Friday 30 April 2021

चुनाव ड्युटी पर गए आठ सौ शिक्षक कोरोना से मर गए, फिर भी योगी चुप हैं..!

 चुनाव ड्युटी पर गए आठ सौ शिक्षक कोरोना से मर गए, फिर भी योगी चुप हैं..!
यूपी के पंचायत चुनाव की ड्युटी में झोंके गए आठ सौ शिक्षकों की कोरोना संक्रमण से मौत हो गई। इनमें बड़ी संख्या में महिला शिक्षक भी हैं। 10 हजार से अधिक शिक्षक कोरोना से भीषण रूप से आक्रांत हैं। अभी कई और शिक्षक जीवन और मृत्यु के बीच जूझ रहे हैं। आठ सौ शिक्षकों की दुखद मौत पर राज्य के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ समेत पूरी उत्तर प्रदेश सरकार चुप है। एक नेता या अफसर की मौत पर तीव्र गति से जारी होने वाला मुख्यमंत्री का शोक संदेश, शिक्षकों की मौत पर जारी नहीं हुआ। पंचायत चुनाव कराने के सत्ताई हठ पर सैकड़ों शिक्षक कुर्बान हो गए और उनका घर संसार उजड़ गया, इसके बावजूद सत्ता की उपेक्षा शर्मनाक है। अखबारों ने भी यह खबर अंदर के पन्नों पर छापी। जबकि यह खबर सारे अखबारों की समवेत-स्वीकार्य लीड यानी Unanimous Lead खबर होना चाहिए थी। यह कम शर्मनाक नहीं है। किसी भी अखबार ने आठ सौ शिक्षकों की मौत को केंद्रित करते हुए हेडिंग भी नहीं बनाई... सारे अखबारों ने शिक्षकों की मौत की खबर को अंडर-प्ले करने वाली हेडिंग्स लगाई। अमानवीयता की यह इंतिहा है... इसके आगे कुछ लिखना नहीं, आप खुद ही देखिए और महसूस करिए भारतीय लोकतंत्र के नियंताओं की संवेदनहीनता का चरम...

Sunday 25 April 2021

PM और CM को ऑक्सीजन चाहिए... हालत नाजुक

 
PM और CM को ऑक्सीजन चाहिए... हालत नाजुक
घर का अभिभावक घर के सारे दायित्वों को अपने सिर लेता है, उसे own करता है... देश का प्रधानमंत्री और राज्य का मुख्यमंत्री क्रमशः देश और राज्य का अभिभावक होता है... उसे देश राज्य के सारे दायित्व अपने सिर लेने ही होंगे, नहीं तो अभिभावकत्व से मुक्त हो जाना ही एकमात्र नैतिक विकल्प है। अभी देश राज्य की जो हालत है, उसे संभालने में हमारे अभिभावक फेल हैं, लेकिन वे अभिभावकत्व से मुक्त होने का नैतिक विकल्प स्वीकार करने को तैयार नहीं। देश के आम नागरिक को भौतिक ऑक्सीजन की जरूरत है तो नेताओं को नैतिक ऑक्सीजन की नितांत आवश्यकता है... भौतिक ऑक्सीजन के अभाव में हम मर रहे हैं और नैतिक ऑक्सीजन की किल्लत के कारण नेता मर रहे हैं। एक फिल्मी गाना बड़ा प्रचलित था... जाने कहां मेरा जिगर गया जी, अभी अभी इधर था, किधर गया जी... ऑक्सीजन की आकस्मिक गुमशुदगी पर यह फिल्मी गाना बिल्कुल फिट बैठता है। अभी अभी इधर था, किधर गया जी... देश के सत्ता अलमबरदारों से यही सवाल पूछा जा रहा है तो तमाम किस्म के बहाने और नौटंकियां परोसी जा रही हैं। बहाने और नौटंकियां सूंघ कर लोगों की सांसें चल सकतीं तो सारे सत्ताधारी नेता आज अस्पताल में रोगियों के साथ प्लास्टिक की नाल से नथे होते... शासन और प्रशासन को ऑक्सीजन की नियोजित-प्रायोजित गुमशुदगी के बारे में सब कुछ पता है। ऑक्सीजन के सिलिंडर्स नेताओं, नौकरशाहों, जजों, धनपशुओं और दलालों के घरों में भंडारित (stock-piled) हैं तो वहां से कौन निकाले... और कौन बताए..! मरना तो आम जनता को ही है... जनता का मरना महज कुछ नंबर का कम होना है... बस, लोगों को झांसे में रखने वाला प्रहसन और वोट चूसने वाला उपक्रम जारी रहना चाहिए।
बाजार से ऑक्सीजन गायब है और अस्पतालों से बिस्तर गायब हैं। सरकार के सियासी या प्रशासनिक नुमाइंदे जो बयान देते हैं और जो विज्ञप्तियां छपवाते हैं, उनकी बातों का भरोसा मत करिए। आप किसी श्मशान या कब्रगाह के पास खड़े हो जाएं और सत्ताधारी नेता और नौकरशाह के दावों को चिता पर फुंकता हुआ और कब्र में दफ्न होता हुआ देखें... आप अस्पतालों के सामने खड़े हो जाएं और मरने वालों का तांता लगा हुआ देखें। आप देखें अस्पतालों के आगे दलाल किस तरह सक्रिय हैं, आपको भर्ती कराने के एवज में आपको किस तरह लूट रहे हैं। भर्ती हो गए तो अंदर शैतानों का तांडव देखिये। आपकी जेब से पैसा खत्म तो आप भी खत्म... आपको फौरन अस्पताल से बाहर खदेड़ दिया जाता है और आप घर तक पहुंच भी नहीं पाते कि आपके अपने दम तोड़ चुके होते हैं। इसके अनगिनत ठोस प्रमाण सड़कों पर बिखरे पड़े हैं। अस्पतालों के अंदर रोगियों के साथ अमानुषिक आपराधिक अत्याचार किया जा रहा है। रोगी को देखने वाला कोई नहीं होता। एक बार खाना दिया तो दूसरी बार गायब। सुबह की दवा रात तक अगर मिल गई तो गनीमत समझिए। आपके सिरहाने रखा मोबाइल इसलिए गायब कर दिया जाता है कि आप अंदर की कोई खबर बाहर न भेज दें। किसी बात पर आपने दो बार किसी को पुकारा तो तीसरी बार आपके साथ हाथापाई निश्चित होगी। अस्पतालों से बाहर निकलने वाली लाशों का अगर हाल देखने का मौका मिले तो देखिए उनकी लहूलुहान हालत। इसीलिए अस्पतालों के वार्डों में सीसी टीवी कैमरे नहीं लगते। ...नेता नौकरशाह बड़ी बड़ी बातें करते हैं, खुद को कड़ियल दिखाते हैं, लेकिन होते बड़े सड़ियल हैं। रोगी के साथ अमानुषिक आपराधिक हरकतों की पोल न खुल जाए, इसलिए संक्रमण का डर दिखा कर और WHO का झूठा हवाला देकर लाशों का पोस्टमॉर्टम नहीं कराते।
आइये, बाजार और अस्पतालों से ऑक्सीजन के अपहरण, अस्पताल में सीसी टीवी कैमरे नहीं लगाने की चालबाज हरकतें और कोरोना रोगियों का पोस्टमॉर्टम नहीं कराने के शातिराना षडयंत्र की तथ्यात्मक पड़ताल करें...

Saturday 17 April 2021

योगी सरकार जवाब दे...

हम सब लोग विचित्र संकट के दौर से गुज़र रहे हैं। कोरोना या कोविड वायरस का प्रकृति से कोई लेना देना नहीं है। हम शैतान मनुष्यों द्वारा निर्मित घातक वायरस की चपेट में हैं। शैतान शक्तियां, पूंजी शक्तियां और सियासी शक्तियां सब हाथ मिला चुकी हैं। मौत की वजह बांट कर दवा और वैक्सीन का धंधा चलाने का गोरखधंधा हमारी समझ में अब तक तो आ ही जाना चाहिए। हमारी नासमझी, हमारी लापरवाही और सरकारों की नियोजित उपेक्षा (प्री-प्लांड नेग्लिजेंस) के कारण चारों तरफ मौत का तांडव है। गवर्नेंस फेल है। प्रशासन फेल है। चिकित्सा व्यवस्था फेल है। देह के अंतिम संस्कार के इंतजाम फेल हैं... सरकारों की प्राथमिकता मौत रोकने के बजाय मौत कम दिखाने की है। मरघटों को टीन-टप्परों से ढंकने के कुत्सित काम हो रहे हैं। मैंने अपने हृदय से निकले कुछ शब्दों के जरिए महामारी और मौत का खौफनाक दृश्य दिखाने की कल कोशिश की थी... हर सिर पर लटका मौत का फंदा, यह काला धंधा किसका है... यह कोई काल्पनिक काव्य अभिव्यक्ति नहीं है, यह पंक्तियां कठोर यथार्थ हैं, बिल्कुल एलएमजी की गोली की तरह कलेजे में सुराख बनाने वाली...  

खैर, मैं बाद में आऊंगा, कुछ खास खोजी खबरें लेकर... अभी जल्दी जल्दी आपके समक्ष आज की कुछ बातें रख देता हूं... यह आपके विचार के लिए हैं और लोकतांत्रिक अधिकार की मांग को प्रगाढ़ करने के लिए हैं। अभी आपने देखा कि उत्तर प्रदेश सरकार ने एक राज्यादेश जारी किया। जिसके मुंह पर मास्क नहीं होगा उससे एक हजार रुपए का जुर्माना वसूला जाएगा। जो दूसरी बार बिना मास्क के पकड़ा जाएगा, उससे 10 हजार रुपए का जुर्माना वसूला जाएगा। चलिए... लापरवाह लोगों को सीख देने के लिए यह आदेश स्वीकार्य है। लेकिन सरकार ने इस तरह का फरमान जारी करने के पहले क्या अपनी नैतिकताएं तय कीं..? अपने गिरेबान में झांका..? अपनी लापरवाहियों के बारे में कोई जुर्माना या सज़ा तय की..? सारा दायित्व आम आदमी निभाए... नेता, नौकरशाह, बड़े डॉक्टर, बड़े बड़े अस्पतालों के धनपशु मालिकों को क्या सारे दायित्वों और जिम्मेदारियों से छूट मिली हुई है..? क्या आपने कभी सुना कि सरकार ने इनकी लापरवाहियों के लिए कभी कोई जुर्माना तय किया हो..? योगी सरकार के इस जुर्माना फरमान के बरअक्स... उसके समानान्तर कुछ सवाल रखता हूं। इन सवालों का जवाब देने की सरकार में नैतिक ताकत बची हो तो वह जवाब के साथ सामने आए... आइये उन सवालों में झांकें और सरकार से जवाब मांगने की ओर पुख्ता कदम बढ़ाएं...

Friday 16 April 2021

हर सिर पर लटका मौत का फंदा...

कीटों से जो कहर बांटता, यह गोरखधंधा किसका है..?  

नस्लों में जो जहर खोंसता, यह खूनी पंजा किसका है..?

हर सिर पर लटका मौत का फंदा, यह काला धंधा किसका है..?

मृत्यु सरीखे पावन सच पर, पसराया गंदा किसका है..?

इंसान की कीमत मंदा है, कानून हमारा अंधा है,

सत्ता पर भारी चंदा है, यह भारी चंदा किसका है..?

हर सिर पर लटका मौत का फंदा, यह काला धंधा किसका है..?

शहर शहर शमशान का मंज़र, बेशर्म सियासत जारी है,

कोई देख न ले लाशों का ढेरा, मरघट पर पर्दादारी है,

हर तरफ मची है अफरातफरी, हर चिता पर मारामारी है।

पिता इधर, मां उधर गई,

भइया लो सांसें खींच रहे, बहना तो कब की गुज़र गई।

घर घर बंजर, चुभता खंजर, बच्चा बच्चा सिसका है।

शासन सत्ता, तंत्र वंत्र सब, जाने किस गर्त में खिसका है,

हर सिर पर लटका मौत का फंदा, यह काला धंधा किसका है..?

कोविड का रोना कोना कोना, यह शासन भासन किसका है..?

बीमार बना कर दवा बेचता, लाशें बिखरा कर धन समेटता,   

मौत बेच कर बल खाता वह पीलित कुल का कायर बच्चा किसका है..?

मुर्दा धन का जूठन खाता दूषित कुल का मुल्की बच्चा किसका है..?

यह कैसी कोख का जन्मा है..? यह कैसी मां का बंदा है..?

हर सिर पर लटका मौत का फंदा, यह काला धंधा किसका है..?

मालदार नेता अफसर का देश, यह लोकतंत्र फिर किसका है..?

                                      - प्रभात रंजन दीन