प्रभात रंजन दीन
उत्तर प्रदेश के कौन ऐसे नेता
हैं जिन्हें लोकसभा चुनाव के बाद अपने राज्याभिषेक की कामना है और वह राज्याभिषेक के
रास्ते में आने वाली सारी बाधाएं दूर करना चाहते हैं? असम की कामाख्या सिद्ध पीठ में
पिछले डेढ़ महीने से किन राजनेता का महाविद्या-अनुष्ठान चल रहा है? मनोरथ सिद्धि के लिए हो रहा तांत्रिक
अनुष्ठान इसलिए तो नहीं हो रहा कि 'चुनाव के दरम्यान कमाए कोई और, और चुनाव के बाद खाए कोई और'? यह सवाल कामाख्या सिद्ध पीठ पर
बड़े ही गोपनीय तरीके से चल रहे यज्ञ की आहुति से उठ रहे धुंए की तरह गहरा रहा है।
अब आप कुछ पल के लिए राजनीति
की धारा से अध्यात्म-लोक में चलें। महाविद्या अनुष्ठान दस विद्याओं की दस देवियों को
प्रसन्न कर मनोरथ पूरा होने की गारंटी पाने का तांत्रिक अनुष्ठान होता है। महाविद्या
अनुष्ठान में अरिमा, महिमा, लघिमा, गरिमा, प्राप्ति, प्रकाम्य, इसित्व, वशित्व, काम-वशित्व और महालक्ष्मी जैसी दस सिद्धियों की देवी काली, तारा देवी, ललिता-त्रिपुर सुंदरी, भुवनेश्वरी, भैरवी, छिन्नमस्ता, घूमावती, बगलामुखी, मातंगी और कमला को खुश करने के
लिए सवा करोड़ मंत्रों का जाप और पुनश्चरण होता है। इस यज्ञ में लहू और बलि का भी विधान
है। इस यज्ञ में प्रत्येक विद्या के सवा-सवा लाख मंत्रों का जाप किया जाता है। इस तरह
कुल सवा करोड़ मंत्रों का जाप होता है और प्रत्येक विद्या का दस-दस पुनश्चरण होता है।
एक मंत्र को सिद्ध होने तक की मनोदशा प्राप्त होने की प्रक्रिया को पुनश्चरण कहा जाता
है। यह कठिनतम अनुष्ठान माना जाता है और जानकार मानते हैं कि विघ्न-बाधा के बगैर अनुष्ठान
पूरा होने पर सफलता की गारंटी सौ फीसदी है। यानी, कमाने
वाले के बजाय खाने वाले के पास थाली सरकने की गारंटी। कामाख्या शक्तिपीठ की पुरोहित
कमेटी के एक वरिष्ठ सदस्य ने इस यज्ञ की पुष्टि की। पुरोहित जी ने नेता का नाम भी बताया, लेकिन कहा कि 'यज्ञ मेरे पौरोहित्य में नहीं
हो रहा है'।
कामाख्या शक्ति पीठ से जुड़े
एक अन्य पुरोहित ने बताया कि पंडित विंध्यवासिनी पांडेय नामक पुरोहित की अगुवाई में
यज्ञ हो रहा है। लेकिन उन्होंने यह भी कहा कि वह महाविद्या अनुष्ठान नहीं बल्कि बगलामुखी
यज्ञ कराया जा रहा है। दस महाविद्याओं में देवी बगलामुखी को प्रथम स्थान प्राप्त है।
इनकी आराधना से शत्रु से रक्षा और राज्यकृपा (राजयोग) की प्राप्ति होती है। भोग और
मोक्ष दोनों देने वाली महाशक्ति देवी की उपासना से दुर्लभ से दुर्लभ हित-लक्ष्य बेधा
जा सकता है। राम-रावण युद्ध में जब रावण के बड़े-बड़े राक्षस-योद्धा मारे जा चुके थे, तब रावण के पुत्र मेघनाद ने खुद रणभूमि में उतरने से पहले शत्रु
दमन के लिए और अपने पिता रावण की जीत सुनिश्चित करने के लिए देवी बगलामुखी का अनुष्ठान
शुरू किया। इस अनुष्ठान के निर्विघ्न पूरा होने के लिए सभी प्रमुख दानवों को तैनात
कर दिया गया था। उन्हें आदेश था कि जो इस यज्ञ को हानि पहुंचाने की कोशिश करे उसका
वध कर दिया जाए। राम को इसका आभास हो गया कि अगर माता बगलामुखी इस यज्ञ के बाद जाग्रत
हो उठीं तो वह काली का रूप धारण करके वानर सेना का विनाश कर देंगी। उन्होंने भक्त हनुमान, बाली पुत्र अंगद वगैरह को यज्ञ भंग कर देने की आज्ञा दी। महापराक्रमी
इंद्रजीत का अनुष्ठान पूरा होने से पहले ही उसे भंग कर दिया गया। अगर मेघनाद का वह
यज्ञ पूरा हो जाता तो श्री राम का लंका पर विजय पाना कठिन हो जाता। कामाख्या सिद्ध
पीठ के एक वरिष्ठ पुरोहित ने बताया कि चुनाव जीतने के लिए कई नेता यह यज्ञ कराते हैं।
अधिकतर नेता दस महाविद्याओं में से एक महाविद्या मां बगलामुखी का अनुष्ठान कर स्वयं
की जीत पक्की कर लेना चाहते हैं। पुरोहित ने कहा कि मां बगलामुखी के उपासक के आगे समस्त
सृष्टि नतमस्तक हो जाती है। अनुष्ठान अत्यंत प्रभावशाली होता है। अनुष्ठान करवाने वाले
का नाम किसी को भी नहीं बताया जाता। अनुष्ठान की विशेषता है कि इसे जितना ही गुप्त
रखा जाता है, उतना ही फलदायी होता है। यह अनुष्ठान सात से 36 दिनों तक
चलता है। इसे प्रगाढ़ करने के लिए इसकी अवधि बढ़ाए जाने का भी प्रावधान है।
कामाख्या में पंडित विध्यवासिनी
पांडेय के पौरोहित्य में जिस राजनीतिक हस्ती के लिए अनुष्ठान हो रहा है, वे राम का ही नाम लेने वाली जमात के हैं। लेकिन मैं उनका नाम नहीं
लिख रहा। इसके पीछे मुझे वध की चिंता नहीं, पर विघ्न का अपयश नहीं लेना चाहता।
मैं उनके राज्याभिषेक की कामना तो नहीं करता, पर उनकी व्यक्तिगत जीत की कामना
जरूर करता हूं...
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