Wednesday 28 February 2018

मोदी बनाम मोदीः चौकीदार से बड़ा चोर...

प्रभात रंजन दीन
पंजाब नेशनल बैंक घोटाले पर अखबारों में, समाचार चैनेलों पर और सोशल मीडिया पर बहुत कुछ लिखा, दिखाया और कहा जा चुका. लेकिन बातें इधर-उधर छितराई या बिखरी रह गईं. कोई सिरा कहीं गया तो कोई सिरा कहीं. पंजाब नेशनल बैंक घोटाला कहें या नीरव मोदी तिकड़ी घोटाला, इसमें कई कड़ियों को एक साथ मिला कर देखने की जरूरत है. भाजपा विरोधी राजनीतिक खेमा इसे नरेंद्र मोदी सरकार से जोड़ रहा है तो कांग्रेस विरोधी सियासी दल इसे कांग्रेस से जोड़ रहे हैं. लेकिन इस जोड़ा-जोड़ी की सियासत से अलग, तथ्यों के आधार पर हमें बिखरे हुए तमाम सिरे सामने रख कर उन्हें समग्रता से देखने की कोशिश करनी चाहिए.
केंद्र में सरकार भारतीय जनता पार्टी की है तो किसी भी घोटाले के होने या किसी भी घोटालेबाज के फरार होने की जिम्मेदारी केंद्र सरकार पर ही आएगी, इस जिम्मेदारी से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भाग नहीं सकते, भले ही उनके चहेते वित्त मंत्री अरुण जेटली वास्तविकताओं के सतह पर आने से डर कर मुंह छुपाए बैठे हों. सोशल मीडिया पर इस घोटाले के प्रसंग में नरेंद्र मोदी के कई पुराने बयान वायरल हुए, मसलन, ‘भाइयो-बहनों, आप मुझे प्रधानमंत्री मत बनाएं, मुझे चौकीदार बनाएं. मैं दिल्ली जाकर चौकीदार की तरह बैठूंगा, आप मेरे जैसा चौकीदार बिठाओगे तो हिंदुस्तान की तिजोरी पर कोई पंजा नहीं पड़ने दूंगा’. ‘मैं वादा करता हूं कि चाहे कोई नया कानून बनाना पड़े या किसी अन्य देश के साथ समझौता करना पड़े, मैं कालाधन भारत वापस लाऊंगा और देश का धन भारत से बाहर नहीं जाने दूंगा’. ‘जिन लोगों ने देश को लूटा है, वे चाहे जितने भी ताकतवर हों, उन्हें देश के लोगों को जवाब देना ही होगा’. 'मैंने जो रास्‍ता चुना है, हो सकता है, इसके लिए मुझे राजनीतिक कीमत चुकानी पड़े, लेकिन मैं इससे पीछे नहीं हटूंगा. मैं इसके लिए कोई भी राजनीतिक कीमत चुकाने को तैयार हूं.' वगैरह, वगैरह...
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के इन बयानों का यहां प्रसंग बनता है, ताकि वे अपने बयानों से या तो इन्कार कर सकें या अब तक फेल साबित हुए अपने बयानों पर आगे खरा उतरने का फिर से संकल्प ले सकें. सत्ता में आने के बाद से जो हालात सामने आए हैं उसमें मोदी के बयानों का विरोधाभास ही देश के सामने प्रस्तुत हुआ है. ललित मोदी, विजय माल्या, पनामा गेट, नीरव मोदी और ऐसे कई माध्यमों के जरिए देश का अकूत धन विदेश चला गया और देशवासी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के उन सख्त बयानों की असलियत ही टटोलते रह गए. किसी व्यक्ति के विदेश भाग जाने और उसे फिर से पकड़ कर वापस लाने का मसला उतना महत्वपूर्ण नहीं है, उससे कहीं अधिक महत्वपूर्ण है कि जो धन विदेश चला गया उसे वापस कैसे लाया जाए. केंद्र सरकार को विदेश गया धन वापस लाने और भविष्य में भारत का धन विदेश न जाने पाए उसके छेद बंद करने के उपायों पर शीघ्रता से काम करना चाहिए. अर्थ और बैंकिंग विशेषज्ञों का कहना है कि केंद्रीय वित्त मंत्री अरुण जेटली की नासमझ नीतियों के कारण देश का बैंकिंग सिस्टम ध्वस्त होने की कगार पर पहुंच गया है, लेकिन प्रधानमंत्री इस तरफ कोई ध्यान नहीं दे रहे. बड़े-बड़े वित्तीय घोटाले बैंकों के माध्यम से हो रहे हैं, लेकिन बैंकों की शीर्ष स्तरीय साठगांठ और मिलीभगत पर उतनी चर्चा नहीं हो रही, जितनी होनी चाहिए. मीडिया भी विजय माल्या और नीरव मोदी की फरारी पर ताबड़तोड़ लगा है, लेकिन उन बैंकों और बैंक अधिकारियों की संलिप्तता पर कुछ नहीं बोल रहा, जो घोटालों में बराबर से शरीक रहे हैं. प्रधानमंत्री मोदी या वित्त मंत्री जेटली भी बैंकों के भ्रष्टाचार पर चुप हैं और भ्रष्टाचार के कारण बैंकों में हो रहे घाटों की भरपाई करने के लिए देश में नोटबंदी लागू कर देते हैं. अकूत भ्रष्टाचार और घोटालों में बैंकों की आपराधिक भूमिका पर प्रधानमंत्री या वित्त मंत्री की चुप्पी या तो मिलीभगत है या कोई भय... इन दो स्थितियों के अलावा कोई तीसरी स्थिति हो ही नहीं सकती. लिहाजा, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय वित्त मंत्री अरुण जेटली को देश के सामने आकर अपनी स्थिति स्पष्ट करनी चाहिए.
अखबारों और समाचार चैनेलों पर तो नहीं, लेकिन सोशल मीडिया पर नीरव मोदी के भाई नीशल मोदी की मुकेश और अनिल अम्बानी से नजदीकी रिश्तेदारी, नीरव मोदी की एक तरफ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अरुण जेटली से नजदीकी तो दूसरी तरफ कांग्रेस नेता कपिल सिब्बल, पी चिदंबरम और सोनिया के दामाद रॉबर्ड वाड्रा से करीबी के तमाम चर्चे सरगर्म हैं. इन मुद्दों पर सम्बद्ध लोगों को पब्लिक फोरम पर आकर सफाई पेश करनी ही चाहिए, लेकिन वे चुप हैं. मुकेश अम्बानी और अनिल अम्बानी को भी समाज के सामने आकर यह बताना चाहिए कि नीशल मोदी उनकी भांजी इशिता (धीरूभाई अम्बानी की बेटी दीप्ति सलगांवकर की बेटी) का पति है कि नहीं. पंजाब नेशनल बैंक के मुम्बई जोनल ऑफिस से सीबीआई को दी गई तहरीर में भी और सीबीआई की तरफ से दर्ज एफआईआर में भी नीरव मोदी के साथ-साथ उसका भाई नीशल मोदी नामजद अभियुक्त है. ऐसे में अम्बानी परिवार से सम्बन्धों को लेकर सधी चुप्पी संदेहास्पद है.
आपको यह बताते चलें कि नीरव मोदी, उसकी पत्नी अमि नीरव मोदी, भाई नीशल मोदी और मामा मेहुल चीनूभाई चोकसी की साझेदारी की तीन कंपनियों ‘डायमंड आर यूएस’, ‘सोलर एक्सपोर्ट्स’ और ‘स्टेलर डायमंड्स’ ने पंजाब नेशनल बैंक के साथ साठगांठ करके ‘लेटर ऑफ अंडरटेकिंग’ (एलओयू) के जरिए अरबों रुपए हड़प लिए. धन हड़पने का कुचक्र पिछले छह-सात वर्ष से चल रहा था. धीरे-धीरे इसकी गति बढ़ती गई. देश का धन हड़पने की स्पीड का आलम यह रहा कि महज तीन दिन में अरबों रुपए ‘सोख’ लिए गए. इसमें पंजाब नेशनल बैंक के साथ-साथ कुछ अन्य बैंकों की मिलीभगत रही. पंजाब नेशनल बैंक से सीबीआई को मिले दस्तावेज बताते हैं कि 09 फरवरी 2017 को ‘डायमंड आर यूएस’ के लिए 4415791.96 अमेरिकी डॉलर का एलओयू इलाहाबाद बैंक की हॉन्गकॉन्ग शाखा के नाम जारी हुआ. फिर 09 फरवरी 2017 को ही ‘सोलर एक्सपोर्ट्स’ के लिए 4335319.38 यूएस डॉलर का एलओयू इलाहाबाद बैंक की हॉन्गकॉन्ग शाखा के नाम जारी हो गया. 10 फरवरी 2017 को ‘डायमंड आर यूएस’ के लिए 5942017.70 यूएस डॉलर का एलओयू फिर इलाहाबाद बैंक की हॉन्गकॉन्ग शाखा के नाम जारी हुआ. 10 फरवरी 2017 को ही ‘सोलर एक्सपोर्ट्स’ के लिए भी 5843161.93 यूएस डॉलर का एलओयू इलाहाबाद बैंक की हॉन्गकॉन्ग शाखा के नाम जारी हुआ. फिर उसी दिन यानि 10 फरवरी 2017 को ही ‘स्टेलर डायमंड’ के लिए 6093321.10 यूएस डॉलर का एलओयू इलाहाबाद बैंक की हॉन्गकॉन्ग शाखा के नाम जारी कर दिया गया. 14 फरवरी 2017 को ‘डायमंड आर यूएस’ के लिए 5856885.00 यूएस डॉलर का एलओयू एक्सिस बैंक की हॉन्गकॉन्ग शाखा के नाम जारी हुआ. 14 फरवरी 2017 को ही ‘सोलर एक्सपोर्ट्स’ के लिए 5862251.03 यूएस डॉलर का एलओयू फिर से एक्सिस बैंक की हॉन्गकॉन्ग शाखा के नाम जारी हुआ. उसी दिन यानि 14 फरवरी 2017 को ही ‘स्टेलर डायमंड’ के लिए 5877064.00 यूएस डॉलर का एलओयू एक्सिस बैंक की हॉन्गकॉन्ग शाखा के नाम जारी हुआ. ये सारे एलओयू पंजाब नेशनल बैंक के मुम्बई जोन के तहत ब्रैडी हाउस स्थित मिड कारपोरेट शाखा से जारी हुए.
फरवरी 2017 के महज तीन दिनों में नीरव मोदी ‘गिरोह’ के लिए पंजाब नेशनल बैंक ने इलाहाबाद बैंक और एक्सिस बैंक की हॉन्गकॉन्ग शाखा के नाम 44225812.10 अमेरिकी डॉलर का एलओयू जारी किया. एलओयू जारी होते समय एक यूएस डॉलर की कीमत करीब 70 रुपए थी. यानि, भारतीय मुद्रा में 3095806847 रुपए. इन सभी लेटर ऑफ अंडरटेकिंग्स (एलओयू) का भुगतान विदेश से ऑपरेट कर रही एक्सपोर्ट्स कंपनियों ‘ऑरा जेम कंपनी लिमिटेड’, ‘साइनो ट्रेडर्स लिमिटेड’, ‘ट्राई कलर जेम्स एफजेडई’, ‘सनशाइन जेम्स लिमिटेड’, ‘युनिटी ट्रेडिंग एफजेडई’ और ‘पैसिफिक डायमंड्स एफजेडई’ ने उठा लिया. नीरव मोदी ‘गिरोह’ की कंपनियों को ‘लेटर ऑफ अंडरटेकिंग’ की सारी रकम 25 जनवरी 2018 तक क्लियर कर देनी थी, लेकिन इसके पहले ही घपले के सारे कर्ताधर्ता देश छोड़ कर जाते रहे. नीरव मोदी की पत्नी अमी नीरव मोदी पहले से अमेरिकी नागरिक है. अमी ने छह जनवरी को ही भारत छोड़ दिया. नीरव का मामा चोकसी चार जनवरी को देश छोड़ कर भाग गया था. नीरव मोदी का भाई नीशल मोदी बेल्जियम का नागरिक है. नीशल ने अमेरिका को भी अपना ठिकाना बनाया हुआ है. नीशल मोदी एक  जनवरी को ही भारत छोड़ कर भाग गया था. शातिर नीरव मोदी खेलता रहा. इस बीच वह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के डावोस दौरे में उद्योगपतियों के प्रतिनिधिमंडल में भी शामिल रहा और उसने पंजाब नेशनल बैंक से और लेटर ऑफ अंडरटेकिंग हासिल करने की कोशिश की. लेकिन इस दरम्यान पंजाब नेशनल बैंक के मुम्बई जोन के डिप्टी जनरल मैनेजर अवनीश नेपालिया ने घोटाले का भंडाफोड़ कर दिया. अंदरूनी जांच के बाद नेपालिया ने 29 जनवरी को अपनी लिखित तहरीर सीबीआई को दी. सीबीआई मुम्बई की बैंक स्कैम एंड फाइनैंशियल क्राइम सेल के एसपी शारदा राउत ने 31 जनवरी 2018 को एफआईआर दर्ज कर औपचारिक छानबीन शुरू कर दी. एफआईआर दर्ज करने के बाद 31 जनवरी को ही सीबीआई ने अभियुक्तों के खिलाफ ‘लुक-आउट नोटिस’ जारी की, लेकिन तब तक काफी देर हो चुकी थी. घोटाले की आखिरी महत्वपूर्ण कड़ी नीरव मोदी भी देश से फरार हो चुका था. सीबीआई ने अपनी पहली एफआईआर में 280 करोड़ रुपए के घोटाले का मामला दर्ज किया. पीएनबी के डिप्टी जोनल मैनेजर अवनीश नेपालिया ने भी अपनी तहरीर में 280.70 करोड़ के घपले का ही जिक्र किया था.
अब आपको उन तथ्यों की जानकारी दें जिसके बारे में आम जानकारी नहीं है. नीरव मोदी ‘गिरोह’ से जुड़ी वे कंपनियां जो विदेशों से ऑपरेट कर रही हैं, उनमें हॉन्गकॉन्ग से ऑपरेट करने वाली ‘ऑरा जेम कंपनी लिमिटेड’ महत्वपूर्ण है. यह इसलिए महत्वपूर्ण है कि इसके तार पनामा-गेट कांड से जुड़े हैं. ‘ऑरा जेम कंपनी लिमिटेड’ की नियंत्रक कंपनी ‘अटलांटिक सेन्सर लिमिटेड’ ने ही ‘ऑरा जेम’ को हॉन्गकॉन्ग में रजिस्ट्रार ऑफ कंपनीज़ के यहां 28 मई 2010 में पंजीकृत कराया था. ‘अटलांटिक सेंसर’ टैक्स चोरों के स्वर्ग ब्रिटिश वर्जिन द्वीपसमूह और पनामा पेपर्स मनी लॉन्ड्रिंग मामले से सीधे सम्बद्ध रही है. ‘अटलांटिक सेन्सर’ ने वर्ष 2012 में ‘ऑरा जेम’ की समस्त शेयर-होल्डिंग्स दुबई के सोनू शैलेश मेहता के नाम ट्रांसफर कर दी थी. वही मेहता वर्ष 2016 तक ‘ऑरा जेम’ का इकलौता निदेशक था. बाद में हॉन्गकॉन्ग के दिव्येश कुमार गांधी को निदेशक नियुक्त किया गया. नीरव मोदी ‘गिरोह’ के एलओयू का विदेश में भुगतान उठाने वाली कंपनियों में ‘साइनो ट्रेडर्स लिमिटेड’ भी शामिल है. यह कंपनी हॉन्गकॉन्ग में 22 फरवरी 2013 को पंजीकृत (नंबर:1865307) हुई थी. इसी तरह ‘सनशाइन जेम्स लिमिटेड’ भी हॉन्गकॉन्ग के कोउलून से ऑपरेट करती है. ‘ट्राई कलर जेम्स एफजेडई’ संयुक्त अरब अमीरात के शारजाह से, ‘युनिटी ट्रेडिंग एफजेडई’ दुबई से और ‘पैसिफिक डायमंड्स एफजेडई’ अजमान से ऑपरेट करती है. विदेशों से ऑपरेट कर रही इन्हीं कंपनियों ने नीरव मोदी ‘गिरोह’ की भारत की तीन कंपनियों के लिए जारी हुए 44225812.10 अमेरिकी डॉलर के एलओयू पर भुगतान ले लिया.
यह भुगतान उठाने के बाद भी नीरव मोदी ने पंजाब नेशनल बैंक से और एलओयू जारी करने का आवेदन दिया. लेकिन पीएनबी मुम्बई के डिप्टी जोनल मैनेजर ने इसे पकड़ा और जांच के लिए भेज दिया. हालांकि जानकार बताते हैं कि भ्रष्टाचार में शरीक पीएनबी के अधिकारियों ने एलओयू जारी करने के लिए अधिक रिश्वत देने की मांग शुरू कर दी थी. अधिक रिश्वत देने से नीरव मोदी के मना करने पर पीएनबी ने एलओयू जारी नहीं किया ओर वर्षों से चल रहा यह कुचक्र अचानक थम गया. इसके थमते ही एक विदेशी बैंक ने हांगकांग की नियामक एजेंसी के साथ-साथ भारतीय रिजर्व बैंक को भी इसकी सूचना भेज दी. इस तरह मामला खुल गया और रिजर्व बैंक द्वारा पूछने पर पंजाब नेशनल बैंक को मामले की अंदरूनी जांच कराने और सीबीआई में प्राथमिकी दर्ज कराने पर विवश होना पड़ा. तब यह भी भेद खुला कि एलओयू कांड में पंजाब नेशनल बैंक के साथ-साथ भारतीय स्टेट बैंक, इलाहाबाद बैंक, एक्सिस बैंक, यूनियन बैंक भी लिप्त हैं. भारतीय स्टेट बैंक के बाद पंजाब नेशनल बैंक ही देश का दूसरा सबसे बड़ा राष्ट्रीयकृत बैंक है. आधिकारिक तौर पर जो रकम घोटाले की बताई जा रही है वह 11,330 करोड़ रुपए यानि 1.8 अरब डॉलर है. वर्ष 2017 में पंजाब नेशनल बैंक की कुल आय 1320 करोड़ रुपए थी. साफ है कि घोटाले की रकम पीएनबी की सालाना आय से आठ गुना अधिक है. यही वजह है कि घोटाला उजागर होते ही शेयर बाजार में पंजाब नेशनल बैंक का शेयर धड़ाम हो गया और दूसरे बैंकों के शेयर भी अधर में झूलते रहे. जानकार बताते हैं कि भारत में हीरे और हीरे के जेवरात का व्यापार 70 हजार करोड़ रुपए से अधिक का है. इस व्यापार का मुख्य केंद्र गुजरात का सूरत और महाराष्ट्र का मुम्बई है. पूंजी-केंद्रित इस व्यापार में देश की छह बड़ी हस्तियों के नाम हैं, जिनमें से दो नीरव मोदी और मेहुल चोकसी के चेहरे से पर्दा हट चुका है. कुछ अन्य की बारी भी आने वाली है. नीरव मोदी ज्वेलरी डिजाइनर भी था और ढाई अरब डॉलर की कंपनी ‘फायर-स्टार डायमंड’ का मालिक भी. नीरव मोदी का नाम वर्ष 2013 में फोर्ब्स की भारतीय अरबपतियों की सूची में शामिल हो गया था और उसे देश के सबसे रईस लोगों की कतार में 46वां स्थान प्राप्त हुआ था. एलओयू घोटाले के दूसरे अभियुक्त नीरव मोदी का ‘शकुनी’ मामा मेहुल चीनूभाई चोकसी नक्षत्र, संगिनी रश्मि जैसे जेवर बनाने वाली कंपनी ‘गीतांजलि जेम्स’ का मालिक है. चोकसी घपलेबाजी में मास्टर-माइंड रहा है, सेबी ने भी इसकी कंपनी के खिलाफ कार्रवाई की थी. जनवरी 2017 में आयकर विभाग ने नीरव मोदी के घर और उसके करीब 50 ठिकानों पर छापेमारी की थी. उन्हीं दिनों नीरव के चोकसी मामा के भी ठिकानों पर आयकर का छापा पड़ा था. लेकिन विडंबना देखिए कि आयकर विभाग की उस कार्रवाई के अगले ही महीने इस तिकड़ी ने पंजाब नेशनल बैंक के जरिए अरबों रुपए उड़ा लिए. एलओयू का खेल भाजपा के लिए भी जाना बूझा हुआ है. भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह के बेटे अप्रत्याशित अकूत सम्पत्ति के मालिक जय शाह को भी एक प्राइवेट वित्तीय कम्पनी ने लेटर ऑफ क्रेडिट जारी किया था.
बहरहाल, नीरव मोदी घोटाला प्रकरण में कुछ सवाल अनछुए या अनुत्तरित ही रह गए. किसी भी बैंक द्वारा जारी होने वाले ‘लेटर ऑफ अंडरटेकिंग्स’ की जानकारी भारतीय रिजर्व बैंक को दी जाती है. वर्ष 2011 में ही पंजाब नेशनल बैंक की ओर से पहला एलओयू जारी हुआ, लेकिन उसे ‘कोर बैंकिंग सिस्टम’ (सीबीएस) में दर्ज क्यों नहीं किया गया? पीएनबी के शीर्ष प्रबंधन ने इस गंभीर खामी पर ध्यान क्यों नहीं दिया? भारतीय रिजर्व बैंक ने इस आपराधिक कोताही पर कार्रवाई क्यों नहीं की? ‘सोसाइटी फॉर दि वर्ल्डवाइड इंटरबैंक फाइनैंशियल टेलीकम्युनिकेशन’ (स्विफ्ट) कोड के जरिए विदेशी बैंकों से हो रहे लेनदेन को मॉनीटर क्यों नहीं किया जा रहा था? पंजाब नेशनल बैंक के विदेशी मुद्रा विनिमय विभाग (फॉरेन एक्सचेंज डिपार्टमेंट) ने शीर्ष अधिकारियों को इस बारे में त्वरित रूप से अलर्ट क्यों नहीं किया? कहीं ऐसा तो नहीं पीएनबी के शीर्ष प्रबंधन स्तर से ही इस मसले पर चुप्पी साधे रहने के निर्देश दिए गए थे? पंजाब नेशनल बैंक प्रबंधन अब यह कह रहा है कि बैंक के कुछ भ्रष्ट अफसरों ने अनधिकृत रूप से ‘स्विफ्ट-कोड’ के जरिए साढ़े ग्यारह हजार करोड़ रुपए विदेश भेज दिए. बैंक के शीर्ष प्रबंधन के पास इस सवाल का कोई जवाब नहीं है कि ऐसे संदिग्ध ट्रांजैक्शन पर अलर्ट संदेश जारी करने और ‘कोर-बैंकिंग सिस्टम’ में इसे दर्ज करने के अनिवार्य नियम का पालन क्यों नहीं किया गया? आधा दशक से भी अधिक समय से हो रही घपलेबाजी के प्रति आपराधिक अनदेखी के खिलाफ कोई कार्रवाई क्यों नहीं की गई? पंजाब नेशनल बैंक की तरफ से जारी अरबों डॉलर के एलओयू प्राप्त करने वाली इलाहाबाद बैंक या एक्सिस बैंक की विदेशी शाखाओं ने जारी एलओयू की पुष्टि के लिए ‘लेटर ऑफ कन्फर्मेशन’ भेजा था कि नहीं? अगर भेजा था तब पीएनबी प्रबंधन ने क्या कार्रवाई की? अगर नहीं भेजा तब पीएनबी प्रबंधन ने इस पर क्या कार्रवाई की? स्पष्ट है कि नीरव मोदी ‘गिरोह’ का घोटाला पंजाब नेशनल बैंक प्रबंधन के साथ-साथ अन्य सम्बद्ध बैंकों की मिलीभगत से चल रहा था.

चौकसी में फेल और कार्रवाई में नाकारा साबित हुआ सरकार का तंत्र
केंद्र सरकार का तंत्र घोटालेबाजों पर चौकसी बरतने में फेल हो गया और सारे अभियुक्त बड़े आराम से फरार हो गए. अभियुक्तों के विदेश भाग जाने के कारण कानूनी कार्रवाइयों की औपचारिकता बिल्कुल आधी रह गईं. सरकारी तंत्र के नाकारेपन की स्थिति अब यह है कि प्रवर्तन निदेशालय (इन्फोर्समेंट डायरेक्टरेट) सम्मन जारी करता है और अभियुक्त उसे इन्कार करके वापस भेज देता है. नीरव मोदी ‘गिरोह’ ने भी निदेशालय के समक्ष हाजिर होने से इन्कार कर दिया है. यही हाल विदेश मंत्रालय का भी है. विदेश मंत्रालय ने भी नीरव मोदी ‘गिरोह’ को नोटिस भेजने की औपचारिकता निभाई है और जवाब का इंतजार कर रहा है. विदेश मंत्रालय ने भगोड़े अभियुक्तों का अब तक पासपोर्ट भी रद्द नहीं कर पाया है. मंत्रालय का अजीबोगरीब तर्क है कि नीरव मोदी ‘गिरोह’ की तरफ से जवाब मिलने के बाद उस हिसाब से कार्रवाई की जाएगी. मंत्रालय जवाब से संतुष्ट नहीं हुआ तब उसका पासपोर्ट रद्द किया जाएगा. विदेश मंत्रालय का यह रुख बताता है कि वह जवाब मिलने के पहले से ही संतुष्ट है. उधर, प्रवर्तन निदेशालय ने कहा कि नीरव मोदी घोटाला मामले में अब तक 5,826 करोड़ रुपए की सम्पत्ति व अन्य कीमती सामान जब्त किए गए हैं. प्रवर्तन निदेशालय ने नीरव मोदी और मेहुल चोकसी के 94.52 करोड़ रुपए कीमत के म्युचुअल फंड्स और शेयर भी जब्त किए हैं. इनमें से 86.72 करोड़ रुपए के म्युचुअल फंड्स और शेयर चोकसी के और 7.80 करोड़ रुपए फंड्स और शेयर के नीरव मोदी के हैं.
प्रवर्तन निदेशालय ने नीरव मोदी की नौ लग्जरी कारें भी जब्त की हैं. इन कारों में एक रॉल्स रॉयस घोस्ट, एक मर्सिडीज बेंज, एक पोर्श पनामेरा, होंडा की तीन कारें, एक टोयोटा फॉर्चुनर और एक इनोवा शामिल है. सीबीआई इस मामले की जांच कर ही रही है. सीबीआई की दूसरी एफआईआर में गीतांजलि ग्रुप की तीन कंपनियों के नाम शामिल किए गए हैं.

कई नेता हैं नीरव मोदी ‘गिरोह’ के ‘मनी-ट्रैप’ में
पीएनबी घोटाले से जैसे-जैसे परतें हट रही हैं, वैसे-वैसे कई राजनीतिक दलों के लोगों से नीरव मोदी ‘गिरोह’ के जुड़े होने की बातें सामने आ रही हैं. लेकिन दोनों ओर से प्रवक्ताओं के आरोप-प्रत्यारोपों की आड़ लेकर संदर्भित नेता शातिराना चुप्पी साधे बैठे हैं. नीरव मोदी ‘गिरोह’ की जिन डेढ़ सौ शेल कंपनियों का पता चल रहा है उनमें से कई कंपनियां एक नव-सत्ताधारी राजनीतिक दल से जुड़ी बताई गई हैं. जानकार बताते हैं कि शेल कंपनियों का इस्तेमाल कालेधन को खपाने के लिए किया जाता है. वर्ष 2010 से 2014 के बीच पीएनबी और केनरा बैंक ने मिल कर ऐसी ही एक कंपनी को 5,86,50,00,000 रुपए का लोन दिया था. इस कंपनी के निदेशक उसी नव-सत्ताधारी राजनीतिक दल को दो करोड़ रुपए का चंदा देने के मामले में सुर्खियों में आए थे. दो सौ करोड़ में एक वरिष्ठ कांग्रेसी नेता के लिए आलीशान घर खरीदने में नीरव मोदी का नाम पहले से आयकर नेट पर है. कुख्यात हथियार डीलर अदनान खशोगी के खास हसन अली खान से नीरव मोदी की नजदीकियां और स्विट्ज़रलैंड के बैंक अकाउंट जमा कराए गए 48 करोड़ रुपए का रहस्य भी अब खुलने ही वाला है. प्रवर्तन निदेशालय के सूत्र बताते हैं कि एक वरिष्ठ कांग्रेसी नेता के दुबई के बैंक खाते में जमा कराए गए 14.5 करोड़ रुपए की भी जांच की जा रही है. एक नेता की पत्नी तो नीरव मोदी की कंपनी में डायरेक्टर तक रही हैं.

आरबीआई का फरमानः अगर बैंक डूबा तो आपका पैसा भी डूबा
पंजाब नेशनल बैंक महाघोटाले के बाद इसकी भरपाई करने में पीएनबी समेत सभी सम्बद्ध बैंकों की हालत खराब हो जाएगी. अगर केंद्र सरकार ने ‘बेलआउट-पैकेज’ देने से मना कर दिया तो बैंकों में जमा आम ग्राहकों के पैसे पर आफत आ सकती है. भारतीय रिजर्व बैंक का नया नियम भी कहता है कि बैंक डूब गया तो उसमें जमा आपका पैसा भी डूब गया. बैंक में आपका करोड़ रुपया भी जमा हो और अगर बैंक डूब जाए तो आपको केवल एक लाख रुपए ही प्राप्त होंगे, बाकी रकम डूब जाएगी. इसी अंधेरगर्दी की तरफ हम तेजी से बढ़ रहे हैं. रिजर्व बैंक ने जमाकर्ताओं को उनके जमा धन पर मिलने वाले इन्श्योरेंस कवर को लेकर कुछ नियम बनाए हैं. डिपॉजिट इन्श्योरेंस एंड क्रेडिट गारंटी कॉर्पोरेशन (डीआईसीजीसी) के नाम से बने इस नियम के अनुसार बैंकों में आपके द्वारा जमा किए गए रकम में से केवल एक लाख रुपए का इन्श्योरेंस कवर है. यह कवर सभी तरह के खातों पर लागू होगा. आरबीआई की वेबसाइट पर भी यह नियम प्रदर्शित है.

पहले ही वायरल हो गया था नीरव मोदी की ‘फरारी’ वाला विज्ञापन!
हजारों करोड़ का घोटाला करने वाले नीरव मोदी ‘गिरोह’ का एक विज्ञापन आजकल चर्चा में है. इस विज्ञापन में फिल्म अभिनेत्री प्रियंका चोपड़ा और अभिनेता सिद्धार्थ मल्होत्रा हैं. इस विज्ञापन के जरिए काफी पहले ही फरारी-गाथा रचे जाने का संकेत दे दिया गया था. हीरे के जेवरात से सम्बन्धित विज्ञापन में प्रियंका चोपड़ा सिद्धार्थ मल्होत्रा को बता रही हैं कि उनका एक जानने वाला शख्स बैंक से बड़ा लोन लेकर देश छोड़कर भाग गया है. यह विज्ञापन सोशल मीडिया में खूब वायरल हो रहा है. कहते हैं कि नीरव मोदी ने इस विज्ञापन को खुद ही यू-ट्यूब पर भी अपलोड किया था. दूसरी तरफ कुछ फिल्म अभिनेत्रियों ने नीरव मोदी ‘गिरोह’ पर धोखाधड़ी करने का भी आरोप लगाया है. फिल्म अभिनेत्री कंगना रानावत और विपाशा बसु ने नीरव मोदी के रिश्तेदार और जूलरी ब्रांड के मालिक मेहुल चोकसी पर बकाया भुगतान न करने और कॉन्ट्रैक्ट तोड़ने का आरोप लगाया है. कंगना रानावत को मेहुल की कंपनी से पैसे मिलने बाकी थे, जबकि बॉन्ड पूरा हो चुका था. विपाशा बसु ने कहा है कि वे चोकसी से जुड़े एक ब्रैंड को प्रमोट करने का काम करती थीं. करार की अवधि पूरी होने के बाद विपाशा के मैनेजर ने चोकसी को विपाशा की फोटो का इस्तेमाल बंद करने की सलाह दी, लेकिन चोकसी विपाशा की फोटो अपने ब्रांड प्रमोशन के लिए इस्तेमाल करते रहे पर उन्हें दूसरा कॉन्ट्रैक्ट नहीं दिया.

बैंकों के एनपीए घोटाले की अनदेखी कर रही सरकार
बैंकिंग सेक्टर से जुड़े संगठन बैंकों के डूबे हुए कर्ज यानि ‘नॉन परफॉर्मिंग ऐसेट’ (एनपीए) के खिलाफ लगातार आंदोलन चला रहे हैं. उन संगठनों और बैंकिंग विशेषज्ञों का भी मानना है कि एनपीए बैंकों के घोटालों में लिप्त होने का परिणाम है. लेकिन केंद्र सरकार इस अकूत घोटाले की लगातार अनदेखी कर रही है. विजय माल्या से लेकर नीरव मोदी समेत तमाम पूंजीपशुओं के ऋण लेकर भाग जाने की घटनाएं सीधे तौर पर बैंकों की मिलीभगत की तरफ इशारा करती हैं, लेकिन सरकार बैंकों के खिलाफ कार्रवाई करने से कन्नी काट रही है. अगर ठीक से जांच हो जाए तो बैंकों का एनपीए घोटाला ही अकेले एक लाख करोड़ से अधिक का घोटाला साबित होगा.

बैंक हैं घोटालेबाज, प्रमाण के बावजूद कार्रवाई नहीं करती केंद्र सरकार
भ्रष्टाचार और वित्तीय घोटालों में बैंकों के लिप्त होने के प्रमाण सरकार के हाथ में हैं, लेकिन सरकार कोई कार्रवाई नहीं कर रही. सरकार में शामिल मंत्रियों, नेताओं और नौकरशाहों के इसमें लिप्त रहने के कारण कार्रवाई कती संभव नहीं. इस संदर्भ में आपको यह बता दें कि नोटबंदी लागू होने के एक महीने पहले यह आधिकारिक तौर पर खुलासा हुआ था विभिन्न बैंकों के जरिए बहुत बड़ी तादाद में काले धन का ट्रांजैक्शन हो रहा है. विभिन्न बैंक पैन नंबर दर्ज किए बगैर करोड़ों और अरबों रुपए का लेन-देन कर रहे हैं. इस तरह के सात लाख बड़े व सामूहिक लेन-देन (क्लस्टर ट्रांजैक्शन) से सम्बन्धित लोगों को नोटिसें भेजी गई थीं, लेकिन उनमें से छह लाख 90 हजार नोटिसें ‘एड्रेसी नॉट फाउंड’ लिख कर वापस आ गईं. यानि, सात लाख बड़े ट्रांजैक्शंस में जो पते लिखाए गए थे, उन पतों पर कोई मिला ही नहीं. न नाम का पता चला, न पते पर कोई पाया गया और न उनके केवाईसी (नो योर कस्टमर) का कोई ब्यौरा मिला. 90 लाख बैंक ट्रांजैक्शन पैन नंबर के बगैर हुए, जिनमें 14 लाख बड़े (हाई वैल्यू) ट्रांजैक्शन हैं और सात लाख बड़े जोखिम वाले (हाई-रिस्क) ट्रांजैक्शन हैं. इन्हीं सात लाख ट्रांजैक्शन के सिलसिले में नोटिसें जारी हुई थीं, जो लौट कर वापस आ गईं. यह बैंकों के घोटाले में शामिल होने का आधिकारिक प्रमाण था, लेकिन केंद्र सरकार ने बैंकों पर कार्रवाई करने के बजाय उस खाई को पाटने के लिए नोटबंदी का फरमान जारी कर दिया.
सरकार को आधिकारिक तौर पर पता चल गया है कि विभिन्न बैंकों के माध्यम से काले धन का ट्रांजैक्शन धड़ल्ले से हो रहा है, लेकिन केंद्र सरकार बैंकों की करतूतों पर पर्दा डालने का काम कर रही है. वित्त मंत्रालय के एक आला अधिकारी ने कहा कि करोड़ों और अरबों रुपए के लेन-देन में बैंकों द्वारा पैन नंबर की अनिवार्यता का ध्यान नहीं रखा जाना और केवाईसी नॉर्म्स का पालन नहीं किया जाना साफ तौर पर घोटालों में बैंकों की मिलीभगत का प्रमाण है. तकनीकी व्यवस्था है कि एक वर्ष की अवधि में भी अगर 10 लाख रुपए डिपॉजिट हुए या लेन-देन हुआ तो वह फाइनैंशियल इंटेलिजेंस यूनिट (वित्तीय खुफिया इकाई) के समक्ष खुद ब खुद फ्लैश करने लगेगा. लेकिन वह फ्लैश नहीं हुआ. इससे स्पष्ट हो गया कि बैंक केवाईसी नियमों और पैन नंबर इंट्री के नियम का पालन नहीं कर रहा है. आयकर विभाग के अनुसंधान अधिकारी कहते हैं कि बैंक के माध्यम से हो रहा नॉन पैन ट्रांजेक्शन काले धन को सफेद करने के धंधे (मनी लॉन्ड्रिंग) का प्रमुख जरिया बना हुआ है. पैन नंबर दर्ज किए बगैर होने वाले लेन-देन के लिए सीधे तौर पर बैंक दोषी हैं, फिर भी कुछ मामूली अफसरों की गर्दन नापने के सिवा बैंकों के शीर्ष प्रबंधन पर इसका कोई दायित्व तय नहीं होता. प्रवर्तन निदेशालय के एक अधिकारी ने कहा कि विदेशी बैंकों में जमा काला धन वापस लाना संभव नहीं है क्योंकि इसमें बड़े नेता, बड़े नौकरशाह, बड़े उद्योगपति और बड़े सामर्थ्यवान दलाल शामिल हैं. काला धन जमा करने का सबसे बड़ा स्रोत देश स्विट्जरलैंड के बैंकों में खाता खोलने की न्यूनतम राशि ही 50 करोड़ डॉलर होती है. इससे भारत से काला धन ले जाने वालों की औकात का अंदाजा लगाया जा सकता है. हवाला के जरिए देश का धन बेतहाशा दूसरे देशों में जा रहा है. फेमा (फॉरेन एक्सचेंज मेंटेनेंस एक्ट) आने से हवाला का धंधा करने वालों पर फेरा (फॉरेन एक्सचेंज रेगुलेशन एक्ट) जैसे सख्त कानून का भी खौफ नहीं रहा. शुरुआती दौर में स्विस बैंक एसोसिएशन ने कहा था कि गोपनीय खातों में भारत के लोगों की 1,456 अरब डॉलर की राशि जमा है. लेकिन भारत सरकार ने इसे हासिल करने की कोई कारगर पहल नहीं की. बताया जाता है कि भारतीय मुद्रा में 300 लाख करोड़ रुपए का काला धन अकेले स्विस बैंकों में जमा है. उस समय एक आकलन भी आया था कि उक्त राशि भारत को वापस मिल जाए तो देश के प्रत्येक जिले को 50,000 करोड़ रुपए मिल जाएंगे. लेकिन विजय माल्या से लेकर नीरव मोदी प्रकरण ने आम लोगों की इस उम्मीद को धुआं धुआं कर दिया. प्रवर्तन निदेशालय के एक आला अधिकारी ने बताया कि नोटबंदी के बाद बैंकों के अधिकारियों ने काला धन सफेद करने के एवज में अंधाधुंध कमाई की. बैंक अधिकारी भी मालामाल हो गए और काला धन के जमाखोर भी 30 प्रतिशत कमीशन देकर रुपए बटोर ले गए. आम नागरिक एटीएम और बैंक काउंटर की लंबी कतार में लग कर अपनी ईमानदारी से कमाई रकम लेने के चिरौरियां करता रहा और अपमानित होता रहा.

देश छोड़ कर नहीं भागे ‘पान-पराग फेम’ विक्रम कोठारी, बाप-बेटे गिरफ्तार
पंजाब नेशनल बैंक घोटाले के उजागर होने के दरम्यान ही यूपी के कानपुर में पांच हजार करोड़ का बैंकिंग घोटाला सामने आ गया. इस घोटाले के तार कानपुर के प्रसिद्ध ‘पान-पराग’ फेम उद्योगपति विक्रम कोठारी से जुड़े हैं. हालांकि पारिवारिक बंटवारे के बाद विक्रम कोठारी के हिस्से में रोटोमैक ग्लोबल कंपनी आई, लेकिन इसके बाद भी कोठारी ‘पान-पराग’ से ही मशहूर हैं. रोटोमैक कम्पनी के विस्तार के लिए विक्रम कोठारी ने पांच हजार करोड़ से अधिक बैंक लोन लिया था. बैंकों ने रोटोमैक के घाटे की अनदेखी कर कोठारी को अंधाधुंध लोन दिया, लेकिन भुगतान के वक्त कोठारी भाग खड़े हुए. अब विक्रम कोठारी की कंपनी पर ताला लगा है. बैंकों ने कोठारी पर मुकदमा कर रखा है और कोठारी ने बैंकों पर. इस गुत्थी को कानूनी पेंचों में उलझा कर कोठारी देनदारी से बचने की जुगत लगा रहे हैं.
विक्रम कोठारी को लोन देने वाले पांच बड़े बैंकों में इंडियन ओवरसीज़ बैंक, बैंक ऑफ इंडिया, बैंक ऑफ बड़ौदा, यूनियन बैंक और इलाहाबाद बैंक के नाम सामने आ चुके हैं. इसमें इंडियन ओवरसीज बैंक ने कोठारी की बीमारू कंपनी को 1400 करोड़ रुपए का लोन दे दिया. बैंक ऑफ इंडिया ने 1395 करोड़ का लोन दिया. बैंक ऑफ बड़ौदा ने 600 करोड़ रुपए का लोन दिया. यूनियन बैंक ने 485 करोड़ रुपए का लोन दिया और इलाहाबाद बैंक ने 352 करोड़ रुपए का लोन दिया. कानपुर के मशहूर व्यापारी विक्रम कोठारी पान पराग समूह से जुड़े रहे हैं. 18 अगस्त 1973 को मनसुख भाई कोठारी ने पान पराग का उत्पादन शुरू किया था. सन् 1983 से 1987 के बीच ‘पान पराग’  सबसे बड़ी विज्ञापनदाता कंपनी बन गई. मनसुख भाई कोठारी की मृत्यु के बाद उनके बेटे दीपक कोठारी और विक्रम कोठारी में बंटवारा हो गया. विक्रम कोठारी के हिस्से में कलम बनाने वाली कंपनी ‘रोटोमैक’ आई. प्रसिद्ध फिल्म अभिनेता सलमान खान कभी ‘रोटोमैक’ कंपनी के ब्रैंड अम्बैसेडर हुआ करते थे. सलमान ने ‘रोटोमैक’ पेन के लिए काफी विज्ञापन भी किए. कभी इस कंपनी ने काफी मुनाफा कमाया. लेकिन आज यह घाटे के कारण बंदी के कगार पर है. विक्रम कोठारी को डिफॉल्टर घोषित किया जा चुका है. उन पर 600 करोड़ का चेक बाउंस होने का भी केस दर्ज है. लेकिन तमाम आशंकाओं के बावजूद विक्रम कोठारी देश छोड़ कर नहीं भागे और आखिरकार विक्रम कोठारी और उनके बेटे राहुल कोठारी को सीबीआई ने गिरफ्तार कर लिया. कोठारी परिवार पर कुल 3,700 करोड़ रुपए का लोन हड़पने का आरोप है.

Wednesday 21 February 2018

इन्वेस्टर्स समिट लखनऊ... मंच से प्रपंच

प्रभात रंजन दीन
लखनऊ में 'इन्वेस्टर्स समिट' में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी उत्तर प्रदेश के गन्ना, आलू, धान, गेहूं, सब्जियों और फल के रिकॉर्ड उत्पादन पर गर्व जताते हुए उद्योगपतियों को यूपी में पैसा लगाने के लिए लुभा रहे थे. उस समय इंदिरा गांधी प्रतिष्ठान के आलीशान सभागार में बैठे-बैठे मुझे फ्लैशबैक में विधानसभा के सामने गन्ना जलाते किसानों की तस्वीरें दिख रही थीं और मुख्यमंत्री के घर के सामने बिखरे और कुचले हुए आलू का दर्दनाक मंजर दिखाई दे रहा था. मंच से गर्वोक्ति का ऐसा प्रपंच किसानों के साथ-साथ उनकी पीड़ा समझने वाले संजीदा लोगों को गहरे आक्रोश से भरता है, तन और मन को अंदर तक दहकाता है. किसानों को हम उनकी फसलों की लागत तो दे नहीं पाते और बड़ी-बड़ी बातें बोल-बोल कर उद्योगपतियों को लुभाते हैं...
मंचों से ऐसी ‘ऊंची’ बोलियां अभी और तेज होंगी... अब तो फिर लोकसभा चुनाव आने वाला है. अभी पिछले ही साल तो विधानसभा का चुनाव बीता है. इस बीच भी कई राज्यों में विधानसभा चुनाव होने हैं. यानि चुनाव चुनाव चुनाव.... सत्तर साल से हम केवल चुनाव ही देखते रह गए. अब तो नेता पर चुनाव का खुमार देखते ही मगज पर बुखार चढ़ जाता है. यह बुखार पूरी जन-जमात तक पहुंचे, यही कामना है, जबरदस्ती थोड़े ही है. यह जो मैं लिख रहा हूं उसमें गद्य भी है, पद्य भी है, कविता भी है और अकविता भी... सब गड्डमड्ड, भारतीय लोकतंत्र जैसा. है तो बहुत ही अजीब मेरा यह सोचना. लेकिन आज के प्रसंग में बहुत ही वाजिब और सटीक है. चूकी यह बहुत ही वाजिब और सटीक है, इसीलिए बहुत ही अजीबोगरीब है...

...कि मैं मरे हुए गन्ने और सड़क पर फेंकी गई फसलों की लाशें ढो रहा हूं,
कि मैं सियासत के गंदे पैरों से कुचली गई खेतों की मेड़ों को नमामि-गंगे से धोने का जतन कर रहा हूं,
कि मैं उन खेतों में नाखून से हल चला कर लोकतंत्र के बीज बोने की कोशिश कर रहा हूं,
अजीब तो हूं ही मैं...

कि मेरी भृकुटियां बगावत करती हैं,
कि मेरे नथुने राष्ट्र-समाज को नष्ट करने वाले नेताओं को देख कर फड़कने लगते हैं,
कि मेरे पैने नाखून खेत कोड़ना छोड़ कर मुंह नोचने के लिए उद्धत होने लगते हैं,
कि नेताओं के चेहरे और चोंचले मेरी आंखों के आगे जादू नहीं जगाते, असली और खौफनाक दिखते हैं,
कि जब भी फर्जी लोकतंत्र के बेमानी मतदान का वक्त आता है,
तो अपने ही खिलाफ मैं आंदोलन के लिए निकल पड़ता हूं,
अपने ही मत और अपने ही अधिकार के खिलाफ खड़ा हो जाता हूं,
मत का मतलब और अधिकार के औचित्य पर सवाल उठाने लगता हूं,
अजीबोगरीब तो हूं ही मैं.

मेरे उपजाए गन्ने से उनके जीवन में शक्कर की सुरसुराहट हो..!
मेरे खेत की सब्जियां कौड़ियों में उखड़ जाएं, उनकी बेशकीमती प्लेटों में वेश्या की तरह सज जाएं..!
मेरे खेत का अनाज उनके दलाल-स्टोर में बंधक बन जाए, उनकी कमाई, हमारी गंवाई का जरिया बन जाए..!
हमारी फसलें उनके पेट में पकें, हमारे पेट लोहार की धधकती भट्ठी की तरह तपें..!
हमारे पशुओं का दूध उनकी नस्लों को सुधारे, हमारी नस्लें स्वर्ग सिधारे..!
हम अपनी कसी मुट्ठियों में बंद वोट के बारूद से कब फाड़ेंगे छद्म-लोकतंत्र का फर्जी अंतरिक्ष..!
कब पूरा होगा अपनी जगती आंखों का सपना, तमाशबीन बन कर कब तक यूं ही होगा तकना..!
कहते हैं कि बसंत आ चुका है और होली आने वाली है...
होली जब भी आए, होलिका की आग भीतर चटख-चटख कर लगातार दहक रही है.
काश ऐसा हो कि नेता गांवों में वोट मांगने निकले तो बिन जुते खेतों में दफ्न अनाज की लाशें
अचानक एक साथ उठ खड़ी हों,
जले हुए गन्ने की आत्माएं एक साथ अचानक हुंकार कर उठें,
कि नेता राजनीति ही नहीं अपनी नस्ल तक भूल जाए.
ऐसा ही सोचता हूं, ऐसा ही मनाता हूं, अजीब और गरीब तो हूं ही मैं...

Thursday 15 February 2018

यह बच्चों की सुनियोजित हत्या है...

प्रभात रंजन दीन
नवजात शिशुओं की कोमल देह पर सूरजमुखी का तेल घिस कर सैकड़ों शिशुओं को मार डाला गया. अनगिनत बच्चे बुरी तरह जख्मी हुए. जो शिशु बच गए उनके शरीर पर बड़े-बड़े घाव निकल आए. उनकी कोमल त्वचा फटने लगी और वे घातक संक्रमण का शिकार हुए. आप उन बच्चों की तस्वीरें देखेंगे तो आपके रोंगटे खड़े हो जाएंगे और आपके मन में स्वाभाविक मानवीय सवाल उठेंगे कि वे पाशविक और बर्बर तत्व कौन थे जिन्होंने नवजात शिशुओं के साथ ऐसी आपराधिक हरकत की? तो आप इसका जवाब भी सुन लें. नवजात शिशुओं पर सूरजमुखी का तेल घिस कर उन्हें मार डालने के पाशविक दुष्प्रयोग में केंद्र सरकार के राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन (एनएचएम) की उत्तर प्रदेश इकाई, एक एनजीओ कम्युनिटी इम्पावरमेंट लैब और बिल एंड मेलिंडा गेट्स फाउंडेशन की तिकड़ी शरीक है. इसके पीछे गेट्स फाउंडेशन की अकूत फंडिंग है, जिसे चाटने के लिए सरकार से लेकर नौकरशाह और धंधेबाज संस्थाएं अपने ही देश के बच्चों और मांओं को खतरनाक रसायनों को परखने का उपकरण बना देते हैं. दुष्प्रयोगों के बाद सरकार और संस्थाएं सब भाग खड़ी होती हैं और भुक्तभोगी दर्दनाक मौत झेलने के लिए छोड़ दिए जाते हैं. शीर्ष अदालतें भी ऐसे अमानवीय दुष्प्रयोगों पर संदेहास्पद कन्नी काट लेती हैं. ऐसा ही नवजात शिशुओं की दर्दनाक मौत के मसले में भी हुआ. मीडिया के चारित्रिक स्खलन की तो कोई सीमा ही नहीं. सामाजिक सरोकारों से जुड़े मुद्दे भी वही उछाले जाते हैं जिनमें मीडिया का अपना राजनीतिक पूर्वाग्रह और आर्थिक आग्रह होता है. उत्तर प्रदेश में महज डेढ़ साल में सौ से अधिक नवजात शिशुओं की मौत पर मीडिया ने शातिराना उपेक्षा बरती. गोरखपुर मेडिकल कॉलेज में 50-60 बच्चों की मौत का मसला भी इसलिए उठा कि उसके पीछे राजनीतिक हित सध रहा था और सरकार उसे सही तरीके से ‘मैनेज’ नहीं कर पाई. घटना के विस्तार में जाएंगे, उसके पहले यह बताते चलें कि जिन दो जिलों में नवजात शिशुओं के मरने और बुरी तरह जख्मी होने की भयावह घटना घटी, वहां के लोग कहते हैं कि मरने वाले शिशुओं की तादाद चार सौ से कम नहीं है. हमने सौ शिशुओं की मौत का जिक्र इसलिए किया कि यह आंकड़ा इलाहाबाद हाईकोर्ट के सामने औपचारिक तौर पर पेश हो चुका है. उदाहरण के बतौर हम आपके समक्ष 10 नवजात शिशुओं की मौत का ब्यौरा पेश करेंगे और इतने ही जख्मी बच्चों के बारे में बताएंगे. ‘चौथी दुनिया’ के पास अमेठी और रायबरेली के विभिन्न गांवों के ऐसे कई भुक्तभोगी परिवारों के रिकॉर्डेड बयान भी हैं जो उनके नवजात शिशुओं पर तेल घिसे जाने की त्रासद घटना का पर्दाफाश करते हैं.
आपने देखा ही कि किस तरह केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने बिल एंड मेलिंडा गेट्स फाउंडेशन के साथ साठगांठ कर देश के 145 जिलों में जन्म-दर कम करने के लिए ‘मिशन परिवार विकास’ के नाम पर महिलाओं को ‘डिम्पा’ इंजेक्शन चुभोने का अभियान चला रखा है. ‘डिपो मेड्रॉक्सी प्रोजेस्टेरोन एसीटेट’ (डिम्पा) दवा खूंखार यौन अपराधियों की यौन ग्रंथी नष्ट करने की सजा (केमिकल कैस्ट्रेशन) में इस्तेमाल की जाती है. ‘चौथी दुनिया’ ने पिछले दो अंकों में केंद्र सरकार की इस करतूत का सिलसिलेवार और तथ्यवार पर्दाफाश किया, लेकिन सरकार ने इस अमानवीय आपराधिक अभियान को वापस नहीं लिया. इस प्रसंग में भी मीडिया ने शातिराना चुप्पी साधे रखी. समाचार चैनल न्यूज-24 ने खबर उठाई भी तो उसे आखिर में झूठा बता दिया. ‘चौथी दुनिया’ ने अपने पिछले अंक में न्यूज-24 के उस कृत्य को भी प्रामाणिकता के साथ ‘एक्सपोज़’ किया.
नवजात शिशुओं पर सूरजमुखी का तेल घिसने का दुष्प्रयोग ‘डिम्पा-अभियान’ के पहले किया गया. इसके लिए उत्तर प्रदेश के दो जिले अमेठी और रायबरेली चुने गए थे. बिल एंड मेलिंडा गेट्स फाउंडेशन की फंडिंग पर चलने वाली योजना नवजात शिशुओं के शरीर पर सूरजमुखी का तेल घिसने की थी. कहा गया कि नवजात शिशुओं की मृत्यु-दर कम करने के लिए शिशुओं की देह पर सूरजमुखी का तेल मला जाएगा. लेकिन असलियत में इसके पीछे का इरादा नवजात शिशु मृत्यु-दर कम करना नहीं, बल्कि शिशुओं के शरीर पर ‘कोल्ड प्रेस्ड सनफ्लावर सीड ऑयल’ घिस कर उसका असर देखना था. यह सबगेट्स फाउंडेशन के इशारे पर हो रहा था और उसके लिए जरिया बना केंद्र सरकार का राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन और लखनऊ की एक गैर सरकारी संस्था (एनजीओ) कम्युनिटी इम्पावरमेंट लैब. राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन की उत्तर प्रदेश इकाई के तत्कालीन निदेशक अमित कुमार घोष ने इस आपराधिक कृत्य में एनजीओ को मदद पहुंचाने का बीड़ा उठाया और अमेठी और रायबरेली के मुख्य चिकित्सा अधिकारियों को बाकायदा लिखित आदेश (एसपीएमयू/एनएचएम/सीएच/18-9-4/2015-15/3329/30, दिनांकः 30.10.2014) जारी कर दिया कि इस कृत्य में वे एनजीओ की मदद करें. शासन का आदेश पाकर दोनों जिलों के सीएमओ ने सभी सरकारी अस्पतालों के अधीक्षकों कोयही फरमान जारी कर दिया. एनजीओ के प्रमुख डॉ. विश्वजीत कुमार की सरकार में कितनी पैठ है, इसका अंदाजा इससे ही लगाया जा सकता है. यह तुगलकी फरमान जारी करने के पहले राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन या उसके सहयोगी सरकारी उपक्रम ‘सिफसा’ (राज्य परिवार नियोजन सेवा अभिनवीकरण परियोजना एजेंसी) ने न तो तेल की तकनीकी या उसके विषैलेपन की वैज्ञानिक जांच कराई और न एनजीओ से ही इसकी जांच कराने को कहा. सीधे नवजात शिशुओं के शरीर पर तेल घिसने की मंजूरी दे दी. एनएचएम निदेशक ने अपने सरकारी आदेश-पत्र में एनजीओ के मालिक विश्वजीत कुमार को देश का मशहूर पब्लिक हेल्थ साइंटिस्ट बता कर एनजीओ के साथ अपनी साठगांठ पर आधिकारिक मुहर लगा दी.
नवजात शिशुओं के शरीर पर खतरनाक तेल घिसने की परियोजना दो वर्ष (जनवरी 2015 से लेकर दिसम्बर 2016) के लिए थी. एनजीओ खुद यह मानता है कि अमेठी और रायबरेली के 276 गांवों के 41 हजार 72 नवजात शिशुओं की देह पर सूरजमुखी का तेल घिसा गया. लिहाजा, इलाके के लोगोंकी इस बात में दम है कि तेल की घिसाई के कारण तीन-चार सौ नवजात शिशुओं की मौत हुई. सौ नवजात शिशुओं की मौत का संदर्भ हाईकोर्ट के संज्ञान में आ चुका है. सूरजमुखी तेल की घिसाई के कारण सौ बच्चों के मरने की मौत तो छोड़िए,सरकार ने अपने दस्तावेज में एक भी बच्चे की मौत को शुमार नहीं किया है. एनजीओ ने भी शासन को ऐसी कोई रिपोर्ट न देकर सबूत छिपाने और मिटाने का आपराधिक कृत्य किया है. एनजीओ से जुड़े लोग ही यह कहते हैं कि एक समय ऐसा भी आया जब खुले बाजार से सनफ्लावर रिफाइंड ऑयल खरीद कर शिशुओं के शरीर पर घिसवा दिया गया. एनजीओ रायबरेली के शिवगढ़ से अपना कैंप ऑफिस चला रहा था और तेल की कारगुजारी वहीं से ऑपरेट हो रही थी.
कम्युनिटी इम्पावरमेंट लैब ‘सक्षम स्नेह नवजात शिशु तेल’ के नाम पर सूरजमुखी का तेल (कोल्ड प्रेस्ड सन फ्लावर सीड ऑयल) मुफ्त में मुहैया कराता था और सरकारी अस्पतालों में जन्म लेने वाले शिशुओं के शरीर पर उसे घिसवाता था. अंधेरगर्दी देखिए कि शिशुओं की देह पर तेल घिसवाने में सरकारी अस्पताल के कर्मचारियों से काम लिया जाता था. इस आपराधिक कृत्य की वजह से तकरीबन डेढ़ साल में सौ से अधिक शिशुओं की मौत हो गई और सैकड़ों बच्चे गंभीर रूप से जख्मी हो गए. जख्मी शिशुओं के शरीर फफोलों से भर गए. उन्हें तरह-तरह के चर्म रोग हो गए और वे एलर्जी का शिकार हो गए. एनजीओ ने जख्मी बच्चों का इलाज भी नहीं कराया और सहमति-प्रपत्र दिखा कर भाग खड़े हुए.विष-विज्ञान (टॉक्सिकोलॉजी) के विशेषज्ञ डॉ. एलकेएस चौहान बताते हैं कि सूरजमुखी के बीज का तेल सबसे अधिक असंतुलित तेल होता है. इसके अणुओं में लंबी कारबन श्रृंखला होती है और हाइड्रोजन अणुओं से असंतृप्त होते हैं. इसमें पैलमिटिक एसिड की मात्रा नौ प्रतिशत, स्टीयरिक एसिड सात प्रतिशत, ओलेइक एसिड 40 प्रतिशत और लिनोलेइक एसिड की मात्रा 74 प्रतिशत तक पाई जाती है. खाने में भी इसके इस्तेमाल से परहेज किया जाना चाहिए, नवजात शिशुओं की देह पर इसे मलने की तो बात ही दूर रही. डॉ. चौहान कहते हैं कि जो लोग नवजात शिशुओं पर सनफ्लावर सीड ऑयल की मालिश करते हैं, वे शिशुओं की जान जोखिम में डालते हैं. नवजात शिशुओं के शरीर पर मलते ही यह तेल फैटी एसिड्स में ब्रेक कर जाता है और शिशुओं की कोमल त्वचा की ऊपरी सतह को तोड़ कर तमाम संक्रामक और क्षोभक तत्वों (इरिटेंट्स) को त्वचा के अंदर घुसने का रास्ता बना देता है. इससे शिशुओं की त्वचा की नमी नष्ट हो जाती है, त्वचा में दरारें पड़ने लगती हैं, पानी रिसने लगता है और एक्जिमा समेत कई अन्य घातक बीमारियां प्रवेश कर जाती हैं.
शिशु रोग विशेषज्ञों का कहना है कि नवजात शिशुओं के शरीर पर सूरजमुखी के तेल की मालिश कतई उचित नहीं है. डॉक्टर बताते हैं किमां की कोख से ही देह के ऊपर एक पतली झिल्ली (वर्निक्स) लेकर पैदा हुए शिशुओं के शरीर को वही झिल्ली बाहरी संक्रमण से बचाती है. जांचे-परखे हुए स्वच्छ और स्वस्थ तेल की अत्यंत कोमल मालिश से धीरे-धीरे झिल्ली हटती है और तब तक शिशु का शरीर बाहरी आबोहवा से अनुकूलन बना लेता है. संक्रमण के कारण ही नवजात शिशुओं की मृत्यु का दर खास तौर पर भारत के ग्रामीण इलाकों में अधिक है. लोगों में जागरूकता का अभाव है, जिसका फायदा उठा कर बिल एंड मेलिंडा गेट्स फाउंडेशन के फंड से इतराए एनजीओ और एनएचएम ने सूरजमुखी का तेल घिस कर उसका नतीजा जानने की आपराधिक कोशिश की और इस कोशिश में सैकड़ों शिशुओं को मार डाला. यह खतरनाक क्लिनिकल ट्रायल था, जिस पर नियंत्रण का भारत सरकार ने आजादी के 70 साल बाद भी कोई कारगर तरीका अख्तियार नहीं किया है. आप ध्यान रखें कि बच्चों के शरीर पर सूरजमुखी के बीज का तेल घिसने की परियोजना विश्व स्वास्थ्य संगठन के नाम पर घुसाई गई जिसकी फंडिंग बिल एंड मेलिंडा गेट्स फाउंडेशन कर रहा है. तेल घिसने की योजना शुरू करते हुए एनजीओ के प्रमुख डॉ. विश्वजीत कुमार ने कहा था कि नवजात शिशुओं पर सूरजमूखी का तेल चमत्कारिक काम करेगा. और ठीक ऐसा ही हुआ, लेकिन नकारात्मक नतीजों के साथ.
बिना जांचे परखे राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन ने धंधेबाज एनजीओ के साथ मिल कर तेल-घिसने के प्रोजेक्ट को दो साल तक जारी रखने की मंजूरी दी. यह किसी भी जागरूक व्यक्ति को पता है कि विषैले पदार्थ या रसायन का मानव पर प्रयोग आपराधिक कृत्य की परिधि में आता है. इसके बावजूद कानून को ताक पर रख कर इस खतरनाक तेल का इस्तेमाल नवजात शिशुओं पर किया गया. शिशुओं के मरने पर तेल की गुणवत्ता और प्रामाणिकता की वैज्ञानिक और वैधानिक जांच की मांग भी की गई, लेकिन इसकी भी सरकार ने अनदेखी कर दी. विडंबना यह है कि खतरनाक तेल के इस्तेमाल के लिए सरकार और एनजीओ दोनों ने मिल कर पहले ही सारी पेशबंदी कर ली थी. गांव के भोले-भाले अशिक्षित लोगों से एक फॉर्म पर हस्ताक्षर लेकर रख लिया था. हस्ताक्षर लेने के बाद एनजीओ ने उस फॉर्म को भर कर उसे सहमति प्रपत्र बना लिया. जिनसे हस्ताक्षर लिया उन्हें यह नहीं बताया कि उनके नवजात शिशु पर किस तरह का तेल घिसना है, क्यों घिसना है और इसका क्या खतरनाक असर होगा. खतरनाक तेल के कुप्रभाव से बच्चे मरे और जो बुरी तरह जख्मी हुएउनका इलाज कराने में भोले-भाले गरीब मां-बाप आर्थिक रूप से भी भीषण संकट में आ गए.
अमेठी और रायबरेली जिले के गांवों में बड़े ही गुपचुप तरीके से चलाए जा रहे इस खतरनाक खेल की सुगबुगाहट मिलने पर समाजसेवी पवन कुमार सिंह ने इस मामले में राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन से लेकर स्वास्थ्य विभाग के प्रमुख सचिव और शासन तक से पूछताछ की और बच्चों की मौत के लिए जिम्मेदार अधिकारियों और एनजीओ के खिलाफ कार्रवाई के बारे में पूछा, लेकिन सरकार की तरफ से कोई सुगबुगाहट नहीं दिखी. बाल स्वास्थ्य विभाग के महाप्रबंधक डॉ. अनिल कुमार वर्मा ने पहले तो बेसाख्ता झूठ बोला कि नवजात शिशुओं के शरीर पर तेल का उपयोग किए जाने के सम्बन्ध में भारत सरकार या एनएचएम द्वारा कोई आदेश जारी नहीं किया गया है. फिर यह कहा कि कम्युनिटी इम्पावरमेंट लैब को रायबरेली और अमेठी में केवल अध्ययन करने की इजाजत दी गई है और इस अध्ययन में दोनों जिलों के मुख्य चिकित्सा अधिकारियों को सहयोग देने का निर्देश दिया गया है. साफ है कि गेट्स फाउंडेशन, एनएचएम की यूपी इकाई और एनजीओ ने आपसी मिलीभगत करके खतरनाक खेल खेला और सैकड़ों नवजात शिशुओं को अपना शिकार बना डाला. राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन की राज्य कार्यक्रम प्रबंधन इकाई में कम्युनिटी प्रॉसेस अनुभाग के महाप्रबंधक डॉ. राजेश झा ने तो यहां तककह दिया कि ऐसी कोई सूचना ही उनके पास उपलब्ध नहीं है.
समाजसेवी पवन कुमार सिंह ने फिर अमेठी और रायबरेली के सीएमओ से सम्पर्क कर इस खतरनाक खेल को तत्काल प्रभाव से बंद करने का आग्रह किया, लेकिन दोनों सीएमओ ने मुख्यालय और शासन के आदेश का हवाला देकर मना कर दिया. जीवन रक्षा के मूल संवैधानिक अधिकार का संरक्षण करने के बजाय प्रदेश सरकार एनजीओ के आपराधिक कृत्य को अपना संरक्षण देती रही और नवजात शिशुओं की हत्या होती रही. आखिरकार विवश होकर पवन कुमार सिंह ने इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच में जनहित याचिका दाखिल की. याचिका में पूरे घटनाक्रम की जांच कराने और दोषियों के खिलाफ कार्रवाई की मांग की गई थी, लेकिन हाईकोर्ट ने इस मांग पर कोई ध्यान नहीं दिया. हाईकोर्ट की डबल बेंच में खुद मुख्य न्यायाधीश दिलीप बी. भोसले मौजूद थे और उनके साथ न्यायाधीश राजन रॉय बैठे थे. हाईकोर्ट ने इस मामले को संवेदनशील मानते हुए राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन की यूपी इकाई के निदेशक आलोक कुमार (तब तक अमित कुमार घोष स्थानांतरित हो चुके थे) को तलब कर लिया. सरकार से कोई समुचित जवाब देते नहीं बन पड़ा. आलोक कुमार ने अदालत के समक्ष गलती स्वीकार की और अदालत से कहा कि सरकार प्रोजेक्ट से सम्बन्धित सभी आदेश वापस लेती है. हाईकोर्ट ने उन सारे निर्देशोंको भी वापस लेने का आदेश दिया जो तेल-प्रोजेक्ट को सहयोग करने के लिए विभिन्न स्तर के अधिकारियों को जारी किए गए थे. मिशन निदेशक नेमुख्य न्यायाधीश की बेंच को यह भी आश्वासन दिया कि प्रोजेक्ट बंद करने के बाद के अनुवर्ती आदेश भी तत्काल प्रभाव से जारी कर दिए जाएंगे. यानि, सरकार ने हाईकोर्ट के हस्तक्षेप पर तेल-घिसने की परियोजना के पूरा होने के हफ्ताभर पहलेउस पर रोक लगा दी. हाईकोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि सरकार 15 दिनों के भीतर सारे जरूरी कदम उठाए जिससे भविष्य में नवजात शिशुओं की जान जोखिम में न पड़े. हाईकोर्ट का फैसला सात दिसम्बर 2016 को आया. हाईकोर्ट ने सरकार को 15 दिन का समय दिया था. लिहाजा, सरकार को 22 दिसम्बर तक का वक्त मिल गया. इस तरह नवजात शिशुओं के शरीर पर तेल-घिसने की करतूत औपचारिक तौर पर रुक भी गई और व्यवहारिक तौर पर प्रोजेक्ट का लक्ष्य पूरा भी हो गया. प्रोजेक्ट को 31 दिसम्बर 2016 तक ही चलना था.हाईकोर्ट ने तेल घिसने से हुई नवजात शिशुओं की मौत की तरफ ध्यान नहीं दिया और न ही सरकार या मिशन को यह निर्देश ही दिया कि इस जघन्य करतूत के दोषी अफसरों और एनजीओ पर कानूनी कार्रवाई की जाए.

जिसने शिशुओं को मारा, सरकार ने उसे ही दे दिया दूसरा प्रोजेक्ट..!
उत्तर प्रदेश सरकार ने उसी एनजीओ को ‘कंगारू मदर थिरेपी प्रोजेक्ट’ का काम सौंपा है, जिस पर बेजा तेल घिस कर तकरीबन सौ नवजात शिशुओं को मार डालने और अनगिनत बच्चों को जख्मी करने का गंभीर आरोप है. हाईकोर्ट के आदेश पर सरकार ने तेल-प्रोजेक्ट को बंद कर परोक्ष रूप से एनजीओ का अपराध स्वीकार भी कर लिया. लेकिन फिर भी उसी एनजीओ को नए प्रोजेक्ट में शरीक कर लिया जाना एनजीओ के साथ शासन की मिलीभगत की आधिकारिक पुष्टि करता है. इससे यह भी स्पष्ट हो गया कि आखिर कम्युनिटी इम्पावरमेंट लैब नामक इस एनजीओ पर सरकार इतनी मेहरबान क्यों रही है. राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन की उत्तर प्रदेश इकाई ने इस एनजीओ के माध्यम से नवजात शिशुओं पर सूरजमुखी तेल का दुष्प्रयोग कर उनके जीवन और स्वास्थ्य से खिलवाड़ किया और अब उसी एनजीओ को अपना हेल्थ पार्टनर बना कर करोड़ों का खेल कर रही है. शासन के एक आला अधिकारी ने ही बताया कि इस एनजीओ को लगातार काम मिलता रहे और शासन-प्रशासन में उसका धंधा निर्बाध गति से चलता रहे इसके लिए एनजीओ ने कई बड़े अफसरों के रिश्तेदारों को मोटे वेतन पर अपने यहां मुलाजिम नियुक्त कर रखा है. विचित्र किंतु सत्य है कि बच्चों को मारने के बाद अब वही एनजीओ‘कंगारू मदर थिरेपी प्रोजेक्ट’ में शरीक होकर माताओं को सिखा रहा है कि बच्चों को कैसे कलेजे से लगा कर रखें.

एनएचएम हो या सिफ्सा, सबको है बस धन की लिप्सा..!
नवजात शिशुओं के शरीर पर सन फ्लावर सीड ऑयल घिसने के प्रोजेक्ट में उत्तर प्रदेश राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन, सिफसा (स्टेट इन्नोवेशन्स इन फैमिली प्लानिंग सर्विसेज़ प्रोजेक्ट एजेंसी) और एनजीओ कम्युनिटी इम्पावरमेंट लैब की मिलीभगत थी. इसे त्रिपक्षीय सहभागिता का नाम दिया गया था. हद यह है कि सरकार ने एक पीसीएस अधिकारी अवनीश सक्सेना को सिफसा में परियोजना प्रबंधन इकाई का प्रमुख बना कर बैठा दिया था. सक्सेना परियोजना के बीच ही भाग खड़े हुए या हटा दिए गए.सक्सेना को ‘डिम्पा प्रोजेक्ट’ की भी निगरानी करनी थी और इसके लिए उन्हें तीन लाख रुपए मासिक वेतन पर रखा गया था. फिलहाल यह पद रिक्त है, जल्द ही किसी ‘अनुकूल’ नौकरशाह को इस पद पर बैठाया जाएगा.
सिफसा का अस्तित्व भी विवादों से घिरा रहा है. इसकी नींव ही भीख के धन से पड़ी थी. अमेरिकी फंडिंग से उत्तर प्रदेश के 18 जनपदों में जन्मदर स्थिर करने के लिए सिफसा प्रोजेक्ट शुरू किया गया था, लेकिन वर्ष 2006 में प्रोजेक्ट के पूरी तरह फेल हो जाने के कारण अमेरिका ने फंडिंग  रोक दी थी. दरअसल, जिन जिलों में यह एजेंसी काम कर रही थी वहां जन्म-दर कम होने के बजाय बढ़ गई. तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव ने इस संस्था को बंद करने का निर्णय लिया, लेकिन तत्कालीन अधिशासी निदेशक चंचल कुमार तिवारी ने इस संस्था को बंद होने से बचाया. उन्होंने सभी अठारह जिलों में सिफसा की यूनिटों को तो बंद किया, लेकिन राज्य स्तर पर इसे जिंदा रखा. तिवारी ने उन जिलों के निकम्मे प्रभारियों सहित लगभग सौ अधिकारियों/कर्मचारियों को अमेरिकी फंड के बचे हुए धन से आने वाले ब्याज से वेतन देने देने का विकल्प मुख्यमंत्री को सुझाया. वर्ष 2006 तक यह व्यवस्था चलती रही. उसी समय राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन का प्रारम्भ हुआ और सिफसा को पुनर्जीवित करने का मौक़ा मिल गया. सभी मंडलों में उन्हीं अठारह निकम्मों को मंडलीय कार्यक्रम प्रबंधक बना दिया गया. बाद में उन्हें राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन से ही वेतन दिया जाने लगा. सिफसा के अधिशासी निदेशक को ही राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन का मिशन निदेशक भी बना दिया गया. सिफसा प्रशासनिक अधिकारियों के नाते-रिश्तेदारों और चहेतों की ऐशगाह की तरह है. एनएचएम में भर्ती सहित तमाम महत्वपूर्ण काम सिफसा के चहेतों से कराया जाने लगा और आज भी कराया जा रहा है. सभी मंडलों में उन्हीं अठारह निकम्मों को मंडलीय कार्यक्रम प्रबंधक बना दिया गया. राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन, उत्तरप्रदेश की परिवार नियोजन और प्रचार-प्रसार की गतिविधियों को सिफसा के माध्यम से करा कर पिछले पांच साल में लगभग दो हज़ार करोड़ के बजट की हेराफेरी की जा चुकी है.

सौ शिशुओं की मौत में दस की बानगी

        गांव और विवरण      मरने वाले बच्चों की संख्या
1. ग्रामः इंदौरा, ब्लॉकः महराजगंज -     3
(तीन परिवार ने पहचान सार्वजनिक किए जाने से मना किया)
2. ग्रामः जैतीपुर, ब्लॉकः सतावां -            1
(रामपाल लोधी का बच्चा)
(जन्मः 27.11.2015, मृत्युः तरीख अनुपलब्ध)
3. ग्रामः कोन्सा, ब्लॉकः सतावां -            1
(गीता पत्नी नन्हें पाल का बच्चा) 
(जन्मः 09.07.2015, मृत्युः 11.07.2015)
4. ग्रामः हाजीपुर, मजराः पुरेलाल साहब -           1
(कमलेश लोध का बच्चा)
(जन्मः 17.06.2015, मृत्युः 19.06.2015)
5. ग्रामः सौइठा, मजराः झरिया, ब्लॉकः सतांव -  1
(संतलाल पासी का बच्चा)
(जन्मः 27.07.15, मृत्युः 02.08.15)
6. ग्रामः पोरई, मजराः पुरे लोध -            1
(रूपवती पत्नी रामबाबू का बच्चा)
(जन्मः 30.07.2015, मृत्युः 01.08.2015)
7. ग्रामः हाजीपुर, मजराः पुरे महेशी, ब्लॉकः सतांव -  1
(रामकुमार लोध पुत्र श्रीपाल का बच्चा)
(जन्मः 02.08.2015, मृत्युः 03.08.2015)
8. ग्रामः अरियांव, मजराः डिहवा बाबा, ब्लॉकः तिलोई -  1
(हेमऊ पासी पुत्र विशंभर पासी का बच्चा)
(जन्मः 03.08.2015, मृत्युः 05.08.2015


   सैकड़ों जख्मी शिशुओं में दस की बानगी
        गांव और विवरण      गंभीर रूप से जख्मी होने वाले बच्चों की संख्या
1. ग्रामः पोखरनी (भुजिया गांव) -           1
(सुनीता पत्नी केशवलाल का बच्चा)
2. ग्रामः खुसरूपुर, मजराः हुसेपुर, ब्लॉकः सतांव -        1
(बिट्टन देवी का बच्चा)
3. ग्रामः सोइठा, पुरवा झड़िया, ब्लॉकः सतांव -         1
(बिसुना पत्नी सोनू का बच्चा)
4. ग्रामः डोमापुर, ब्लॉकः महराजगंज -    1
(श्रीमती गुधनू का बच्चा)
5. ग्रामः जैतीपुर, ब्लॉकः सतांव -           1
(मां प्रेमा का बच्चा)
6. ग्राम कोन्सा, ब्लॉकः सतांव -     1
(पहचान सार्वजनिक किए जाने से मना किया)
7. ग्रामः भीतरगांव, ब्लॉकः खीरों -            1
(पहचान सार्वजनिक किए जाने से मना किया)
8. ग्रामः जिहवां, ब्लॉकः महराजगंज -    1
(राम अवतार का बच्चा)
9. ग्रामः डोडेपुर, ब्लॉकः खीरों -             1
(पहचान सार्वजनिक किए जाने से मना किया)
10. ग्रामः बोनई, ब्लॉकः सतांव -     1
(रूपा का बच्चा)