Friday 22 March 2019

How OBC has been given ticket from SC seat..? Constitutional-fraud of Baghel, Shah & Yogi


https://youtu.be/X_CVGIsHXLk
https://youtu.be/i5LxQ0h3-KQ
प्रभात रंजन दीन
कल से स्तब्ध हूं... भाजपा ने अपने लोकसभा प्रत्याशियों की पहली सूची जारी की और पहली सूची से ही यह घोषणा कर दी कि भारत का संविधान, भारत का कानून और भारत के आम लोग उनकी निगाह में कोई स्थान नहीं रखते। भाजपा जब चाहेगी संविधान, कानून और जनता को रौंदेगी। यह आने वाले भविष्य के लिए सनद रहे...
आपका भी ध्यान गया होगा भाजपाई प्रत्याशियों की पहली सूची पर। भाजपा ने दलितों के लिए सुरक्षित आगरा लोकसभा सीट से पिछड़ा वर्ग के एसपी सिंह बघेल को टिकट दे दिया और बड़ी बेशर्मी से लिस्ट भी जारी कर दी। यह तानाशाही है या गुंडई..? यह कैसा देश है जहां संविधान और कानून केवल सियासी गुंडई कायम रखने में इस्तेमाल होता है..! ...और यहां के लोग कैसे हैं, सब देखते हैं, सहते हैं और चुप रह जाते हैं..!
गुंडई और बदगुमानी का मिजाज देखिए कि भाजपा के पिछड़ा वर्ग प्रकोष्ठ के राष्ट्रीय अध्यक्ष रहे एसपी सिंह बघेल को भाजपा आलाकमान ने विधानसभा चुनाव में टूंडला सुरक्षित विधानसभा सीट से प्रत्याशी बनाया और चुनाव जीत कर आने के बाद मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने बघेल को अपना कैबिनेट मंत्री बना लिया। पिछड़ा वर्ग के बघेल ने जालसाजी करके खुद को दलित बताया। भाजपा आलाकमान ने इस फ्रॉड में बघेल का साथ देते हुए पिछड़ा वर्ग के व्यक्ति को दलित सीट से टिकट दे दिया। भाजपा का शाह अमित शाह से लेकर प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री तक इस पाप का भागी है। बेशर्मी की हद यह है कि बघेल के फ्रॉड को आधिकारिक आधार देने के लिए मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की सरकार ने एक शासनादेश भी जारी कर दिया। जबकि जाति को लेकर कोई भी फरमान जारी करने का राज्य सरकार को कोई अधिकार नहीं है। बघेल-योगी की साझा जालसाजी उजागर होने के बाद संविधान-पक्ष और दलित-पक्ष को बेसाख्ता ठेंगा दिखा कर शाह-योगी ने फिर षडयंत्र रचा और बघेल को आगरा की सुरक्षित लोकसभा सीट से प्रत्याशी बना डाला। मोहल्ले के नुक्कड़छाप बदमाशों की तरह, ‘हम ऐसा करेंगे, तुम हमारा क्या बिगाड़ लोगे’ की तर्ज पर शाह-योगी ने बघेल को सुरक्षित सीट से लोकसभा का प्रत्याशी बनाया। उस पर भाजपा आलाकमान का फासीवादी रवैया ऐसा कि पिछड़ा से दलित बनने के फ्रॉड का विरोध करने वाले अनुसूचित जाति आयोग के राष्ट्रीय अध्यक्ष रामशंकर कठेरिया का ही आगरा से टिकट काट कर फ्रॉड के जनक बघेल को वही टिकट दे दिया।
बघेल-शाह-योगी की जालसाजी का खामियाजा जंगलों में रहने वाला एक भोला-भाला निर्दोष समुदाय भुगत रहा है, जिसके नाम पर बघेल जैसा जालसाज दलित बन कर सत्ता का उपभोग कर रहा है। योगी सरकार में कैबिनेट मंत्री एसपी सिंह बघेल भाजपा के पिछड़ा वर्ग प्रकोष्ठ के राष्ट्रीय अध्यक्ष रहे हैं। फिर भाजपा ने दलितों के लिए सुरक्षित टूंडला विधानसभा सीट से चुनाव लड़ने के लिए बघेल को टिकट कैसे दे दिया था? स्पष्ट है कि भाजपा इस फ्रॉड में शरीक थी। एसपी सिंह बघेल ने खुद को पिछड़ा वर्ग से दलित बनाने में जिस फर्जीवाड़े का सहारा लिया था, योगी सरकार ने उस फर्जीवाड़े पर 24 जनवरी 2019 को आधिकारिक मुहर लगाई। प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने अपने मंत्री के फर्जीवाड़े पर कानूनी कार्रवाई की पहल करने के बजाय पिछड़ा वर्ग के मंत्री को दलित साबित करने का षडयंत्र रचा और इस साजिश के तहत दलित समुदाय की एक जाति को अनुसूचित जाति से बाहर कर दिया। एसपी सिंह बघेल ने खुद को धनगर जाति का बताया और धनगर जाति को ही दलित जाति भी बता दिया। बघेल ने बड़ी मक्कारी से पूर्वांचल की दलित धंगड़ जाति को अंग्रेजी की स्पेलिंग का फायदा उठाते हुए धनगर बताया और खुद को दलित बना लिया। और भाजपा ने भी पिछड़ा प्रकोष्ठ के राष्ट्रीय अध्यक्ष के नाटकीय दलित-रूपांतरण को स्वीकार करते हुए टूंडला सुरक्षित विधानसभा सीट से चुनाव लड़ने के लिए टिकट दिया और अब उसे ही आगरा सुरक्षित सीट से लोकसभा का भी टिकट दे दिया।
भाजपा दलितों को मिलने वाली संवैधानिक सुविधा में लगातार सेंधमारी कर रही है। दलितों को अनुसूचित जाति के दर्जे से बाहर करने और पिछड़ों को दलित बना कर उन्हें दलितों को मिलने वाली संवैधानिक सुविधाएं देने का सुनियोजित फ्रॉड भाजपा के इशारे पर हो रहा है। अनुसूचित जाति की सूची के साथ छेड़छाड़ करना, सूची से नाम हटाना, संशोधित करना या उसे गलत तरीके से व्याख्यायित करना गैर-संवैधानिक और आपराधिक कृत्य है। बघेल-शाह-योगी के फ्रॉड से जिन दलित समुदाय के लोगों को अनुसूचित जाति की सूची से हटाया गया, उस समुदाय में आपदा जैसी स्थिति है। भगदड़ मची है। अनुसूचित जाति के आरक्षण के आधार पर हजारों लोगों को मिलीं सरकारी नौकरियां उनसे छीनी जा रही हैं। दलित एक्ट के तहत दर्ज कराए गए उनके सारे मुकदमे समाप्त किए जा रहे हैं। मुकदमे समाप्त होने पर वे आम लोगों की तरह मारे जाएंगे। अब उन पर संविधान का रक्षा-कवच नहीं होगा। ग्राम प्रधानों की प्रधानी जा रही है। फर्जी शासनादेश के जरिए अनुसूचित जाति से हटा कर उन्हें सुरक्षित लोकसभा चुनाव क्षेत्र या सुरक्षित विधानसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ने का अधिकार भी छीन लिया गया है।
आप सोचिए कि हम कैसे अंधे तंत्र से शासित हो रहे हैं... यह चुनाव आयोग कैसा... यह सरकार कैसी... यह न्यायतंत्र कैसा... धंगड़ और धनगर की अंग्रेजी स्पेलिंग एक हो तो क्या चुनाव आयोग, सरकार या न्यायतंत्र इसका फर्क नहीं कर पाएगा..? जबकि संवैधानिक दस्तावेजों में इस स्पेलिंग भ्रम को दूर करते हुए साफ-साफ लिखा है कि पूर्वांचल की धंगड़ जाति ही अनुसूचित जाति की श्रेणी में आती है, पश्चिम की धनगर जाति नहीं। संवैधानिक दस्तावेज, राष्ट्रपति की अधिसूचना और विभिन्न संवैधानिक संस्थाओं की रिपोर्टें स्पष्ट कहती हैं कि धनगर जाति अन्य पिछड़ा वर्ग के तहत आती है। लेकिन... पिता का राज है... कानून और संविधान से क्या मतलब..! यह अंधा तंत्र नहीं है, बहुत ही शातिर तंत्र है...
योगी सरकार के आला नौकरशाह समाज कल्याण विभाग के प्रमुख सचिव मनोज सिंह ने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के निर्देश पर 24 जनवरी 2019 को एक विचित्र फरमान जारी कर दिया। शासनादेश के नाम पर यह झांसनादेश है... प्रदेश के लोगों को झांसा देने वाला फरमान। प्रदेश के सभी मंडलायुक्तों और जिलाधिकारियों को भेजे गए फरमान को समाज कल्याण विभाग के प्रमुख सचिव मनोज सिंह धनगर DHANGAR जाति के व्यक्तियों को अनुसूचित जाति का प्रमाण पत्र निर्गत करने के लिए स्पष्टीकरण आदेश (Clarification Order) बताते हैं। खूबी यह है कि मनोज सिंह धनगर जाति को अनुसूचित जाति का साबित करने के झांसनादेश में धनगर की अंग्रेजी स्पेलिंग DHANGAR भी लिखते हैं, लेकिन ऐसा लिखते हुए उन्हें भारत सरकार का 1976 का राजपत्र यानी गजट नोटिफिकेशन, राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग द्वारा 25 सितम्बर 2017 को उत्तर प्रदेश के मुख्य सचिव को लिखे गए आधिकारिक पत्र, भारत सरकार के सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय का आठ अक्टूबर 2017 को जारी दस्तावेज और उत्तर प्रदेश सरकार के तहत काम करने वाले अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति शोध एवं प्रशिक्षण संस्थान की वह रिपोर्ट ध्यान में नहीं रहती जो यह बार-बार बताती है कि गड़रिया समुदाय की धनगर जाति अनुसूचित जाति की श्रेणी में नहीं आती। बल्कि उरांव आदिवासी समुदाय से जुड़ी धंगड़ जाति अनुसूचित जाति की श्रेणी में आती है। ये दस्तावेज यह भी बताते हैं कि अंग्रेजी की स्पेलिंग का भ्रम नहीं रहना चाहिए।
अनुसूचित जातियां और अनुसूचित जनजातियां आदेश (संशोधन) अधिनियम 1976 के तहत जारी भारत सरकार के गजट नोटिफिकेशन के भाग-18 में उत्तर प्रदेश की सूची में 27वें नंबर पर धंगड़ जाति को अनुसूचित जाति की श्रेणी में दर्ज है। इसमें धनगर कहीं भी शामिल नहीं है। 25 सितम्बर 2017 को राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग ने उत्तर प्रदेश के मुख्य सचिव को पत्र लिख कर जानकारी दी कि अनुसूचित जाति का निर्धारण करने में यूपी सरकार अनुसूचित जातियां और अनुसूचित जनजातियां आदेश (संशोधन) अधिनियम 1976 के तहत जारी गजट नोटिफिकेशन का ध्यान रखे। आयोग ने यूपी सरकार को आधिकारिक तौर पर बताया कि धंगड़ समुदाय के लोगों को ही अनुसूचित जाति का प्रमाण पत्र जारी किया जाए, अन्य को नहीं। आयोग ने धंगड़ को अंग्रेजी में स्पेल करके भी बताया। आयोग ने मुख्य सचिव को यह भी निर्देश दिया था कि धंगड़ के नाम पर अन्य जातियों को दिए गए प्रमाण पत्र की सख्ती से जांच हो और उस अनुरूप कार्रवाई हो। सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय भी 1976 के गजट नोटिफिकेशन का हवाला देते हुए धंगड़ जाति को अनुसूचित जाति बताता है और साफ-साफ लिखता है कि उत्तर प्रदेश की धनगर जाति अनुसूचित जाति की श्रेणी में अधिसूचित नहीं है। अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति शोध एवं प्रशिक्षण संस्थान की 17 जनवरी 2019 को जारी सर्वेक्षण रिपोर्ट साफ-साफ कहती है कि उत्तर प्रदेश में मिर्जापुर के कैमूर रेंज में खास तौर पर सोनभद्र में रहने वाली धंगड़ जाति के लोग मूल रूप से उरांव आदिवासी समूह से आते हैं। धंगड़ जाति ही अनुसूचित जाति है, इसका गड़रिया समुदाय की धनगर जाति से कोई लेना-देना नहीं है और धनगर अनुसूचित जाति नहीं है। खूबी यह है कि धंगड़ जाति 1936 से ही अंग्रेजों के गजेटियर में 27 नंबर पर अनुसूचित जाति के बतौर दर्ज है। वर्ष 2011 की जनगणना में भी धंगड़ जाति अनुसूचित जाति की श्रेणी में दर्ज है।
आप ‘इंडिया वाच’ पर प्रसारित यह खबर फिर से देखें और एहसास करें कि भाजपा ने संविधान और कानून की क्या दुर्गति बना रखी है... आप भले ही चुप रहें, पर एहसास (realize) तो करें..! हमारा तो पत्रकारीय-धर्म है, हम चुप नहीं रहेंगे, आपको आगाह करते रहेंगे...