Tuesday 11 May 2021

जेल में बंद हत्यारों को बड़े बड़े अस्पताल कर रहे भर्ती...

 
 
हम भारतीय विचित्र लोग हैं... शास्त्रों में पढ़ा और बुजुर्गों से सुना कि विपदा में समाज एक हो जाता है। लेकिन भारतवर्ष में इसका ठीक उल्टा होता है। कोरोना आपदा ने, हम असलियत में क्या हैं, इसका छद्म हटा दिया। हम विपदा में दवाएं ब्लैक करते हैं, हम ऑक्सीजन ब्लैक में बेचते हैं, दवाओं के लिए छटपटा रहे लोगों को हम नकली दवाएं बेचते हैं, हम अस्पतालों में लोगों के मरने तक पैसा चूसते हैं, हम पीड़ा झेल रहे रोगियों से बर्बर सलूक करते हैं, महामारी के नाम पर हम तमाम किस्म के भ्रष्टाचार के रास्ते आविष्कार करते हैं और नीचता पर उतरने के सारे पैमाने तोड़ कर स्खलित होते चले जाते हैं। सत्ता सियासतदान, विपक्ष में बैठे नेता, सत्ता के विभिन्न पदों पर आसीन नौकरशाह, वरिष्ठ ओहदे पर बैठे तमाम डॉक्टर और समाज निर्माण के सारे पुरोधा... सब गिरे हुए हैं। जो लोग पाप और पुण्य का नैतिक फर्क समझते हैं और अपने आचरण में उतारते हैं... बस वही निरीह बचे हैं और वे मरने के लिए लाइन में खड़े हैं। आज की कहानी ऐसे ही एक विचित्र नैतिक स्खलन की कहानी है। कोरोना आपदा का बहाना बना कर नेता, नौकरशाह और डॉक्टरों का सिंडिकेट, नरसंहार करने वाले अपराधियों को सुविधाएं प्रदान करने के लिए क्या-क्या तिकड़म करता है, आज की लघु-सत्य-कथा इसी तिकड़म को उजागर करने की छोटी सी कोशिश है। तिकड़म में शामिल सीनियर डॉक्टर को सत्ता किस तरह पुचकारती है... यह वीभत्सता भी देखिए और सोचिए कि हम लोगों ने किस तरह का देश, किस तरह का नेता और किस तरह का तंत्र गढ़ा है...
- प्रभात रंजन दीन

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