मीडिया में फैले भ्रष्टाचार के
खिलाफ 'वॉयस ऑफ मूवमेंट' की तरफ से व्यापक जन-अभियान छेडऩे
का ऐलान
हम जमीर और खबरें नहीं बेचते!
प्रभात रंजन दीन
कुलीनपन के ज्वर से पीडि़त कई
लिपे-पुते चेहरों को देखा है हजरतगंज या ऐसे ही किसी शॉपिंग या मॉलिंग वाले इलाके में
भिखमंगों को देख कर कड़वा सा मुंह बनाते हुए। आपने भी देखा ही होगा। भीख मांगने वालों
को देख कर जहरीला हाव-भाव दिखाने वाले लोगों में 'गरिष्ठ' पत्रकार और मीडिया संस्थानों
के 'बलिष्ठ' मालिकान भी होते हैं। ये ऐसे
पत्रकार और मीडिया मालिक होते हैं जो भिखमंगों के अठन्नी-चवन्नी मांगने पर तीता चेहरा
बनाते हैं लेकिन नेताओं से चवन्नी मांगने में इन्हें शर्म नहीं आती और चेहरे का भाव
भी नहीं बदलता। अब लोकसभा चुनाव सामने है। इस मौसम में मीडियाई भिखमंगों की चल निकली
है। मीडिया की इस भिखमंगी जमात को 'पेड न्यूज़' के कारण हो रहे 'डेड न्यूज़' की कोई फिक्र नहीं। इन्हें खबरों की लाश बेच कर अठन्न्नी-चवन्नी
कमाने की फिक्र है। इनकी प्राथमिकता नेताओं को अखबार के पन्ने बेचना और भोले पाठकों
के समक्ष नैतिकता की झूठी दुहाइयां परोसना रह गई है।
'पेड न्यूज़' के कारण देश-दुनिया में भारतीय मीडिया की जो छीछालेदर हुई है, उसे सब लोगों ने देखा है, जाना है। लेकिन इतनी सर्वत्र
भत्र्सना और व्यापक निंदा प्रस्तावों के बावजूद किसी भी मीडिया संस्थान या 'गरिष्ठ' पत्रकार ने खबरें बेच कर नेताओं से पैसा लेने के दारिद्रिक-आचरण
के खिलाफ कभी कोई कारगर बात नहीं कही। कोई विश्वसनीय मनाही नहीं की। कोई नैतिक खंडन
नहीं किया। ऐसे अनैतिक आचरण से वर्जना रखने की किसी सार्थक घोषणा की तो बात ही दूर
रही। चुनाव चला जाएगा, तब फिर से नैतिक और सच्ची खबरों
पर विद्वत बहसें होंगी। अभी तो सारे 'गरिष्ठ' मिल कर 'उच्छिष्ठ' खाने में लगे हुए हैं।
चुनाव-बाद की फर्जी नैतिक बहसों
में मुब्तिला होने से परहेज करते हुए हम व्यक्तिगत रूप से भी और संस्थानिक रूप से भी 'पेड न्यूज़' के जरिए हो रहे मीडियाई-भ्रष्टाचार के खिलाफ आंदोलन की घोषणा कर
रहे हैं। हमें नैतिक-अर्थ से परहेज नहीं। अनैतिक-अर्थ से हमारा इन्कार है। 'वॉयस ऑफ मूवमेंट' खुद एक मीडिया संस्थान है, लेकिन कई नामी-गिरामी मीडिया संस्थानों द्वारा खबरों के साथ किए
जा रहे व्यभिचार के खिलाफ व्यापक, सक्रिय और सकारात्मक अभियान के
लिए खुद को आगे करने का ऐलान करता है। यह आंदोलन वोट के लिए नहीं है। यह आंदोलन मीडिया
की कथनी और करनी के फर्क पर चोट करने के लिए है। यह आंदोलन किसी मेगासायसाय जैसे एनजीओआई-पुरस्कार
के लिए नहीं, बल्कि खबरों की पवित्र हवा सांय-सांय चले, इसके लिए चले और कारगर परिणाम तक पहुंचे।
कोई भी नैतिक आंदोलन व्यक्ति
से होकर ही समष्टि तक पहुंचता है। ...तो व्यक्तिगत से लेकर संस्थागत स्तर तक 'वॉयस ऑफ मूवमेंट' के हम सब ध्यानी-पत्रकार (मेडिटेटिंग
जर्नलिस्ट) और प्रबंधकीय साथी खबरों को बेचने के धंधे के खिलाफ खड़े होने की शपथ लेते
हैं। हमारे इस शपथ में संस्थान के स्वामी भी बराबर से शरीक हैं। हम मीडिया के समानविचारधर्मी
साथियों से इस भ्रष्टाचार के खिलाफ तन कर खड़े होने की पुकार देते हैं। हम नेताओं से
भी कहते हैं कि पत्रकारों को भ्रष्ट न करें। पत्रकारों को जीवन में स्थायीभाव से खड़ा
होने की कानूनी-विधायी ताकत दें। खबरों का स्थान खरीद कर अपना 'ढिंढोरा' न छपवाएं, न दिखवाएं। मीडिया स्वामियों
से भी अपनी रीढ़ बचाए रखने का जतन करने की हम हिदायत देते हैं। अपने जगत की सर्वोच्च
अदालत प्रेस परिषद के समक्ष हम अपनी यह घोषणा प्रेषित करते हैं और विनम्रतापूर्वक यह
चुनौती रखते हैं कि चुनाव-काल क्या, चुनाव के बाद तक भी यदि एक खबर
भी 'पेड न्यूज़' साबित हो गई तो यह घोषणा लिखने
वाले सम्पादक का इस्तीफा नैतिकता के आधार पर स्वीकृत मान लिया जाए। प्रेस परिषद के
अध्यक्ष न्यायमूर्ति मार्कण्डेय काटजू इसे हमारा हलफनामा समझें। चुनाव आयोग के मुख्य
चुनाव आयुक्त वीएस सम्पत और उत्तर प्रदेश के मुख्य चुनाव अधिकारी उमेश सिन्हा से यह
अपेक्षा है कि वे इस ऐतिहासिक घोषणा के साक्षी बनें और हमारी कथनी और करनी पर सतर्क
निगरानी रखें। ...और प्रकृति से यह प्रार्थना करते हैं कि वह हमें हमारी नैतिक स्थापना
के दृढ़-निश्चय को परिणामी शक्ति दे या बलिदानी शक्ति दे...