Saturday 15 February 2020

एटम-बम से ज्यादा खतरनाक है 'कोरोना-वायरस-बम'


प्रभात रंजन दीन
कुछ सवाल सामने हैं, जिसका जवाब आना जरूरी है... कोरोना-वायरस हादसे के कुछ अर्सा पहले 12 वैज्ञानिकों का दल भारत सरकार की इजाजत लिए बगैर नगालैंड में क्या कर रहा था? भारत के पूर्वोत्तर राज्य नगालैंड के मिमी गांव में गोपनीय तरीके से कौन सा वैज्ञानिक शोध-परीक्षण चल रहा था?  कोरोना-हादसे के जिम्मेदार/अभियुक्त चीन के वूहान इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी के दो वैज्ञानिक झिंगलाऊ यांग और झेंगली शी की उस गुप्त परीक्षण में क्या भूमिका थी? टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ फंडामेंटल रिसर्च और नेशनल सेंटर ऑफ बायोलॉजिकल साइंस से सम्बद्ध तीन भारतीय वैज्ञानिकों; बीआर अन्सिल, उमा रामकृष्णन और पाइलट डोवी का मिमी गांव के 85 नगा आदिवासियों पर किए गए गुप्त शोध-परीक्षण में क्या रोल था? मामला उजागर होने के बाद किस वजह और आधार पर भारत सरकार ने इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (आईसीएमआर) से मामले की जांच कराई? फिर आईसीएमआर की जांच रिपोर्ट रोक क्यों दी गई? जांच-रिपोर्ट सार्वजनिक क्यों नहीं की गई?

Thursday 13 February 2020

...और दिल्ली चुनाव में पाकिस्तान जीत गया


प्रभात रंजन दीन
देश की राजधानी दिल्ली में पिछले दिनों भारत और पाकिस्तान के बीच हुए विधानसभा चुनाव में पाकिस्तान जीत गया और भारत मुंह के बल गिरा... खुद को चाणक्य समझने की आत्मरति के शिकार अमित शाह राष्ट्र-राष्ट्र का शोर मचाते रह गए, लेकिन चालाक अरविंद केजरीवाल ने मुंह बंद रखते हुए शाहीनबाग के जरिए पाकिस्तान का गेट खोल दिया। राष्ट्रवाद तो असर नहीं दिखा पाया, लेकिन पर-राष्ट्रवाद ने इस तरह एकीकृत कर दिया कि राजधानी में राष्ट्र धूल चाट गया। आम आदमी पार्टी की जीत घोषित होते ही केजरीवाल के विकास-फार्मूले की पतंगें उड़ने लगीं... कोई बोल रहा है मुफ्त बिजली-पानी जिता ले गया... कोई स्कूल तो कोई मोहल्ला क्लिनिक के प्रयोग को इसका श्रेय दे रहा है। इंटेलिजेंस ब्यूरो के ‘पॉलिटिकल डेस्क’ की रिपोर्ट बड़ी गहराई से तैयार की गई ‘ग्राउंड-लेवल’ रिपोर्ट है... और अगर आपने भी दिल्ली के चुनाव को तटस्थ समीक्षक की तरह देखा हो तो आपको आईबी की रिपोर्ट आपकी समीक्षा से मिलती-जुलती दिखाई पड़ेगी। इस बार के दिल्ली विधानसभा चुनाव में वोटों के एकपक्षीय-ध्रुवीकरण ने केजरीवाल की पार्टी को भारी जीत दिलाई। इस ध्रुवीकरण के आगे कांग्रेस ने मतदान के पहले ही ‘सरेंडर’ कर दिया... कांग्रेस के वोटर आम आदमी पार्टी को वोट ‘ट्रांसफर’ कर दें, इसके लिए अंदर-अंदर खूब जतन हुआ और इसीलिए कांग्रेस के कई वरिष्ठ नेता मतदान के पहले ही केजरीवाल की प्रशंसा के कसीदे काढ़ने लगे, ताकि कांग्रेस के वोटरों में कोई संदेह न रह जाए।
जो अमित शाह एंड पार्टी ने चाहा था, उसे केजरीवाल एंड पार्टी ने कर दिखाया। हिन्दुस्तान बनाम पाकिस्तान के चुनाव में ‘कमिटेड-प्रोग्रेसिव-सेकुलर’ वोटरों ने पाकिस्तान को जिता दिया। चुनाव के बाद तमाम विद्वत-समीक्षाएं आप सुनते रहिए... लेकिन असलियत यही है कि जिस नुक्ते से जीत मिल सकती थी, केजरीवाल ने उसका बड़ी चालाकी से इस्तेमाल कर लिया।
पाकिस्तान में दिल्ली विधानसभा चुनाव को लेकर बड़ी सरगर्मी और दिलचस्पी थी। शाहीनबाग के शातिर पाकिस्तान से सीधे संवाद में थे। धरना यहां चल रहा था और तस्वीरें धड़ाधड़ पाकिस्तान व्हाट्सएप हो रही थीं। पाकिस्तान में ट्वीट पर ट्वीट चल रहा था। दिल्ली विधानसभा चुनाव को लेकर पाकिस्तान का प्रमुख समाचार चैनल ‘जीओ टीवी’ और उसकी वेबसाइट पर मुख्य हेडिंग में खबर चल रही थी, ‘दिल्ली-चुनावः नरेंद्र मोदी के पाकिस्तान विरोधी एजेंडे ने भाजपा को भारी नुकसान पहुंचाया’ (New Delhi Polls: Modi’s anti-Pakistan agenda costs BJP heavily)... भारत के नस्लदूषित बेईमान-प्रगतिशील और एकधर्मी-कट्टर सेकुलर तत्वों का संगठित सिंडिकेट दिल्ली विधानसभा चुनाव को भारत बनाम पाकिस्तान का चुनाव बताए जाने पर बड़े जोर से चिहुंक रहा था। लेकिन यह उनका नाटक था। सिंडिकेट की ‘चिहुंक’ नियोजित रणनीति थी। पर्दे के पीछे असलियत यह थी कि यही सिंडिकेट पाकिस्तान में बैठे ‘रिश्तेदारों’ को नफरत फैलाने वाली खबरें सप्लाई कर रहा था। दिल्ली विधानसभा चुनाव के पहले शरजील इमाम को रिहा करने और आतंकी अफजल गुरु को श्रद्धांजलि देने के ट्वीट्स पाकिस्तान में ताबड़तोड़ जारी हो रहे थे। वही शरजील, जिसने पूर्वोत्तर को देश से अलग करने और असम को मुर्गी की गरदन की तरह तोड़ने के बयान दिए थे। शरजील इमाम शाहीनबाग के शातिरों का हीरो और पाकिस्तान के लोगों के ‘आईडियल’ के रूप में सोशल-मीडिया पर कोरोना की तरह वायरल हो रहा था।
पाकिस्तान की एक मोहतरमा इशरत फातिमा ने ट्वीट किया... The state can just hang you if you are a Muslim, just to appease the majority. So, wake and fck up...’ इसका हिंदी में तरजुमा करें तो वाक्य ऐसे बनता है, ‘अगर तुम मुस्लिम हो तो सरकार बहुसंख्यकों को संतुष्ट करने के लिए तुम्हें कभी भी फांसी पर लटका देगी। लिहाजा, जागो और ‘....’ दो।’ इस्लाम में क्या ऐसी संस्कृति सिखाई जाती है कि कोई महिला भी सार्वजनिक फोरम पर Fuck-up जैसे बेजा और अश्लील शब्दों का इस्तेमाल करे..? इस शब्द का मतलब आप सब समझते हैं, इसलिए हिंदी अनुवाद में उस शब्द की जगह खाली छोड़ दिया गया है। इशरत फातिमा आगे यह भी लिखती हैं, # Free Sharjeel # यानी, शरजील को रिहा करो... आप सोचें, देश के साथ खुलेआम कैसी दुष्टता हो रही है... इस तरह के सैकड़ों हजारों ट्वीट और विचार आभासी दुनिया में विचर रहे हैं... और हम ‘प्रगतिशील और धर्मनिरपेक्ष’ होने का आडम्बर ओढ़े रहने की perverted-psychology (विकृत-मनोवृत्ति) की बीमारी से मुक्त ही नहीं हो पा रहे..! आप दोनों तस्वीरें देखिए और सोचिए कि हम कैसा हिन्दुस्तान रच रहे हैं। अरे छोड़िए सोचना-वोचना... सोचा तो बहुत था देश के लिए / फुर्सत नहीं मिली मुझे वोट के लिए / पेट भर लिया और नींद आ गई...
आईबी की रिपोर्ट का अगला हिस्सा बाद में खोलेंगे... शाहीनबाग के षड्यंत्रकारियों को धन कहां-कहां से मिल रहा था और षड्यंत्र के सूत्रधार कितने खतरनाक इरादे को अंजाम देने की तैयारी में लगे थे...

Monday 10 February 2020

कोरोना त्रासदीः पैथोजेन का जार नगालैंड में ही फूट जाता तो क्या होता..!


प्रभात रंजन दीन
‘मित्रों के चेहरे वाली किताब’ के सभी साथी..! उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में बड़े तामझाम से आयोजित किए गए ‘डिफेंस-एक्सपो-2020’ के परिप्रेक्ष्य में मैंने पिछले दिनों एक खबर लिखी थी। खबर थी कोरोना वायरस के मनुष्य पर असर के एक गुप्त शोध-परीक्षण को लेकर। ‘डिफेंस-एक्सपो-2020’ ने सैन्य-सुरक्षा से जुड़े इस अहम मसले की अनदेखी कर दी, इस पर कोई सुगबुगाहट नहीं दिखी, कोई चर्चा नहीं हुई। जबकि यह गुप्त शोध-परीक्षण भारतवर्ष के सुदूर पूर्वोत्तर राज्य नगालैंड के मिमी गांव में चल रहा था। चीन के वूहान इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी में खतरनाक पैथोजेन का जार फूटने से कोरोना वायरस का पिशाच जो बाहर आ गया, यह बाद की घटना है। इसका गोपनीय शोध-परीक्षण तो पहले ही हो चुका था, वह भी अपने देश भारतवर्ष में..! इसे विडंबना कहें या संदेहास्पद स्थिति... कि नगालैंड के मिमी गांव में चल रहे गुप्त शोध-परीक्षण के लिए केंद्र सरकार से औपचारिक मंजूरी नहीं ली गई थी। ऐसा केंद्र सरकार का कहना है। जबकि उस गुप्त शोध-परीक्षण में देश की प्रतिष्ठित विज्ञान संस्था टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ फंडामेंटल रिसर्च और नेशनल सेंटर फॉर बायोलॉजिकल साइंस के वैज्ञानिक शरीक थे। इसमें चीन के वूहान इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी के दो वैज्ञानिक भी शामिल थे। इस पूरे गोपनीय अभियान में कौन-कौन वैज्ञानिक और कौन-कौन संस्थाएं शामिल थीं, इसका अभी पूरा खुलासा करेंगे... लेकिन पहले आपका ध्यान उन कुछ ‘खास’ प्रतिक्रियाओं पर दिलाएं जो मेरी खबर पर फेसबुक के पन्ने पर दर्ज कराई गईं। यह केवल इसलिए है कि समाज और सरोकारों में ऐसे भी निम्न स्तर के लोग हैं जिन्हें सामान्य किस्म की जानकारी भी नहीं होती, लेकिन वे अपने जैसे ही शब्दों से अपनी प्रतिक्रियाएं देने से नहीं हिचकते। उन्हें नई जानकारी हासिल करने में भी कोई रुचि नहीं रहती... वे बस अस्तित्व में औचक ही आ गए हैं। एक नवीन झा नालायक हैं... यह उपनाम उनका खुद का किया-धरा है। उन्होंने लिखा कि मैं ऐसे ही ‘कुछ भी’ लिख देता हूं। अब वो अपने नाम के साथ अपना यथार्थ खुद ही लगा चुके हैं, तो उनके बारे में क्या कहना। एक और शख्स हैं, नीतीश कुमार... वे खबर लिखने वाले के लिए बेसाख्ता लिखते हैं, ‘ऐसे लोग ही समाज में अफवाह फैलाते हैं। इनसे बचना चाहिए।’ इन्हीं की तरह के हैं दिग्विजय प्रताप सिंह, जो लिखते हैं, ‘सब rumour है। इनको लगता है कि मीडिया चुप बैठी होती? या राहुल गांधी चुप बैठे रहते? घंटा... सब अपना-अपना दिमाग लगा रहे।’ यह है उनके दिमाग के स्तर का प्रताप जो समाज में घंटा बजा रहा है। एक और शख्स विकास सिंह हैं जिन्होंने एक शब्द से काम चलाया... ‘फर्जी’...। विशाल पंवार लिखते हैं कि उन्हें मेरी खबर पढ़ कर हॉलीवुड फिल्म जैसी फीलिंग आई और नितिन चौधरी लिखते हैं, ‘गज़ब... इस भाई को कोई जासूसी उपन्यास लिखना चाहिए।’ राकेश त्रिपाठी नामक जीव ने तो मुझे मानसिक दिवालिया ही घोषित कर दिया। ...और राजन शर्मा जैसे लोग तो इस समाज के कोढ़ हैं, जिन्हें सामाजिक-मीडिया के इस प्रतिष्ठित सार्वजनिक मंच पर गंदी गाली के शब्द लिखने में शर्म नहीं आती। वे लिखते हैं, ‘कपोल पल्पना की .... दी है।’ राजन शर्मा अपनी मां के लिए गंदे शब्द का इस्तेमाल करते हैं। नाम के साथ शर्मा लिखते हैं, लेकिन शर्म से इनका कोई वास्ता नहीं... जो ‘कल्पना’ शब्द भी सही नहीं लिख पाते, उसे ‘पल्पना’ लिखते हैं। आप ऐसे व्यक्ति के स्तर के बारे में कल्पना कर सकते हैं। ‘पल्पना’ उनके हिस्से में छोड़ दीजिए।
यह प्रसंग लिखना इसलिए जरूरी था कि हमें अपने इर्द-गिर्द की बौद्धिक-सड़ांध को भी समझते हुए आगे चलना चाहिए। इस खबर को लेकर ढेर सारी समझदार, जागरूक, बुद्धिमान और जिज्ञासु प्रतिक्रियाएं मिलीं। इससे आत्मविश्वास जगता है कि समाज अभी सकारात्मक-जिज्ञासा से खाली नहीं हुआ है। ‘मित्रों के चेहरे वाली किताब’ के कई साथियों ने इस खबर की तथ्यता और सत्यता भी परखनी चाही... यह जिज्ञासा स्वाभाविक है। कई साथियों ने अंतरराष्ट्रीय शोध पत्रिकाओं के कई संदर्भों का हवाला दिया और मेरी खबर की प्रत्यक्ष और परोक्ष पुष्टि की। एक दो अखबारों ने इस तरह भी लिख डाला, ‘नगालैंड में शोध-परीक्षण, केंद्र ने दिए जांच के आदेश’...। जबकि स्वास्थ्य मंत्रालय की जांच पहले ही हो चुकी है। आज एक मित्र ने एक रूसी अखबार का संदर्भ देते हुए उस खबर की पुष्टि की। जहां तक मीडिया के दायित्वबोध का प्रसंग है, इस बारे में कुछ कहना नहीं है, बस समझना है। सत्ता की भावाभिव्यक्ति (एक्सप्रेशन) के मुताबिक खबरें परोसने की मीडियाई-होड़ में आप क्या सोचते हैं कि ऐसी कोई खबर लिखी या दिखाई जाएगी जो सत्ता को परेशान करे और आम आदमी को राहत दे..! ‘फेसबुक’ किसी अखबार और चैनल से कम है क्या..? जिन्हें खबर बेचकर खाना नहीं है, वे सब आएं और इस सर्वाधिक प्रसारित ‘सार्वजनिक-अखबार’ पर लिखें। खबर अगर तथ्यपूर्ण और सत्यपूर्ण हो तो आप इस सामाजिक फोरम पर पत्रकारिता का डंका बजा सकते हैं... संपादक या मालिक नहीं छापे तो इस पर लिख कर अलख जगा दो... पत्रकारिता को किसी भी तरह अगर जिंदा रखना है तो यह करना होगा।
अब आइए कोरोना वायरस वाली खबर पर। जो साथी वह खबर नहीं देख पाए हों तो थोड़ा कष्ट करके मेरे टाइम-लाइन पर जाकर वह खबर पढ़ सकते हैं। उस खबर को लेकर कई जिज्ञासाएं थीं... बहुत सारे साथी नगालैंड में हुए गोपनीय शोध-परीक्षण में शामिल वैज्ञानिकों और संस्थाओं का नाम जानना चाहते थे। किसी खबर की प्रामाणिकता जानने के लिए यह जानना जरूरी भी होता है। कोरोना-वायरस प्रसंग में कई नई-नई जानकारियां हम आपसे साझा करेंगे... अभी आपको बताएं कि नगालैंड के मिमी गांव में किए गए शोध-परीक्षण में कौन-कौन वैज्ञानिक शामिल थे और वे किन संस्थाओं से जुड़े हैं। उस गुप्त अभियान दल में 12 वैज्ञानिक शामिल थे, जिनमें 
(1) बीआर अंसिल, नेशनल सेंटर फॉर बायोलॉजिकल साइंस, टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ फंडामेंटल रिसर्च, बंगलुरू
(2) उमा रामकृष्णन, नेशनल सेंटर फॉर बायोलॉजिकल साइंस, टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ फंडामेंटल रिसर्च, बंगलुरू
(3) पाइलट डोवी, नेशनल सेंटर फॉर बायोलॉजिकल साइंस, टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ फंडामेंटल रिसर्च, बंगलुरू
(4) झिंगलाउ यांग, वूहान इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी, चीन
(5) झेंगली शी, वूहान इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी, चीन
(6) क्रिस्टोफर सी ब्रोडर, यूनिफॉर्म्ड सर्विसेज़ युनिवर्सिटी ऑफ दि हेल्थ साइंसेज़, अमेरिका
(7) डॉलीस एचडब्लू लो, ड्यूक नेशनल युनिवर्सिटी ऑफ सिंगापुर मेडिकल साइंसेज़, सिंगापुर
(8) एरिक डी लैंग, यूनिफॉर्म्ड सर्विसेज़ युनिवर्सिटी ऑफ दि हेल्थ साइंसेज़, मैरीलैंड, अमेरिका
(9) गैविन जेडी स्मिथ, ड्यूक नेशनल युनिवर्सिटी ऑफ सिंगापुर मेडिकल साइंसेज़, सिंगापुर
(10) मार्टिन लिंस्टर, ड्यूक नेशनल युनिवर्सिटी ऑफ सिंगापुर मेडिकल साइंसेज़, सिंगापुर
(11) यीहुई चेन, ड्यूक नेशनल युनिवर्सिटी ऑफ सिंगापुर मेडिकल साइंसेज़, सिंगापुर और
(12) ईयान एच मैन्डेन्हॉल, ड्यूक नेशनल युनिवर्सिटी ऑफ सिंगापुर मेडिकल साइंसेज़, सिंगापुर शामिल थे।
नगालैंड के मिमी गांव में 85 आदिवासियों पर हुए गुप्त शोध-परीक्षण की फंडिंग अमेरिकी रक्षा मंत्रालय के तहत काम करने वाली ‘डिफेंस थ्रेट रिडक्शन एजेंसी’ (डीटीआरए) कर रही थी। गुप्त शोध-परीक्षण की रिपोर्ट उजागर होने के बाद चौकन्ना हुई भारत सरकार ने इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (ICMR) से इस मामले की जांच कराई। लेकिन जांच रिपोर्ट दबा दी गई। कोरोना वायरस को जैविक-युद्ध-हथियार (बायोलॉजिकल-वार-फेयर) बनाने के चीन के कुचक्र का आधिकारिक खुलासा होने के बावजूद भारत सरकार ने रक्षा मंत्रालय या केंद्रीय जांच एजेंसी से इस संवेदनशील प्रकरण की सूक्ष्मता से जांच कराने की जरूरत नहीं समझी। जबकि अमेरिका का ‘बायोलॉजिकल वीपन्स एंटी टेररिज़्म एक्ट ऑफ 1989’ ड्राफ्ट करने वाले प्रख्यात वैज्ञानिक एवं कानूनविद् डॉ. फ्रांसिस बॉयले आधिकारिक तौर पर यह दर्ज करा चुके हैं कि कोरोना वायरस जैविक-युद्ध-हथियार है।
चीन के वैज्ञानिकों (Biological Espionage Agents) ने कोरोना वायरस का पैथोजेन सबसे पहले कनाडा के विन्नीपेग स्थित नेशनल माइक्रोबायोलॉजी लेबोरेट्री से चुराया था। इसकी आधिकारिक पुष्टि हो चुकी है। इसके बाद चीन के वैज्ञानिक वेशधारी Biological Espionage Agents ने अमेरिका के हार्वर्ड विश्वविद्यालय से कई खतरनाक वायरस के पैथोजेन चुराए और उसे चीन पहुंचाया। खतरनाक वायरस और संवेदनशील सूचनाओं की तस्करी के आरोप में हार्वर्ड विश्वविद्यालय के केमिस्ट्री एवं केमिकल बायोलॉजी डिपार्टमेंट के विभागाध्यक्ष डॉ. चार्ल्स लीबर को पिछले महीने 20 जनवरी को गिरफ्तार किया गया। डॉ. लीबर चीन को संवेदनशील सूचनाएं लीक करने के एवज में भारी रकम पाता था। यहां तक कि चीन ने डॉ. लीबर को वुहान इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी का ‘रणनीतिक वैज्ञानिक’ (स्ट्रैटेजिक साइंटिस्ट) के मानद पद पर भी नियुक्त कर रखा था। 29 साल की युवा वैज्ञानिक यांकिंग ये भी गिरफ्तार की गई थी। यांकिंग ये की गिरफ्तारी के लिए अमेरिका की फेडरल ब्यूरो ऑफ इन्वेस्टिगेशन (एफबीआई) को बाकायदा लुक-आउट नोटिस जारी करनी पड़ी थी। बाद में पता चला कि यांकिंग ये वैज्ञानिक के वेश में काम कर रही थी, जबकि असलियत में वह चीन की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी की लेफ्टिनेंट थी। चीन ने अपने सारे कूटनीतिक दांव आजमा कर लेफ्टिनेंट यांकिंग ये को अमेरिकी गिरफ्त से छुड़ा लिया। 10 दिसम्बर 2019 को बॉस्टन के लोगान इंटरनेशनल एयरपोर्ट पर चीनी वैज्ञानिक झाओसोंग झेंग को खतरनाक वायरस की 21 वायल्स के साथ रंगे हाथों गिरफ्तार किया गया। वह ये खतरनाक वायरस चीन ले जा रहा था। बाद में यह भी पाया गय़ा कि झाओसोंग जाली पासपोर्ट और फर्जी दस्तावेज लेकर अमेरिका आया था। ...आगे के क्रम में इसके कई और पेंच खोलेंगे और इस पर हम लोग विस्तार से चर्चा करेंगे... आप सबको शुभकामनाएं।

Friday 7 February 2020

नगालैंड के मिमी गांव में क्या चल रहा था ‘गुप्त-मिशन’..?


डिफेंस-एक्सपो का मेला भारी, सुरक्षा-हितों पर पर्दादारी..!
प्रभात रंजन दीन
लखनऊ में डिफेंस एक्सपो-2020 बड़े धूमधाम से हो रहा है। अमेरिका इजराइल समेत सैन्य उपकरण बनाने वाले तमाम देश के रक्षा मंत्रियों, सेनाध्यक्षों, राजदूतों और बहुराष्ट्रीय कंपनियों के प्रमुखों का लखनऊ में जमावड़ा लगा हुआ है। सैन्य उपकरण बनाने और बेचने वाला देश चीन इस जमावड़े में शामिल क्यों नहीं है..? क्या चीन को इस मेले में शामिल होने का न्यौता नहीं भेजा गया था..? आप भी सोचेंगे कि क्या बेमतलब का सवाल मैं उठा रहा हूं... क्योंकि सबको यही पता है कि डिफेंस एक्सपो-2020 में शामिल होने के लिए चीन को न्यौता दिया गया था, लेकिन चीन में कोरोना वायरस फैलने की वजह से चीन डिफेंस एक्सपो-2020 में शामिल नहीं हो सका। ...आपकी यह जानकारी गलत है। इसे ऐसे भी कह सकते हैं कि आपको गलत जानकारी दी गई है। कोरोना वायरस से मुकाबला करने के कारण नहीं बल्कि भारत को कोरोना वायरस का ‘प्रयोग-स्थल’ बनाने के कुचक्र से पर्दा हट जाने की वजह से चीन डिफेंस एक्सपो में हिस्सा लेने से कन्नी काट गया। डिफेंस एक्सपो में प्रधानमंत्री शरीक हुए। रक्षा मंत्री लगातार मौजूद हैं और मुख्यमंत्री तो मेजबान ही हैं... लेकिन किसी ने भी देश को असली बात नहीं बताई।
सुदूर पूर्वोत्तर राज्य नगालैंड में बड़े गोपनीय तरीके से एक शोध और परीक्षण चल रहा था। इस शोध-परीक्षण में अमेरिका, चीन, भारत और सिंगापुर के वैज्ञानिक शामिल थे। इस गुप्त शोध-परीक्षण की फंडिंग अमेरिकी रक्षा मंत्रालय के तहत काम करने वाली ‘डिफेंस थ्रेट रिडक्शन एजेंसी’ (डीटीआरए) कर रही थी। आप हैरत करेंगे कि वह गुप्त शोध-परीक्षण कोरोना वायरस के मनुष्य पर इस्तेमाल का असर देखने के लिए किया जा रहा था। इसके लिए भारत को चुना गया था। परीक्षण यह जांचने के लिए किया जा रहा था कि क्या मनुष्य भी चमगादड़ की तरह कोरोना, इबोला, सार्स या ऐसे खतरनाक वायरस अपने शरीर में लंबे अर्से तक वहन (carry) कर सकता है..! अगर मनुष्य को इसके लिए immune या resistant बना दिया जाए तो..! आप कल्पना कर सकते हैं कि कितना खतरनाक शोध-परीक्षण अपने ही देश की धरती पर चल रहा था। इस गुप्त शोध-परीक्षण में जो दर्जन भर वैज्ञानिक लगे थे, उनमें चीन के उसी वुहान इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी के दो वैज्ञानिक शामिल थे, जहां से कोरोना वायरस लीक हुआ और वुहान कुछ ही मिनटों में दुनिया भर में कुख्यात हो गया। आप हैरत करेंगे कि वैज्ञानिकों की टीम में टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ फंडामेंटल रिसर्च (TIFR) और नेशनल सेंटर फॉर बायोलॉजिकल साइंस (NCBS) के वैज्ञानिक भी शरीक थे। इनके अलावा इस गोपनीय ‘शोध-अभियान’ में अमेरिका के ‘यूनिफॉर्म्ड सर्विसेज़ युनिवर्सिटी ऑफ द हेल्थ साइंसेज़’ और सिंगापुर के ‘ड्यूक नेशनल युनिवर्सिटी’ के वैज्ञानिक शामिल थे। खूबी और विडंबना यह है कि इस गोपनीय शोध-परीक्षण कार्यक्रम के लिए भारत सरकार से कोई औपचारिक इजाजत नहीं ली गई थी और शोध-परीक्षण के परिणामों पर ‘पब्लिक लाइब्रेरी ऑफ साइंस’ के ‘नेगलेक्टेड ट्रॉपिकल डिजीजेज़ जनरल’ में बाकायदा रिपोर्ट ‘Filo-virus-reactive antibodies in humans and bats in Northeast India imply Zoonotic spill-over’ भी छप रही थी। यह पत्रिका ‘बिल एंड मेलिंडा गेट्स फाउंडेशन’ के पैसे से चलती है। रिपोर्ट् के आधार पर बिल गेट्स ने कहा था कि कोरोना वायरस एक बार फैला तो इस महामारी से कम से कम तीन करोड़ लोग मारे जाएंगे।
गुप्त शोध-परीक्षण की रिपोर्ट उजागर होने के बाद चौकन्ना हुई भारत सरकार ने इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (ICMR) के जरिए इस मामले की जांच कराई। आईसीएमआर की पांच सदस्यीय टीम ने जांच में पाया कि नगालैंड के चीन से सटे किफिरे जिले के मिमी गांव में यह गुप्त शोध-परीक्षण चल रहा था। इसमें क्षेत्र के 18 से 50 साल के बीच के 85 लोगों पर शोध-परीक्षण किया गया जो चमगादड़ों का शिकार करते हैं। ये सभी नगालैंड के जंगलों में रहने वाले आदिवासी हैं। स्वास्थ्य मंत्रालय ने आईसीएमआर की जांच रिपोर्ट को लॉकर में बंद कर दिया और सरकार ने भी अपना मुंह सील कर लिया।
कोरोना वायरस को जैविक-युद्ध-हथियार (बायोलॉजिकल-वार-फेयर) बनाने के चीन के कुचक्र का आधिकारिक खुलासा होने के बावजूद भारत सरकार ने रक्षा मंत्रालय या केंद्रीय जांच एजेंसी के जरिए इस संवेदनशील प्रकरण की सूक्ष्मता से जांच कराने की जरूरत नहीं समझी। इस खतरनाक शोध-परीक्षण के लिए भारत को प्रयोगस्थल क्यों बनाया गया... क्या यह जानने का हक देश के लोगों को नहीं हैं..? अमेरिका का ‘बायोलॉजिकल वीपन्स एंटी टेररिज़्म एक्ट ऑफ 1989’ कानून ड्राफ्ट करने वाले प्रख्यात वैज्ञानिक एवं कानूनविद् डॉ. फ्रांसिस बॉयले आधिकारिक तौर पर यह दर्ज करा चुके हैं कि कोरोना वायरस जैविक-युद्ध-हथियार है। जबकि चीन में कोरोना वायरस ‘लीक’ होने के बाद दुनिया भर में यह झूठ प्रसारित किया गया कि चमगादड़ का सूप पीने से कोरोना वायरस फैला।
चीन के वैज्ञानिकों (Biological Espionage Agents) ने कोरोना वायरस का पैथोजेन सबसे पहले कनाडा के विन्नीपेग स्थित नेशनल माइक्रोबायोलॉजी लेबोरेट्री से चुराया था। इसकी आधिकारिक पुष्टि हो चुकी है। इसके बाद चीन के वैज्ञानिक वेशधारी Biological Espionage Agents ने अमेरिका के हार्वर्ड विश्वविद्यालय से कई खतरनाक वायरस के पैथोजेन चुराए और उसे चीन पहुंचाया। खतरनाक वायरस और संवेदनशील सूचनाओं की तस्करी के आरोप में हार्वर्ड विश्वविद्यालय के केमिस्ट्री एवं केमिकल बायोलॉजी डिपार्टमेंट के विभागाध्यक्ष डॉ. चार्ल्स लीबर को पिछले महीने 20 जनवरी को गिरफ्तार किया गया। डॉ. लीबर चीन को संवेदनशील सूचनाएं लीक करने के एवज में भारी रकम पाता था। यहां तक कि चीन ने डॉ. लीबर को वुहान इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी का ‘रणनीतिक वैज्ञानिक’ (स्ट्रैटेजिक साइंटिस्ट) के मानद पद पर भी नियुक्त कर रखा था। 29 साल की युवा वैज्ञानिक यांकिंग ये भी गिरफ्तार की गई थी। यांकिंग ये की गिरफ्तारी के लिए अमेरिका की फेडरल ब्यूरो ऑफ इन्वेस्टिगेशन (एफबीआई) को बाकायदा लुक-आउट नोटिस जारी करनी पड़ी थी। बाद में पता चला कि यांकिंग ये वैज्ञानिक के वेश में काम कर रही थी, जबकि असलियत में वह चीन की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी की लेफ्टिनेंट थी। चीन ने अपने सारे कूटनीतिक दांव आजमा कर लेफ्टिनेंट यांकिंग ये को अमेरिकी गिरफ्त से छुड़ा लिया। 10 दिसम्बर 2019 को बॉस्टन के लोगान इंटरनेशनल एयरपोर्ट पर चीनी वैज्ञानिक झाओसोंग झेंग को खतरनाक वायरस की 21 वायल्स के साथ रंगे हाथों गिरफ्तार किया गया। वह ये खतरनाक वायरस चीन ले जा रहा था। बाद में यह भी पाया गय़ा कि झाओसोंग जाली पासपोर्ट और फर्जी दस्तावेज लेकर अमेरिका आया था।