Monday 24 May 2021

भ्रमित किसानों का 'कोरोना-दिवस'... कलुषित सियासत का 'काला-दिवस'

देशभर में व्याप्त कोरोना विपदा और मौत के तांडव के बीच विपक्षी दलों ने 26 मई को काला दिवस मनाने के लिए किसानों को उकसाने का काम किया है। किसान आंदोलन और काला दिवस के नाम पर जुटने के लिए बुलाई जा रही भीड़ किस तरह कोरोना वापस लेकर लौटेगी और उसका क्या घातक परिणाम सामने आएगा, इसकी कल्पना की जा सकती है, क्योंकि कोरोना त्रासदी को लोग देख रहे हैं और भुगत रहे हैं। भ्रमित किसानों को समझ में नहीं आ रहा कि राजनीतिक दल उनका क्या हश्र करने वाले हैं। किसान आंदोलन के नाम पर जिस तरह अवसरवादी लेफ्टिस्ट, अतिवादी रैडिकलिस्ट, नस्लदूषित प्रोग्रेसिविस्ट और अधर्मी सेकुलरिस्ट देश में अराजकता का सृजन करने में लगे हैं, उस पर समय रहते अंकुश नहीं लगा तो देश में कोरोना की तरह का ही दूसरा एक भयानक मानव-जनित केऑस का सृजन होने वाला है। ये तत्व अभी किसानों के कंधे पर हथियार रख कर आगे बढ़ रहे हैं। आगे इसे जातीय, धार्मिक और अतरराज्यीय हिंसा में बदले जाने की तैयारी है। किसानों को काला दिवस का काला संकेत समझना चाहिए...

Friday 21 May 2021

यूपी में 'बाबू-राज' है या 'साधु-राज'..!

 
संन्यास के छूटे पथ पर क्या वापस लौटेंगे योगी आदित्यनाथ..!
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ साधु हैं या नेता..?
यूपी में कोरोना के विकराल स्वरूप अख्तियार करने का दोषी कौन है..?
लोगों की बेतहाशा हुई मौतों के लिए सरकार जिम्मेदार है या आम लोग..?
बेवकूफ व्यक्ति अधिक दोषी होता है या चालाक व्यक्ति..?
यूपी के गांवों में कोरोना फैलने और ग्रामीणों की धड़ाधड़ हो रही मौतों की वजह क्या है..?
यूपी के गांव-गांव में कोरोना पसरने की वजह पंचायत चुनाव है या दैवीय कोप..?
मौत के आंकड़े कम दिखाने की हरकत साधुता है या शैतानियत..?
किसकी लापरवाही से नौकरशाह अराजक होकर शासन पर हावी हो जाता है..?
साधु के लिए प्राथमिक पद होता है या कद..?
योगी में संन्यास के छूटे हुए पथ पर वापस लौटने का क्या आत्मबोध जग सकता है..?
इन सवालों का जवाब तलाशने की कोशिश है इस विशेष समीक्षा में... आप इसे जरूर देखिए और इन सवालों पर अपनी राय जरूर भेजिए।

Tuesday 11 May 2021

जेल में बंद हत्यारों को बड़े बड़े अस्पताल कर रहे भर्ती...

 
 
हम भारतीय विचित्र लोग हैं... शास्त्रों में पढ़ा और बुजुर्गों से सुना कि विपदा में समाज एक हो जाता है। लेकिन भारतवर्ष में इसका ठीक उल्टा होता है। कोरोना आपदा ने, हम असलियत में क्या हैं, इसका छद्म हटा दिया। हम विपदा में दवाएं ब्लैक करते हैं, हम ऑक्सीजन ब्लैक में बेचते हैं, दवाओं के लिए छटपटा रहे लोगों को हम नकली दवाएं बेचते हैं, हम अस्पतालों में लोगों के मरने तक पैसा चूसते हैं, हम पीड़ा झेल रहे रोगियों से बर्बर सलूक करते हैं, महामारी के नाम पर हम तमाम किस्म के भ्रष्टाचार के रास्ते आविष्कार करते हैं और नीचता पर उतरने के सारे पैमाने तोड़ कर स्खलित होते चले जाते हैं। सत्ता सियासतदान, विपक्ष में बैठे नेता, सत्ता के विभिन्न पदों पर आसीन नौकरशाह, वरिष्ठ ओहदे पर बैठे तमाम डॉक्टर और समाज निर्माण के सारे पुरोधा... सब गिरे हुए हैं। जो लोग पाप और पुण्य का नैतिक फर्क समझते हैं और अपने आचरण में उतारते हैं... बस वही निरीह बचे हैं और वे मरने के लिए लाइन में खड़े हैं। आज की कहानी ऐसे ही एक विचित्र नैतिक स्खलन की कहानी है। कोरोना आपदा का बहाना बना कर नेता, नौकरशाह और डॉक्टरों का सिंडिकेट, नरसंहार करने वाले अपराधियों को सुविधाएं प्रदान करने के लिए क्या-क्या तिकड़म करता है, आज की लघु-सत्य-कथा इसी तिकड़म को उजागर करने की छोटी सी कोशिश है। तिकड़म में शामिल सीनियर डॉक्टर को सत्ता किस तरह पुचकारती है... यह वीभत्सता भी देखिए और सोचिए कि हम लोगों ने किस तरह का देश, किस तरह का नेता और किस तरह का तंत्र गढ़ा है...
- प्रभात रंजन दीन