Thursday 12 October 2023

भारतीय मीडिया को भांडों से मुक्त कराना जरूरी...


प्रायोजित निंदा एवं प्रायोजित प्रशंसा के वाहक भांडों ने पत्रकारिता को ग्रस लिया है...

उत्तर प्रदेश के प्रखर बौद्धिक जिलों में से एक सुल्तानपुर में बीते दिनों जिले और ग्रामीण क्षेत्रों के पत्रकारों की सार्थक कार्यशाला आयोजित की गई। मीडिया की विश्वसनीयता पर उठते सवाल कार्यशाला में हुए विचार-विमर्श के केंद्र में थे। ये हालात क्यों पैदा हुए, इसके लिए सत्ता और मीडिया संस्थानों की भूमिका के साथ-साथ खुद के भीतर भी झांकने की कोशिश हुई। श्रमजीवी पत्रकार यूनियन की सुल्तानपुर इकाई की ओर से पत्रकारिता : नया दौर एवं नई चुनौतियां विषय पर आयोजित कार्यशाला इसी विषय पर समग्रता और व्यापकता के साथ केंद्रित रही। पत्रकारिता के चुनौती और संकट से भरे दौर में पत्रकारीय दायित्वों का नैतिक निर्वहन कैसे हो, इस पर वक्ताओं और प्रतिभागियों ने संजीदा और साझा विचार-विमर्श किया।

बीते 6 अक्टूबर को सुल्तानपुर शहर के आदर्श मैरिज प्वाइंट प्रेक्षागृह में आयोजित इस कार्यक्रम की औपचारिक शुरुआत कार्यशाला के मुख्य अतिथि प्रभात रंजन दीन, विशिष्ट अतिथि चंद्रभान यादव, कार्यक्रम अध्यक्ष वरिष्ठ पत्रकार राज खन्ना के साथ ही प्रख्यात बुद्धिजीवी डॉ. एमपी सिंह, जिला सूचना अधिकारी डॉ. धीरेंद्र कुमार एवं अन्य अतिथियों द्वारा मां सरस्वती की प्रतिमा पर माल्यार्पण और दीप प्रज्वलन करने के साथ हुई। कार्यशाला को सुल्तानपुर के प्रख्यात समाजसेवी करतार केशव यादव का भी आशीर्वाद प्राप्त हुआ। आंख के ऑपरेशन के कारण वे कार्यक्रम में सशरीर उपस्थित न हो सके। अतिथियों ने उनके आवास पर जाकर उनसे मुलाकात की और शुभकामनाओं का आदान-प्रदान किया।

कार्यशाला के मुख्य वक्ता प्रख्यात पत्रकार प्रभात रंजन दीन ने लोकतंत्र के तीन स्तम्भों को मजबूत रखने के लिए चौथे स्तम्भ यानी पत्रकारिता के दायित्वों को रेखांकित किया और कहा कि लोकतंत्र के तीन स्तम्भों विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका को जाग्रत और सतर्क रखने के लिए पत्रकारिता का दायित्व सतत सांकेतिक प्रतिरोध (सिम्बॉलिक रेसिस्टेंस) देना था। लेकिन पत्रकारिता ने वह दायित्व नहीं निभाया जिससे लोकतंत्र अराजक हो गया। पत्रकारिता समेत समाज की सभी विधाओं पर भांडों का कब्जा हो गया। प्रायोजित-प्रशंसा और प्रायोजित-निंदा के विशेषज्ञ भांडों ने स्वस्थ प्रशंसा और स्वस्थ निंदा की परंपरा का हरण कर लिया। प्रायोजित प्रशंसा करने वाले भी भांड हैं और प्रायोजित निंदा करने वाले भी भांड हैं... इन दो किस्म के भांडों में सत्य का राम नाम सत्य हो गया। सत्य भांडों के दो पाट में पिस गया। सच कठघरे में चला गया और सच बोलने वाला हाशिए पर धकेल दिया गया। प्रभात रंजन दीन ने पत्रकारिता को भांडों के कब्जे से निकालने के लिए व्यापक वैचारिक आंदोलन की अनिवार्यता पर जोर दिया।   

कार्यशाला के विशिष्ट वक्ता एवं अमर उजाला अखबार के मुख्य उप संपादक चंद्रभान यादव ने मीडिया की जिम्मेदारियों से लोगों को परिचित कराते हुए कहा कि खबरों को लेकर ट्रेंड बदला है। बदलते समय में पत्रकारिता भी बदल रही है। एक संवाददाता के समक्ष चुनौती रहती है कि वह खबरों पर स्टैंड कैसे ले। खबर छपने के बाद कल क्या होगा, उसे इसका भी ध्यान रखना होता है। स्थितियां ऐसी आ गई हैं कि फैक्ट चेक करने के लिए आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस तक के इस्तेमाल की बात चल रही है। ऐसे में हमारी जिम्मेदारी निरंतर बढ़ती जा रही है।  खास तौर से ग्रामीण क्षेत्र की पत्रकारिता। उन्होंने कहा कि जो जिले और तहसील के पत्रकार जो सूचना देते हैं उसी सूचना के आधार पर कई बार बड़ी खबरें बनती हैं और संपादकीय तक लिखे जाते हैं। लेकिन सबसे ज्यादा सवाल भी जिले और तहसील के पत्रकारों से ही होते हैं, इसलिए जिम्मेदारी और भी बढ़ जाती है। सोशल मीडिया की चर्चा करते हुए उन्होंने कुछ खबरों का जिक्र किया और कहा कि व्हाट्सएप पत्रकारिता के खतरे बहुत हैं, चौकन्ना रहने की जरूरत है।

कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे वरिष्ठ पत्रकार एवं इतिहासकार राज खन्ना ने कहा कि मीडिया की ताकत पर लोगों का पूर्ण भरोसा रहा है। यह भरोसा क्यों डिगा है? इसे समझने के लिए अपने भीतर भी झांकना होगा। समझना होगा कि इस ताकत का दुरुपयोग न हो। प्रिंट पर ही नहीं बल्कि न्यूज़ चैनल और रेडियो को लेकर भी आज पाठक, दर्शक और श्रोता संशय की दृष्टि में है। यह आज की सबसे बड़ी चुनौती और संकट है। एक दौर में मीडिया साधनों से विपन्न था लेकिन उसके पास पाठक के भरोसे की प्रचुर पूंजी थी। आज साधन सम्पन्नता है, लेकिन साख के मोर्चे पर विपन्नता है। पूंजी से भौतिक संसाधन जुटाए जा सकते हैं, लेकिन भरोसा नहीं हासिल किया जा सकता।

राष्ट्रीय न्यूज एजेंसी यूएनआई के छत्तीसगढ़ स्टेट ब्यूरो प्रमुख अशोक साहू ने अपने संबोधन में कहा कि नवीनता, तथ्यों का संकलन और प्रासंगिकता समाचार का अनिवार्य घटक है। इसे हमेशा समाचार बनाते समय ध्यान में रखने की जरूरत है। जिला सूचना अधिकारी डॉ. धीरेंद्र कुमार ने समय के साथ बदलने का आह्वान करते हुए कहा कि डिजिटल क्रांति के दौर में पत्रकार को भी पाठक के साथ अपडेट होने की जरूरत है। आज ऑनलाइन खबरें आती हैं, उसे हूबहू उठाकर पेस्ट कर देते हैं। यह पत्रकारिता नहीं है, यह पत्रकारिता के नाम पर खानापूर्ति है। उन्होंने कहा, सोशल मीडिया का ही परिणाम है कि आज न्यूज़ लिखने की क्षमता का क्षरण हो रहा है। जिले के सम्मानित बुद्धिजीवी डॉ. एमपी सिंह ने प्रख्यात पत्रकार स्व. कुलदीप नैयर का एक संस्मरण सुनाया कि कैसे एक पत्रकार अपनी बुद्धिमत्ता और विनम्रता से किसी राष्ट्रप्रमुख, किसी नेता या किसी अफसर को कुरेद कर बड़ी खबर निकाल लेता है। दैनिक हिंदुस्तान के ब्यूरो प्रमुख दिनेश दुबे ने पत्रकारों को पत्रकारिता के मापदंडों की याद दिलाई और कहा कि हमें दूसरे पर उंगली उठाने के पहले इतना सतर्क और पारदर्शी रहना चाहिए कि दूसरे भी हम पर उंगली उठा सकते हैं, यह हमेशा ख्याल में रहे। 

मीडिया कार्यशाला के द्वितीय सत्र के मुख्य अतिथि अपर मुख्य न्यायाधीश एवं विधिक सेवा प्राधिकरण के सचिव अभिषेक सिन्हा ने प्रतिभागियों को प्रमाण पत्र वितरित किया एवं पत्रकारिता के कानूनी नुक्ते बताए। अपर मुख्य न्यायाधीश ने समाज-निर्माण में मीडियाकर्मियों की महत्ता और दायित्व भी बताए। इस मौके पर वरिष्ठ पत्रकार प्रभात रंजन दीन ने पत्रकारिता के क्षेत्र में सक्रिय योगदान एवं खास रिपोर्ट के लिए दैनिक जागरण के जीतेंद्र श्रीवास्तव, स्वतंत्र चेतना के योगेश यादव, दैनिक भास्कर के असगर नकी और भारत एक्सप्रेस समाचार के आशुतोष मिश्र को प्रशंसा चिन्ह देकर सम्मानित किया। कार्यशाला में आए समस्त प्रतिभागियों को प्रमाणपत्र दिए गए। श्रमजीवी पत्रकार यूनियन के जिलाध्यक्ष दर्शन साहू ने अतिथियों का स्वागत करते हुए मीडिया कार्यशाला से प्रतिभागियों को सीख लेने का आह्वान किया। महामंत्री संतोष यादव ने धन्यवाद ज्ञापन किया। कार्यक्रम का संचालन न्याय यात्रा के संपादक शिवकरण द्विवेदी ने किया। आज के लिए इतना ही, नमस्कार... जयहिंद।