Thursday 21 June 2018

बॉम्बे मर्केंटाइल बैंक: ठगी करने वाला बैंक और बचाने वाले मंत्री...

प्रभात रंजन दीन
उत्तर प्रदेश सरकार ने केंद्र सरकार की कारगुजारियों के खिलाफ ताल ठोक दी है. जिस जालसाज बैंक को केंद्र सरकार खुलेआम संरक्षण दे रही है, उस बैंक के खिलाफ उत्तर प्रदेश सरकार ने लखनऊ में मुकदमा ठोक कर केंद्र को सकते में ला दिया है. बैंकों के फ्रॉड पर सार्वजनिक चिंता जताने वाली केंद्र सरकार नेपथ्य से उन्हीं बैंकों को अपना संरक्षण देती है और महत्वपूर्ण सरकारी लेनदेन से जोड़ कर उसे लाभ पहुंचाती है. तथ्यों और दस्तावेजों के आधार पर ‘चौथी दुनिया’ अखबार इसका खुलासा कर रहा है.
जिस बैंक पर ‘मनी लॉन्ड्रिंग’ का आरोप हो, जिस बैंक पर धोखाधड़ी और फर्जीवाड़े के तमाम मामले चल रहे हों, जिस बैंक पर भारतीय रिजर्व बैंक जुर्माना ठोक चुका हो और जिस बैंक पर सख्त कानूनी कार्रवाई की आरबीआई की सिफारिशें और रपटें सत्ता-गलियारे में धूल खा रही हों, ऐसे बैंक को दिया जा रहा खुला संरक्षण निश्चित तौर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए अबूझा नहीं है. बॉम्बे मर्केंटाइल को-ऑपरेटिव बैंक लिमिटेड जो बॉम्बे मर्केंटाइल बैंक के नाम से जाना जाता है, अपने ‘सुकर्मों’ के चलते देशभर में पहले से कुख्यात है. लिहाजा, ऐसे विवादास्पद बैंक को सरकारी लेनदेन और योजनाओं में शामिल करना बैंक के साथ सत्ता अलमबरदारों की मिलीभगत की सनद है. नोटबंदी के समय और उसके बाद, जब देशभर में नोटों की अदलाबदली तेज गति से चल रही थी, उस समय बॉम्बे मर्केंटाइल बैंक भी तेज गति से नोटों की अदलाबदली में लगा था. इसमें कई बड़े नेताओं और पूंजीपतियों के धन अदले-बदले गए. केंद्रीय मंत्री मुख्तार अब्बास नकवी, भाजपा सांसद जगदंबिका पाल, कांग्रेस नेता सिराज मेंहदी और कृपाशंकर सिंह की इस बैंक पर खास कृपा है. बैंक के प्रति कृपादृष्टि रखने वालों में केंद्रीय जल संसाधन एवं संसदीय कार्य मंत्री मंत्री अर्जुन राम मेघवाल का नाम भी है. मेघवाल पहले केंद्र सरकार में वित्त राज्य मंत्री थे. वित्र मंत्रालय के एक अधिकारी ने कहा कि मेघवाल बॉम्बे मर्केंटाइल बैंक के कार्यक्रमों में शरीक होते रहे हैं. मेघवाल को बॉम्बे मर्केंटाइल बैंक के नजदीक लाने का श्रेय केंद्र में अल्पसंख्यक कल्याण एवं संसदीय कार्य राज्य मंत्री मुख्तार अब्बास नकवी को जाता है. बॉम्बे मर्केंटाइल बैंक के घोटालों और फर्जीवाड़ों की अनगिनत परते हैं... इनमें से कई खुल चुकी हैं और कई नई परतें हम खोलेंगे. जितनी परतें उघड़ चुकी हैं, उतनी ही जानकारी केंद्र सरकार को सतर्क हो जाने के लिए काफी थी. फिर भी केंद्र ने बॉम्बे मर्केंटाइल बैंक को सरकारी लेनदेन और योजनाओं से बाहर करने के बजाय उसे और अंदर तक क्यों घुसने दिया? स्पष्ट है कि केंद्र सरकार के मंत्री, नौकरशाह और बड़े नेताओं की बैंक के साथ साठगांठ इस सवाल का सटीक जवाब है. बैंक के गोरखधंधे का नेता फायदा उठाते हैं. विजय माल्या, नीरव मोदी और इन जैसे तमाम पूंजी-पशुओं के बैंकों से लोन लेकर विदेश भाग जाने के पीछे ऐसी ही नियोजित मिलीभगत है, उसमें कोई लापरवाही या चूक जैसी बात नहीं है.
केंद्र सरकार के कद्दावर मंत्रियों और प्रभावशाली नेताओं के संरक्षण में बॉम्बे मर्केंटाइल बैंक ने कैसे-कैसे कारनामे किए हैं, इसके विस्तार में जाने के पहले आपको यह बताते चलें कि उत्तर प्रदेश सरकार ने काफी विचार-विमर्श और जांच-पड़ताल करने के बाद 11 जून 2018 को बॉम्बे मर्केंटाइल बैंक के चेयरमैन जीशान मेंहदी, मैनेजिंग डायरेक्टर एम शाह आलम खान, सहायक महाप्रबंधक बदरे आलम खान, बैंक के एफडी विभाग के प्रभारी अधिकारी तारिक सईद खान और लखनऊ शाखा के प्रभारी प्रबंधक नूर आलम के खिलाफ आपराधिक न्यासभंग यानि ‘क्रिमिनल ब्रीच ऑफ ट्रस्ट’ (406), बेईमानी, जालसाजी, फरेब और धोखाधड़ी से सम्पत्ति हथियाना (420), सिक्योरिटी या मुचलके के सरकारी दस्तावेजों में आपराधिक फेरबदल करना, फर्जी सरकारी दस्तावेज बनवाना या सरकारी दस्तावेजों में छेड़छाड़ करना (467, 468) और फर्जी दस्तावेजों का सोच-समझ कर इस्तेमाल करना (471) जैसी संगीन धाराओं में मुकदमा दर्ज कराया है. उत्तर प्रदेश सरकार के महत्वपूर्ण उपक्रम उत्तर प्रदेश अल्पसंख्यक वित्तीय एवं विकास निगम की तरफ से लखनऊ के कैसरबाग थाने में यह मुकदमा (संख्या- 0142/2018) दर्ज कराया गया है. वित्तीय संकट से गुजर रहे अल्पसंख्यक वित्तीय एवं विकास निगम बॉम्बे मर्केंटाइल बैंक प्रबंधन से बार-बार यह आग्रह कर रहा था कि बैंक के फिक्स्ड डिपॉजिट में जमा उसके दो करोड़ 67 लाख 60 हजार रुपए उसे दे दिए जाएं, लेकिन बैंक टालमटोल कर रहा था. बैंक ने तो यहां तक कह दिया कि निगम का धन बैंक में जमा ही नहीं है. सरकार का यह महकमा सरकार से ही हस्तक्षेप की गुहार लगाता रहा, लेकिन सरकार ने इस पर कोई ध्यान नहीं दिया. केंद्र सरकार के कद्दावर मंत्री की सरपरस्ती के कारण किसी ने बैंक पर हाथ डालने की हिमाकत नहीं की. विवश होकर निगम ने 25 जून 2018 को कैसरबाग कोतवाली में बैंक की इस धोखाधड़ी के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर कानूनी कार्रवाई करने का औपचारिक आग्रह किया. अल्पसंख्यक वित्तीय एवं विकास निगम के अधिष्ठान प्रभारी डीके मिश्रा के औपचारिक आवेदन से लखनऊ पुलिस के हाथ-पांव फूल गए. लखनऊ के वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक दीपक कुमार ने फौरन गृह विभाग के प्रमुख सचिव अरविंद कुमार से बात की. निगम से कहा गया कि आवश्यक छानबीन के बाद ही एफआईआर दर्ज की जाएगी. जबकि निगम की तहरीर में सारे जरूरी तथ्य संलग्न किए गए थे. मामला ठंडे बस्ते में जाता देख कर निगम के प्रबंध निदेशक शेषनाथ पांडेय ने 29 मई 2018 को लखनऊ के एसएसपी को पत्र लिख कर एफआईआर दर्ज करने की मांग की, लेकिन कुछ नहीं हुआ. उधर, इस कवायद की सूचना त्वरित गति से केंद्र सरकार में बैठे बैंक के खैरख्वाह मंत्री और मुंबई में बैठे बैंक के शीर्ष अधिकारियों तक पहुंच गई. पेशबंदियां ताबड़तोड़ शुरू हो गईं, लेकिन इस बार योगी सरकार ने अपने कान बंद कर लिए. इस पर बैंक प्रबंधन ने निगम के फिक्स्ड डिपॉजिट को फर्जी बताते हुए दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 156 (3) के तहत न्यायिक दंडाधिकारी से बैंक के ही पूर्व कर्मचारी सैयद रजा और एसएम के हैदर के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने का आदेश प्राप्त कर लिया. लेकिन इस बार बैंक प्रबंधन की चालाकियां काम नहीं आईं और ऊपरी अदालत ने न्यायिक दंडाधिकारी का आदेश खारिज कर दिया. दूसरी तरफ सरकार ने अंदरूनी छानबीन के बाद लखनऊ पुलिस को बॉम्बे मर्केंटाइल बैंक के अध्यक्ष और प्रबंध निदेशक समेत पांच शीर्ष अधिकारियों के खिलाफ नामजद एफआईआर दर्ज करने की सहमति दे दी और 11 जून की देर रात को कैसरबाग कोतवाली में एफआईआर दर्ज हो गई. पुलिस ने बताया कि बॉम्बे मर्केंटाइल बैंक के चेयरमैन जीशान मेंहदी समेत पांच पदाधिकारियों ने बैंक में जमा उत्तर प्रदेश अल्पसंख्यक वित्तीय एवं विकास निगम के दो करोड़ 67 लाख 60 हजार रुपए फर्जीवाड़ा करके निकाल लिए. लखनऊ पुलिस ने साफ-साफ कहा कि पड़ताल में पता चला कि बैंक के उपरोक्त अधिकारियों ने एफडी में जमा निगम का पैसा निकाल कर व्यक्तिगत इस्तेमाल कर लिया. इसीलिए पांच आरोपियों जीशान मेंहदी, एम शाह आलम खान, बदरे आलम खान, तारिक सईद खान और नूर आलम के खिलाफ मामला दर्ज किया गया है. लखनऊ पुलिस ने कहा कि बैंक की तमाम कारगुजारियों की छानबीन की जाएगी.

हज का मौद्रिक लेनदेन करेगा बॉम्बे मर्केंटाइल बैंक!
उत्तर प्रदेश सरकार की इस कार्रवाई से प्रदेश सरकार के कामकाज में ही गंभीर कानूनी अड़चनें खड़ी होने वाली हैं, क्योंकि केंद्र सरकार ने इसी विवादास्पद बैंक को कई योजनाओं से जोड़ रखा है. इनमें सबसे महत्वपूर्ण है हज यात्रा से जुड़े सारे लेनदेन से बॉम्बे मर्केंटाइल बैंक का जोड़ा जाना. केंद्रीय अल्पसंख्यक कल्याण मंत्री मुख्तार अब्बास नकवी से जुड़े बैंक को हज के लेनदेन से तो जोड़ दिया गया, लेकिन एफआईआर दर्ज होने के बाद की बदली हुई स्थितियों में उत्तर प्रदेश सरकार इस बैंक से कैसे काम लेगी और अगर काम लेगी तो उसकी विश्वसनीयता क्या रहेगी, यह एक बड़ा सवाल है. बड़ा सवाल यह भी है कि तमाम राष्ट्रीयकृत बैंकों के होते हुए सरकार ने हज प्रबंधन से बॉम्बे मर्केंटाइल बैंक को क्यों जोड़ा? 14 जुलाई से शुरू हो रही हज यात्रा को लेकर उत्तर प्रदेश राज्य हज समिति की जो आधिकारिक कार्यसूची जारी हुई है, उसे देखना भी दिलचस्प है. कार्यसूची में बॉम्बे मर्केंटाइल बैंक के साथ दो और बैंकों के नाम शामिल हैं, लेकिन जब विभागवार काम के विस्तार में जाएं तब आपको असली खेल समझ में आएगा. ‘बैंक से सम्बन्धित कार्य’ में हज यात्रा से जुड़े सारे महत्वपूर्ण काम बॉम्बे मर्केंटाइल बैंक को ही दिए गए हैं. हज यात्रियों के लिए विदेशी मुद्रा का सारा लेनदेन बॉम्बे मर्केंटाइल बैंक ही करेगा. हज हाउस में स्टेट बैंक को अस्थाई मोबाइल एटीएम खोलने की इजाजत देकर सरकार ने दूसरे बैंक को भी काम देने की रस्म अदायगी की है.
बॉम्बे मर्केंटाइल बैंक के तमाम शेयर धारकों ने भी केंद्र सरकार को बार-बार लिखा है कि बैंक के गोरखधंधों को काबू में करे. यह बैंक सहकारिता के तहत निबंधित है, लिहाजा केंद्रीय कृषि एवं सहकारिता मंत्री राधा मोहन सिंह को भी पत्र लिखा गया. एक पत्र तो बहुत ही गंभीर है, जो केंद्रीय अल्पसंख्यक कल्याण राज्य मंत्री मुख्तार अब्बास नकवी को लिखा गया है. बैंक की एक शेयर धारक राजश्री भटनागर मुख्तार अब्बास नकवी को लिखती हैं कि नोटबंदी के दौरन बॉम्बे मर्केंटाइल बैंक ने पुराने नोट बदलने का धंधा खूब किया. दो करोड़ रुपए के पुराने नोट बदले जाने के एक खास प्रसंग का जिक्र करते हुए पत्र में कहा गया है कि बैंक प्रबंधन ने निदेशक मंडल को बताया कि पुराने नोट मुख्तार अब्बास नकवी के हैं, जबकि पुराने नोट बैंक को नियंत्रण में रखने वाले सरकारी (रजिस्ट्रार को-ऑपरेटिव) विभाग के शीर्ष अधिकारी के थे. शेयर धारक ने मुख्तार अब्बास नकवी को सतर्क करते हुए लिखा कि बैंक की इन हरकतों से उनकी छवि खराब हो रही है. बैंक के शेयर धारकों ने केंद्र को यह औपचारिक तौर पर बता रखा है कि बैंक के चेयरमैन और प्रबंध निदेशक समेत कई आला अधिकारियों के खिलाफ देशभर में जालसाजी और धोखाधड़ी के दर्जनों मामले दर्ज हैं लेकिन उसके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की जा रही. यहां तक कि भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने भी माना है कि बैंक के चेयरमैन जीशान मेंहदी और प्रबंध निदेशक शाहनवाज आलम ने बैंक से करोड़ों के घपले किए हैं. आरबीआई ने बॉम्बे मर्केंटाइल बैंक पर 75 लाख रुपए का जुर्माना ठोका और सेंट्रल रजिस्ट्रार को-ऑपरेटिव्स को आगे की कार्रवाई करने के लिए लिखा, लेकिन फिर भी कोई कार्रवाई नहीं हुई. सेंट्रल रजिस्ट्रार को-ऑपरेटिव्स आशीष भूटानी और बॉम्बे मर्केंटाइल बैंक के चेयरमैन जीशान मेंहदी की दोस्ती के चर्चे आम हैं. आरबीआई की रिपोर्ट पर भूटानी ने शो-कॉज नोटिस देकर औपचारिकता पूरी कर ली.
आरबीआई की जांच में पाया गया कि बॉम्बे मर्केंटाइल बैंक प्रबंधन के शीर्ष अधिकारी ही बैंक को खोखला करने में लगे हैं. बैंक के चेयरमैन जीशान मेंहदी ने हिंदुस्तान ट्रेडिंग कॉरपोरेशन और स्टील इंडिया कंपनी का तीन करोड़ का ब्याज माफ कर दिया. जीशान मेंहदी खुद ही इन कंपनियों के पार्टनर हैं. इसके अलावा चेयरमैन ने शान ट्रेडर्स और युनिवर्सल इंटरप्राइजेज नामकी दो कंपनियों को 15 करोड़ रुपए का लोन दिया, जो लोन लेकर भाग खड़ी हुईं. इसी तरह बैंक के अधिकारी अरशद खान के जरिए अनीस इंटरप्राइजेज को 24 घंटे के अंदर साढ़े सात करोड़ का लोन दे दिया गया. जितनी तेज गति से उसे लोन मिला, उतनी ही तेज गति से वह पैसा लेकर भाग गया. बॉम्बे मर्केंटाइल बैंक के प्रबंध निदेशक मोहम्मद शाह आलम खान वर्ष 2003 में बैंक से निकाल दिए गए थे, लेकिन बैंक प्रबंधन ने उन्हें फिर शिरोधार्य कर लिया. जांच में पाया गया था कि शाह आलम ने आठ विभिन्न खातों में बैंक के पांच करोड़ 32 लाख रुपए डलवाए, बाद में वे खाते ही गायब हो गए. उन्हीं साहब ने बालाजी सिंफोनी को 50 लाख और शीजान कंस्ट्रक्शन कंपनी को 45 लाख का लोन दिया, यह जानते हुए कि शीजान कंस्ट्रक्शन का एक्सिस बैंक में खाता जब्त किया जा चुका है और मुंबई के भिवंडी थाने में मामला भी दर्ज है. बैंक के इस धन का भी विलोप हो गया. शाह आलम खान के खिलाफ मुंबई के पायधोनी थाने में भी जालसाजी और धोखाधड़ी का मामला दर्ज है.
भारतीय रिजर्व बैंक ने मुंबई हाईकोर्ट में बाकायदा हलफनामा दाखिल कर कहा है कि बॉम्बे मर्केंटाइल बैंक के चेयरमैन संस्था के लिए नुकसानदायक हैं. उन्होंने बैंक में बोगस खाते खोल कर बैंक को करोड़ों रुपए का नुकसान पहुंचाया. इस काम में बैंक के एमडी शाह आलम भी लिप्त हैं. आरबीआई ने यह भी बताया कि सेंट्रल रजिस्ट्रार को पत्र लिख कर सख्त कार्रवाई करने के लिए पहले ही कहा जा चुका है. आरबीआई के सहायक महाप्रबंधक (को-ऑपरेटिव बैंक्स) शशिकांत मेनन ने अपने हलफनामे में बताया कि बैंक के दो बोगस एनपीए अकाउंट 10 करोड़ 30 लाख के थे. इन खातों को बंद करने के लिए चेयरमैन जीशान मेंहदी ने शान ट्रेडर्स और यूनिवर्सल इंटरप्राइजेज के नाम पर दो और बोगस खाते खोले और उसके जरिए बॉम्बे मर्केंटाइल बैंक का पैसा इलाहाबाद बैंक में परपल ट्रेडर्स के नाम से खोले गए खाते में ट्रांसफर कर दिया. मेंहदी परपल कंपनी के भी पार्टनर थे. इसी तरह यूनियन बैंक में लकी इंटरप्राइजेज नाम से बोगस अकाउंट खोला गया और बॉम्बे मर्केंटाइल बैंक के एक बोगस खाते में जमा 15 करोड़ की रकम ट्रांसफर कर उसे भी हड़प लिया गया. आरबीआई ने कहा कि मल्टी-स्टेट कॉ-आपरेटिव सोसायटीज़ एक्ट की धारा 29 (डी) का उल्लंघन करने के मामले में बैंक के चेयरमैन जीशान मेंहदी और अन्य लिप्त अधिकारियों पर सख्त कानूनी कार्रवाई होनी चाहिए.
विडंबना यह है कि पंजाब नेशनल बैंक और कैनारा बैंक की तरफ से बॉम्बे मर्केंटाइल बैंक के चेयरमैन जीशान मेंहदी, प्रबंध निदेशक शाह आलम खान और निदेशक सलाउद्दीन नजमी के खिलाफ आपराधिक षडयंत्र रचने, धोखाधड़ी करने और आपराधिक दुर्व्यवहार (क्रिमिनल मिसकंडक्ट) का मुकदमा दर्ज होने के बावजूद राष्ट्रीय स्तर के भाजपा नेता के दबाव में 16 मई 2016 को जीशान मेंहदी को बैंक का चेयरमैन और मोहम्मद शाह आलम खान को प्रबंध निदेशक चुन लिया जाता है. जबकि इन्हें आरबीआई और सेंट्रल कोऑपरेटिव्स की तरफ से भी अयोग्य ठहराया जा चुका था. महज चेयरमैन का चुनाव लड़ने के लिए जीशान मेंहदी ने सारे नियम-कानून और आरबीआई के प्रावधान ताक पर रख कर बॉम्बे मर्केंटाइल बैंक की लखनऊ शाखा से साढ़े सात-सात करोड़ रुपए को दो लोन अपने परिचित के नाम से जारी कर दिए. इस 15 करोड़ रुपए का इस्तेमाल बोर्ड का चुनाव लड़ने में हुआ और इस राशि को बैंक के ‘नॉन परफॉर्मिंग असेट्स’ (एनपीए) में डाल दिया गया. चेयरमैन पर बैंक के कर्मचारियों की भविष्य निधि का धन गैर लिस्टेड कंपनियों में निवेश करने का भी आरोप है. मुंबई पुलिस की आर्थिक अपराध अनुसंधान शाखा (ईओडब्लू) के प्रभारी पुलिस उपायुक्त पराग मनेरे ने दिल्ली में सेंट्रल रजिस्ट्रार ऑफ को-ऑपरेटिव सोसाइटीज़ के प्रमुख को पत्र लिख कर बॉम्बे मर्केंटाइल को-ऑपरेटिव बैंक की धांधलियों और घोटालों के खिलाफ कार्रवाई करने को कहा था, लेकिन पुलिस उपायुक्त का पत्र भी डस्टबिन में डाल दिया गया. मनेरे के पहले ईओडब्लू के प्रभारी एस जयकुमार ने भी बैंक पर कार्रवाई के लिए रजिस्ट्रार को पत्र लिखा था. इस सिलसिले में शिवसेना सांसद गजानन कीर्तिकर द्वारा केंद्र को लिखा गया पत्र भी ढाक के तीन पात ही साबित हुआ.

बॉम्बे मर्केंटाइल बैंकः घोटालेबाजों में बड़ा नाम है
घोटाले में बॉम्बे मर्केंटाइल बैंक का बड़ा नाम है और काफी पुराना नाम है. आपको हर्षद मेहता का शेयर घोटाला याद होगा. 90 के दशक का वह घोटाला बड़ा मशहूर हुआ, जो उस समय धरती पर नहीं भी थे, बाद में उन्हें हर्षद मेहता का शेयर घोटाला पढ़ने को जरूर मिला. यह करीब 50 हजार करोड़ का घोटाला था. हर्षद मेहता ने बैंक ऑफ कराड और बॉम्बे मर्केंटाइल बैंक के साथ साठगांठ करके बैंकर्स रसीद (बीआर) हासिल कर लिया था और उन फर्जी ‘बीआर’ के जरिए विभिन्न बैंकों से 50 हजार करोड़ रुपए निकाल लिए. उस जमाने में शेयर कारोबार बैंकों द्वारा जारी टोकन और ‘बीआर’ से होता था. तब शेयरों के कारोबार के लिए डिमैट खाता यानि, शेयर का डिजिटल खाता नहीं हुआ करता थे. हर्षद मेहता के शेयर घोटाले में बैंकों का पैसा डूबने में भी बॉम्बे मर्केंटाइल बैंक की ही भूमिका रही.

जो बैंक ‘मनी-लॉन्ड्रिंग’ में लिप्त, उसे ही दे दी ‘फॉरेन-फंडिंग’ की चौकीदारी
बॉम्बे मर्केंटाइल बैंक पर केंद्र सरकार की मेहरबानियों का हाल यह है कि विदेशों से फंडिंग के जरिए आने वाले संदेहास्पद धन की रोकथाम के लिए केंद्र सरकार ने जिन बैंकों को ‘पहरेदार’ बनाया उसमें बॉम्बे मर्केंटाइल बैंक जैसे विवादास्पद बैंक को भी शामिल कर दिया. विदेशी फंडिंग पर केंद्र सरकार की सख्ती का सच यही है. आप याद करें कि केंद्र सरकार ने विदेश से फंड लेने वाले सभी एनजीओ, कंपनियों, संस्थाओं और लोगों को 32 निर्धारित बैंकों में से किसी एक में अकाउंट खुलवाने का सख्त निर्देश जारी किया था, ताकि फॉरेन फंडिंग का इस्तेमाल किसी भी तरह राष्ट्र विरोधी गतिविधि में न हो. गृह मंत्रालय ने कहा था कि उच्चस्तर की पारदर्शिता सुनिश्चित करने के लिए यह कदम उठाया गया है. जबकि केंद्र सरकार की यह बहुत ही घटिया स्तर की पारदर्शिता और राष्ट्र-धर्मिता थी कि उसे बॉम्बे मर्केंटाइल बैंक जैसे घोटालेबाज बैंक को 32 चौकीदार बैंकों में शुमार करते हुए शर्म नहीं आई. केंद्र सरकार ने फॉरेन फंडिग प्राप्त करने वाले 18,868 एनजीओ के रजिस्ट्रेशन तो रद्द कर दिए, लेकिन मुद्रा का बेजा धंधा करने वाले बैंक पर सरकार ने कोई ध्यान नहीं दिया. बॉम्बे मर्केंटाइल बैंक को 32 चौकीदार बैंकों में शामिल करके केंद्र सरकार ने फॉरेन फंडिग पाने वाली संदेहास्पद संस्थाओं, एजेंसियों और लोगों को ‘धंधा’ जारी रखने का परोक्ष रूप से मौका दे दिया. फॉरेन फंडिंग पाने वाली तमाम एफसीआरए रजिस्टर्ड संस्थाओं और एजेंसियों ने 21 जनवरी 2018 तक भारी संख्या में अपने खाते (फॉरन कॉन्ट्रिब्यूशन अकाउंट्स) खुलवा लिए हैं, अब वे बेखौफ अपना धंधा चलाएंगे.

घोटाले के कारण हुआ घाटा, घाटा खत्म दिखाने के लिए किया घोटाला
है न यह विचित्र बात..! लेकिन यह सच है. भीषण घोटालों के कारण बॉम्बे मर्केंटाइल बैंक का घाटा बैंक का ‘एनपीए’ बढ़ाता रहा, लेकिन घोटालेबाजों ने इस ‘एनपीए’ को खत्म करने के लिए भी घोटाला किया. इस घोटाले को बैंक के शातिर अधिकारियों के साथ-साथ कई और शातिर दिमाग हस्तियों ने अंजाम दिया. इन हस्तियों में मुंबई के पूर्व पुलिस कमिश्नर समेत कई ऐसे बड़े अधिकारी शामिल हैं, जो पहले वित्त मंत्रालय, रिजर्व बैंक, सेंट्रल रजिस्ट्रार को-ऑपरेटिव्स और सरकारी मीडिया में ऊंचे ओहदे संभालते रहे हैं. बॉम्बे मर्केंटाइल बैंक ने जब दो सौ करोड़ रुपए का ‘एनपीए’ क्लियर कर लेने का दावा किया, तब इस ‘चमत्कार’ पर लोगों का ध्यान गया. बाद में पता चला कि बॉम्बे मर्केंटाइल बैंक के 117 करोड़ रुपए के एनपीए की देनदारी ‘इन्वेंट’ नामकी कंपनी ने खरीद ली. मुंबई के पूर्व पुलिस कमिश्नर एमएन सिंह ‘इन्वेंट’ कंपनी के चेयरमैन हैं. ‘इन्वेंट’ कंपनी और बॉम्बे मर्केंटाइल बैंक ने मिल कर एक ट्रस्ट बनाया, जिसमें बैंक ने 99.50 करोड़ रुपए निवेश किए और ‘इन्वेंट’ कंपनी ने इस ट्रस्ट में 17.50 करोड़ रुपए निवेश किए. ‘एनपीए’ की शेष 83 करोड़ की राशि बैंक के रिजर्व फंड्स में एडजस्ट कर दी गई. इस तरह ‘एनपीए’ की राशि डुबोने के लिए बहुत ही शातिराना खेल खेला गया, जिसमें मुंबई के पूर्व पुलिस कमिश्नर एमएन सिंह की ‘इन्वेंट’ कंपनी भी साझीदार रही. अब ‘इन्वेंट’ कंपनी का भी प्रोफाइल देखें, जिसमें खुद मुंबई के पूर्व पुलिस कमिश्नर एमएन सिंह चेयरमैन हैं. कॉरपोरेट और बैंकिंग मामलों के महारथी पंकज कुमार गुप्ता ‘इन्वेंट’ कंपनी के वाइस चेयरमैन हैं. इनके अलावा एलआईसी और सेबी के पूर्व चेयरमैन ज्ञानेंद्र नाथ बाजपेयी, वित्त मंत्रालय के पूर्व अधिकारी राज नारायण भारद्वाज, कई महत्वपूर्ण मीडिया घरानों के सीईओ और सरकारी मीडिया के आला अधिकारी रहे आरके सिंह, डेवलपमेंट बैंक ऑफ इंडिया के बड़े अधिकारी रहे एके डोडा, भारतीय रिजर्व बैंक के वरिष्ठ अधिकारी रहे एससी गुप्ता और जी गोपालकृष्ण जैसी हस्तियां ‘इन्वेंट’ कंपनी से जुड़ी हैं.

बैंक ने की यूपी अल्पसंख्यक वित्तीय एवं विकास निगम की हालत खस्ता
उत्तर प्रदेश सरकार में बैठे नाकारा नौकरशाहों के कारण प्रदेश के अल्पसंख्यक वित्तीय एवं विकास निगम की खुद की वित्तीय हालत खस्ता है. ऊपर से बॉम्बे मर्केंटाइल बैंक उसका करीब तीन करोड़ रुपया दबाए बैठा है. प्रमुख समाजसेवी एवं ऑल इंडिया मुस्लिम काउंसिल के अध्यक्ष अल्लामा जमीर नकवी केंद्र सरकार से लेकर प्रदेश सरकार तक अल्पसंख्यक वित्तीय एवं विकास निगम की खस्ता हालत के खिलाफ आवाज उठा रहे हैं और मुहिम चला रहे हैं. जमीर नकवी कहते हैं कि सरकार की भेदभाव की नीति के कारण अल्पसंख्यक वित्तीय एवं विकास निगम की हालत खराब हो रही है और निगम के कर्मचारी बेहद मुश्किल स्थिति में हैं. दूसरे सारे निगमों के कर्मचारियों को बाकायदा सातवें वेतन आयोग की सिफारिश के मुताबिक सैलरी मिल रही है, लेकिन अल्पसंख्यक वित्तीय एवं विकास निगम के कर्मचारियों को अब भी चौथे वेतन आयोग की सैलरी मिल रही है. नकवी पूछते हैं कि यह कहां का न्याय है? अनुसूचित जाति वित्त विकास निगम या ऐसे अन्य निगमों के कर्मचारी ऊंची सैलरी पाएं और अल्पसंख्यक वित्तीय एवं विकास निगम के कर्मचारी नीची सैलरी पर घिसटें, ऐसा भेदभाव सरकार क्यों कर रही है? जमीर नकवी उत्तर प्रदेश में अल्पसंख्यक कल्याण विभाग की प्रमुख सचिव एस सुनीता गर्ग पर सीधा आरोप लगाते हैं कि सरकार की शह पर वे अल्पसंख्यक वित्तीय एवं विकास निगम को ही खत्म कर देने पर आमादा हैं. जमीर नकवी कहते हैं कि यह खेद और दुख विषय है कि निगम को समाप्त करने में केंद्रीय अल्पसंख्यक कल्याण राज्य मंत्री मुख्तार अब्बास नकवी भी भूमिका अदा कर रहे हैं. उन्हें बार-बार पत्र लिख कर इस बारे में आगाह किया जाता रहा लेकिन उन्होंने एक भी टीका-टिप्पणी नहीं की और न ही निगम के लिए कुछ किया. अल्पसंख्यत वित्तीय विकास निगम के कर्मचारियों को पिछले 16 महीने से सैलरी नहीं मिली है और बॉम्बे मर्केंटाइल बैंक निगम के तीन करोड़ रुपए दबाए बैठा है. केंद्रीय मंत्री ने यह भी कोशिश की कि बैंक के खिलाफ एफआईआर दर्ज न होने पाए. जमीर नकवी कहते हैं, ‘पिछले दिनों जब मुझे पता चला कि बॉम्बे मर्केंटाइल बैंक के चेयरमैन जीशान मेंहदी उनके कक्ष में बैठे हैं, तो मैंने उन्हें फोन लगाया, लेकिन उन्होंने फोन नहीं उठाया. फिर मैंने उन्हें एसएमएस भेज कर उनसे आग्रह किया कि वे बैंक से निगम का पैसा देने के लिए कहें. लेकिन संदेश मिलने के बावजूद केंद्रीय मंत्री ने कुछ नहीं किया.’

झारखंड सरकार को दे दी 54 करोड़ की फर्जी बैंक गारंटी
बॉम्बे मर्केंटाइल बैंक ने जालसाजी की हुनर का प्रदर्शन केवल यूपी, महाराष्ट्र और दिल्ली में ही नहीं, बल्कि देश के कई राज्यों में किया है. खास तौर पर भाजपा शासित राज्यों में जालसाजियां करके बैंक ने बड़ा नाम कमाया है. झारखंड राज्य भी बॉम्बे मर्केंटाइल बैंक के चंगुल से बच नहीं पाया. कुछ अर्सा पहले झारखंड सरकार ने यूपी की दो कंपनियों लखनऊ की ज्योति बिल्ड टेक प्राइवेट लिमिटेड और गाजियाबाद की वैभव विभोर इन्फ्रा प्राइवेट लिमिटेड को झारखंड की राजधानी रांची की सीवर प्रणाली दुरुस्त करने का बड़ा ठेका (करीब साढ़े चार सौ करोड़ का) दिया था. इन कंपनियों ने झारखंड सरकार को 27-27 करोड़ यानि कुल 54 करोड़ की बैंक गारंटी दी थी. दोनों बैंक गारंटियां बॉम्बे मर्केंटाइल बैंक की ओर से जारी हुई थी. झारखंड सरकार द्वारा की गई छानबीन में सभी बैंक गारंटियां फर्जी पाई गईं. झारखंड सरकार ने यूपी की कंपनियों का ठेका रद्द कर दिया और उन्हें ब्लैक लिस्ट कर राज्य से निकाल बाहर किया. फर्जी बैंक गारंटी बनवाने में बैंक से जुड़े एक बड़े कांग्रेसी नेता काफी सक्रिय थे.
बहरहाल, बॉम्बे मर्केंटाइल बैंक का फर्जीवाड़ा साबित होने के बावजूद कोई कार्रवाई नहीं हुई. बैंक के एक अधिकारी ने यह कह कर पल्ला झाड़ लिया कि उक्त कंपनियों ने बैंक के मुलाजिम निहाल मुर्तजा को दो करोड़ रुपए घूस देकर 27-27 करोड़ रुपए की दो फर्जी बैंक गारंटी बनवा ली थी. झारखंड सरकार के एक्शन में आने पर बैंक प्रबंधन ने फौरन बैंक कर्मी निहाल मुर्तजा को बर्खास्त कर दिया. यह बर्खास्तगी बैंक के शीर्ष प्रबंधन और मुर्तजा के बीच समझदारी से हुई थी. बैंक प्रबंधन ने बर्खास्त करने के साथ-साथ मुर्तजा को एक बड़ी रकम भी भेंट की थी. कुछ दिन मामला ठंडा हो जाने के बाद बॉम्बे मर्केंटाइल प्रबंधन ने बड़े ही गुपचुप तरीके से निहाल मुर्तजा को बैंक की भोपाल शाखा में ज्वाइन करा लिया. मुर्तजा अभी भोपाल में बैंक में काम कर रहा है. बैंक के एक अधिकारी ने बताया कि लखनऊ में बैंक के खिलाफ हुए जालसाजी के कई मामलों में बैंक प्रबंधन को यह डर था मुर्तजा खिलाफ में गवाही दे सकता है तो उसे नौकरी में बहाल कर भोपाल में तैनात कर दिया गया.

बैंक में जमा तीन करोड़ मांगा तो सरकार ने निगम को ही बंद करने की ठान ली
उत्तर प्रदेश अल्पसंख्यक वित्तीय एवं विकास निगम ने बॉम्बे मर्केंटाइल बैंक के एफडी खाते में जमा अपना पैसा क्या मांग लिया, सरकार ने निगम को ही बंद करने की ठान ली. बैंक में निगम के करीब तीन करोड़ रुपए जमा हैं. खस्ता आर्थिक हालत से गुजर रहा निगम बॉम्बे मर्केंटाइल बैंक से लगातार अपना पैसा मांग रहा है, लेकिन बैंक इसे टालने के लिए किस्म-किस्म के फरेब कर रहा है. बैंक को सरकार का इस कदर संरक्षण मिला हुआ है कि तीन करोड़ रुपए हड़पने का बैंक को मौका देने के लिए निगम को ही बंद करने की तैयारी की जा रही है. अल्पसंख्यकों के कल्याण के लिए 80 के दशक में यूपी में स्थापित हुए निगम को बंद कराने का ‘नेक’ कृत्य उस मंत्री के दबाव में हो रहा है जिसे अल्पसंख्यकों का कल्याण करने के लिए ही केंद्र सरकार में बैठाया गया है.
अल्पसंख्यक वित्तीय एवं विकास निगम को बंद करने के लिए उत्तर प्रदेश सरकार जिस दस्तावेज को आधार बना रही है, वह अपने आप में भौंडे चुटकुलों का पुलिंदा है. शासन के इशारे पर अल्पसंख्यक कल्याण एवं वक्फ अनुभाग-4 ने अल्पसंख्यक वित्तीय एवं विकास निगम को पुनर्जीवित करने के लिए उच्चस्तरीय बैठक बुलाई. बैठक में शामिल अधिकारियों ने निगम को पुनर्जीवित करने और दुरुस्त करने का उपाय ढूंढ़ने के बजाय उसे बंद करने के सारे उपाय निकाल डाले. चर्चा में निगम की खस्ता आर्थिक हालत तो शामिल थी, लेकिन निगम की आर्थिक हालत किन वजहों से खस्ता हुई इस पर कोई चर्चा नहीं हुई. निगम को इस हाल में पहुंचाने के लिए कौन नेता और कौन नौकरशाह जिम्मेदार है, इस पर शातिराना चुप्पी सधी रही. यहां तक कि इस बात पर भी चर्चा नहीं हुई कि बॉम्बे मर्केंटाइल बैंक में ‘फंसा’ निगम का तीन करोड़ रुपया कैसे निकले, ताकि निगम का थोड़ा रक्तसंचार बढ़े. बैठक के बाद जो दस्तावेज तैयार कर शासन को भेजा गया, उसमें अल्पसंख्यक वित्तीय एवं विकास निगम की जर्जर आर्थिक हालत पर नुक्ताचीनी तो खूब है, लेकिन हैरत है कि बॉम्बे मर्केंटाइल बैंक में जमा निगम के तीन करोड़ रुपए का उसमें कोई जिक्र ही नहीं है. कौन ‘डरावने’ लोग हैं अफसरों की इस दहशतजदा चुप्पी के पीछे? इस सवाल का जवाब पूरा सत्ता गलियारा जानता है, लेकिन कोई कुछ नहीं बोलता.
बहरहाल, निगम का पुनरुद्धार करने के मसले पर बुलाई गई बैठक में शामिल अधिकारियों ने निगम का शटर गिरा देने पर अपना विचार केंद्रित किया और उसे बंद करने की तमाम प्रक्रियाएं सुझाते हुए बैठक समाप्त कर दी. बैठक के बाद तैयार की गई रिपोर्ट देखें तो आप यह समझ जाएंगे कि मामला पहले से तय था, बैठक केवल प्रहसन था. बैठक की सूत्रधारी कहीं और से हो रही थी, लेकिन जो पात्र बैठक के मंच पर विचार-विमर्श का अभिनय कर रहे थे, उनमें खुद अल्पसंख्यक वित्तीय एवं विकास निगम के प्रबंध निदेशक एसएन पांडेय, निगम के संयुक्त निदेशक आरपी सिंह, सार्वजनिक उद्यम ब्यूरो के उप निदेशक चंद्रशेखर बनौधा, वित्त विभाग के उप सचिव केशव प्रसाद, निगम के वरिष्ठ लेखाधिकारी विनय कुमार श्रीवास्तव, जिला अल्पसंख्यक कल्याण अधिकारी बालेंदु द्विवेदी और निगम के अधिष्ठान प्रभारी डीके मिश्रा शामिल थे. इन ‘पात्रों’ ने शासन को ‘पूर्व-प्रायोजित’ रिपोर्ट औपचारिक रूप से सुपुर्द कर दी है और यूपी अल्पसंख्यक वित्तीय एवं विकास निगम को पुनर्जीवित करने के बजाय उसे बंद करने की सिफारिश कर दी है... जैसा सरकार में बैठे कुछ आला नेता और आला नौकरशाह चाहते थे. 

Saturday 16 June 2018

बेईमान संयुक्त राष्ट्र और बेईमान पत्रकारिता को धिक्कार है...


प्रभात रंजन दीन
भारतीय मीडिया में राष्ट्रहित की अक्ल होती तो क्या ऐसा होता! देश और समाज के हित में क्या छापना है, क्या नहीं छापना, इसकी सूझबूझ नैतिक अनिवार्यता है, लेकिन मीडिया का नैतिक सूझबूझ से क्या लेना-देना! अब देखिए न जिस दिन कश्मीर के वरिष्ठ पत्रकार शुजात बुखारी को गोलियों से भून दिया जाता है, उसी दिन अहमक अखबार संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट छापते हैं कि कश्मीर में सेना मानवाधिकार का उल्लंघन कर रही है. विडंबना देखिए कि यूएन की रिपोर्ट प्रमुखता से छपती है और उसके बगल में पत्रकार की हत्या की खबर सिंगल कॉलम लगी होती है. जबकि वरिष्ठ पत्रकार शुजात बुखारी की आतंकवादियों द्वारा की गई नृशंस हत्या की खबर लीड बननी चाहिए थी और संयुक्त राष्ट्र की विद्वेषपूर्ण रिपोर्ट सिंगल कॉलम खबर, वह भी समीक्षात्मक टिप्पणी के साथ. शुजात बुखारी अलगाववादी या पाकिस्तानपरस्त विचार वाले नहीं थे, इसीलिए आतंकवादियों ने उन्हें रमजान के आखिरी दिन भून डाला. कश्मीर में मानवाधिकार हनन की यूएन की ‘प्लांटेड-रिपोर्ट’ छापने वाले अखबार इतना भी ध्यान नहीं रखते कि ठीक एक दिन पहले वे कश्मीर में चार जवानों की शहादत की खबर छापते हैं. उसके एक-दो दिन पहले ही मीडिया ने सत्ता-निरूपित संधि के कारण कश्मीर की गलियों और सड़कों पर फौजियों पर बर्बरतापूर्वक पत्थर बरसाए जाने, उन पर हमला किए जाने, उन्हें सरेआम पीटे जाने और मारे जाने की खबर भी छापी और दिखाई थी. इसके बावजूद अखबार वालों ने संयुक्त राष्ट्र के मानवाधिकार उच्चायुक्त (ओएनसीएचआर) की रिपोर्ट आंख मूंद कर छाप दी. रिपोर्ट पढ़ी नहीं, अगर पढ़ते तो समीक्षा करते, और तब लिखते कि ओएनसीएचआर की रिपोर्ट नितांत एकपक्षीय और पूर्वाग्रहग्रस्त है. ...और अगर रिपोर्ट पढ़ कर छापी है तो फिर समझ लें कि देश के अखबार वाले कितने देश-विरोधी और शातिरदिमाग हैं. संयुक्त राष्ट्र के मानवाधिकार उच्चायुक्त की रिपोर्ट आतंकवादी बुरहान वानी के मारे जाने को मानवाधिकार हनन साबित करने की मनोवृत्ति से लिखी गई है. फिर ऐसी रिपोर्ट की निष्पक्षता की आप कैसे उम्मीद कर सकते हैं! उस रिपोर्ट की ‘एक्जेक्यूटिव समरी’ ही आप पढ़ लें तो आपका मन गुस्से और चिढ़ से भर जाएगा. फिर रिपोर्ट की भूमिका देखें, जो बुरहान वानी से ही शुरू होती है. संयुक्त राष्ट्र की यह कैसी मानवाधिकार संस्था है जो आतंकवादी बुरहान वानी की मौत को मानवाधिकार हनन बताते हुए अपनी रिपोर्ट प्रारंभ करती है! यह कैसी संवेदनशील संस्था है जो अपनी रिपोर्ट में कश्मीर में सुरक्षा बलों पर हो रहे बर्बर हमलों और जवानों को सरेआम ‘लिंच’ किए जाने (भीड़ द्वारा दुर्गत करके मारने) की वारदातों पर चिंता नहीं जताती! यह कैसा मानवाधिकार का दृष्टिकोण है, जिसमें अलगाववादियों और आतंकवादियों द्वारा की जा रही आम कश्मीरियों की हत्या शीर्ष प्राथमिकता पर नहीं, लेकिन बुरहान वानी की मौत का प्रसंग सर्वोच्च प्राथमिकता पर रहता है! यह किस तरह के मानवाधिकार संरक्षण की संस्था है जो कश्मीरी पंडितों के सिलसिलेवार हो रहे मानवाधिकार हनन को महत्व के साथ रेखांकित करता! ...और यह कैसा मीडिया है जिसे देशहित की बातें खिझाती हैं और देश-विरोधी बातें नचाती हैं!
आप जब संयुक्त राष्ट्र के मानवाधिकार उच्चायुक्त की रिपोर्ट पर निगाह डालेंगे तब आपके मन में यह स्वाभाविक जिज्ञासा जागेगी कि आखिर ऐसी बेहूदा रिपोर्ट लिखने वाला संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार प्रकोष्ठ का उच्चायुक्त कौन शख्स है? संयुक्त राष्ट्र के मानवाधिकार उच्चायुक्त का नाम है प्रिंस जैद बिन राद अल हुसैन. ये साहब दक्षिण पश्चिम एशिया में सीरियाई मरुस्थल के दक्षिण स्थित अरब देश जॉर्डन के राजघराने से सीधा ताल्लुक रखते हैं. इस परिवार का सम्बन्ध कभी ईराक राजघराने से भी रहा है. आप जानते ही हैं कि जॉर्डन का इजराइल के साथ पुश्तैनी झगड़ा है. जॉर्डन के लोग इजराइल और उसके साथ सम्बन्ध रखने वाले किसी भी देश से घृणा करते हैं. जॉर्डन के प्रिंस साहबान ने कश्मीर की पूरी रिपोर्ट ‘जम्मू कश्मीर कोअलिशन ऑफ सिविल सोसाइटी’ और आईएसआई पोषित ‘इंटरनेशनल काउंसिल फॉर ह्यूमन राइट्स’ से मिले एकतरफा फीड-बैक पर लिखवा डाली और भारतवर्ष के विचारहीन अखबारवालों ने इसे प्रमुखता से छाप कर अपने ही देश के मुंह पर तमाचा जड़ दिया. यह वही ‘जम्मू कश्मीर कोअलिशन ऑफ सिविल सोसाइटी’ और ‘इंटरनेशनल काउंसिल फॉर ह्यूमन राइट्स’ है, जिसका एजेंट गुलाम नबी फई अमेरिका में एफबीआई के हाथों कुछ अर्सा पहले गिरफ्तार किया गया था. आईएसआई की फंडिंग पर कश्मीर-अमेरिकन काउंसिल चलाने के नाम पर वह अमेरिका में भारत के खिलाफ मुहिम चलाता था. तब एफबीआई के जरिए यह खुलासा हुआ था कि गुलाम नबी फई भारतवर्ष के कई स्वनामधन्य पत्रकारों, लेखकों और समाजसेवियों को अमेरिका बुला कर आईएसआई के पैसे पर अय्याशियां कराता था और भारत के खिलाफ लिखवाता, बोलवाता और उगलवाता था. यूएन के नाम पर देशविरोधी बेजा रिपोर्टें प्रमुखता से छापने वाले अखबार के ‘महान’ संपादक आईएसआई के पैसे पर अमेरिका और यूरोपीय देशों में अय्याशियां करने में शामिल रहे हैं... इन्हीं महान लोगों को मनमोहन सिंह सरकार ने कश्मीर समस्या का समाधान खोजने वाले ‘विचारकों’ की टीम में भी शामिल किया था.
आप संयुक्त राष्ट्र के कृत्यों का पूरा इतिहास निष्पक्ष नजरिए से पढ़ें तो स्पष्ट पाएंगे कि यह अंतरराष्ट्रीय संस्था आंग्ल-अमेरिकी पूंजी साम्राज्यवाद की दलाल है. यह संस्था ताकतवर वाम-धौंसवाद के आगे भीगी बिल्ली है. बलवान यहूदी-बल के आगे लाचार है और रीढ़हीन कमजोर देशों पर भूंकती है. इसे कश्मीर में मानवाधिकार हनन दिखता है, लेकिन ईराक में ‘विपन ऑफ मास डिस्ट्रक्शन’ का रट्टा लगाते हुए लाखों ईराकी नागरिकों की हत्या करने और ईराक को नेस्तनाबूद करने वाले अमेरिका का कुकृत्य नहीं दिखता. जापान से लेकर वियतनाम, दक्षिण अमेरिकी देशों से लेकर अफ्रीकी देशों, मध्य एशिया के देशों से लेकर दक्षिण एशियाई देशों तक किए गए भीषण जनसंहार संयुक्त राष्ट्र की निगाह में मानवाधिकार हनन नहीं हैं. कश्मीर मसले पर नेहरू ने संयुक्त राष्ट्र का दरवाजा खटखटाकर ऐतिहासिक गलती तो की, लेकिन संयुक्त राष्ट्र को देखिए कि वह कश्मीर को लेकर भारत पर हमेशा आंखें तरेरता रहता है, पर उसी कश्मीर के 42,735 वर्ग किलोमीटर हिस्से पर कब्जा जमाए बैठे चीन के खिलाफ चूं नहीं बोल पाता. चीन के नाम से ही संयुक्त राष्ट्र की दुम सटक जाती है. चीन के इउगुर प्रांत में मुस्लिम नाम तक रखने पर पाबंदी लग गई है. चीन के इस मुस्लिम बहुल इलाके में लोग मोहम्मद, जिहाद, इस्लाम समेत 29 इस्लामिक नाम नहीं रख सकते. इसके अलावा इमाम, हज, तुर्कनाज, अजहर, वहाब, सद्दाम, अराफात, मदीना जैसे शब्दों का इस्तेमाल किया तो जेल में ठूंस दिया जाता है. चीन के उइगुर, शिनजियांग, कशगर जैसे इलाकों में लोग न तो सार्वजनिक रूप से नमाज पढ़ सकते हैं और न ही धार्मिक (इस्लामिक) कपड़े पहन सकते हैं. यहां तक कि बच्चों का मस्जिदों में जाना बैन कर दिया गया है. मस्जिद में प्रवेश के लिए कम से कम 18 साल की उम्र तय कर दी गई है. इस्लामिक नाम रखना या इस्लामिक शब्द का इस्तेमाल करना ही जहां आतंकवादी घोषित कर दिए जाने के लिए काफी हो, वहां संयुक्त राष्ट्र के मानवाधिकार उच्चायुक्त को मानवाधिकार हनन नहीं दिखता. आप यह जानते ही हैं कि भारत समेत तमाम अर्ध विकसित और विकासशील देशों में जनसंख्या नियंत्रण के नाम पर बिल एंड मिलिंडा गेट्स फाउंडेशन संयुक्त राष्ट्र की संस्था विश्व स्वास्थ्य संगठन के साथ मिल कर कितना उत्पात मचाए है. गर्भधारण रोकने के लिए मांओं को वह दवा इंजेक्ट की जा रही है, जो विश्व के कई देशों में खूंखार बलात्कारियों की यौन क्षमता नष्ट करने के लिए सजा के बतौर ठूंसी जाती है. गेट्स फाउंडेशन के पैसे से भारत में वह खतरनाक दवा ‘डिम्पा’ के नाम से इंजेक्ट की जा रही है. खतरनाक दवाओं का प्रयोग करने के लिए विकासशील देशों के लोगों को ‘गिनि पिग’ बनाने के मानवाधिकार हनन की जघन्य करतूत खुद संयुक्त राष्ट्र की संस्था कर रही है और उसी संयुक्त राष्ट्र की मानवाधिकार संस्था कश्मीर का राग आलाप रही है, क्योंकि इन सबके पीछे निहित कुत्सित उद्देश्य है. ...और क्या-क्या कहें! संयुक्त राष्ट्र की दलाली, मक्कारी, पक्षपात, घात, भितरघात और प्रतिघात के ऐतिहासिक तथ्यों का अंबार है. ऐसा ही कचरा मीडिया के कुकृत्यों का भी है. संयुक्त राष्ट्र जैसी बेईमान संस्था और देश की बेईमान पत्रकारिता को धिक्कार है...

Monday 11 June 2018

क्रांतिकारिणी दुर्गा भाभी के स्कूल पर कब्जा कर रहे माफिया, नेता अफसर दे रहे साथ

प्रभात रंजन दीन
मशहूर क्रांतिकारिणी दुर्गा भाभी के ऐतिहासिक लखनऊ मॉन्टेसरी स्कूल को हथियाने का भूमाफिया कुचक्र कर रहे हैं. इसमें भाजपा का एक छुटभैया नेता भी शामिल है. ऐतिहासिक धरोहर जैसे इस स्कूल पर कब्जा करने की कोशिशों के खिलाफ पूरा समाज सड़क पर है. लेकिन ‘राष्ट्रवादी’ भाजपा सरकार चुप्पी साधे है. उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भूमाफियाओं के खात्मे के निश्चय का प्रचार तो करते हैं, लेकिन उन्हें अपनी राजधानी में ही भूमाफियाओं के उत्पात नहीं दिखते. पूरा समाज जानता है कि दुर्गा भाभी कौन थीं, उन्होंने आजादी के आंदोलन में किस तरह साहसी और त्यागमयी क्रांतिकारिणी की भूमिका अदा की और किस जद्दोजहद से उन्होंने लखनऊ में एक ऐसा विद्यालय खड़ा किया जहां आने वाली पीढ़ियों को अपने क्रांतिकारियों पर गौरवान्वित होने की शिक्षा और संस्कार मिल सके. लेकिन राष्ट्रवाद की सियासी दुकान चलाने वाली भाजपा को दुर्गा भाभी के ऐतिहासिक योगदानों को संरक्षित रखने और उनके स्कूल को धरोहर के रूप में संजोने की कोई चिंता नहीं. उनकी अथक मेहनत और संलग्नता के कारण ही स्कूल विकसित हुआ और इंटर कॉलेज के रूप में परिणत हुआ. लेकिन घनघोर घृणित तथ्य यह है कि स्कूल पर कब्जा करने में सक्रिय भूमाफियाओं के साथ सत्ताधारी पार्टी के नेता, सरकार के अधिकारी, सोसाइटी पंजीयन महकमे के अधिकारी, शिक्षा विभाग के अधिकारी और संस्कार सिखाने वाले इसी विद्यालय के कुछ कुसंस्कारी शिक्षक शामिल हैं. स्कूल पर कब्जा करने की कोशिशों के खिलाफ प्रदेश के बुद्धिजीवी, पत्रकार, नागरिक, शिक्षक और छात्र सब आंदोलन चला रहे हैं. महात्मा गांधी, बाबा साहब अम्बेडकर और सरदार पटेल की प्रतिमाओं के समक्ष धरना-प्रदर्शन कर रहे हैं, लेकिन नौकरशाहों द्वारा पोषित भूमाफियाओं की स्कूल विरोधी गतिविधियां जारी हैं और शीर्ष सत्ता का आपराधिक मौन भी यथावत जारी है. जानकार बताते हैं कि ठीक इसी तरीके से बनारस के राजघाट में लोकनायक जयप्रकाश नारायण द्वारा स्थापित गांधी विद्या संस्थान हड़पने की साजिश रची गई थी.
दुर्गा भाभी का लखनऊ मॉन्टेसरी इंटर कॉलेज जिस जगह पर स्थापित है, वह आज राजधानी लखनऊ की बेशकीमती जमीनों में शुमार है. यह विद्यालय विधानसभा से महज एक किलोमीटर दूर है और जिस सचिवालय में शीर्ष सत्ता बैठती है उस बुर्ज से दुर्गा भाभी का स्कूल दिखता है. फिर भी सत्ता धृतराष्ट्र बनी बैठी है, लेकिन उसी सत्ता के नौकरशाह स्कूल की चार एकड़ की बेशकीमती जमीन देख-देख कर लार टपकाते रहते हैं. विद्यालय की स्थापना की दुर्गा भाभी की पीड़ा के बारे में आप जैसे-जैसे परिचित होते जाएंगे, आपको पूरी सत्ता-व्यवस्था से नफरत होने लगेगी. दुर्गा भाभी सरदार भगत सिंह का संबोधन था, जो सभी क्रांतिकारियों का संबोधन बना. दुर्गावती देवी क्रांतिकारी भगवती चरण वोहरा की पत्नी थीं. इतिहास गवाह है कि लाला लाजपत राय की मौत के जिम्मेदार अंग्रेज पुलिस अधिकारी सैंडर्स की 17 दिसम्बर 1928 को हत्या करने के बाद भगत सिंह, सुखदेव और उनके अन्य साथियों को दुर्गा भाभी ने किस तरह लाहौर से बचा कर ट्रेन से कलकत्ता पहुंचाया था. चप्पे-चप्पे पर छाए अंग्रेज सैनिकों से भगत सिंह को बचाने के लिए उन्होंने भगत सिंह की पत्नी का रूप धरा, अपने दो साल के बच्चे तक को जोखिम में डाला और उन्हें सुरक्षित कलकत्ता पहुंचा दिया. भगत सिंह की हैट पहने जो सुंदर सी तस्वीर आप देखते हैं, वह उसी समय की है, जब उन्होंने और दुर्गा भाभी ने एंग्लो इंडियन दम्पति का रूप धरा था. बाद में भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु के गिरफ्तार होने पर भगवती चरण वोहरा अंग्रेजों पर हमला करके अपने क्रांतिकारी साथियों को जेल से छुड़ाने की तैयारी कर रहे थे. भगवती बम बनाने में एक्सपर्ट थे. लेकिन लाहौर में रावी नदी के किनारे परीक्षण करते समय बम फट जाने से 28 मई साल 1930 को भगवती चरण वोहरा शहीद हो गए. इस घोर आफत के बावजूद दुर्गा भाभी ने हार नहीं मानी, वे क्रांतिकारियों के ‘हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन’ की अभिभावक और देशभर के क्रांतिकारियों की सूत्रधार बनी रहीं. अंग्रेज जिस वीरांगना का कुछ नहीं बिगाड़ पाए, उस क्रांतिकारिणी की थाती को अपने ही देश के दलाल नीलाम करने पर उतारू हैं. कुछ निर्लज्ज लोग क्रांतिकारिणी के सपनों की हत्या का षडयंत्र रच रहे हैं और सत्ता राष्ट्रवाद का किराना-स्टोर चला रही है.
चंद्रशेखर आजाद के पास अंतिम समय में जो पिस्तौल थी वो भी दुर्गा भाभी ने ही उन्हें दी थी. आजाद के शहीद होने और तमाम क्रांतिकारी साथियों को काला पानी की सजा हो जाने के बाद दुर्गा भाभी गाजियाबाद आ गईं और एक स्कूल में टीचर की नौकरी कर ली. दो साल के बाद नौकरी छोड़ कर वे मद्रास चली गईं और वहां मॉन्टेसरी स्कूल पद्धति की ट्रेनिंग ली. इसके बाद दुर्गा भाभी ने लखनऊ आकर मॉन्टेसरी सिस्टम का स्कूल खोला. दुर्गा भाभी को मॉन्टेसरी सिस्टम के स्कूलों की शुरुआत करने वाली कुछ खास हस्तियों में गिना जाता है. 15 अक्टूबर 1999 में अपने जीवन के आखिरी पल तक दुर्गा भाभी अपने इसी स्कूल के लिए लहू और पसीना एक करती रहीं. आचार्य नरेन्द्र देव, यशपाल, प्रकाशवती पाल, शिव वर्मा जैसे तमाम विद्वान और आजादी के आंदोलन के सिपाही क्रांतिकारी विद्यालय की प्रबंध समिति से जुड़े रहे थे. पूर्व महाधिवक्ता उमेशचन्द्र  भी स्कूल की प्रबंध समिति के अध्यक्ष थे.

‘गिद्धों’ को मिल गया मौका, बना दी समानान्तर प्रबंध समिति
प्रमुख स्वतंत्रता संग्राम सेनानी और गरीबों की डॉक्टर के रूप में मशहूर डॉ. पुष्पावती तिवारी स्कूल प्रबंध समिति की मंत्री और प्रबंधक रहीं. स्कूल की बेशकीमती जमीन पर आंख गड़ाए भूमाफियाओं और उनकी मदद कर रहे अंदरूनी जयचंदों को डॉ. पुष्पावती तिवारी के एक दुर्घटना में जख्मी होने के बाद मौका मिल गया. डॉ. पुष्पावती अपनी बिटिया के पास कानपुर जाकर रहने लगीं और उनका कार्यभार स्कूल के सहायक मैनेजर संभालने लगे. उसी बीच स्कूल प्रबंध समिति के अध्यक्ष उमेशचन्द्र का असामयिक निधन हो गया और सहायक मैनेजर ने भी काम छोड़ दिया. उमेशचंद्र के निधन के बाद शिक्षाविद् प्रो. रमेश तिवारी अध्यक्ष हुए और जयप्रकाश प्रबंध समिति के मंत्री और प्रबंधक हुए. प्रबंध समिति का कार्यकाल जून 2018 तक के लिए था और नियमानुसार प्रबंध समिति का चुनाव जुलाई 2018 में होना चाहिए था. लेकिन, षडयंत्र में शामिल जिला विद्यालय निरीक्षक डॉ. मुकेश सिंह ने सालभर पहले ही चुनाव कराने की भूमिका रच दी और कहा कि चुनाव के बाद ही प्रबंधन के अधिकारियों के हस्ताक्षर प्रमाणित किए जाएंगे. पांच नवम्बर 2017 को चुनाव की औपचारिकता पूरी की गई. जयप्रकाश प्रबंध समिति के मंत्री सह मैनेजर बने रहे और नवीन तिवारी प्रबंध समिति के अध्यक्ष बने. लेकिन स्कूल पर कब्जा जमाने की पूरी बिसात बाहर-बाहर से बिछा दी गई थी. तरह-तरह के बहाने लगा कर प्रबंध समिति के पदाधिकारियों के हस्ताक्षर को मान्यता नहीं दी गई. फिर ब्रजेश कुमार श्रीवास्तव नामक एक शख्स परिदृश्य में अचानक प्रकट हुए, जिन्होंने यह दावा किया कि उमेशचन्द्र के निधन के बाद डॉ. पुष्पावती तिवारी ने उन्हें रफी अहमद किदवई मॉन्टेसरी मेमोरियल ट्रस्ट का कार्यवाहक अध्यक्ष मनोनीत किया था. जबकि नियम यह है कि ट्रस्ट के सात सदस्यों में से किसी के निधन या इस्तीफे से खाली हुए पद पर कोई सदस्य किसी व्यक्ति को मनोनीत करने के लिए अधिकृत नहीं है. श्रीवास्तव ने 2015 की लिस्ट पेश की, जिसमें अध्यक्ष उमेशचंद्र का नाम काट कर ब्रजेश कुमार श्रीवास्तव का नाम लिखा था. जबकि उमेशचंद्र प्रबंध समिति के अध्यक्ष थे. उमेशचंद्र का निधन 29 अगस्त 2016 को हुआ. इस गिरोह ने रजिस्ट्रार  फर्म्स एवं सोसाइटी का पंजीकरण भी पेश कर दिया और 193 आम सदस्यों की एक लिस्ट भी प्रस्तुत कर दी. जिसमें सौ से अधिक सदस्य फर्जी पाए गए. ब्रजेश श्रीवास्तव ने दावा किया कि कई सदस्यों ने वर्ष 2016 में शुल्क देकर सदस्यता ली थी. इसे साबित करने के लिए जिन रसीदों की कॉपियां दी गईं, वह नई छपी हुई रसीद बुक है. इसे देखते ही पता चल जाता है कि रसीदें फर्जी हैं. दस्तावेजों पर डॉ. पुष्पावती तिवारी के जो हस्ताक्षर दिखाए गए हैं, वे भी जांच में फर्जी पाए गए. यह उजागर हो गया कि फर्जी समिति रच कर भूमाफियाओं ने स्कूल की बेशकीमती जमीन पर कब्जा करने की साजिश की, जिसे शिक्षा विभाग के अधिकारी और स्वनामधन्य पूंजीपति बिल्डर भाजपा नेता सुधीर हलवासिया खुलेआम संरक्षण दे रहे हैं.

विद्यालय को डंस रहा है आस्तीन का सांप
एक कहावत है कि सत्य की अनदेखी वही करता है जिसे असत्य से लाभ हो. इसी असत्य को पोषित कर रहा है महान क्रांतिकारिणी दुर्गा देवी वोहरा द्वारा स्थापित लखनऊ मॉन्टेसरी इंटर कालेज की आस्तीन में छिपा एक सांप. वह कहने को तो शिक्षक है लेकिन असलियत में वह जमीनों का सौदागर और तिकड़म का सरगना है. वह निजी स्वार्थ के लिए न केवल अध्ययनरत विद्यार्थियों का भविष्य चौपट करने पर आमादा है बल्कि विद्यालय की महान विरासत को ध्वस्त कर लूट की काली योजना में शामिल गिरोह का साझीदार और फाइनैंसर भी है. सच कहें तो खलनायकी चरित्र वाला यह शिक्षक ही विद्यालय में व्याप्त अराजकता और विवादों का सूत्रधार है. उसने किसी भी तिकड़म से स्कूल का प्रधानाचार्य बनने की महत्वाकांक्षा पाल रखी है और इसके लिए वह कुछ भी करने के लिए आमादा है. इस तिकड़मी शिक्षक को मृतक आश्रित के तहत सहायक शिक्षक की नौकरी मिली हुई है. इसीलिए उसे न तो शिक्षक की गरिमा का ख्याल है और न ही संस्था के प्रति उसके मन में कोई समर्पण का भाव है. अति महत्वाकांक्षा के शिकार इस तिकड़मी शिक्षक को क्रांतिकारिणी दुर्गा भाभी के ऐतिहासिक विद्यालय की जमीन का महत्व नहीं समझ में आता, उसे वह जमीन का टुकड़ा समझता है और उसे बेच कर चाटना चाहता है. ऐसे व्यक्ति को शिक्षक कहलाने का हक नहीं जो विद्यार्थियों को ज्ञान देने के बजाए अपनी करतूतों से भूमाफियाई के धंधे सिखा रहा है. इस तिकड़मी शिक्षक ने पैसे के दम पर पूर्व जिला विद्यालय निरीक्षक (जो कई घपले-घोटाले में लिप्त रहे हैं) और माध्यमिक शिक्षा विभाग के तत्कालीन संयुक्त निदेशक (जेडी) से घनिष्ठता साधकर सीधी भर्ती के पद पर अपना (प्रवक्ता के पद पर) प्रमोशन करा लिया. जब यह मामला प्रबंधतंत्र के सामने आया तो खुलासा हुआ कि प्रबंधतंत्र ने इस तिकड़मी शिक्षक के प्रमोशन के लिए न तो सिफारिश की थी और न ही कोई मीटिंग बुलाई थी. विद्यालय की एक अन्य शिक्षिका, जो वास्तव में प्रमोशन की हकदार थी, ने जब न्यायालय का दरवाजा खटखटाया तब यह खुलासा हुआ कि तिकड़मी शिक्षक ने प्रबंधतंत्र की फर्जी सिफारिश और मीटिंग का फर्जी दस्तावेज तैयार कर फर्जी प्रमोशन हासिल कर लिया है. फर्जीवाड़ा खुलने के डर से उसने और भी बेजा हरकतें शुरू कर दीं. उसी का नतीजा है कि विद्यालय के असली प्रबंधतत्र के खिलाफ एक फर्जी प्रबंधतंत्र खड़ा हो गया. उक्त शिक्षक ने पिछले दो साल में एक दिन भी क्लास नहीं ली. लेकिन जिला विद्यालय निरीक्षक को यह देखने की फुर्सत नहीं है. विद्यालय के प्रधानाचार्य की शह पर उक्त शिक्षक उपस्थिति पंजिका पर हफ्ते में एक बार एक साथ ही हस्ताक्षर बना देता है. कुछ शिक्षकों ने साक्ष्य के तौर पर उपस्थिति पंजिका की फोटो खींच रखी है. विद्यालय के तिकड़मी शिक्षक को मौजूदा प्रधानाचार्य हरिपाल सिंह का खुला संरक्षण मिला हुआ है, इसलिए उसकी अराजक गतिविधियां खुलेआम जारी हैं. विद्यालय को तहस-नहस करने में प्रधानाचार्य का भी अहम रोल है. प्रधानाचार्य की उदासीनता के कारण स्कूल का हरा-भरा खेल का मैदान रेगिस्तान में तब्दील हो चुका है. खेल के मैदान में प्रधानाचार्य के एक अतिप्रिय चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी के पालतू पशु टहलते रहते हैं. खेल शिक्षकों और सांस्कृतिक कार्यक्रमों से जुड़े शिक्षकों का कहना है कि प्रधानाचार्य के सहयोग के अभाव में विद्यालय में खेलकूद और सांस्कृतिक गतिविधियां ठप्प हो चुकी हैं. त्रासदी यह भी है कि प्रधानाचार्य ने अपने कार्यालय में विद्यालय के ही एक रिटायर्ड बाबू को नियुक्त कर रखा है, जिसके जरिए दस्तावेजों से छेड़छाड़ का खेल होता रहता है. अगर विद्यालय की ऑडिट हो तो कई चौंकाने वाले तथ्य उजागर होंगे. विद्यालय के शिक्षकों का कहना है कि रिटायर्ड बाबू की तानाशाही के कारण शिक्षकों एवं कर्मचारियों को न तो समय से वेतन मिलता है और न ही जीपीएफ से ऋण मिलता है. कुछ शिक्षकों ने दबी जुबान में यह भी स्वीकारा कि रात के अंधेरे में विद्यालय में तिकड़मी शिक्षक और बिल्डरों माफियाओं की महफिलें भी सजती हैं.

भूमाफियाओं से स्कूल को बचाने के लिए पूरा समाज आगे आया
क्रांतिकारिणी दुर्गा भाभी द्वारा स्थापित लखनऊ मॉन्टेसरी स्कूल एवं इंटर कॉलेज को भूमाफियाओं से बचाने के लिए पूरा समाज आगे आ गया है. आंदोलन के लिए सड़क पर उतरे नागरिकों में शिक्षाविद्, पत्रकार, वकील, छात्र और सामाजिक कार्यकर्ता शामिल हैं. विद्यालय के ट्रस्टी प्रोफेसर प्रमोद कुमार श्रीवास्तव ने कहा कि फर्जी दस्तावेजों के बूते विद्यालय पर कब्जा करने का जो षडयंत्र रचा गया, उसे समाज के लोग कामयाब नहीं होने देंगे. वरिष्ठ पत्रकार रामदत्त त्रिपाठी ने कहा कि स्कूल पर कब्जा करने की कोशिश एक गंभीर मामला है जिसमें सरकारी अधिकारी भी भूमाफियाओं की मदद कर रहे हैं. रामदत्त ने यह भी कहा कि राजधानी के प्रबुद्ध नागरिकों ने क्रांतिकारिणी दुर्गा भाभी के लखनऊ मॉन्टेसरी स्कूल को फर्जी तत्वों और माफिया से बचाने के लिए ‘दुर्गा भाभी विद्यालय बचाओ संघर्ष समिति’ का गठन किया है, जो इस आंदोलन को व्यापक और निर्णायक बनाएगी. वरिष्ठ किसान नेता शिवाजी राय कहते हैं कि षडयंत्रकारियों में भाजपाई भी शामिल हैं, जिनके दबाव में पुलिस स्कूल के साथ धोखाधड़ी करने वाले लोगों के खिलाफ एफआईआर दर्ज कर कोई सख्त कानूनी कार्रवाई नहीं कर पा रही. विद्यालय प्रबंध समिति के अध्यक्ष नवीन चंद्र तिवारी ने कहा कि स्कूल पर कब्जा करने के षडयंत्र में सत्ताधारी दल से जुड़े बिल्डर शामिल हैं. इस वजह से विद्यालय के अस्तित्व पर खतरा आ गया है. पिछले दिनों गांधी प्रतिमा के समक्ष हुए धरना कार्यक्रम में शामिल नागरिकों ने विद्यालय को भूमाफियाओं से बचाने के लिए हर स्तर पर संघर्ष करने का संकल्प लिया और शपथ ली कि आवश्यकता पड़ने पर वे सत्याग्रह करके गिरफ्तारियां देंगे. धरना में पूर्व विधायक रामलाल अकेला, बाराबंकी के वयोवृद्ध सामाजिक कार्यकर्ता राजनाथ शर्मा, मजदूर नेता गिरीश कुमार पांडेय, प्रोफेसर रमेश दीक्षित, वरिष्ठ पत्रकार रामदत्त त्रिपाठी, सामाजिक कार्यकर्ता संदीप पांडेय, किसान नेता शिवाजी राय, शैलेश अस्थाना, रामकिशोर, भारतीय कृषक दल के अध्यक्ष सरोज दीक्षित, युवा नेता ज्योति राय, पूजा शुक्ला, दीपक मिश्र समेत कई नागरिक शामिल थे.

देश पर ऋण की तरह हैं दुर्गा भाभी के योगदान
दुर्गावती देवी वोहरा उर्फ दुर्गा भाभी का त्याग और योगदान देश के ऊपर ऐसा ऋण है जिसे कभी चुकाया नहीं जा सकता. लेकिन इसी देश के और हमारे समाज के ही कुछ लोग घृणित किस्म के जीव हैं, जिन्हें अपने पुरखों के त्याग और तपस्या से कोई लेनादेना नहीं, उन्हें बस सिक्के पसंद हैं. नई पीढ़ी को अपने क्रांतिकारियों के बारे में अवगत कराना समाज की नैतिक जिम्मेदारी है. जैसा ऊपर बताया कि दुर्गा भाभी का असली नाम दुर्गावती देवी था. उनका जन्म 07 अक्टूबर 1907 को उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद के पास कौशांबी के शहजादपुर गांव में हुआ था. उनके पिता का नाम पंडित बांके बिहारी था, जो इलाहाबाद कलक्ट्रेट में नाजिर थे. दुर्गावती देवी का विवाह बहुत कम उम्र में ही लाहौर के भगवती चरण वोहरा से हो गया था. भगवती चरण भारत की आजादी के लिए क्रांति के रास्ते पर चल रहे थे. दुर्गावती भी उनके साथ शामिल हो गईं. उनका घर क्रांतिकारियों का भूमिगत केंद्र बन गया था. लाला लाजपत राय की हत्या का बदला लेने के बाद भगत सिंह और उनके साथियों को सुरक्षित कलकत्ता पहुंचाने की जिम्मेदारी दुर्गा भाभी ने ही उठाई थी. जनरल डायर्स की हत्या में प्रयोग हुए हथियारों का प्रबंध भी दुर्गा भाभी ने ही किया था. क्रांतिकारी भगत सिंह दुर्गावती देवी को दुर्गा भाभी के साथ-साथ चंडी मां भी कहते थे. क्रांतिकारियों के संगठन ‘हिंदुस्तान रिपब्लिकन सोशलिस्ट एसोसिएशन’ (एचआरएसए) के प्रणेता भगवती चरण वोहरा ही थे. भगत सिंह के संगठन ‘नौजवान भारत सभा’ का घोषणा-पत्र भी भगवती ने ही तैयार किया था. चंद्रशेखर आजाद ने ‘हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन’ के प्रचार की जिम्मेदारी भगवती चरण को ही दी थी. लॉर्ड इरविन की स्पेशल ट्रेन पर बम फेंके जाने की पूरी योजना भगवती चरण ने बनाई थी. महात्मा गांधी ने ‘यंग इंडिया’ अखबार में इसकी निंदा करते हुए इसे ‘कल्ट ऑफ बम’ कह कर कटाक्ष किया था.  गांधी की निंदा के जवाब में आजाद और भगवती ने लिखा, ‘फिलॉसफी ऑफ बम’.  इस लेख में कहा गया, ‘ब्रिटेन ने भारत के खिलाफ सारे अपराध किए, भारत को लूटा, भारतीयों को जर्जर बनाया, अपमानित किया और हमारे आत्मसम्मान को रौंदा. क्या हमें अंग्रेजों के आपराधिक कृत्यों को भूल जाना चाहिए? क्या उन्हें माफ कर देना चाहिए? समझौता और अहिंसा कायरों की बहानेबाजियां हैं. हम कायर नहीं हैं. हम अपने अपमान का बदला लेंगे. यह युद्ध है जिसका चरम या तो विजय है या मृत्यु’. ऐसे महान लोग हुए हैं देश में, जिन्हें यह कभी एहसास भी नहीं हुआ होगा भविष्य में ऐसे नीच लोग भी पैदा होंगे जिनका नीचता के आगे अंग्रेजों के घिनौने कृत्य भी छोटे पड़ जाएंगे.
इस देश ने दुर्गा भाभी जैसी क्रांतिकारिणी के अभूतपूर्व योगदानों का कभी औपचारिक श्रेय नहीं दिया. हालांकि जब उन्होंने लखनऊ में मॉन्टेसरी स्कूल की स्थापना की, तब उसका शिलान्यास करने जवाहर लाल नेहरू लखनऊ आए थे. पंडित नेहरू ने दुर्गा भाभी को सरकार की तरफ से मदद की पेशकश भी की थी, लेकिन दुर्गा भाभी ने सरकारी मदद लेने से इन्कार कर दिया था. असेम्बली बम कांड के बाद जब भगत सिंह और उनके साथी क्रांतिकारी गिरफ्तार हो गए तब उन्हें छुड़ाने के लिए वकीलों को पैसे देने के लिए दुर्गा भाभी ने अपने सारे गहने बेच दिए थे. तब तीन हजार रुपए वकील को दिए गए थे. दुर्गा भाभी ने भगत सिंह और साथियों को छुड़ाने के लिए अंग्रेजों से बात करने के लिए गांधी से नाकाम अपील भी की थी. दुर्गा भाभी की ननद सुशीला देवी ने भी अपनी शादी के लिए रखा 10 तोला सोना क्रांतिकारियों का केस लड़ने के लिए बेच दिया था. दुर्गा भाभी और उनकी ननद ने ही असेम्बली में बम फेंकने के लिए जाते समय भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त के माथे पर तिलक लगाकर विदा किया था. 63 दिन की ऐतिहासिक भूख हड़ताल के बाद लाहौर जेल में शहीद होने वाले जतींद्र नाथ दास उर्फ जतिन दा का शव दुर्गा भाभी ही लाहौर से लेकर कलकत्ता गई थीं.
पंजाब प्रांत के पूर्व गवर्नर लॉर्ड हेली पर हमला करने की योजना दुर्गा भाभी ने ही बनाई थी. नौ अक्टूबर 1930 को उन्होंने हेली पर बम फेंका, जिसमें हेली और उसके कई सहयोगी घायल हो गए. बुरी तरह जख्मी होकर भी हेली बच गया. बाद में दुर्गा भाभी पकड़ी गईं और उन्हें तीन साल जेल की सजा काटनी पड़ी थी. एक-एक करके जब सारे क्रांतिकारी शहीद हो गए और दुर्गा भाभी को लाहौर से जिला बदर कर दिया गया तब वे गाजियाबाद चली आईं. दो साल स्कूल में नौकरी करने के बाद वे मद्रास चली गईं और वहां मॉन्टेसरी सिस्टम के स्कूल की ट्रेनिंग ली. उसके बाद उन्होंने लखनऊ आकर छावनी इलाके में मॉन्टेसरी स्कूल खोला. शुरुआत में स्कूल में पांच बच्चे ही थे. वही स्कूल आज लहलहा रहा है, लेकिन लुच्चे-लफंगे उसी ऐतिहासिक थाती को लहूलुहान करने पर तुले हैं. दुर्गा भाभी 15 अक्टूबर 1999 को दिवंगत हो गईं, लेकिन राष्ट्र ने उन्हें राष्ट्रीय सम्मान नहीं दिया. देश की आजादी की लड़ाई में इतना बड़ा योगदान देने वाली क्रांतिकारिणी की ऐसी उपेक्षा भारत में ही हो सकती है, किसी अन्य देश में नहीं.

शहीद राजेंद्र नाथ लाहिड़ी विद्यालय भी है माफियाओं के कब्जे में
भूमाफियाओं ने गोंडा के शहीद राजेंद्र नाथ लाहिड़ी विद्यालय पर भी कब्जा कर रखा है. काकोरी कांड के हीरो राजेंद्र लाहिड़ी के नाम पर गोंडा के पंतनगर पथवलिया में 48 साल पहले 1970 में ही एक स्कूल की स्थापना की गई थी. गोंडा जिला जेल में ही अग्रेजों ने क्रांतिकारी राजेंद्र नाथ लाहिड़ी को फांसी दी थी. ऐसे ऐतिहासिक स्कूल की महंगी जमीन पर भूमाफियाओं की नजर पड़ी और स्कूल पर कब्जा हो गया. स्कूल से कब्जा हटाने में पूरा प्रशासन फेल हो गया, क्योंकि प्रशासनिक अधिकारियों की भी भूमाफियाओं के साथ मिलीभगत थी. माफिया के गुर्गों ने बेधड़क स्कूल पर ताला जड़ दिया और सारे क्लास रूम बंद कर दिए. गुंडों ने स्कूल के शिक्षकों के साथ-साथ छात्रों को भी धमकाया और स्कूल आने से रोक दिया. जब गांव के प्रधान ने इसका विरोध किया तो प्रधान को भी धमकियां दी गईं और माफिया का साथ दे रहे अधिकारियों ने प्रधान को कई फर्जी शिकायतों में फंसा दिया. जिलाधिकारी ने स्कूल पर लगे ताले खोलने का आदेश दिया तो उनका आदेश भी नहीं चला.

भूमाफिया खुलेआम लूट रहे हैं यूपी के स्कूलों की जमीन
यूपी के स्कूल भूमाफियाओं के लिए सबसे आसान शिकार हैं. पूरे उत्तर प्रदेश में स्कूलों की जमीनें लूटी जा रही हैं और स्कूलों पर भूमाफियाओं का कब्जा होता जा रहा है. पिछले ही महीने बहराइच के एक स्कूल पर माफियाओं के कब्जे के खिलाफ छात्राओं ने अपने अभिभावकों के साथ धरना दिया. बहराइच के मिहिपुरवा तहसील के मटेही कला गांव में लड़कियों के प्राथमिक स्कूल पर कब्जा कर लिया गया, जबकि वह गांव भाजपा सांसद सावित्री बाई फुले का गोद लिया हुआ गांव है. भूमाफिया ने स्कूल की जमीन कब्जे में लेकर वहां अवैध निर्माण कार्य भी शुरू करा दिया. दबंगों के डर से बच्चियों ने स्कूल जाना छोड़ दिया. विडंबना यह है कि प्रदेश की बेसिक शिक्षा मंत्री अनुपमा जायसवाल भी बहराइच जिले की हैं, लेकिन उनकी सरकार माफियाओं के खिलाफ कुछ नहीं कर पा रही है.
ऐसा ही हाल गौतम बुद्ध नगर के दादरी स्थित फूलपुर गांव में हुआ जब भूमाफियाओं ने बाकायदा जेसीबी लगा कर प्राइमरी स्कूल की बिल्डिंग गिरा दी और स्कूल की जमीन पर कब्जा कर लिया. अब उस जमीन पर मार्केट बनाने की तैयारी चल रही है. ‘चौथी दुनिया’ ने अभी हाल ही दादरी में भूमाफियाओं के तांडव पर विस्तृत खबर प्रकाशित की थी. लेकिन खबर छपने के बाद भी सरकार ने कोई सुध नहीं ली. बदायूं जिले के म्याऊ ग्राम पंचायत क्षेत्र में भी स्कूल के लिए आवंटित एक एकड़ बेशकीमती जमीन पर भूमाफियाओं ने कब्जा कर लिया और निर्माण शुरू कर दिया. अलीगढ़ जिले में तो करीब तीन दर्जन स्कूलों पर भूमाफियाओं के कब्जे की सूचना सरकार को है. लेकिन इस सूचना पर कोई सरकारी हरकत नहीं है. अलीगढ़ जिले में 1519 प्राथमिक और उच्च प्राथमिक विद्यालय हैं. इनमें सैनपुर, गोजिया, खुदीपुरी, मुगरिया, कोटा, बेरीसला, ताजपुर, एवरनपुर, नगला हीरा सिंह, डंडेसरी, चिरायल, साहसतपुर, नगला ढक, शेखू अजीतपुर, औंदुआ, ममौता कला, इसौदा, थरौरा, नगला तारासिंह, नगला गोविन्द, मेदामई, बाहनपुर, जाफराबाद, मीरपुर और बहादुरपुर भूप गांव समेत कई अन्य परिषदीय स्कूलों की जमीनों पर भी दबंगों ने कब्जा कर रखा है. जिला प्रशासन ने खुद यह कबूल किया है कि 30 विद्यालयों की जमीनों पर दबंगों का कब्जा है.
भूमाफियाओं के आतंक से उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ भी आक्रांत है. लखनऊ के कई स्कूलों की जमीनों पर माफियाओं का कब्जा हो चुका है. दूसरे कई विद्यालयों की करोड़ों की जमीन भूमाफियाओं के निशाने पर हैं. लखनऊ जिला प्रशासन की आधिकारिक रिपोर्ट है कि जिले के 67 प्राथमिक और पूर्व माध्यामिक विद्यालयों की जमीनों पर अवैध कब्जा है. यहां तक कि सम्बन्धित फाइलें भी जिला प्रशासन और बीएसए के दफ्तर से गायब कराई जा चुकी हैं. लखनऊ के जोन-एक के प्राथमिक विद्यालय गौरी, अमौसी, भदरुख, हैवतमऊ, आजाद नगर, पूर्व माध्यमिक विद्यालय उतरेठिया, गुडौरा, पानी गांव, अमराई गांव, अलीगंज, इरादत नगर, बटहा सबौली, भरवारा और पूरे गौरी की जमीनों पर भूमाफियाओं और स्थानीय दबंगों ने कब्जा कर रखा है. खुर्रमनगर प्राथमिक विद्यालय की जमीन पर भी अवैध कब्जा हो चुका है. छावनी मड़ियांव स्थित पूर्व माध्यमिक विद्यालय परिसर के अंदर ही माफिया ने अवैध निर्माण करा रखा है. लखनऊ के पीजीआई थाना क्षेत्र के तेलीबाग प्राथमिक विद्यालय की जमीन पर भूमाफिया ने कब्जा कर अपना अवैध निर्माण करा रखा है. तेलीबाग खरिका के रामटोला पानी टंकी के पास स्थित प्राथमिक विद्यालय के स्कूल भवन के चारों तरफ बच्चों के खेलने के लिए जो विद्यालय का मैदान था उस पर माफियाओं का कब्जा हो चुका है. दबंगों ने स्कूल की खिड़कियां तक सीमेंट गारा लगा कर बंद करा दी हैं. प्रशासन और शिक्षा महकमे को इसकी जानकारी है, लेकिन टालमटोल जारी है. 

Friday 1 June 2018

यूपी के उद्योग धंधे ले डूबी सिडबी

प्रभात रंजन दीन
उत्तर प्रदेश के करीब-करीब सभी बड़े कारखाने बंद हो चुके हैं. जिन मंझोले और लघु उद्योग-धंधों पर यूपी को कभी नाज था, आज उन उद्योगों का भी समापन किस्त ही चल रहा है. मध्यम और लघु उद्योगों को जिंदा रखने और उन्हें संवर्धित करने के लिए भारतीय लघु उद्योग विकास बैंक (सिडबी) की स्थापना हुई थी. सिडबी का मुख्यालय उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में बनाया गया था. इससे लोगों की उम्मीद जगी थी कि प्रदेश के मंझोले और लघु उद्योगों को ऑक्सीजन मिलता रहेगा और कालीन, चूड़ी, पीतल के बर्तन, बुनकरी और ताले बनाने से लेकर मिट्टी के बर्तन बनाने और चिकनकारी से लेकर कशीदाकारी जैसी हमारी ढेर सारी अन्य पारंपरिक कलाएं जिंदा रहेंगी और रोजगार के लिए कारीगरों को कहीं अन्यत्र हाथ नहीं पसारना पड़ेगा. लेकिन सिडबी ने इन उद्योग धंधों का सत्यानाश करके रख दिया. प्रदेश के मंझोले और लघु उद्योग बंद होते चले गए और यहां के कारीगर आज बड़े शहरों में दिहाड़ी मजदूर बन कर अपनी आजीविका चला रहे हैं. नाबार्ड और सिडबी जैसी सरकारी वित्तीय संस्थाएं बड़े-बड़े व्यापार में पैसा लगाने वाले कॉरपोरेट-फिनांशियल हाउस में तब्दील हो चुकी हैं और अफसरों की अय्याशी का अड्डा बन गई हैं. नाबार्ड पर हम बाद में चर्चा करेंगे. अभी हम सिडबी की अराजकता, शीर्ष प्रबंधन की निरंकुशता और अय्याशी पर चर्चा करेंगे और आपको विस्तार से बताएंगे कि सीडबी अपने मूल दायित्वों को छोड़ कर किस-किस तरह के धंधों और कारगुजारियों में लगी है.
आईएएस अफसर धीरे-धीरे देश के सारे तंत्र को ग्रस लेंगे. सिडबी भी नौकरशाही के शिकंजे में कसी है. आईएएस अफसर आते हैं, अराजकता फैलाते हैं, मनमानी करते हैं और नई तैनाती पर छलांग लगा कर चले जाते हैं और संस्था रसातल में जाती रहती है. सिडबी के मौजूदा चेयरमैन मोहम्मद मुस्तफा अभी सिडबी को रसातल पहुंचाने में लगे हैं. इसके पहले आईएएस अधिकारी डॉ. छत्रपति शिवाजी सिडबी के सीएमडी थे, दो साल रहे और मनीला के एशियन विकास बैंक में एक्जक्यूटिव डायरेक्टर होकर चले गए. सिडबी के शीर्ष पदों पर कैडर के अधिकारियों या बैंकिंग विशेषज्ञों को तैनात करने के बजाय आईएएस अफसरों को तैनात करने का चलन इन खास विशेषज्ञता वाले संगठनों को बर्बाद कर रहा है. पिछले पांच साल का सिडबी का काम देखें तो पाएंगे कि इस दरम्यान सिडबी ने मुद्रा बैंक के गठन के अलावा कुछ नहीं किया, लेकिन वह भी अपने मूल उद्देश्य से भटक गया. मुद्रा बैंक प्रधानमंत्री मुद्रा योजना का हिस्सा है. मुद्रा बैंक को माइक्रो-फाइनांस (सूक्ष्म वित्त) के नियामक के रूप में, निगरानीकर्ता के रूप में और पुनरवित्त प्रदाता के रूप में काम करना था, लेकिन उसने पुनर्वित्त के अलावा कुछ नहीं किया. बहरहाल, अभी हमारा मुद्दा सिडबी है, मुद्रा बैंक नहीं. सिडबी ने प्रधानमंत्री की स्टैंडअप और स्टार्टअप जैसी महत्वाकांक्षी योजनाओं के लिए भी उत्तर प्रदेश में कुछ नहीं किया. उत्तर प्रदेश के सूक्ष्म लघु मध्यम उद्यम के लिए सिडबी प्रबंधन कोई बड़ी कार्ययोजना लेकर सामने नहीं आ सका.
जनता के पास वित्तीय उत्पादों के साथ वित्तीय समावेशन के नए-नए तरीके और रणनीति लेकर जाने के बजाय सिडबी घिसी-पिटी तकनीक और कागजी घोड़े ही दौड़ाती रह गई. सिडबी ने जो भी ऋण बांटे हैं वो उत्तर प्रदेश के आकार और उसकी जरूरतों के हिसाब से अत्यंत कम हैं. देश की अर्थव्यवस्था में उत्तर प्रदेश का 15 प्रतिशत हिस्सा है. आधिकारिक तौर पर अभी उत्तर प्रदेश में दो हजार मंझोले उद्योग और करीब साढ़े तीन लाख लघु उद्योग बचे हैं. सिडबी ने उत्तर प्रदेश के लिए क्या किया है, इसका अगर आधिकारिक आंकड़ा देखें तो आपको शर्म आएगी. सिडबी ने पिछले पांच साल में उत्तर प्रदेश के मात्र 418 ग्राहकों को महज 491 करोड़ रुपए का ऋण दिया. यह ऋण कुल बांटे गए ऋण का छह प्रतिशत से भी कम है. यह तब है जब सिडबी का मुख्यालय लखनऊ में है. यूपी को लेकर सिडबी ने कभी कोई कार्ययोजना बनाई ही नहीं. अगर यूपी को लेकर सिडबी का शीर्ष प्रबंधन गंभीर होता तो क्या अलीगढ़, बरेली, रायबरेली की शाखाएं बंद हो जातीं! लखनऊ के अलावा वाराणसी, इलाहाबाद, कानपुर, आगरा, गाजियाबाद, नोएडा और नोएडा विस्तार मिला कर अब सिडबी की कुल आठ शाखाएं बची हैं. इनमें से तीन शाखाएं गाजियाबाद, नोएडा और नोएडा विस्तार राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में होने की वजह से हैं. यूपी के मंझोले और लघु उद्योगों के पारंपरिक केंद्र मसलन, मुरादाबाद, अलीगढ़, बरेली, गोरखपुर, भदोही, शाहगंज (हरदोई), मिर्जापुर, बलरामपुर, फिरोजाबाद, मेरठ, मोदीनगर, बुलंदशहर सीडबी की प्राथमिकता पर नहीं हैं, इसीलिए इन शहरों में सिडबी ने कभी अपनी शाखा तक नहीं खोली.
विडंबना यह है कि सिडबी ने न तो उत्तर प्रदेश के लिए कारगर योजना बनाई और न प्रदेश के मंझोले और लघु उद्योगों की माली हालत का पता लगाने के लिए कोई आर्थिक सर्वेक्षण ही कराया. यह काम सिडबी की प्राथमिक जिम्मेदारियों में शामिल था, लेकिन सिडबी के शीर्ष प्रबंधन ने आर्थिक विशेषज्ञों को भी सामान्य कैडर में समाहित कर देश और प्रदेश के मंझोले और लघु उद्योगों की आर्थिक स्थिति के अध्ययन, प्रयोग और विकास की संभावनाओं पर कुल्हाड़ी चला दी. एक तरफ सिडबी में आर्थिक विशेषज्ञों की नियुक्ति बंद कर दी गई तो दूसरी तरफ ‘बैक-डोर’ से नाते-रिश्तेदारों की भर्ती जारी रही. सिडबी के लीगल मुख्य महाप्रबंधक उमा शंकर लाल की बेटी वंदिता श्रीवास्तव को नियुक्त करने में शीर्ष प्रबंधन को कोई नैतिक-संकोच नहीं हुआ. बेटे-बेटियों और रिश्तेदारों की भर्ती का सिडबी में पुराना चलन है. पहले भी मुख्य महाप्रबंधक रामनाथ के बेटे महेश्वर किंगोप्पा की भर्ती सीधे प्रबंधक के पद पर कर ली गई थी. सिडबी के आईएएस अध्यक्ष इस महकमे को अपना पैतृक राज समझते हैं. मौजूदा दौर में यह प्रवृत्ति अराजकता की स्थिति तक बढ़ गई है. मनमानी का आलम यह है कि सिडबी के मौजूदा अध्यक्ष मोहम्मद मुस्तफा ने रिटायर होने जा रहे अपने दो वफादार अधिकारियों को निदेशक के पद पर नियुक्त करने का फैसला ले लिया. जबकि अखिल भारतीय सिडबी अधिकारी संघ निदेशक मंडल में अपनी भागीदारी की लगातार मांग कर रहा है, जैसा अन्य सभी बैंकों में होता है. लेकिन संघ की मांग को ताक पर रख कर चेयरमैन अपनी मनमानी कर रहा है. सिडबी में जूनियर अधिकारियों के अधिकारों और वित्तीय सुविधाओं को खत्म करने वाले आला अधिकारियों को सलाहकार का मलाईदार ओहदा देकर पुरस्कृत किए जाने का अपराध किया जा रहा है.

धन डुबोने में सिडबी भी पीछे नहीं
स्टेट बैंक हो या पंजाब नेशनल बैंक या इन जैसे दूसरे राष्ट्रीयकृत बैंक जिन्हें पैसे डुबोने में महारत हासिल है, उसमें छोटे दायरे में होने के बावजूद सिडबी भी शामिल है. सिडबी के ‘नॉन परफॉर्मिंग एसेट्स’ (एनपीए) का हाल भी देखते चलें. सिडबी का एनपीए 1554 करोड़ रुपए है, जिसमें यूपी में 96 करोड़ की एनपीए की राशि को बट्टे खाते में डालने की तैयारी चल रही है. यूपी में सिडबी के करीब 20 फीसदी खाते एनपीए हो चुके हैं. हालत यह है कि उत्तर प्रदेश में सिडबी जो भी ऋण देती है उसकी 15 प्रतिशत धनराशि एनपीए का हिस्सा होती है.

सिडबी को नहीं दिखता यूपी का बदहाल लघु उद्योग
उत्तर प्रदेश के लगातार बंद होते मंझोले और लघु उद्योग धंधे सिडबी के शीर्ष प्रबंधन को नहीं दिखते. शीर्ष प्रबंधन पर बैठे अधिकारियों को केवल अपना गोरखधंधा दिखता है. छोटे उद्योग धंधों का हाल यह है कि इससे रोजगार पाने वाले लाखों कारीगर बेरोजगार हो गए. बनारस और भदोही के कालीन हमारी परंपरा से जुड़े हैं, लेकिन कालीन का धंधा तेजी से बंद हो रहा है और कालीन के बुनकर पलायन कर रहे हैं. कालीन निर्यात संवर्धन परिषद (सीईपीसी) का आंकड़ा बताता है कि देशभर में अगर 20 लाख कालीन बुनकर हैं तो 13 लाख भदोही, बनारस और उसे सटे जिलों के रहे हैं. देशभर के कालीन निर्माण में अकेले भदोही का योगदान 60 प्रतिशत से अधिक रहा है. सिडबी जैसे वित्तीय संस्थानों की उपेक्षा के कारण कालीन का व्यापार तेजी से घटा. व्यापारियों को भारी नुकसान हुआ. जो कारीगर पलायन कर गए वे वापस नहीं लौटे. उत्तर प्रदेश में भदोही, मिर्जापुर, वाराणसी, घोसिया, औराई, आगरा, सोनभद्र, सहारनपुर, सहजनपुर, जौनपुर, गोरखपुर जैसे इलाके कालीन के काम के लिए जाने जाते हैं. लेकिन इनमें से अधिकांश बंद हो चुके हैं. यही हाल ताला-नगरी के नाम से मशहूर अलीगढ़ का हुआ. देश का 75 प्रतिशत ताला अलीगढ़ में बनता रहा है. लेकिन आज अलीगढ़ का ताला उद्योग भी बंदी की कगार पर है. कुछ ही अर्से में अलीगढ़ के करीब डेढ़ हजार से अधिक कारखानों पर ताले लटक चुके हैं. करीब हजार उद्योग धंधे बंद होने की स्थिति में हैं. अलीगढ़ में ताले के साथ-साथ हार्डवेयर और अल्युमिनियम डाईकास्टिंग का काम भी बड़े पैमाने पर होता था. अलीगढ़ की जिंक डाई-कास्टिंग, पीतल की मूर्तियों और ऑटो पा‌र्ट्स की भी पूरे देश में मांग थी, लेकिन सब चौपट हो गया. यही हाल कभी औद्योगिक क्षेत्र के रूप में विख्यात कानपुर, जौनपुर, मेरठ, मुरादाबाद, बरेली, फिरोजाबाद समेत अन्य जिलों का भी हुआ. उत्तर प्रदेश में 75 प्रतिशत उद्योग असंगठित क्षेत्र में हैं, जिनके संवर्धन के लिए सिडबी ने कुछ नहीं किया. माली हालत खस्ता होने के कारण उत्तर प्रदेश के लघु स्टील उद्योग से 40 फीसदी कामगारों की छंटनी की जा चुकी है. उत्तर भारत का होजरी और रेडीमेड कपड़ों का कारोबार भी सिडबी की कृपा से चौपट होने पर है. आगरा का जूता कारोबार भी मुश्किल में है. आगरा में छोटे-छोटे 10 हजार से ज्यादा कुटीर उद्योग हैं जो जूते बनाते हैं. यहां के 40 फीसदी लोगों की रोजी-रोटी जूते के कारोबार से चलती है. उनका धंधा चौपट हो रहा है, लेकिन सिडबी को इसकी कोई चिंता नहीं.

सिडबी के ‘फ्रॉड्स’ नायाब, लीपापोती के तौर-तरीके भी नायाब
जिन बैंकों से जनता का सीधा लेन-देन होता है, वहां के घपलों, घोटालों और फर्जीवाड़ों (फ्रॉड्स) पर आम लोगों की निगाह रहती है, लेकिन सिडबी जैसी संस्थाएं आम लोगों की निगाह से बची रहती हैं. इसलिए इन संस्थाओं के घपले, घोटाले आम चर्चा में नहीं आ पाते. लेकिन आप तथ्यों में झांकेंगे तो आपको सिडबी में घोटालों की भरमार दिखेगी और घोटालों की लीपापोती के विचित्र किस्म के तौर-तरीके दिखेंगे. घोटाले भी नायाब और उसकी लीपापोती के तौर-तरीके भी नायाब.
अभी हाल में ही सिडबी के ओखला ब्रांच में भारी-भरकम घोटाला हुआ. दिल्ली के औद्योगिक क्षेत्र के इस ब्रांच में बड़े-बड़े पूंजी घरानों के साथ मिलीभगत करके घोटाला होता रहा. यह शीर्ष प्रबंधन की जानकारी में था, लेकिन दोषी अधिकारियों या दोषी पूंजी घरानों के खिलाफ कोई कानूनी कार्रवाई की पहल नहीं की गई. विचित्र तथ्य यह है कि जिन पूंजी घरानों को देश के 21 राष्ट्रीयकृत बैंकों के ‘कन्सॉर्टियम’ ने पहले से ‘फ्रॉड’ घोषित कर रखा था, उन्हीं ‘फ्रॉड’ कंपनियों के साथ मिलीभगत करके सिडबी के अधिकारी घोटाले करते रहे. सिडबी के शीर्ष प्रबंधन पर बैठे अधिकारियों को इतना भोलाभाला (इन्नोसेंट) नहीं समझा जा सकता कि उन्हें घोषित फ्रॉड कंपनियों के बारे में जानकारी नहीं थी. स्पष्ट है कि घोटालों में शीर्ष प्रबंधन की मिलीभगत थी. जब 2,240 करोड़ रुपए के बैंक फ्रॉड में सूर्य विनायक इंडस्ट्रीज लिमिटेड (एसवीआईएल) के मालिकों और मुलाजिमों को अप्रैल 2017 में गिरफ्तार किया गया, तब भी सिडबी ने अपने महकमे में चल रहे घोटाले की सीबीआई को जानकारी नहीं दी. साल भर बाद जब सिडबी को भनक लगी कि सीबीआई सिडबी के फ्रॉड की भी गुपचुप जांच कर रही है तब हड़कंप मचा और आनन-फानन ओखला ब्रांच के डिप्टी जनरल मैनेजर ऋषि पांडेय के जरिए सूर्य विनायक इंडस्ट्रीज लिमिटेड (एसवीआईएल), इसके मालिक संजय जैन, राजीव जैन, एचआर परफ्यूमरी के मालिक संजय त्यागी, जयन सुगंधी प्रोडक्ट्स के मालिक किशन जैन और सिडबी के अज्ञात अधिकारियों के खिलाफ सीबीआई में औपचारिक शिकायत पेश की गई. सीबीआई ने 18 अप्रैल 2018 को एफआईआर (आरसी-219/2018/ई-0006) दर्ज कर औपचारिक रूप से मामले की जांच शुरू की.
बात यहीं खत्म नहीं होती. असली बात तो यहीं से शुरू होती है. पांच फ्रॉड कंपनियों के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराने वाले सिडबी प्रबंधन को अपने महकमे के फ्रॉड अधिकारियों के नाम नहीं पता थे, इसलिए अज्ञात अधिकारियों के खिलाफ एफआईआर दर्ज हुई. सिडबी के शीर्ष प्रबंधन की यह हरकत अपने आप में ही एक फ्रॉड है. अब दूसरा पहलू देखिए... उधर सीबीआई की जांच शुरू हुई और इधर सिडबी प्रबंधन ओखला ब्रांच बंद कर उसे नई दिल्ली शाखा में विलीन करने की गुपचुप तैयारी में लग गया. ओखला ब्रांच के जिस डिप्टी जनरल मैनेजर ऋषि पांडेय ने सीबीआई में कम्प्लेंट दर्ज कराई, उसका तबादला देहरादून कर दिया गया. पांडेय को पुरस्कृत कर देहरादून का हेड बना दिया गया. पेंच अभी और हैं. सिडबी के ओखला ब्रांच के डिप्टी जनरल मैनेजर रहे ऋषि पांडेय के भाई दुर्गेश पांडेय सिडबी के फ्रॉड्स और अनियमितताओं पर नजर रखने वाले विभागीय महकमे ‘स्ट्रेस्ड असेट्स एंड एनपीए मैनेजमेंट’ के महाप्रबंधक हैं. उसी के मुख्य महाप्रबंधक उमा शंकर लाल हैं, जिन्होंने अपनी बिटिया की सीधी नियुक्ति उस कैडर में करा ली, जिस कैडर को अर्सा पहले खत्म कर दिया गया था. ऐसे अधिकारियों और उन्हें संरक्षण देने वाले चेयरमैन से आप कैसे उम्मीद कर सकते हैं कि सिडबी में कोई घोटाला या अनियमितता न हो! उल्लेखनीय है कि सीबीआई 44 विभिन्न बैंकों के जिन 292 बड़े घोटालों (स्कैम्स) की छानबीन कर रही है, उनमें ‘स्मॉल इंडस्ट्रीज़ डेवलपमेंट बैंक’ यानि सिडबी के घोटाले भी शामिल हैं. मुस्तफा के कार्यकाल में जनवरी 2018 से मई 2018 के बीच महज पांच महीनों में सिडबी में 16 फ्रॉड हो चुके हैं.

मुख्यालय लखनऊ में, पर मुम्बई में खूंटा क्यों ठोके रहते हैं चेयरमैन ?
भारतीय लघु उद्योग विकास बैंक (सिडबी) के आईएएस चेयरमैन मोहम्मद मुस्तफा से कोई यह नहीं पूछता कि सिडबी का मुख्यालय लखनऊ में है तो वे मुम्बई में क्या करते रहते हैं! ऐसे ही अराजक नौकरशाहों के बूते सरकारें चल रही हैं. कोई यह पूछने वाला नहीं कि सिडबी का प्रधान कार्यालय लखनऊ में है तो इसका संचालन मुम्बई से क्यों किया जा रहा है! मुस्तफा ने मुम्बई को सिडबी का ‘डिफैक्टो-हेडक्वार्टर’ बना रखा है, उन्हें मुम्बई में ही बैठना अच्छा लगता है. महीने में कभी-कभार लखनऊ आकर वे लखनऊ मुख्यालय को उपकृत करते हैं और चले जाते हैं. सिडबी की सारी नीतियां मुम्बई में बनती हैं और इसमें यूपी की हिस्सेदारी नगण्य रहती है. लखनऊ मुख्यालय के लिए गोमती नगर विस्तार में डायल-100 के सामने एक एकड़ का प्लॉट अलग से लिया गया है. सौ एकड़ जमीन पर चार मंजिली इमारत बनाने की योजना के औचित्य पर सवाल उठ रहे हैं और कहा जा रहा है कि चेयरमैन खुद तो मुम्बई में हाजी अली के पॉश इलाके में डेढ़ लाख रुपए महीने के किराए पर आलीशान फ्लैट में रहते हैं. जबकि माटुंगा में बना उनका आधिकारिक फ्लैट खाली पड़ा हुआ है. सिडबी के चेयरमैन बांद्रा कुर्ला परिसर स्थित सिडबी कार्यालय को मुख्यालय बनाए बैठे हैं, वहीं से सारा काम करते हैं और अखबारों में बयान देते रहते हैं कि सिडबी का मुख्यालय लखनऊ से बाहर नहीं जाएगा.
अब दिल्ली कार्यालय का हाल देखिए. दिल्ली के कस्तूरबा गांधी मार्ग पर बने आलीशान अंतरिक्ष भवन की 11वीं मंजिल पर सिडबी का ऑफिस है. इसका किराया तीन लाख रुपए महीना है. यहां भी मुस्तफा का भव्य कक्ष बना है. एक तरफ सिडबी के कर्मचारियों का वाजिब हक मारा जा रहा है तो दूसरी तरफ बैंक का या कहें देश का पैसा पानी की तरह बहाया जा रहा है. सिडबी के अधिकारी बताते हैं कि चेयरमैन मोहम्मद मुस्तफा ने कोलकाता, इंदौर, कोयंबटूर और फरीदाबाद समेत पांच क्षेत्रीय कार्यालय बंद करा दिए. ये सभी क्षेत्रीय कार्यालय लखनऊ ला दिए गए. मुस्तफा के इस कृत्य के बाद पूर्वी भारत में अब सिडबी का कोई क्षेत्रीय कार्यालय नहीं बचा. बिहार, बंगाल, ओड़ीशा, झारखंड जैसे राज्यों का क्षेत्रीय कार्यालय अब कोलकाता न होकर लखनऊ है. इसके पीछे चेयरमैन का इरादा क्या है? इस सवाल का जवाब तलाशने के क्रम में अजीबोगरीब तथ्य सामने आए. दरअसल तमाम क्षेत्रीय कार्यालय बंद करने के पीछे सिडबी के बेशकीमती फ्लैट्स और कोठियां बेच डालने का षडयंत्र है. गहराई में जाने पर पता चला कि महत्वपूर्ण स्थानों पर बने सिडबी के करीब सौ फ्लैट्स बेचे जा रहे हैं. चेयरमैन की इस कारस्तानी का विरोध करने का खामियाजा महाप्रबंधक स्तर के एक अधिकारी मुकेश पांडेय ने भुगता जिनका मुम्बई से नई दिल्ली तबादला कर दिया गया. एक आला अधिकारी ने बताया कि किसी भी वित्तीय संस्था के भवन, फ्लैट्स या वाणिज्यिक प्लॉट्स तभी बेचे जाते हैं जब संस्था दिवालिया होने की कगार पर हो या भीषण आर्थिक संकट की स्थिति में हो. जैसे आईएफसीआई या आईडीबीआई अपना घाटा पूरा करने के लिए अपने फ्लैट्स और कोठियां बेच रही है. सिडबी हजार करोड़ से भी अधिक का मुनाफा कमाने वाली वित्तीय संस्था है. लिहाजा संस्था के फ्लैट्स और भवन बेचना पूरी तरह संदेह के घेरे में है.
उल्लेखनीय है कि सिडबी के फ्लैट्स और कोठियां देश के बड़े शहरों के ‘प्राइम लोकेशंस’ पर हैं. वे बेशकीमती हैं. देशभर में सिडबी के कुल 602 आलीशान फ्लैट्स अधिकारियों के लिए और 87 सामान्य फ्लैट्स श्रेणी-3 और श्रेणी-4 के कर्मचारियों के लिए हैं. उत्तर प्रदेश में सिडबी के 124 फ्लैट्स हैं, जिसमें बनारस के दो आलीशान फ्लैट्स बेचे जा चुके. अब सिडबी के लखनऊ स्थित आठ फ्लैटों को बेचने की तैयारी है. इसके लिए 09 मई 2018 को लखनऊ के एक अखबार में विज्ञापन भी छपवाया गया. इसके अलावा कोलकाता, चंडीगढ़, बंगलुरु, लुधियाना, भोपाल, कोच्चि, पणजी, गुवाहाटी और चेन्नई के 84 फ्लैटों को बेचने के लिए भी अखबारों के जरिए निविदा आमंत्रित की गई है. विचित्र विरोधाभास है कि एक तरफ सिडबी के अधिकारियों को रहने के लिए बाहर के भवन महंगे किराए पर दिए जा रहे हैं जबकि दूसरी तरफ सिडबी अपने ही फ्लैट्स धड़ाधड़ बेच रही है. सिडबी के क्लास-4 कर्मचारियों के लिए लखनऊ के इंदिरा नगर सेक्टर-21 में मुख्य सड़क के किनारे बने आठ फ्लैट्स औने-पौने दाम पर बेचे जा रहे हैं, जिनकी बाजार में कीमत बहुत ज्यादा है. स्वाभाविक है कि हल्के दाम पर फ्लैट्स बेचे जाने के पीछे की ‘प्राप्ति’ भारी होगी. सिडबी के शीर्ष प्रबंधन के पास सरकारी प्रावधानों का बहाना भी है. सरकारी खरीद-फरोख्त में फ्लैटों को बाजार-मूल्य पर न बेच कर डेप्रीशिएटेड-प्राइस (घटी दर पर) बेचे जाने का प्रावधान परदे के पीछे भारी कमाई का रास्ता खोलता है. वाराणसी कैंट स्टेशन के सामने सिगरा मोहल्ले में स्थित सिडबी के छह में से दो फ्लैट इसी तरह औने-पौने दाम पर बेच डाले गए. फ्लैट्स बिकने से वाराणसी में सिडबी का गेस्ट हाउस बंद हो गया. अब वाराणसी जाने वाले अधिकारियों को होटल में ज्यादा पैसे देकर ठहराया जाता है. सिडबी के अधिकारियों-कर्मचारियों के लिए बने उत्तर प्रदेश के सारे गेस्ट हाउस बारी-बारी से बंद किए जा रहे हैं, ताकि उन्हें बेचा जा सके या उनसे किराया कमाया जा सके. वाराणसी का एक और लखनऊ के दो गेस्ट हाउस बंद हो चुके हैं.

सारी हदें पार कर रही हैं चेयरमैन की मनमानियां
सिडबी के चेयरमैन मोहम्मद मुस्तफा की मनमानी सारी हदें पार कर रही हैं. मुस्तफा उत्तर प्रदेश कैडर के आईएएस अफसर हैं. केंद्र की प्रतिनियुक्ति पर अगस्त 2017 में वे सिडबी के अध्यक्ष एवं प्रबंध निदेशक बने. इन नौ महीनों में सिडबी को खोखला करने के ऐतिहासिक कारनामे हुए, जिनकी कुछ बानगियां आपने ऊपर देखीं. केंद्र सरकार खुद ही इतनी अराजक है कि बैंकों और वित्तीय संस्थानों में विशेषज्ञ बैंकर को अध्यक्ष न बनाकर आईएएस अफसरों को बिठा रही है. आईएएस अफसर अपना निर्धारित कार्यकाल पूरा कर भाग जाते हैं और अपने पीछे भ्रष्टाचार, अराजकता और कुसंस्कार छोड़ जाते हैं. सिडबी में चेयरमैन मोहम्मद मुस्तफा की मनमानी यहां तक है कि उन्होंने सिडबी के अर्थशास्त्री (इकोनोमिस्ट) रवींद्र कुमार दास के होते हुए 60 लाख सालाना मानदेय पर चीफ इकोनॉमिस्ट पद पर भर्ती के लिए विज्ञापन निकाल दिया. सिडबी की वेबसाइट पर यह विज्ञापन एक अप्रैल 2018 को जारी हुआ. दो मई आवेदन दाखिल करने की आखिरी तारीख थी. सिडबी में पहले इकोनॉमिस्ट कैडर (संवर्ग) के अधिकारियों की भर्ती गई थी और इस संवर्ग में एक मुख्य महाप्रबंधक, दो महाप्रबंधक, एक उप महाप्रबंधक और एक सहायक महाप्रबंधक स्तर के अधिकारी कार्यरत थे. लेकिन इस कैडर को खत्म करके इसे सामान्य संवर्ग में डाल दिया गया. ऐसे में अलग से ‘चीफ इकोनॉमिस्ट’ नियुक्त करने का क्या औचित्य है? यह सवाल सिडबी के गलियारे में गूंज रहा है. इकोनॉमिस्ट पद पर बहाल हुए तमाम अधिकारियों से सिडबी सामान्य काम ले रही है, फिर ‘चीफ इकोनॉमिस्ट’ की भर्ती क्यों की जा रही है? इस समय सिडबी में अर्थशास्त्र में एमए पास अधिकारियों की तादाद दो दर्जन से अधिक है. सिडबी का शीर्ष प्रबंधन अर्थशास्त्र के इन जानकार अधिकारियों से इकोनॉमिस्ट का काम क्यों नहीं ले रहा? इन सारे सवालों के जवाब के पीछे निरंकुशता और लोलुपता है.
चेयरमैन की निरंकुशता के खिलाफ सिडबी के अधिकारियों और कर्मचारियों में घोर नाराजगी है. चेयरमैन की राय के खिलाफ और संस्था के हित का पक्ष रखने वाले अधिकारी को फौरन स्थानांतरित कर दिया जाता है. नियमों के विपरीत अधिकारियों का आए दिन तबादला किया जा रहा है जिससे उनका परिवार परेशान हो रहा है. नियम यह है कि सिडबी के किसी अधिकारी को प्रधान कार्यालय से छह साल से कम समय में स्थानांतरित नहीं किया जा सकता. लेकिन इस नियम की धज्जियां उड़ाई जा रही हैं. ऐसे कई उदाहरण मिलेंगे जिसमें तीन-तीन साल में अधिकारियों के स्थानांतरण का तुगलकी फरमान थमाया गया. सरकारी बैठकों में अपनी स्वतंत्र राय रखने के कारण सिडबी के सतर्कता महकमे के उप महाप्रबंधक राजीव सूद का रातोरात पटना तबादला कर दिया गया. यही हाल मुकेश पांडेय का भी किया गया, क्योंकि पांडेय ने सिडबी के फ्लैट्स और कोठियां बेचे जाने के चेयरमैन के फैसले पर विरोध जताया था. इसके विपरीत जो अधिकारी या कर्मचारी चेयरमैन के चाटुकारों की जमात के हैं, उनका टेन्योर पूरा हो जाने के बावजूद उनका तबादला करने की कोई जुर्रत नहीं कर सकता.

सिडबी पर अंग्रेजियत हावी, हिंदी अफसरों को नहीं मिलती तरक्की
सिडबी के चेयरमैन मोहम्मद मुस्तफा पर अंग्रेजियत इतनी हावी है कि उनकी नजर में हिंदी अधिकारियों, विधि अधिकारियों और सूचना प्रौद्योगिकी के अधिकारियों की कोई औकात ही नहीं है. सिडबी के राजभाषा (हिंदी) अधिकारियों को तरक्की के अवसर नहीं दिए जाते. जबकि संसद की राजभाषा समिति और वित्त मंत्रालय खुद भी राजभाषा अधिकारियों को तरक्की का समान अवसर देने का निर्देश सिडबी प्रबंधन को देता रहा है, लेकिन सिडबी प्रबंधन सुनता ही नहीं. सिडबी में ऐसे तीन दर्जन से अधिक अधिकारी हैं, जिन्हें पिछले 10 साल से भी अधिक समय से कोई तरक्की नहीं दी गई. केंद्र सरकार के डीओपीटी विभाग की पदोन्नति नीति कहती है कि केंद्रीय कर्मचारी को अगर सामान्य रूप से पदोन्नति नहीं मिलती है तो उन्हें 10 साल में एक बार गारंटीशुदा पदोन्नति मिलेगी. यानि, पूरी सेवा अवधि में तीन बार तरक्की हर हाल में मिलेगी. लेकिन सिडबी प्रबंधन केंद्र सरकार की नीतियों की ही धज्जियां उड़ा रहा है. सिडबी के राजभाषा अधिकारियों, विधि और विशेषज्ञ संवर्ग के अधिकारियों ने अपनी तरक्की के लिए चेयरमैन के समक्ष कई बार आवेदन दिए, आवाज उठाई, लेकिन मुस्तफा ने उनकी एक नहीं सुनी. उल्टा मुस्तफा ने ऐसा तुगलकी फरमान जारी कर दिया जो विधि, राजभाषा, सूचना प्रौद्योगिकी जैसे विशेषज्ञीय पदों पर काम करने वाले अधिकारियों की पदोन्नति का रास्ता रोकता है. फरमान में कहा गया है कि जो अधिकारी विशेषज्ञ कैडर से सामान्य कैडर में विलीन होने के लिए तैयार हों उन्हें ही तरक्की मिलेगी, अन्यथा उन्हें उसी पद पर रिटायर हो जाना पड़ेगा जिस पर उनकी नियुक्ति हुई थी. मुस्तफा का यह आदेश संविधान का खुला उल्लंघन है. चेयरमैन को विशेषज्ञता से कितनी एलर्जी है, यह उनके अहमकी फरमान से पता चलता है. मुस्तफा और उनके चाटुकार अफसरों के इस रवैये के खिलाफ सिडबी के 84 विशेषज्ञ अधिकारियों ने मुम्बई हाइकोर्ट में मुकदमा दाखिल किया है. हाईकोर्ट ने 27 मार्च 2018 को सिडबी को यह निर्देश भी दिया कि जो अधिकारी वर्ष 2017 में पदोन्नति के पात्र थे उन्हें पदोन्नत करके हाईकोर्ट को छह सप्ताह के भीतर सूचित करे. लेकिन, नियम-कानून को ठेगा दिखाने वाले मुस्तफा मुम्बई हाईकोर्ट का आदेश क्यों मानने लगे! सिडबी के अधिकारी अब अपने ही चेयरमैन के खिलाफ अदालत की अवमानना का मुकदमा ठोकने की तैयारी कर रहे हैं.

मुम्बई में मुस्तफा किसके लिए लीज़ पर ले रहे हैं शाही कोठी ?
सिडबी ने मुम्बई में समुद्र के किनारे शाही कोठी लीज़ पर लेने के लिए टेंडर आमंत्रित किया है. प्रकाशित विज्ञापन में कहा गया है कि शाही कोठी मुम्बई के वरली, बांद्रा, कार्टर रोड या बैंड स्टैंड में समुद्र के सामने हो. शर्त यह है कि जहां कोठी हो, वहां बारिश के समय पानी नहीं जमता हो और ट्रैफिक जाम कभी नहीं होता हो. कोठी के साथ नौकरों के रहने की भी अलग व्यवस्था हो. इसके अलावा कोठी में 24 घंटे बिजली आपूर्ति की गारंटी, पावर बैकअप, लाइट-पंखे-एसी-गीजर के लिए समुचित पावर कनेक्शन और आंतरिक सभी साज-सज्जा से सुसज्जित हो. आप विज्ञापन देखेंगे तो आपको लगेगा कि यह शाही कोठी किसी अरब शेख या बड़े पूंजीपति के स्वागत के लिए किराए पर ली जा रही है. इसका किराया कितना होगा, इसके बारे में आपको कुछ बताने की जरूरत नहीं और यह बताने की जरूरत भी नहीं कि इतनी महंगी कोठी धनपशु अरब शेख या पूंजीपति के बार-बार आने और उनका बार-बार स्वागत करने के इरादे से ही ली जा रही होगी. देश के धन पर नौकरशाहों की ये अय्याशियां मोदी सरकार की ईमानदारी की कैसी सनद हैं, इसे समझना मुश्किल है...