Tuesday 4 March 2014

प्रोफसर साहब! नेताजी अभी जिंदा हैं...

समाजवादी पार्टी को बेध रहे अराजक फैसले
प्रभात रंजन दीन
समाजवादी पार्टी में वर्चस्व की लड़ाई ने अपना स्तर खो दिया है। बड़े और छोटे का भेद बहुत नीचे स्तर पर आ गया है। अखिलेश के प्रति प्रेम दिखाने पर रामगोपाल यादव अपनी वरिष्ठता का ध्यान छोड़ कर युवा नेता तक को अपनी औकात दिखाने लग रहे हैं। रामगोपाल यादव को इस स्तर पर उतरता देख कर उनके गुर्गे और उत्साहित होकर आपराधिक धमकियां देने पर उतारू हो रहे हैं। समाजवादी पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष अखिलेश यादव ने अमर सिंह से फोन पर बात कैसे कर ली या अमर सिंह की किसी पार्टी में शिवपाल सिंह यादव क्यों शरीक होने चले गए, या पार्टी का कोई युवा नेता अमर सिंह के प्रति वफादारी के शब्द कैसे बोलने लगा... इन बातों पर रामगोपाल यादव को गुस्सा कुछ अधिक ही आने लगा है।
मुलायम सिंह, अखिलेश यादव या अमर सिंह के प्रति भक्ति दिखाने पर दी गई आपराधिक धमकियों पर इटावा नगर पालिका परिषद के अध्यक्ष संतू गुप्ता और मैनपुरी के करहल ब्लॉक के प्रमुख अरविंद यादव के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराने की तैयारी हो रही है। सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव और प्रदेश अध्यक्ष अखिलेश यादव के समक्ष भी औपचारिक रूप से शिकायत दर्ज कराई गई है।
समाजवादी पार्टी को अमर सिंह की जरूरत है या नहीं, इसे पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष मुलायम सिंह को तय करना है। लेकिन पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव रामगोपाल यादव ऐसे तमाम मसलों पर अपना एकाधिकार प्रदर्शित कर रहे हैं। लोकसभा चुनाव सामने है तो पार्टी की जरूरतें भी ज्यादा हैं। लेकिन निजी हित इतने प्रभावी हैं कि पार्टी का हित गौण हो गया है। निजी हित में पार्टी के सिद्धान्त ताक पर रख दिए गए हैं। जिस पार्टी से लड़ कर सत्ता में आए उसी पार्टी से अठखेलियां कर रहे हैं। समाजवादी पार्टी के नेता अगर गेस्ट हाउस प्रकरण पर खेद जताने लगें और मायावती की मूर्ति तोडऩे की घटना को खारिज करने लगें तो आप 'कन्फर्म' हो लें कि समाजवादी पार्टी वैचारिकी के अकाल से गुजर रही है। यह समाजवादी पार्टी के पुरोधा मुलायम सिंह यादव के लिए निश्चित तौर पर चिंता का विषय बन रहा होगा। पार्टी को सेंध लग रही है। भविष्य में पार्टी पर वर्चस्व किसका होगा, इस पर अभी से बिसात बिछने लगी है और डोर अपने हाथ में कसने का अभ्यास किया जाने लगा है। सपा फिर से अमर सिंह के बारे में न सोचे। इसके लिए सारे उपाय किए जा रहे हैं। यहां तक कि जिनके अमर सिंह से व्यक्तिगत सम्बन्ध हैं उन्हें भी पार्टी से खारिज करने और उन्हें धमकियां देने की हरकतें हो रही हैं। सपा और बसपा में विरोधी रिश्ते न रहें। इसके उपक्रम किए जा रहे हैं। पार्टी के कई फैसले एकाधिकारपूर्वक बदले जा रहे हैं। पार्टी में अंदरूनी मतभेद और कलह एक दूसरे के पूरक हो रहे हैं और चुनाव पर गहरा असर डालने वाले हैं। यह पूरी कहानी का लब्बोलुबाव है। अब इसकी तफसील में आते हैं...
28 फरवरी को एक अखबार के आगरा संस्करण में प्रकाशित छोटी सी खबर ने पार्टी के अंदर चल रही पार्टी विरोधी बड़ी सेंधमारी की परतें उघाडऩे का रास्ता खोला है। सपा के महासचिव प्रोफेसर रामगोपाल यादव का बयान छपा,'मायावती की मूर्ति तोडऩे वाले अमित जानी से सपा ने किनारा कर लिया है। उनसे सपा का कोई लेना-देना नहीं है।' सपा के शीर्ष नेताओं में से एक रामगोपाल यादव का दो लाइन का बयान अमित जानी के लिए जारी हो तो आप निश्चित मानें कि इन दो लाइनों की तासीर बड़ी गहरी होगी। ये वही अमित जानी हैं जिन्होंने लखनऊ में मायावती की मूर्ति पर हथौड़ा चला कर देशभर की राजनीति को स्तब्ध कर दिया था। समाजवादी पार्टी खास तौर पर स्तब्ध और उहापोह में थी कि मूर्तिभंजक डॉ. राम मनोहर लोहिया के सिद्धान्तों पर चलते हुए हथौड़ा-कार्रवाई को मान्यता दे या मायावती की खुशामद में खेद जताए। पार्टी ने खेद भी जताया और मायावती की नई मूर्ति भी लगवा दी। लेकिन सपा को यह अपराधबोध सालता रहा। इस बोध से उबरते हुए सपा के प्रदेश अध्यक्ष अखिलेश यादव ने इसी 23 फरवरी को दिल्ली के जंतर-मंतर से निकल रही साइकिल यात्रा के मौके पर अमित जानी का हाथ थामा और यह घोषणा की, 'अब तुम सपा के और सपा तुम्हारी'। पार्टी के प्रदेश नेतृत्व का यह बयान रामगोपाल यादव को इतना चुभा कि चार दिन बाद ही बोल गए कि अमित जानी से सपा का कोई लेना-देना नहीं है। राष्ट्रीय महासचिव का यह बयान प्रदेश अध्यक्ष की घोषणा के बाद आया। ...और इस बयान पर जब अखिलेश ने यह कहा कि वे रामगोपाल जी से बात कर लेंगे, इसका मतलब साफ है कि रामगोपाल ने अपना बयान जारी करने के पहले प्रदेश नेतृत्व से बात करने की जरूरत नहीं समझी थी।
यह जरूरत तो रामगोपाल किसी प्रत्याशी का टिकट काटते और टिकट जोड़ते हुए भी नहीं समझते। फर्रुखाबाद से सचिन यादव का टिकट काट दिया। सचिन प्रदेश सरकार के मंत्री नरेंद्र यादव के पुत्र हैं। अखिलेश की पसंद हैं। लेकिन प्रदेश नेतृत्व से इस बारे में पूछा भी नहीं गया। सचिन यादव का टिकट काट कर आपराधिक छवि के स्वनामधन्य रामेश्वर सिंह यादव को ले आए। इन्हीं के बूते समाजवादी पार्टी सलमान खुर्शीद जैसे कद्दावर नेताओं से चुनाव लड़ेगी। इसी तरह अपराधी अतीक अहमद को पार्टी में ले आए। प्रदेश नेतृत्व से पूछा भी नहीं। रामगोपाल अतीक को ऐसे लाए जैसे डीपी यादव वाले प्रकरण का अखिलेश से बदला ले रहे हों। बांदा से श्यामाचरण गुप्ता का टिकट काट कर कुख्यात डकैत ददुआ के भाई बालकुमार पटेल को दे दिया। किसी से पूछा भी नहीं। सम्भल लोकसभा सीट के लिए रामगोपाल यादव ने प्रदेश के वरिष्ठ मंत्री आजम खान की पसंद का भी सम्मान नहीं किया। इसी तरह रामगोपाल ने बिजनौर, जालौन, जौनपुर, सुल्तानपुर, कैसरगंज, गोंडा समेत कई जगह टिकट का मसला फंसाया। लोकसभा चुनाव में अधिक से अधिक प्रत्याशी रामगोपाल के हों, कोशिश और जोड़तोड़ इसी बात की है। जोड़तोड़ का दायरा इतना तंग भी है कि एक बिल्डर की शिकायत पर समाजवादी युवजन सभा के राष्ट्रीय अध्यक्ष संजय लाठर को हटा दिया जाता है। सपा के तीनों यूथ विंग के राष्ट्रीय अध्यक्ष 'विलुप्त' हैं। इसी विलोप में पार्टी लोकसभा का चुनाव लड़ेगी। ऐसी हरकतों से नाराज नेताओं की लम्बी सूची है। इनमें कई वरिष्ठ नेता हैं। रामगोपाल से कम वरिष्ठ नहीं हैं। किनका-किनका नाम छापें और किनका-किनका छोड़ें... पार्टी नेतृत्व को उन नेताओं के बारे में अच्छी तरह पता है। रामआसरे कुशवाहा, शाहिद सिद्दीकी, कमाल फारूकी, अमर सिंह जैसे कई नेता इसी तिकड़म का तो शिकार हो चुके हैं! आजम खान भी हाल ही इसी गृह-सियासत का शिकार होते-होते बचे हैं!
बहरहाल, इस कहानी में अभी और परतें हैं। घटनाक्रम तेजी से शक्ल भी ले रहा है और शक्ल लेकर बदल भी जा रहा है। सात फरवरी को अखिलेश यादव अमर सिंह से फोन पर बात करते हैं। इस बातचीत की आधिकारिक पुष्टि हो चुकी है। नौ फरवरी को अमर सिंह द्वारा आयोजित पार्टी में उत्तर प्रदेश के वरिष्ठ मंत्री शिवपाल सिंह यादव शरीक होते हैं। इसके बाद अमर सिंह के बयान की तल्खी जाती रहती है। 23 फरवरी को अखिलेश अमित जानी के सपाई रिश्ते की जंतर-मंतर पर सनद देते हैं और 28 फरवरी को रामगोपाल अपना संक्षिप्त बयान जारी कर बड़ा शामियाना सजाने के प्रयासों में व्यवधान डाल देते हैं। इस विघ्न-कार्यक्रम को आगे बढ़ाते हैं उनके गुर्गे जो एक-दो मार्च से 'धमकी-ऑपरेशन' शुरू कर देते हैं। पूछने पर अमित जानी परिपक्व राजनीतिक की तरह कहते हैं, 'मुझे जो कुछ भी कहना होगा, वह राष्ट्रीय अध्यक्ष और प्रदेश अध्यक्ष से कहूंगा। हां मुझे धमकी जरूर दी गई, इसकी मैं शिकायत भी करूंगा और एफआईआर भी दर्ज कराऊंगा। मैंने अपनी शिकायत मुख्यमंत्री जी को भेज भी दी है। मैं अपनी निष्ठा नहीं बदल सकता। मेरी प्रतिबद्धता अखिलेश यादव जी के प्रति है और मेरे पारिवारिक रिश्ते अमर सिंह जी से हैं। राजनीति के लिए मैं प्रतिबद्धता और रिश्ते नहीं छोड़ सकता।'
इस गाथा के अभी और कई आयाम बाकी हैं। मायावती के अनुज अकूत धनस्वामी आनंद कुमार और सपा नेता के कारोबारी रिश्तों वाले रोचक हिस्से अभी बाकी हैं। उसे हम आगे के अंकों में प्रस्तुत करेंगे...

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