Wednesday 12 March 2014

मायावती ने गुपचुप बेच दी कैंट की कोठी!

'सीक्रेट ऑपरेशन' कर एक रात में ही खाली कर दिया बंगला
प्रभात रंजन दीन
मायावती ने कैंट का आलीशान बंगला किसको बेचा? कोठी के बेचने और खरीदने में सियासी पेचोखम क्या हैं? क्या-क्या बचाने के लिए क्या-क्या तिकड़म रचे गए और इससे होने वाला फायदा एकल है या साझा? कोठी की बिक्री का यह आर्थिक पक्ष है जिससे जुड़े सवाल का जवाब तलाशने में छावनी परिषद, सेना की खुफिया एजेंसी और प्रवर्तन निदेशालय के अफसर लगे हुए हैं। लेकिन लब्बोलुबाव यही है कि मायावती की कैंट की कोठी बिक गई। ...और वह भी इतनी गोपनीयता से कि देर रात ट्रकों का काफिला आया, आनन-फानन सारे सामान लदे और भरा-पूरा बंगला कुछ ही देर में पूरा-पूरा खाली। यहां तक कि नेमप्लेट तक उखाड़ ली गई। सेना की सतर्कता भी नायाब है कि उसे भी अगले दिन ही पता चल पाया। अब इस खाली कोठी का वीराना दृश्य देखें और वह भी तस्वीर देखें जब बंगले में समृद्धि के जलवे सजा करते थे।
क्या इसी दिन के लिए छावनी परिषद के सदस्य राजकुमार शुक्ला ने शहादत दी थी? छावनी परिषद के कई लोग आज यह बोल भी रहे हैं, तब तो मुंह से आवाज नहीं निकलती थी।
खैर, मायावती के बहुचर्चित बंगले के बिकने की कहानी के सूत्र एक तरफ भाजपा से जुड़े हैं तो दूसरी तरफ कांग्रेस से। कोठी का नया मालिक किस राजनीतिक-आर्थिक धारा का है, यह पता चलने में अधिक वक्त नहीं है। कोठी बेचनी ही थी तो मायावती ने इतनी गोपनीयता क्यों बरती! यह सवाल इसलिए भी अधिक कौंधता है कि उन्होंने पहले एक बसपाई महेश प्रसाद के नाम पर बंगला ट्रांसफर किया और महेश प्रसाद ने नए खरीदार को बेच डाला। मध्य कमान छावनी परिषद की तरफ से 'नो ऑब्जेक्शन सर्टिफिकेट' हासिल भी हो गया। लखनऊ छावनी के नेहरू रोड स्थित मायावती के बिके हुए आलीशान बंगले के नए मालिक कहीं ऐसे अर्थसम्पन्न राजनीतिक तो नहीं हैं, जो बहन जी को प्रसन्न कर राज्यसभा में सीट सुरक्षित रखने के लिए अपेक्षित उपकार कर रहे हों!
छावनी के नेहरू रोड का दो नम्बर बंगला भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी के बहनोई गुल्लू थडानी का था। गुल्लू थडानी की मौत के बाद उनकी पत्नी यानी लालकृष्ण आडवाणी की बहन ने अपनी कोठी कांग्रेस नेता प्रमोद तिवारी के समधी बृजेश मिश्र को बेच दी। बृजेश मिश्र ने वही कोठी मायावती के हाथों बेच डाली। संवेदनशील छावनी क्षेत्र में बाहरी घुसपैठ और छावनी की सम्पत्ति के बाजारीकरण का छावनी परिषद के सदस्य राजकुमार शुक्ला ने जबरदस्त विरोध किया। मायावती के पक्ष में तमाम नौकरशाह कूद पड़े। राजकुमार शुक्ला ने आरटीआई और जनहित याचिका का भी सहारा लिया। लेकिन अचानक राजकुमार शुक्ल की संदेहास्पद स्थितियों में मौत हो गई। जिस कोठी के लिए शहादत हुई वही कोठी फिर से बिक गई।
छावनी क्षेत्र रियल-इस्टेट के धंधे का केंद्र बना हुआ है। मध्य कमान के लखनऊ मुख्यालय में रक्षा संपत्ति सेवा में तैनात अधिकारी जमीन हड़पने (लैंड ग्रैबिंग) के धंधे में लगे हैं। सैन्य क्षेत्र नेताओं, दलालों और संदेहास्पद लोगों को लीज़ पर दिया जा रहा है। सेना के क्षेत्र में मॉल बन चुके हैं और असैनिक इमारतें बन रही हैं। यहां तक कि सैन्य क्षेत्र की प्लॉटिंग कर उसे आम लोगों के हाथों बेचा जा रहा है। सैन्य क्षेत्र की एक और विवादास्पद कोठी को मुख्यमंत्री मायावती के जन्मदिन पर गिफ्ट देने की तैयारियां थीं, लेकिन शोर-शराबे के डर से ऐसा नहीं हो पाया। थिमैया रोड की 12 नम्बर की वह कोठी नसीमुद्दीन सिद्दीकी के कब्जे में है। उसके पहले मायावती ने मुख्यमंत्री बनने के फौरन बाद नेहरू रोड की दो नम्बर कोठी पर कब्जा जमा लिया था। नेहरू रोड स्थित दो नम्बर कोठी को आलीशान बनाने के लिए सेना की इजाजत लिए बगैर सैन्य क्षेत्र के कानूनी प्रावधान को ताक पर रखकर हरे पेड़ काटने, पत्थर लगवाने और अवैध निर्माण कराने के मामले में छावनी परिषद को मायावती के खिलाफ कानून का दरवाजा तक खटखटाना पड़ा। लेकिन कोठी की बिक्री भी हो गई और केस वहीं का वहीं रह गया। इस घटना ने सेना की निगरानी व्यवस्था पर गम्भीर सवाल खड़े कर दिए हैं।
जैसे-जैसे लोकसभा चुनाव सामने आ रहा है, मायावती के तो पौ बारह हैं। अभी हाल ही केंद्र सरकार ने दिल्ली के गुरुद्वारा रकाबगंज रोड जैसे बेशकीमती इलाके में कोठी नम्बर 12, 14 और 16 को एक साथ मिला कर आलीशान हवेली में तब्दील करने की मंजूरी दी। इस कृत्य को खुद केंद्र सरकार के सीपीडब्लूडी ने विभाग ने गैरकानूनी बताया। इसी बंगले के साथ पुराना बंगला भी मिला दिया गया। पांच सौ से अधिक सांसदों को समाहित करने वाली संसद से छह गुणा अधिक बड़े क्षेत्र के आलीशान महल में मायावती रह रही हैं। आपको याद ही होगा कि लखनऊ में 13-माल एवेन्यू स्थित मायावती के बंगले के रखरखाव पर सौ करोड़ रुपए खर्च किए गए थे। समाजवादी पार्टी की सरकार मायावती का नाम लेकर राजनीति तो करेगी, लेकिन करतूतों पर कार्रवाई में उसकी रुचि नहीं।

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