Thursday 3 August 2023

अमृत-काल की कसक : सेना की बर्बादी का दशक


आजादी के अमृत-काल की यह कसक है कि इसका आखिरी दशक भारतवर्ष की सेना की बर्बादी के दशक के रूप में अमूर्त इतिहास में दर्ज हो गया है। मूर्त इतिहास तो सत्ता के हाथ से लिखा जाता है, उसमें भांड-गायन के अतिरिक्त कुछ नहीं होता। यह विचित्र विडंबना है कि केंद्रीय सत्ता पर बैठी भाजपा सरकार 'राष्ट्रभक्ति' की वैसे ही मार्केटिंग करती है जैसे आम आदमी पार्टी 'ईमानदारी' की मार्केटिंग करती हुई कामयाब हो गई। एक पार्टी की ‘राष्ट्रभक्ति’ और दूसरी पार्टी की ‘ईमानदारी’ में कोई फर्क नहीं है। राष्ट्रभक्ति का प्रहसन खेलने वाले सत्ताधीशों को यह समझ में नहीं आता कि सेना की शक्ति जितनी ही बढ़ेगी, देश उतना ही शक्तिशाली होगा। लेकिन सरकार ठीक उल्टा कर रही है। भाजपा सरकार ने इन दस वर्षों में देश की सैन्यशक्ति को किस तरह छिन्न-भिन्न किया है... उसके कई अध्यायों को समेट कर आपके समक्ष रखने की मैंने कोशिश की है। अगर आप छद्म से अलग वाले सच्चे और खांटी देशभक्त हैं तो इस प्रस्तुति को देखना और समझना जरूरी है...