Saturday 15 March 2014

राष्ट्रविरोधी गतिविधियों में हो रहा है उत्तर प्रदेश के सरकारी विमानों का इस्तेमाल!

सच को झूठ और झूठ को सच बताती रहती है यूपी सरकार
प्रभात रंजन दीन
उत्तर प्रदेश सरकार के विमान और हेलीकॉप्टरों की शहंशाहाना उड़ानों, मेला-महोत्सवों में टैक्सी की तरह अतिथियों को ढोने और विमानों को मद में उड़ा कर क्षतिग्रस्त करने की तमाम खबरें-शिकायतें तो आपने सुनी होंगी। लेकिन उत्तर प्रदेश सरकार के विमानों का इस्तेमाल जासूसी के लिए होता हो, संदेहास्पद महिलाओं का उससे आना-जाना होता हो, विदेशी महिलाओं को हेलीकॉप्टर से सीमा पार कराया जाता हो और इन घटनाओं को लेकर सरकार आधिकारिक तौर पर झूठी सूचना दर्ज कराती हो... यह आम तौर पर नहीं सुना जाता।
उत्तर प्रदेश के नागरिक उड्डयन महानिदेशालय के समक्ष जो शिकायत आई थी, उसे दोबारा याद करते चलें। शिकायत थी कि सरकारी विमान से जासूसी के इरादे से कानपुर सैन्य क्षेत्र की वीडियो रिकॉर्डिंग की गई। उड्डयन महानिदेशालय के फोन से लगातार पाकिस्तान कॉल होते रहे और बातें होती रहीं। लॉग बुक में औपचारिक इंट्री किए बगैर संदेहास्पद महिलाओं को विमान द्वारा लखनऊ लाया गया और दिल्ली ले जाया गया। डॉल्फिन हेलीकॉप्टर से विदेशी महिला को नेपाल सीमा तक पहुंचाया गया और विमानों की खरीद में विदेशी कम्पनी के साथ मिल कर खूब घोटाला किया गया। इन शिकायतों के परिप्रेक्ष्य में उत्तर प्रदेश सरकार ने बाकायदा यह कह दिया कि जांच कमेटी गठित हुई, जांच हुई और शिकायतें फर्जी पाई गईं। लेकिन सत्य यह है कि सरकार का यह बयान ही फर्जी है। सरकार अपना ही झूठ भूल गई और सत्य सरकार के जरिए ही उद्घाटित हो गया।
अब जबकि सरकार का झूठ खुद ब खुद सामने आ गया तो यह सवाल भी सामने आया कि इतनी गम्भीर शिकायतों को छिपाने या दबाने की प्रदेश सरकार ने कोशिश क्यों की थी? राष्ट्रविरोधी गतिविधियों में कहीं बड़े नेता और बड़े नौकरशाह तो शामिल नहीं? जब शिकायतों की जांच ही नहीं हुई तो शिकायतें बेबुनियाद बता कर खारिज कैसे की जा सकती हैं? यानी, उन शिकायतों में दम है कि उत्तर प्रदेश सरकार के विमानों का बेजा इस्तेमाल होता है। चाहे वे राष्ट्रविरोधी गतिविधियों के लिए होता हो या ऐशो-आराम के लिए। उत्तर प्रदेश सरकार ने औपचारिक रूप से कहा था कि इन शिकायतों की बाकायदा तीन सदस्यीय जांच समिति ने छानबीन की और उसे निराधार पाया। लेकिन कुछ ही अंतराल के बाद सरकार अपना ही जवाब भूल गई। जब दोबारा सरकार से उन शिकायतों का हवाला देते हुए जांच समिति गठित होने का ब्यौरा मांगा गया तो सरकार ने सीधे कहा कि इन शिकायतों की जांच के लिए कोई समिति गठित नहीं की गई थी। लिहाजा, सरकार के इस जवाब से वे सारे सवाल आधारहीन साबित हो गए कि किसके आदेश से जांच समिति गठित हुई, समिति के अध्यक्ष और सदस्य कौन थे और जांच की रिपोर्ट क्या है, वगैरह-वगैरह।
ऐशो-आराम और मौज-मस्ती में सरकारी विमानों के इस्तेमाल का मामला अभी ही सैफई महोत्व के समय भी उठा। मुख्यमंत्री अखिलेश इस पर खूब नाराज भी हुए लेकिन सैफई महोत्सव समाप्त होने के बाद ही उन्होंने प्रेस कॉन्फ्रेंस करने की जरूरत समझी। जब तक महोत्सव चला तब तक सरकार ठुमके देखने में मस्त रही और जमीनी लोग अपने नेताओं, अफसरों, उनके परिवार के सदस्यों और फिल्मी हस्तियों को लाने-ले जाने में मिनट-मिनट पर आसमान में घर्र-घों कर रहे सरकारी विमान और हेलीकॉप्टरों को देख-देख कर निहाल होते रहे। तब उड़ान-ईंधन पर हुए खर्च को लेकर भी सवाल उठे। सरकार के जवाब से यह भी पता चला कि उत्तर प्रदेश सरकार के पास काफी 'फ्यूल इफिशिएंट' विमान और हेलीकॉप्टर हैं। मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने प्रेस कॉन्फ्रेंस कर 'सच-सच' बताया था कि महोत्सव पर कुल खर्च पांच-छह करोड़ रुपए से अधिक नहीं आए। हालांकि यह आंकड़ा हर बयान के साथ इधर-उधर खिसकता रहा। जब पूरे महोत्सव पर कुल खर्च पांच-छह करोड़ ही आया तो उसी 'फ्रेम' से विमानों हेलीकॉप्टरों की चकरघिन्नियों पर आए खर्च का आकलन भी किया जा सकता है। सरकार यही चाहती थी। सैफई महोत्सव के दरम्यान सरकारी विमान-हेलीकॉप्टर की उड़ानों पर कितना खर्च आया, सरकार ने नहीं ही बताया। सरकार एक जनवरी 2013 से 31 दिसम्बर 2013 के बीच सरकारी विमानों के ईंधन पर मात्र चार करोड़, 21 लाख, 26 हजार, 448 रुपए का खर्च आने की बात बता कर कन्नी काट गई। यह भी वैसा ही सच है जिसे कुछ अरसे बाद सरकार खुद ही झूठ बता देगी और एक नया सच रच लेगी।
सच आखिर कैसे बाहर निकले? इसे बाहर निकालने के जो तौर-तरीके थे उस पर भी सरकार कुंडली मार कर बैठ गई है। सूचना के अधिकार को सरकार ने ही पंगु बना कर रख दिया है। विमानों और हेलीकॉप्टरों के आने-जाने का ब्यौरा रखने वाले लॉग बुक और जरनी लॉग बुक को सरकार ने पाइलटों और विमान इंजीनियरों की निजी सम्पत्ति घोषित कर दिया है। सरकार खुद कहती है कि वायुयान और हेलीकॉप्टरों की कहां-कहां यात्रा हुई और कहां-कहां रि-फ्यूलिंग हुई उसका विवरण परिचालन इकाई द्वारा संकलित ही नहीं किया जाता।
दुर्भाग्यपूर्ण तथ्य यह है कि बेवकूफाना तरीके से उड़ाने के कारण जो बेशकीमती विमान दुर्घटनाग्रस्त हो जाते हैं, उनका ब्यौरा भी आम नागरिक को नहीं मिल पाता। बस इतना ही मिल पाता है कि तीन हवाई जहाज और तीन हेलीकॉप्टर उड़ान के लायक हैं और तीन विमान और एक हेलीकॉप्टर उड़ान के लायक नहीं रहे। उड़ान के लायक क्यों नहीं रहे? इसका कोई जवाब नहीं मिलता। प्रदेश का उड्डयन महकमा प्रदेश के पारदर्शी मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के ही अधीन है। 

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