Friday 4 November 2022

यूपी का 'सौर' भ्रष्टाचार के 'ठौर'...


 
सियासत की दुकानों पर मुफ्त में बिजली बांटने से लेकर बिजली बचाने, बिजली की किल्लत और बिजली के विकल्प के परस्पर विरोधाभासी जुमले खूब चल रहे हैं। जुमलेबाजी की इसी सियासी-प्रतियोगिता के दौर में हम आपको उत्तर प्रदेश में बिजली-राजनीति का एक दृश्य दिखाते हैं। यूपी में 'हर शहर रौशन, हर गांव रौशन और हर घर रौशन'... जैसे सियासी जुमले खूब सुने गए। कान पक गए। हर 'गांव रौशन और हर घर रौशन' का ढिंढोरा जब आम जन सुनता है तो ढिंढोरचियों को दौड़ा लेने का उसका मन होता है। अब तो उत्तर प्रदेश सरकार नयी सौर ऊर्जा नीति लाने का भी ढिंढोरा बजवा रही है। 2017 में बनी सौर ऊर्जा नीति के तहत क्या काम हुआ इसकी समीक्षा किए बगैर नयी सौर ऊर्जा नीति लाने और उसका प्रचार-प्रसार करने की तैयारियां चल रही हैं। 2024 का लोकसभा चुनाव भी आने वाला है इसलिए ढिंढोरा जरूरी है। इसी 'जुमलाधापी' में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के धर्म-क्षेत्र गोरखपुर में एक भी सौर ऊर्जा प्लांट नहीं लग पाया। प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री सौर ऊर्जा परियोजनाओं को अपना 'ड्रीम प्रोजेक्ट' बताते रहे हैं... लोगों को क्या पता था कि वह उनका दिवा-स्वप्न (डे-ड्रीम) था। अब नयी ऊर्जा नीति बनकर आने ही वाली है। क्या आपको लगता है कि सरकार आपको यह बताएगी कि 2017 की ऊर्जा नीति फेल हो गई..!
हम बताते हैं कि उत्तर प्रदेश सरकार की वर्ष 2017 की सौर ऊर्जा नीति कैसे फेल हुई और प्रधानमंत्री-मुख्यमंत्री का 'ड्रीम-प्रोजेक्ट' वाला 'सौर' किस तरह भ्रष्टाचार के 'ठौर' लग गया... थोड़ा समय निकालें, खबर देखें और धन्यवाद स्वीकार करें...

Friday 26 August 2022

अभिमन्यु अपने ‘रिश्तेदारों’ के चक्रव्यूह में फंस गया है

 (हिंदी दैनिक 'शुभ-लाभ' के हैदराबाद और बंगलुरू संस्करण में प्रकाशित)

- केसीआर, ओवैसी और भाजपा के हाथ मिले हुए हैं -
- अभिमन्यु अपने ‘रिश्तेदारों’ के चक्रव्यूह में फंस गया है -
- टी. राजा सिंह की दोबारा गिरफ्तारी से उठे गंभीर सवाल: शासन, प्रशासन, संविधान और कानून किसका है..?
प्रभात रंजन दीन
तेलंगाना राज्य के गोशामहल विधानसभा क्षेत्र को प्रतिनिधित्व देने वाले भाजपा विधायक टी. राजा सिंह को एक बार फिर गिरफ्तार कर लिया गया है। तेलंगाना के मुख्यमंत्री के. चंद्रशेखर राव के आदेश और उनके करीबी असदुद्दीन ओवैसी के दबाव में अदालत के जमानत-आदेश की उपेक्षा करके राजा सिंह को दोबारा गिरफ्तार कर लिया गया। इस देश और प्रदेश में संविधान और कानून की इज्जत का सच यही है। ओवैसियों के दबाव पर राजा सिंह को दोबारा गिरफ्तार करने के लिए पुलिस ने पुराने मामले निकाले और उस पर प्रिवेंटिव-डिटेंशन (पीडी) एक्ट का भारी-भरकम मुलम्मा चढ़ा कर उन्हें अंदर कर दिया।
इस बात का पूरा अंदेशा है कि केसीआर के आदेश और ओवैसी के दबाव के पीछे भाजपा का प्रभाव काम कर रहा है। भाजपा आलाकमान पर हावी एक नेतृत्व-वर्ग टी. राजा सिंह के तेजी से बढ़ते कद को पचा नहीं पा रहा था, इसलिए राजा सिंह के राजनीतिक भविष्य को नष्ट करने की साजिशी-सियासत चल रही थी। 2023 में तेलंगाना में विधानसभा चुनाव होने हैं। सोच-समझ कर और पूरी तैयारी से टी. राजा सिंह को दोबारा गिरफ्तार करने के लिए बाकायदा व्यूह-रचना की गई। इसी व्यूह-रचना के तहत राजा सिंह पर प्रिवेंटिव डिटेंशन एक्ट लादा गया। इस एक्ट में गिरफ्तार हुए व्यक्ति को एक साल तक जमानत नहीं दिए जाने का प्रावधान है। वर्ष 2023 में विधानसभा चुनाव होने हैं। तेलंगाना सरकार राजा सिंह को रिहा नहीं होने देगी और भाजपा राजा सिंह को टिकट नहीं लेने देगी। अभिमन्यु अपने ‘रिश्तेदारों’ के ही चक्रव्यूह में फंस गया है।
बहरहाल, टी. राजा सिंह के जिस वीडियो को लेकर पाकिस्तान परस्त तत्वों ने बवाल मचा रखा है, उस वीडियो को क्या आपने देखा-सुना है? भाजपा के शीर्ष नेताओं ने भी उसे सुना है, ओवैसियों ने भी सुना है और देश-प्रदेश के तमाम लोगों ने भी सुना है। षडयंत्रकारियों के लिए राजा सिंह का वीडियो एक मौका था। अस्थिरतावादी शक्तियों के लिए वह ईश-निंदा का औजार था और आम जन के लिए वह एक नागरिक का स्वाभाविक गुस्सा था। उस वीडियो में हास्य कलाकार मुनव्वर फारूकी के प्रति राजा सिंह का गुस्सा अभिव्यक्त हो रहा है। फारूकी के खिलाफ राजा सिंह असंसदीय शब्दों का इस्तेमाल भी कर रहे हैं, लेकिन उसके पीछे के आशय को भी समझना उतना ही जरूरी है। मुनव्वर फारूकी हिंदू देवी-देवताओं का खुलेआम मजाक उड़ाता है, उस पर गुस्सा आना स्वाभाविक है। टी. राजा सिंह के मुंह से वह गुस्सा अभिव्यक्त भी होता है। लेकिन यह गुस्सा तब और प्रगाढ़ हो जाता है जब ईश-निंदा का आरोप लगा कर मुसलमानों द्वारा बवाल खड़ा किया जाता है। क्या हिंदुओं, सिखों, ईसाईयों या अन्य धर्मावलंबियों की आस्था पर उंगली उठाना, मजाक उड़ाना, नंगी तस्वीरें बनाना और टीवी-डिबेट्स में निंदा प्रस्ताव जारी करना ईश-निंदा के दायरे में नहीं आता? अभिव्यक्ति क्या केवल एक समुदाय के लिए आरक्षित है? तब क्या यह पूछना गलत है कि जैसा बर्ताव करोगे वैसा ही बर्ताव प्राप्त करने के लिए भी तैयार रहना चाहिए? राजा सिंह के वीडियो में मुनव्वर फारूकी के अलावा किसी का नाम नहीं लिया गया है। मुनव्वर फारूकी के निंदनीय आचरण के खिलाफ असंसदीय शब्दों के इस्तेमाल की मानहानि-कानून के तहत सजा हो सकती थी, लेकिन क्या मुनव्वर फारूकी के लिए कहे गए शब्दों को ईश-निंदा के दायरे में जबरन घसीटा जाना उचित है? ईश-निंदा के इस तरह के सड़क छाप इस्तेमाल से क्या आस्था की प्रतिष्ठा बढ़ती है? टी. राजा सिंह के वीडियो की बात तो छोड़िए, भाजपा की प्रवक्ता रही नूपुर शर्मा के टीवी डिबेट का ध्यान करिए, नूपुर के बोलने के पहले टीवी डिबेट में शामिल मुस्लिम-स्वयंभुओं ने हिंदू देवी-देवताओं को क्या नहीं कहा! इससे आजिज आकर नूपुर शर्मा ने इस्लामिक धर्मोपदेशक जाकिर नाइक के हवाले (रेफरेंस) से कुछ बातें कहीं। उस पर भी ऐसी पतंग उड़ाई गई कि उसके हिंसक-धागे से जाने कितने लोगों की गर्दनें कट गईं। क्या यही धर्म है? क्या ऐसे निकृष्ट कृत्यों से धार्मिकता के प्रति सम्मान बढ़ता है? यह धार्मिकता का विस्तार है या डर-मिता का? इसे बौद्धिकता से सोचना चाहिए। और अगर बौद्धिकता हो तो यह भी सोचना चाहिए कि धार्मिकता दरअसल होती क्या है!
आइये हम टी. राजा सिंह के प्रकरण में संविधान और कानून के सम्मान की ही बात करते हैं। यह बिल्कुल हथकंडा हो गया है कि शाहीनबाग घेरना हो तो बाबा साहब अम्बेडकर की फोटो और तिरंगा झंडा लेकर बैठ जाएं और आम जनजीवन तबाह कर दें। फिर उसी संविधान की रुदालियां गाने वाली जमातें विदेशी अतिथि के भारत आने पर राजधानी दिल्ली में हिंसा का नंगा नृत्य करने लगें। क्या यही संविधान की प्रतिष्ठा है? या यह संविधान और तिरंगे का शातिराना इस्तेमाल है? हमें इस फर्क को समझना भी है और उसे सार्वजनिक रूप से उजागर भी करना है। यह भारत के नागरिक का मूल कर्तव्य है।
खंडित आजादी के बाद से भारत के लोगों को अधिकार की ही घुट्टी पिलाई गई। विद्वान संविधान निर्माताओं को नये-नये आजाद हुए देश में कर्तव्य कितना जरूरी है, यह याद ही नहीं आया। संविधान पर अधिकारों की लंबी चौड़ी लिस्ट चस्पा कर दी, लेकिन संविधान से कर्तव्य गायब हो गया। इसीलिए तो कर्तव्यहीनों की जमातें भारत की सड़कों पर पाकिस्तानी नारे लगाती नजर आती हैं! देश की तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी जब रूस गईं तो उन्हें रूस के राजनयिकों ने कहा कि यह कैसा संविधान है, जिसमें कर्तव्य शामिल न हो! भारत लौटने के कुछ ही दिनों बाद 1975 में इंदिरा गांधी ने 42वें संशोधन के जरिए कर्तव्य का अनुच्छेद जोड़ा... लेकिन उसी संशोधन में धर्म-निरपेक्ष शब्द जोड़ कर आने वाली पीढ़ियों को छद्म-शब्दावलियों के घोर-अंधकार में धकेल दिया। देश में धर्म-निरपेक्षता का इस्तमाल इस कदर कुचक्र के रूप में हुआ कि इस शब्द के असली अर्थ को अनर्थ में बदल डाला गया। ...और उसी संशोधन के जरिए संविधान में जोड़े गए मूल-कर्तव्य के प्रति आपराधिक उपेक्षा का भाव कुसंस्कार में भर गया। संविधान में निहित मूल-कर्तव्य कहता है कि प्रत्येक नागरिक का दायित्व है कि वह देश की प्रभुता, एकता, अखंडता और संस्कृति की रक्षा करने और उसे अक्षुण्ण रखने के लिए प्रतिबद्ध हो... इस मूल-कर्तव्य के निर्वहन के लिए आपने देश-विरोधी तत्वों के खिलाफ बोला भी तो आप अपने सिर के तन से जुदा होने के नारे सुनने लगेंगे, या शायद सुनने के लिए बचे रह भी न पाएं। क्या मूल-कर्तव्य इसी परिणति को प्राप्त होने के लिए संविधान में शुमार किया गया था?
चलिये, हम संविधान प्रदत्त मौलिक अधिकारों की ही बात करते हैं। हालांकि संविधान के भाग-3 में शामिल अनुच्छेद 12 से 35 तक मौलिक अधिकार, मौलिक नहीं हैं, वे संयुक्त राज्य अमेरिका के संविधान से लिए गए हैं। बहरहाल, वे अधिकार भी देश में समग्रता, निष्पक्षता और सत्यता से कभी लागू नहीं हुए। मौलिक अधिकार के अनुच्छेद कुछ खास लोगों के अधिकार-क्षेत्र में बंधक हो गए। समानता का अधिकार, स्वतंत्रता का अधिकार, शोषण के विरुद्ध अधिकार, धर्म और संस्कृति की स्वतंत्रता का अधिकार क्या देश के सभी लोगों पर समान रूप से लागू है? क्या ये मौलिक अधिकार हमें या आपको प्राप्त हैं? क्या हम समान हैं? क्या हमें स्वतंत्रता का समान अधिकार प्राप्त है? क्या हमें अपने धर्म, अपनी संस्कृति और परम्परा की अभिव्यक्ति और रक्षा का समान अधिकार प्राप्त है? ये सवाल मैं आपके समक्ष छोड़ता हूं... आप चिंतन-मनन करिए, वास्तविक स्थितियों की गहराई से समीक्षा करिए तो आपको इसका जवाब मिल जाएगा। हां, इसका जवाब टी. राजा सिंह दे सकते हैं, मुनव्वर फारूकी नहीं। इसका जवाब नूपुर शर्मा दे सकती हैं, हिंदू देवी-देवता की निंदा करके नूपुर को उकसाने वाले मौलाना नहीं। क्या इसे ही समानता का अधिकार कहते हैं?
नूपुर शर्मा प्रकरण में मुस्लिम चिंतक रिजवान अहमद ने एक टीवी डिबेट के दौरान एंकर से पूछा कि अगर सच्चे पत्रकार हो तो बताओ कि नूपुर शर्मा को किन लोगों ने उकसाया (प्रोवोक किया) था। रिजवान अहमद ने कहा था, न मैं नूपुर शर्मा के साथ खड़ा हूं, न ही मैं भाजपा के साथ हूं, न मैं मुसलमानों के साथ खड़ा हूं और न ही मैं दो कौड़ी की सेकुलर पार्टियों के साथ खड़ा हूं। वकील आदमी हूं, मैं न्याय के साथ खड़ा हूं। और एक सवाल पूछ रहा हूं, इसका जवाब जरूर देना कि नूपुर शर्मा को किसने उकसाया था? भारतीय दंड विधान की धारा 504 कहती है कि अगर कोई किसी को प्रोवोक करता (उकसाता) है और उसको कोई गलत काम या अपराध करने के लिए विवश करता है तो प्रोवोक करने वाले पर धारा 504 के तहत मुकदमा लिखा जाएगा। इसमें कम से कम 2 साल की सजा का प्रावधान है। क्या नूपुर शर्मा के मामले में ऐसा किया गया? नूपुर शर्मा को पार्टी से निष्कासित कर उसे लावारिस हाल में छोड़ देने वाली भारतीय जनता पार्टी की सरकार और संगठन ने इस कानून का इस्तेमाल किया? क्यों नहीं किया? यही बात तेलंगाना के भाजपा विधायक टी. राजा सिंह के मामले में भी लागू होती है। मुस्लिम-तुष्टिकरण की नव-दुष्चेतना में अंधी हो रही भाजपा के आला नेताओं ने टी. राजा सिंह पर कार्रवाई के पहले देश के कानून और संविधान-सम्मत समानता के अधिकार का संतुलन क्यों नहीं स्थापित किया? क्या फिर भी हम सकते हैं कि देश में समानता का अधिकार या समानता का कानून है? यह अधिकार केवल ओवैसी या उनके पीछे सड़कों पर चलने वाली उन जमातों का है जो खुलेआम सिर तन से जुदा के नारे भी लगाते हैं, कानून की धज्जियां भी उड़ाते हैं और सत्ता-सियासतदानों को दबाव में लेकर अपने अधिकार का आनंद भी उठाते हैं... और जमानत होने के बावजूद टी. राजा सिंह को फिर से अंदर भी करा देते हैं। देश का संविधान, कानून और समानता का अधिकार केवल ओवैसियों का है या राजा सिंह का भी है? इस सवाल का जवाब तलाशिये...

Wednesday 3 August 2022

राज्यपाल ने यूपी सरकार की बखिया उधेड़ दी...

राज्यपाल ने यूपी सरकार की बखिया उधेड़ दी
सरकार के प्रति 'जवाबदेह' मीडिया ने खबर दबा दी
अगस्त का पहला सप्ताह माँ के लिए समर्पित होता है... एक से सात अगस्त तक हम हर साल विश्व स्तनपान दिवस मना कर माँ के प्रति कृतज्ञता ज्ञापित करते हैं और माँ के दूध के अमृत होने का पीढ़ियों में एहसास दिलाते हैं। लेकिन अवसर चाहे कितना भी पवित्र हो, सत्ता-सियासदान और सत्ता के कारिंदे अपवित्रता के अपने मूल स्वभाव से वंचित नहीं रहते। हर अवसर पर झूठ और बहाने का निराधार आधार खड़ा कर चमकदार आडंबर रचते हैं। मीडिया अपनी भांडगत प्रतिबद्धताओं के तहत उस चमकदार आडंबर को प्रचारित प्रसारित प्रकाशित करने में लगा रहता है।
उत्तर प्रदेश के राजभवन में विश्व स्तनपान सप्ताह का उद्घाटन-समारोह आयोजित था। मुख्य अतिथि राज्यपाल आनंदीबेन पटेल के समक्ष सत्ता-नुमाइंदों की तरफ से आंकड़ों और प्रस्तुतिकरण का आकर्षक प्रहसन खेला गया। लेकिन इस बार सरकार के लिए यह प्रायोजित-प्रहसन उल्टा पड़ गया। राज्यपाल आनंदीबेन पटेल के हृदय में मातृत्व जागा और उन्होंने सरकार की उपलब्धियों की बखानबाजी के सारे धागे बिखेर दिए। उत्तर प्रदेश के स्वास्थ्य महकमे में जो गोरखधंधा चल रहा है, राज्यपाल ने उसकी धुर्रियां बिखेर दीं। इससे यह भी साफ हुआ कि उत्तर प्रदेश के सभी विभागों में ऐसा ही चल रहा है। राजभवन के कार्यक्रम में प्रदेश के सारे मीडिया प्रतिनिधि मौजूद थे। न्यूज़ चैनल हों या अखबार... मीडिया की पूरी भीड़ थी। लेकिन राज्यपाल की खबर चैनेलों में दिखाई नहीं गई और अखबारों में छापी नहीं गई। चारों तरफ विकास-स्फीति (डेवलपमेंट-इन्फ्लेशन) सृजित करने वाली सरकार को अपने ढोल की पोल खुलना कहां मंजूर होता... वह भी महामहिम राज्यपाल के मुंह से..! लिहाजा, सत्ता के प्रति 'जवाबदेह' मीडिया ने खबर दबा दी। राजभवन से जारी विज्ञप्ति को छुआ तक नहीं। यह है हाल...
आप खुद सुनिये, राज्यपाल के मुंह से यूपी के स्वास्थ्य महकमे का कड़वा सच और राज्यपाल की बातों से समझने की कोशिश करिए कि उत्तर प्रदेश में क्या क्या घट रहा है... प्रभात रंजन दीन

Saturday 30 July 2022

...तो अबतक क्या किया हमने..!

मैंने लिखा कुछ भी नहीं, तुमने पढ़ा कुछ भी नहीं...

चाहा कि मैं बहुत सा कहूं, लेकिन कहा कुछ भी नहीं...

चलो कहीं कोलाहल से दूर चलें, मौन भी तो सुनें कभी..!

Tuesday 7 June 2022

कड़ा स्टैंड लेने के बजाय भाजपा ने अपनी दबी हुई दुम दिखा दी..!

 

प्रभात रंजन दीन

अनुच्छेद-370 हटाने, नागरिकता संशोधऩ कानून (सीएए) लाने और तीन तलाक की गंदी परंपरा को समाप्त करने के केंद्र सरकार के फैसले याद हैं आपको..? शाहीनबाग षडयंत्र याद है आपको..? अमेरिकी राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप के भारत आगमन के समय दिल्ली में फैलाई गई सुनियोजित हिंसा याद है आपको..? अगर वे प्रकरण आपको याद हैं तो आप कानपुर में राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री की मौजूदगी में हुई सुनियोजित हिंसा के अंतरसम्बन्ध बखूबी समझ रहे होंगे। लेकिन दिक्कत यही है कि हिंदुओं को कुछ समझ में नहीं आता और मुस्लिमों को वे सारी बातें समझ में आती हैं, जिनसे देश अस्थिर होता हो... भले ही उसका सच्चाई से कोई लेना-देना न हो। नागरिकता संशोधन कानून से भारत के मुसलमानों का क्या लेना-देना था..? वह कानून तो पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश में हो रहे धार्मिक-अत्याचार से त्रस्त होकर भारत आने वाले पीड़ितों को नागरिकता प्रदान करने से सम्बन्धित था, फिर क्यों उसके खिलाफ शाहीनबाग घेरा गया और दिल्ली को अराजकता की आग में झोंका गया..? यह सब भारतवर्ष को अस्थिर करने के लिए किया जा रहा है। नूपुर शर्मा तो केवल एक बहाना था, जिसे भाजपा ने संकट के समय में अकेला छोड़ दिया। अगर नूपुर शर्मा या नवीन जिंदल के साथ कुछ भी अप्रत्याशित घटना घटती है तो इसके लिए जिम्मेदार भाजपा का शीर्ष नेतृत्व होगा, जिसने कड़ा स्टैंड लेने के बजाय पूरी दुनिया को अपनी दबी हुई दुम दिखा दी। यह सटीक समय था, जब समान आचार संहिता पर निर्णायक बात होती। इस्लामिक आस्था के खिलाफ टिप्पणी पर सख्त कार्रवाई हो और हिंदू आस्था पर खुलेआम अपशब्दों का इस्तेमाल करने वाला चैन से घूमे, यह देश में अब नहीं होगा... इस्लामिक आस्था के खिलाफ टिप्पणी करने वाला हलाल हो और हिंदू आस्था के खिलाफ बोलने वाले की गर्दन सलामत रहे, देश में अब यह नहीं होगा... खेल के नियम सारे खिलाड़ियों के लिए समान होते हैं, कानून सबके लिए समान होना चाहिए... इसे तय करने का यही समय था। लेकिन भाजपा नेतृत्व ने यह समय बेमानी जाने दिया। 

सूचना और मस्तिष्क-शोधन के आधुनिक तौर-तरीकों के इस युग में लड़ाइयां युद्ध के मैदान में नहीं, बल्कि इंटरनेट और सोशल मीडिया के मैदान पर लड़ी जा रही हैं। भारत के खिलाफ छद्म-युद्ध जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय जैसे छद्मी बौद्धिक शिक्षण संस्थानों, संदेहास्पद फंडिग से चलने वाले सामाजिक संगठनों और पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (पीएफआई) जैसे आतंकवाद-पसंद संगठनों द्वारा लड़ा जा रहा है। स्टॉक एक्सचेंज में और बायोलॉजिकल रिसर्च लैब्स में लड़ा जा रहा है। नस्लदूषित बुद्धिजीवियों और धर्मदूषित प्रगतिशीलों द्वारा लड़ा जा रहा है। इस लड़ाई में कोई प्रत्यक्ष हथियार नहीं, केवल नैरेटिव्स खड़ा करने यानी दिमागी-शोधन करने के हथकंडों का हथियार बनाया जा रहा है। सोशल मीडिया और इंटरनेट के तमाम फोरम्स पर पोस्ट दर पोस्ट डाले जा रहे हैं, ट्वीट्स हो रहे हैं, डेटा हैकिंग हो रही है, फीशिंग हो रही है। और भी तमाम किस्म के इलेक्ट्रॉनिकी हथकंडे अपनाए जा रहे हैं। हिंदू आस्था पर खुलेआम किए जा रहे हमलों का जवाब देने का खामियाजा नूपुर शर्मा और नवीन जिंदल जैसे लोगों को उठाना पड़ता है, जिसका भाजपा भी साथ नहीं देती।

आप गौर से देखें, हम गैर पारंपरिक और गैर सैद्धांतिक युद्ध में किस तरह मुब्तिला हैं। इस युद्ध में हथियारों से कम, अफवाहों से अधिक हमला हो रहा है। ईंट-पत्थरों से हमला हो रहा है। सस्ते संसाधनों का इस्तेमाल कर देश का ज्यादा से ज्यादा नुकसान करने की रणनीति से हमारा सामना हो रहा है। इसे समझना होगा। यह समझना ही होगा कि जब कोई देश आर्थिक रूप से, धार्मिक रूप से, सांस्कृतिक रूप से, बौद्धिक रूप से तोड़ा जा चुका हो, तब उसे जीत पाना काफी आसान होता है। तब दुश्मन देश ऐसे देश-विरोधी तत्वों की सहायता में जुट जाते हैं और इसके माध्यम से टार्गेट वाले देश में पकड़ बनाते हैं। श्रीलंका आपके सामने उदाहरण है। आप क्या समझते हैं श्रीलंका को ऐसे ही कमजोर किया गया..? श्रीलंका को कमजोर करने में अंदरूनी शक्तियां काफी अर्से से लगी थीं और बाहरी शक्तियां उन्हें बाहर से सब तरह की मदद मुहैया करा रही थीं।

ज्ञानवापी परिसर में सर्वे के दौरान शिवलिंग मिला। हिन्दुओं के लिए जो शिवलिंग है, मुस्लिम पक्ष के लिए वह महज एक फव्वारा है। न्यायालय में उसके सारे सबूत प्रस्तुत किए जा चुके हैं। इस खबर को भारतीय मीडिया ने इतने शातिराना तरीके से उछाला कि अदालतें नाराज हो जाएं। टीवी चैनलों ने एक गंभीर धार्मिक इश्यू को मछली बाजार बना कर रख दिया और हिंदू देवी-देवताओं की खुलेआम फजीहतें कराईं। इसी फजीहत का नतीजा था कि नूपुर शर्मा या नवीन जिंदल आक्रोश में आए और उन्होंने सार्वजनिक निंदा प्रस्तावों के बरक्स प्रति-निंदा की भाषा अभिव्यक्त की।

गैर-जिम्मेदार मीडिया, या कहें षडयंत्रकारी मीडिया ने इसे ऐसे हवा दी कि जैसे भूचाल आ गया हो। हिंदू आस्था पर गंदगी फैलाने के कृत्यों पर ये भूचाल नहीं खड़ा करते। मीडिया ने नूपुर शर्मा की बातों को सम्पूर्ण परिप्रेक्ष्य में प्रस्तुत नहीं किया, केवल उसे ताना। नूपुर शर्मा द्वारा दिया गया जाकिर नाइक के इस्लामिक-प्रवचनों का हवाला या हदीस के संदर्भों को मीडिया ने नूपुर के बयान के साथ समग्रता से प्रस्तुत नहीं किया। नूपुर के बयान के बहाने राष्ट्रविरोधी तत्वों ने अपना एजेंडा जरूर चमका लिया।

इसी नजरिए से तीन जून की तारीख देखना जरूरी है। इस दिन राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री दोनों ही कानपुर में थे। बड़े ही सोचे समझे तरीके से इसी दिन नुपुर शर्मा के बयान के विरोध में बाजार बंद रखने का ऐलान किया गया था। इस षडयंत्र में पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया, एआईएमआईएम जैसे तमाम संगठन शामिल थे, जिसने मिल कर शाहीनबाग का षडयंत्र रचा था और अमेरिकी राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप के भारत आगमन पर हिंसा फैला कर दुनिया भर में भारत की छवि पर गंदगी फैलाने का कुकृत्य किया था। ठीक वही साजिश इस बार कानपुर में राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री के होने पर रची गई।

आप ध्यान दीजिए कि यूपी पुलिस जब दंगाइयों को पकड़ रही थी, ऐन उसी समय विदेशों में बैठे तमाम इस्लामिक संगठन धड़ाधड़ ट्वीट कर रहे थे और हैशटैग चला रहे था। इन सभी ट्वीट्स में प्रधानमंत्री मोदी की तस्वीर लगी थी और हिजाब समेत कई गड़े मुर्दे उखाड़ते हुए लिखा जा रहा था कि भारत में मुस्लिमों के साथ जुल्म हो रहा है। ऐसे आपत्तिजनक ट्वीट्स की रफ्तार क्रमशः बढ़ती गई और अफवाहें इस तरह फैलाई गईं कि झूठ सच बन कर सोशल मीडिया से लेकर रेगुलर मीडिया तक पर छाने लगा। इस्लामिक देशों द्वारा भारतीय सामानों का बहिष्कार किए जाने जैसी खबरें ऐसे ही झूठ का सृजन थीं। इस्लामिक देशों का भारत पर उंगली उठाने की बात अगर सच भी है तो कितना अनैतिक (इम्मोरल) है। इस्लामिक देशों को अपने गिरेबान में झांकने का नैतिक बल नहीं है। वे इतने ही उदार थे तो इस्लामिक देश क्यों बने..! दुनिया के 15 से भी अधिक इस्लामिक देशों में कट्टर शरिया कानून लागू है, इस पर कभी किसी देश ने क्या कुछ कहा..? तमाम अरब देश तब कहां थे जब हिन्दू देवी-देवताओं की नग्न पेंटिंग बना कर हिंदुओं की धार्मिक भावनाओं को आहत करने वाले भारतीय पेंटर मकबूल फिदा हुसैन को अपने देश में शरण दी थी..? यह सब देखते हुए हमें कठोरता से स्टैंड लेने की जरूरत है... अब नहीं तो कब..?

Tuesday 24 May 2022

बुल्डोज़र की आड़ में, ईमानदारी गई भाड़ में

 
 

बुल्डोज़र बाबा योगी आदित्यनाथ की सरकार के नौकरशाह बुल्डोज़र की आड़ लेकर अपने मौलिक कृत्य में लगे हैं। विभाग दर विभाग भ्रष्टाचार के युग-धर्म में आकंठ लिप्त हैं। कोई कर्मचारी अपने वरिष्ठ अफसर के इशारे और संरक्षण के बगैर बड़े पैमाने का भ्रष्टाचार नहीं कर सकता। लेकिन उत्तर प्रदेश राजस्व परिषद जैसे धन-सम्पन्न विभाग में चेयरमैन मुकुल सिंघल के निजी सचिव स्तर का मुलाजिम रहा विवेकानंद डोबरियाल जैसे ही रिटायर हुआ, उसके बड़े-बड़े घोटाले ऐसे खुलने लगे, जैसे बस उसके रिटायरमेंट का ही इंतजार था। सरकार में भी उसे गिरफ्तार करने की ऐसी आपाधापी मची कि यूपी पुलिस से लेकर स्पेशल टास्क फोर्स तक उस मुलाजिम के घर पर धावा बोलने के लिए भेज दी गई। पुलिस अधिकारियों ने भी सोचा कि ऊपर का आदेश है तो एफआईआर की जरूरत क्या है। सरकार को उस मुलाजिम के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराने की सुध एक महीने बाद आई... यह 'सुध' सुनियोजित-सुध थी। महीनेभर में जब सारे छेद ढंक लिए गए, अपने अपने बचाव का सारा इंतजाम कर लिया गया, तब जाकर डोबरियाल के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराई गई। अभी तक निजी सचिव स्तर के उस मुलाजिम की गिरफ्तारी नहीं हो पाई है। सरकार उसे पकड़ने के लिए इनाम की राशि ताबड़तोड़ बढ़ा रही है। इनाम 25 हजार की घोषणा से शुरू हुआ, अब 50 हजार हो गया... हो सकता है जल्दी ही एक लाख हो जाए।
इस आतुरता के कारण सरकार खुद ब खुद एक्सपोज़ हो रही है। आम लोगों को भी पता लगने लगा है कि यह मामला महज एक कर्मचारी का नहीं है, बल्कि इस बेचैनी के पीछे बड़ी वजहें हैं। क्या हैं इसके पीछे की वजहें..? दरअसल, डोबरियाल का सूत्र पकड़ कर उसका दूसरा सिरा तलाशा जाए तो वह कई खूंटों से फंसा हुआ मिलेगा। धागे उधेड़ते जाएं तो आपको भू-राजस्व के बड़े-बड़े घोटाले मिलेंगे, विधानसभा में नियुक्तियों के गोरखधंधे में फंसे बड़े-बड़े नौकरशाहों, मुख्यमंत्री के खास अधिकारियों, विधि और विधायी विभाग से जुड़े बड़े अधिकारियों, पत्रकारों और सत्ता सामर्थ्यवानों के गंदे हाथ दिखाई पड़ेंगे। विधानसभा नियुक्ति घोटाले का केंद्र दिखाई देगी। डोबरियाल प्रकरण के धागे प्रधानमंत्री के ड्रीम प्रोजेक्ट डिफेंस कॉरीडोर में हो रहे घोटालों से लिपटे हुए दिखेंगे। एक तरफ सरकार भू माफियाओं पर बुल्डोजर चला कर उनके कब्जे से जमीनें छुड़ा रही है, लेकिन नौकरशाह, न्यायिक अधिकारी और नेता अगर नव-भूमाफिया की शक्ल ले ले तो योगी का बुल्डोजर क्या करे? सस्ते में जमीनें खरीद कर सरकार से महंगा मुआवजा वसूलने का धंधा भी यूपी में खूब चल रहा है। माफियाओं से खाली कराई गई जमीनें सरकारी अधिकारी ही कब्जा कराए दे रहे हैं, तो योगी का बुल्डोज़र क्या करे? आइये, धीरे धीरे धागे उधेड़ते हैं और आपको दिखाते हैं... यह लोकतांत्रिक दायित्व है, हम इससे पीछे क्यों रहें..!

Thursday 28 April 2022

आज़म को योगी सरकार का संरक्षण, मुख्तार को विधानसभा का प्रोटेक्शन


आज़म खान और मुख्तार अंसारी जैसे लोगों पर बदनाम होने का कोई असर नहीं होता। ये दोनों नाम उत्तर प्रदेश क्या, देशभर के लोग जानते हैं। इनकी करतूतें और इनकी कुख्याति देश-दुनिया में फैल चुकी हैं। ये दोनों शख्स जेल में हैं। प्रचार बहुत है कि उत्तर प्रदेश में माफियाओं और सफेदपोश सरगनाओं पर बाबा का बुल्डोजर चल रहा है... लेकिन जमीनी असलियत कुछ और ही है। आप तथ्यों में जाएंगे तो खास तौर पर पाएंगे कि आज़म खान पर हो रही अदालती कार्यवाहियों और शासनिक कार्रवाइयों में बिल्कुल विपरीत का अंतर है। अदालती कार्यवाहियां ऊपर-ऊपर केवल पत्तों पर लक्षित हैं। योगी सरकार की कृपा से आज़म की जड़ें बिल्कुल प्रोटेक्टेड हैं। साफ-साफ प्रतीत होगा कि आज़म खान को योगी आदित्यनाथ सरकार का संरक्षण मिल रहा है। दूसरी तरफ मुख्तार अंसारी को उत्तर प्रदेश विधानसभा का प्रोटेक्शन मिलता रहा है। यहां तक कि इसके लिए विधानसभा-तंत्र ने प्रदेश के मुख्यमंत्री को भी भ्रमित सूचनाएं देने से परहेज नहीं किया। विधानसभा के शीर्ष तंत्र की अनैतिक-कृपा के कारण मुख्तार की जड़ों में खाद-पानी निर्बाध गति से पहुंचता रहा। कुछ पत्ते उखाड़ कर सरकार प्रचार का सुख बटोरती रही। आप भी देखें, सत्ता और सियासत में क्या-क्या मक्कारियां होती हैं, दिखती कुछ हैं, पर होती कुछ और हैं...


Thursday 14 April 2022

संसद से पास विधेयक 'एडवांस अलर्ट मैसेज' है...


Bill passed by Parliament is an Advance Alert Message...

सामूहिक विनाश के हथियारों का गोरखधंधा रोकने वाला विधेयक संसद से पास हो गया है। इस खबर को मीडिया ने प्राथमिकता से नहीं लिया। देश के लोगों ने भी विधेयक के 'Time & Target' का विश्लेषण नहीं किया। भारत में बड़ी तादाद में गैरकानूनी तरीके से सामूहिक विनाश के हथियार बनाए जा रहे हैं। इन हथियारों को बनाने में खतरनाक रसायन और विस्फोटक पदार्थों का इस्तेमाल किया जा रहा है। भारत में सामूहिक विनाश के हथियार क्यों बनाए जा रहे हैं..? उसे तमाम जगहों पर ट्रांसपोर्ट क्यों किया जा रहा है..? इसके पीछे क्या इरादे हैं और क्या तैयारी है..? इस पर हमें पैनी नजर रखनी चाहिए। भारत के जिम्मेदार और वफादार नागरिक का यह नैतिक दायित्व भी है। पिछले दिनों संसद से पारित हुए 'सामूहिक विनाश के हथियार एवं उसके वितरण (गैरकानूनी गतिविधि प्रतिबंध) संशोधन विधेयक-2022' को सामने रख कर हमें अपने देश की जमीनी असलियत की सूक्ष्मता से पड़ताल करनी चाहिए। क्या खुफिया एजेंसियों की सूचनाएं और संसद के पटल पर विधेयक रखे जाने के समय का कोई अंतरसम्बन्ध है..? आइये इसे समझते हैं... घातक रसायनों, आग्नेयास्त्रों, विस्फोटकों और प्रतिबंधित दवाओं का मकड़जाल किस तरह हमें चारों तरफ से घेरता और जकड़ता जा रहा है, इसे समझना जरूरी है... जाल काटने के लिए समझना जरूरी है। 

Sunday 27 March 2022

योगी का व्यापक जन-सम्मान पचा नहीं पाए भाजपा के शीर्ष नेता...


योगी का व्यापक जन-सम्मान पचा नहीं पाए भाजपा के शीर्ष नेता, दबाव देकर योगी पर थोपे संविधान-विरोधी निर्णय...
मेरा पिछला कार्यक्रम 'शपथ लेंगे, झूठ बोलेंगे, भ्रष्टाचार करेंगे.. और क्या..!' आप लोगों ने पसंद किया, इसके लिए मैं आभारी हूं। आप लोगों ने उसे पसंद इसलिए भी किया कि वह आपको जीवन-पटल पर चरितार्थ होता हुआ दिखता है। उसी यथार्थ की यह दूसरी कड़ी है। उत्तर प्रदेश में बेशुमार खर्चे से आयोजित हुए शपथ ग्रहण में वह सारे कर्मकांड हुए जो भारतीय संविधान और लोकतांत्रिक नैतिकता से बिल्कुल परे थे। भारतीय जनता पार्टी के केंद्र में नीति-नियंता बने बैठे वरिष्ठ नेता उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की व्यापक जन-स्वीकार्यता का सम्मान पचा नहीं पाए... योगी को दबाव में लेकर उनपर ऐसे निर्णय थोपे जो संविधान और कानून का बड़ी निर्लज्जता से उल्लंघन करते हैं। मंच से चमकदार, धवल और खूबसूरत दिखती राजनीति का असली कुरूप और स्याह चेहरा आप भी देखें...

Wednesday 16 March 2022

शपथ लेंगे, झूठ बोलेंगे, भ्रष्टाचार करेंगे और क्या..?



शपथ लेंगे, झूठ बोलेंगे और भ्रष्टाचार करेंगे... भारत में लोकतंत्र की यही दशा है। हर पांच साल पर चुनाव होता है। हर पांच साल पर जीतने वाले नेता शपथ-शपथ खेलते हैं... शपथ-ग्रहण की संवैधानिक बाध्यता नहीं होती तो नेता सत्य-निष्ठा और ईमानदारी की शपथ थोड़े ही लेते..! वे 'हैप्पी सत्ता डे' मनाते और अपने धंधे में लग जाते। झूठ, भ्रष्टाचार, पक्षपात, परिवारवाद भारतीय राजनीति के अनवार्य अवयव हो चुके हैं। अपने देश में संविधान और कानून केवल आम नागरिकों को अंकुश में रखने का उपकरण है। नेताओं को संविधान और कानून से क्या लेना-देना..? यह उपकरण उनका क्या बिगाड़ लेगा..? आज तक क्या बिगाड़ पाया..? जो थोड़े से लोग संविधान और कानून को नैतिकता और राष्ट्रीय-दायित्व के प्रिज़्म से देखते हैं, उन्हें न केवल यह विश्लेषण देखना चाहिए, बल्कि व्यापक जन-जागरूकता बनाने की पहल भी करनी चाहिए...

Friday 11 March 2022

इस युद्ध की असली वजह क्या आप जानते हैं..?


रूस और युक्रेन के बीच चल रहे युद्ध को आप फौरी तौर पर टीवी या अखबार के जरिए देख रहे हैं। युद्ध के कारण भी बताए जा रहे हैं, लेकिन मीडिया द्वारा बताए जा रहे कारण पश्चिम-प्रेरित हैं, या इसे ऐसे भी कह सकते हैं कि पश्चिमी पूंजी-शक्तियों द्वारा स्पॉन्सर्ड हैं। युद्ध की वजहें कुछ और ही हैं... लेकिन असली वजहों को दबाने की पूरी कोशिश हो रही है। रूस-युक्रेन युद्ध की असली वजहों का निचोड़ तथ्यों और दस्तावेजों के साथ आपके समक्ष प्रस्तुत है। कृपया देखें...

Wednesday 23 February 2022

सरकारी खजाने से 7,000 करोड़ गायब..!


किस खजाने से देंगे मुफ्त की बिजली..?
वोट लेने के लिए तीन सौ यूनिट बिजली मुफ्त देने का प्रलोभन देने वाली समाजवादी पार्टी के स्वयंभू अध्यक्ष अखिलेश यादव को चुनाव के दरम्यान जन-अदालत के समक्ष यह बताना चाहिए था कि उनके शासनकाल में सरकारी खजाने से गायब हुए सात हजार करोड़ रुपये कहां गए..? सात हजार करोड़ रुपये का हिसाब आज तक नहीं मिला। जब अखिलेश उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री थे तब भी राष्ट्रीय साप्ताहिक अखबार 'चौथी दुनिया' के जरिए मैंने उनसे पूछा था कि सात हजार करोड़ रुपए कहां गए..? और आज जब अखिलेश देशभर के पत्रकारों को चरित्र प्रमाण-पत्र बांटते फिर रहे हैं, तब 'द फायर' के माध्यम से हम पूछ रहे हैं, अखिलेश जी सरकारी खजाने से गायब सात हजार करोड़ के बारे में जनता को बताइये...

Sunday 20 February 2022

स्कूल की किताबों से महापुरुष गायब, संघ की प्रार्थना से सावरकर गायब



स्कूल की किताबों से महापुरुष गायब, संघ की प्रार्थना से सावरकर गायब..!
देश में अजीबोगरीब स्थिति है... भाजपा का राष्ट्रवाद केवल चुनाव लड़ने और जीतने तक ही सीमित रह गया है। पूर्ण बहुमत की ताकत के साथ भाजपा पिछले आठ साल से केंद्रीय सत्ता पर आसीन है। लेकिन इस दरम्यान देश की संस्कृति और गौरवशाली इतिहास को पुनरस्थापित करने का कोई उल्लेखनीय, संग्रहणीय या दर्शनीय कार्य नहीं हुआ। खंडित आजादी के सत्तर वर्षों में स्कूल-कॉलेजों की किताबों से देश के महापुरुष और क्रांतिपुरुष क्रमशः गायब होते चले गए। नस्लदूषित विकृत चरित्र के इतिहासकारों ने देश के गौरवशाली इतिहास पर कालिख पोती और देश के वीरों, क्रांतिकारियों और महापुरुषों को महानायक के रूप में स्थापित करने के बजाय उन्हें खलनायक साबित किया। विदेशी लुटेरों, हमलावरों, गुंडों और अधर्मी अत्याचारियों को महान बताया और इतिहास में महिमामंडित किया। देश को यह उम्मीद थी कि सत्तर साल के इस महापाप को धोने का स्वच्छ, सार्थक और स्थायी समाधान किया जाएगा, लेकिन ऐसा होता हुआ दिख नहीं रहा। सांस्कृतिक राष्ट्रवाद पर गुच्छेदार भाषण परोसने वाले राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अलमबरदार संघ की प्रार्थना में वीर सावरकर का नाम तक शामिल नहीं कर पाए, तो उनसे और क्या उम्मीद रखी जाए? इससे अधिक दुर्भाग्यपूर्ण बात और क्या हो सकती है?

Sunday 13 February 2022

मुसलमानों का सगा या मुसलमानों को ठगा


सरकारी दस्तावेज बताते हैं कि समाजवादी पार्टी के शासनकाल में तत्कालीन मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने अल्पसंख्यकों के कल्याण की योजनाओं पर कोई ध्यान नहीं दिया। जबकि समाजवादी पार्टी की राजनीति अल्पसंख्यकों के तुष्टिकरण के बूते खड़ी है। अल्पसंख्यक समुदाय समाजवादी पार्टी पर भरोसा कर वोट डालता है, लेकिन उस समुदाय को यह भी पता चलना चाहिए कि समाजवादी पार्टी उनके लिए वाकई कुछ करती है या केवल राजनीतिक इस्तेमाल करती है। मीडिया को यह पड़ताल करनी चाहिए कि मुसलमानों का वोट लेकर सत्ता में आने वाली समाजवादी पार्टी सरकार में रहते हुए मुसलमानों के नैतिक-कल्याण के लिए क्या करती है।

Wednesday 2 February 2022

भाजपा बताए: अखिलेश के खिलाफ चुनाव लड़ रहे केंद्रीय मंत्री ठाकुर हैं, ओबी...



भाजपा बताए: अखिलेश के खिलाफ चुनाव लड़ रहे केंद्रीय मंत्री ठाकुर हैं, ओबीसी हैं या दलित हैं..?
भाजपा के ये नेता जब स्कूल में थे तब वे ठाकुर (क्षत्रिय) थे। कॉलेज में प्राध्यापक बनने के लिए वे ओबीसी हो गए और जब राजनीति में आए तब दलित बन गए... ये नेता कौन हैं..? तीन अलग अलग जातियों में इन्होंने छलांग कैसे लगाई, खास कर राजनीति में कामयाबी की सीढ़ियां चढ़ने के लिए इन्होंने दलित का संवैधानिक चोंगा कैसे पहन लिया... इसे आप भी देखें। चुनाव का समय है, जनता के समक्ष भाजपा नेतृत्व को यह स्पष्ट करना ही चाहिए कि जिस केंद्रीय मंत्री को भाजपा ने करहल विधानसभा सीट पर समाजवादी पार्टी के नेता अखिलेश यादव के खिलाफ चुनाव मैदान में उतारा है, वह ठाकुर है, ओबीसी है या दलित है..?

Sunday 30 January 2022

अखिलेश जी, यह घोटाला था या फ्रॉड..?



मेरे पिछले तीन कार्यक्रम मुलायम सिंह यादव की आय से अधिक सम्पत्ति की सीबीआई जांच से लेकर उनके और उनके पुत्र अखिलेश यादव के मुख्यमंत्रित्वकाल के भ्रष्टाचार पर आधारित थे। अखिलेश यादव के कार्यकाल में भ्रष्टाचार के इतने कारनामे हुए कि उन पर एक उपन्यास लिख जाए। उनमें से कुछ चुनींदा उदाहरण आपके समक्ष क्रमवार प्रस्तुत कर रहा हूं। आज का कार्यक्रम अखिलेश के मुख्यमंत्रित्व में हुए ऐसे विचित्र भ्रष्टाचार पर आधारित है जिसकी पृष्ठभूमि मायावती-काल में बनी और अखिलेश-काल में पकी। इसे आप घोटाला कहेंगे या फ्रॉड..? या दोनों ही..? आप भी देखें और तय करें...

Sunday 23 January 2022

नेता बनने को बेताबः लोकतंत्र की कब्र खोद डालेंगे नौकरशाह



राजनीति में आने को बेताब नौकरशाह देश के पूरे शासन तंत्र को अपने कब्जे में लेना चाहते हैं। नौकरशाहों का राजनीति में पसरना लोकतंत्र के लिए अत्यंत घातक साबित होने वाला है। नेताओं को यह समझ में नहीं आता... भारत के नेता समझदार ही होते तो सत्तर साल बेमानी थोड़े ही गुजर जाते। आज लोगों के दिमाग में यह नैरेटिव इंजेक्ट किया जा रहा है कि नौकरशाहों के राजनीति में आने से आपराधिक छवि या अयोग्य लोगों के राजनीति में प्रवेश पर अंकुश लगेगा। लेकिन शातिर नौकरशाहों ने पिछले सत्तर साल में क्या किया..? नौकरशाहों ने जिस तरह देश की लोकतांत्रिक प्रशासनिक व्यवस्था (democratic system of governance) छिन्न-भिन्न की है, उसी तरह वे लोकतंत्र को भी छिन्न-भिन्न कर देंगे... इससे हमें सतर्क रहने की जरूरत है। राजनीति में पद पाने के लिए छटपटाते नौकरशाहों की भीड़ के समक्ष हम उन दो नौकरशाहों का उदाहरण भी रख रहे हैं जिनके योगदान से भारत को 'संप्रभु लोकतांत्रिक गणराज्य' के रूप में खड़े होने की शक्ति मिली... आपसे आग्रह है कि यह कार्यक्रम देखें। आप शातिर नौकरशाहों के मंसूबों के प्रति सतर्क भी होंगे और दो राष्ट्रभक्त नौकरशाहों के अभूतपूर्व योगदान पर गर्व भी करेंगे, जिनके योगदान नेताओं ने सरकारी फाइलों में दबा दिए...

Thursday 20 January 2022

यूपी का रिकॉर्डः दुनिया का सबसे लंबे समय का ऊर्जा घोटाला



2016-17 से 2042 तक होता रहेगा उत्तर प्रदेश का अरबों का नुकसान।
सपाई अखिलेश यादव और कांग्रेसी कमलनाथ के बीच 25 साल का करार।
प्रदेश से अरबों की राशि लुट गई, योगी सरकार भी आंखें मूंदे रह गई।
इस कार्यक्रम में आप देखेंगे सबसे लंबी अवधि तक सरकारी धन लूटने का महाघोटाला। हम भ्रष्टाचार के उन प्रसंगों को उठा रहे हैं जिसमें अखिलेश यादव उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री के बतौर सीधे शामिल रहे हैं। सार्वजनिक मंच पर पत्रकार के चरित्र पर उंगली उठाने वाले समाजवादी-संस्कार-पुरुष अखिलेश यादव के अपने कृत्य कैसे हैं, इसकी आपको असलियत दिखाते हैं... थोड़ा समय निकालिए और देखिए...

Thursday 13 January 2022

भ्रष्टाचार के दलदल में धंसी है सपा की अट्टालिका

खुद का गंदा गिरेबां निहारा करो, उंगलियां यूं न बेसबब उठाया करो,
मीठा गन्ना तो तुमने है चूसा बहुत, नीम की पत्तियां भी चबाया करो।
लाख की इमारत में रहते हो खुद, आग का डर न दिखाया करो,
छद्म कब तक रचोगे सोचो जरा, अपने कृत्यों पर कभी तो लजाया करो...

Monday 10 January 2022

भ्रष्टाचारवाद की जय, समाजवाद की क्षय

 
 

Glorifying Corruption-ism, Defying Social-ism
पीयूष जैन और पुष्पराज जैन के यहां छापे में मिले सैकड़ों करोड़ रुपए और करोड़ों का सोना मुलायम-अखिलेश परिवार का।
अखिलेश यादव का देश से लेकर विदेशों तक कई फार्म हाउस, चल-अचल सम्पत्तियां और लंदन में 7 स्टार होटल।
अखिलेश यादव, प्रतीक यादव और प्रतीक के साले अमन सिंह बिष्ट की दर्जनों फर्जी कंपनियां। एक ही पते और एक ही फोन नंबर पर रजिस्टर्ड हैं 16 फर्जी कंपनियां।
आयकर विभाग को भेजा गया फर्जी कंपनियों के जरिए करोड़ों रुपए के लेनदेन का प्रमाण, आयकर विभाग बेअसर।
यादव-कुनबे की फर्जी कंपनियों के जरिए माफिया सरगना छोटा शकील के करीबियों को हुए करोड़ों रुपए के भुगतान।
मुलायम परिवार की आय से अधिक सम्पत्ति की जांच की सीबीआई ने की लीपापोती। सीबीआई ने ही दाखिल कर दी फर्जी रिपोर्ट।
गोमतीनगर की बेशकीमती जमीनों की कौड़ियों के भाव हुई थी खरीद। मुलायम के रिश्तेदारों, नौकरशाहों, चाटुकारों और दलालों ने आपस में बांट ली थी करोड़ों की जमीनें। सीबीआई उस पर भी चुप।
मुलायम ने 2019 के लोकसभा चुनाव में दाखिल हलफनामे में दर्ज नहीं किया था अपनी सम्पत्ति का ब्यौरा। चुनाव आयोग ने शिकायत के बावजूद ध्यान नहीं दिया।
मुलायम-कुनबे की आय से अधिक सम्पत्ति का पर्दाफाश करने वाले सुप्रीम कोर्ट के वकील विश्वनाथ चतुर्वेदी की जनहित याचिका गुत्थियों में उलझा दी गई।
सरकारी तंत्र, निगरानी तंत्र, प्रशासनिक तंत्र, अदालती तंत्र... सब जप रहे भ्रष्टाचारवाद की जय और कर रहे समाजवाद की क्षय।

Tuesday 4 January 2022

अब लालू से कभी हाथ नहीं मिलाएंगे नीतीश



भ्रष्टाचार के पर्याय लालू से अब कभी हाथ नहीं मिलाएंगे नीतीश।
स्वच्छता के हिमायती नीतीश कुमार का भ्रष्टाचार के खिलाफ 'ज़ीरो-टॉलरेंस'।
नीतीश कुमार और लालू यादव का रास्ता और आचार-विचार दोनों अलग-अलग।
सुशील मोदी को बिहार की राजनीति से अलग करना भाजपा नेतृत्व की अदूरदर्शिता।
अंगीभूत कॉलेजों के प्राध्यापकों को बीस-बीस साल से वेतन नहीं दिया जाना संज्ञेय अपराध।
प्राध्यापकों का वेतन भुगतान शुरू हो, इसके लिए नीतीश कुमार जल्दी उठाएं सख्त कदम।
बिहार की छवि निखारने और विकास करने पर है नीतीश का एकमात्र ध्यान।
नीतीश कुमार के कॉलेजिया दोस्त इं. नरेंद्र कुमार सिंह ने दी और भी कई रोचक जानकारियां।
आप भी सुनें...