हैं कि नोएडा और ग्रेटर नोएडा क्षेत्र में खुला आखेट कर रहे भू-माफियाओं के नाम सरकारी लिस्ट में जानबूझ कर दर्ज नहीं किए जा रहे. अगर उनके नाम लिस्ट में दर्ज हो गए तो सरकारी अधिकारियों और कर्मचारियों की बेतहाशा होने वाली आमदनी पर कुल्हाड़ी लग जाएगी. इस वजह से भू-माफियाओं को सरकारी अधिकारी और पुलिस ही संरक्षण दे रही है. गौतम बुद्ध जिले के जो 43 माफिया लिस्टेड हैं, उनमें टीटू उर्फ बीटू पुत्र शाहमल निवासी बहलोलपुर थाना फेज़-3 नोएडा, रवि यादव, गोलू यादव पुत्र महावीर निवासी गढ़ी थाना फेज़-3 नोएडा, अनिल विश्वकर्मा पुत्र डालचंद्र निवासी गढ़ी चौखंडी थाना फेज़-3 नोएडा, जग्गी यादव पुत्र रमेश निवासी बहलोलपुर थाना फेज़-3 नोएडा, रामभूल पुत्र फूलसिंह निवासी गढ़ी चौखंडी थाना फेज़-3 नोएडा, देवेंद्र पुत्र साहब सिंह, धर्म सिंह, इंदर, चतर पुत्र मवासी, मवासी पुत्र वलुवा निवासी गढ़ी कस्बा थाना दनकौर, मनीष पुत्र प्रकाश चंद्र निवासी मोहल्ला प्रेमपुरी कस्बा थाना दनकौर, अंतराम पुत्र बदौली, बिंदर पुत्र अंतराम, दिनेश, देवी पुत्र रघुवीर, सपन पुत्र संतराम निवासी मोहल्ला गढ़ी कस्बा थाना दनकौर, रिंकू पुत्र जगत सिंह, सुंदर पुत्र राजाराम, जगत सिंह पुत्र राजाराम, प्रवीन पुत्र करतार निवासी गेझा थाना फेज़-2 नोएडा, नितिन यादव पुत्र मिंटर यादव, लिटिल यादव पुत्र जगवीर निवासी ग्राम गढ़ी चौखंडी थाना फेज़-3 नोएडा, करतार सिंह पुत्र राजाराम निवासी गेझा थाना फेज़-2 नोएडा, विक्रम पुत्र स्व. मामचंद्र निवासी निठारी सेक्टर-31 नोएडा थाना सैक्टर-20 नोएडा शामिल हैं.

थलसेना और वायुसेना की जमीनों पर भी कब्जा कर रहे हैं भू-माफिया
उत्तर प्रदेश के भ्रष्ट नौकरशाहों की कृपा से भू-माफियाओं का मन इतना बढ़ा हुआ है कि वे थलसेना और वायुसेना की जमीनें भी कब्जा कर रहे हैं और उन जमीनों पर बाकायदा फार्म हाउसेज़ डेवलप करा रहे हैं. अभी कुछ ही अर्सा पहले नोएडा में वायुसेना की 80 एकड़ जमीन मुक्त कराई गई थी, जिस पर कई फार्म हाउसेज़ बने हुए थे. इस कार्रवाई पर जिला प्रशासन से लेकर पुलिस तक ने अपनी-अपनी पीठ खुब ठोकी. जबकि वास्तविकता यह है कि नोएडा के नंगला नंगली और नंगली साकपुर गांवों में वायु सेना की 340 एकड़ जमीन पर भू-माफियाओं ने कब्जा जमा रखा है. वायुसेना के पास कुल 482 एकड़ जमीन थी, जिसमें से 142 एकड़ जमीन हरियाणा के फरीदाबाद में लगती है. वहां भी वायुसेना की जमीन अवैध कब्जे में ही है. विडंबना यह है कि वायुसेना को वर्ष 1950 में ही बॉम्बिंग रेज बनाने के लिए 482 एकड़ जमीन दी गई थी, लेकिन उस जमीन पर वायुसेना को कभी कब्जा मिला ही नहीं. अभी जो 80 एकड़ जमीन खाली कराई गई उस पर 41 फार्म हाउसेज़ बने थे. वायुसेना की ऐसी सैकड़ों एकड़ जमीन पर भू-माफियाओं का कब्जा है, लेकिन इसे मुक्त कराने में सरकार फेल है.
ऐसा ही हाल थलसेना की जमीनों का भी है. केवल राजधानी लखनऊ ही नहीं, बल्कि कानपुर, गोरखपुर, मेरठ, वाराणसी, फैजाबाद, इलाहाबाद सब तरफ सेना की जमीनों पर माफियाओं और नेताओं का कब्जा है. सेना की जमीन पर शान से अवैध बिल्डिंग्स, शॉपिंग कॉम्प्लेक्स और कोठियां खड़ी हैं. लखनऊ में सेना की ट्रांस गोमती राइफल रेंज की 195 एकड़ जमीन, अमौसी सैन्य क्षेत्र की 185 एकड़ जमीन, कुकरैल राइफल रेंज की सौ एकड़ जमीन, बख्शी का तालाब की 40 एकड़ जमीन और मोहनलालगंज क्षेत्र में 22 एकड़ जमीन भू-माफियाओं के कब्जे में है. लखनऊ में सुल्तानपुर रोड पर सेना की फायरिंग रेंज के बड़े हिस्से की प्लॉटिंग तक कर दी गई और जमीनें खुलेआम बिक गईं. सरकारी उपक्रम आवास विकास परिषद ने गोसाईंगंज थाने में प्रॉपर्टी डीलर के वेश में काम करने वाले भू-माफियाओं के खिलाफ मुकदमा भी दर्ज कराया, लेकिन दुस्साहसी भू-माफियाओं ने सरकारी सूचना बोर्ड उखाड़ फेंका जिस पर लिखा था कि यह सेना की फायरिंग रेंज की जमीन है. ट्रांस गोमती राइफल रेंज की 90 एकड़ जमीन और अमौसी की जमीनों पर भू-माफियाओं का कब्जा है. कुकरैल में तो सेना की करीबल 50 एकड़ जमीन पर बड़ी इमारतें और दुकानें बन चुकी हैं. छावनी से बाहर सेना की करीब छह सौ एकड़ जमीन उत्तर प्रदेश सरकार से ही विवाद में फंसी हुई है. कानपुर में सेना की जमीन पर भू-माफियाओं ने अलग-अलग इलाकों में आधा दर्जन बस्तियां बसा रखी हैं. कानपुर शहर के वार्ड नम्बर एक में भज्जीपुरवा, लालकुर्ती, गोलाघाट, पचई का पुरवा जैसी कई बस्तियां बसी हैं. बंगला नम्बर 16 और बंगला नम्बर 17 की ओर जाने वाले दो इलाकों में अवैध बस्तियां बसी हुई हैं, भू-माफियाओं के आधिपत्य के कारण उन्हें हटाना प्रशासन के बूते में नहीं है. कानपुर छावनी क्षेत्र में बना आलीशान स्टेटस क्लब ही अवैध कारगुजारियों का ‘भव्य-भद्दा’ उदाहरण है. सैन्य क्षेत्र में यह क्लब कैसे अस्तित्व में आया और इस एवज में किसने क्या-क्या पाया, सरकार और सेना दोनों ही इसका जवाब तलाशने से कन्नी काट लेती है.
गोरखपुर में गगहा बाजार स्थित सेना के कैंपिंग ग्राउंड की 33 एकड़ जमीन में से करीब दस एकड़ जमीन पर भू-माफियाओं का कब्जा है. गोरखपुर के सहजनवा, महराजगंज जिले के पास रनियापुर और नौतनवां में सेना की जमीनों पर अवैध कब्जे हैं. इलाहाबाद शहर में सेना के परेड ग्राउंड की करीब 50 एकड़ जमीन कब्जे में है. यहां भू-माफियाओं ने अवैध बस्तियां आबाद कर रखी हैं. 32 चैथम लाइंस, 6 चैथम लाइंस और न्यू कैंट में भी सेना की जमीन पर अवैध कब्जा है. मेरठ छावनी क्षेत्र तो मॉल, शॉपिंग कॉम्प्लेक्स एवं सिविल कॉलोनी में तब्दील हो चुका है.