शपथ लेंगे, झूठ बोलेंगे, भ्रष्टाचार करेंगे और क्या..?
शपथ लेंगे, झूठ बोलेंगे और भ्रष्टाचार करेंगे... भारत में लोकतंत्र की यही दशा है। हर पांच साल पर चुनाव होता है। हर पांच साल पर जीतने वाले नेता शपथ-शपथ खेलते हैं... शपथ-ग्रहण की संवैधानिक बाध्यता नहीं होती तो नेता सत्य-निष्ठा और ईमानदारी की शपथ थोड़े ही लेते..! वे 'हैप्पी सत्ता डे' मनाते और अपने धंधे में लग जाते। झूठ, भ्रष्टाचार, पक्षपात, परिवारवाद भारतीय राजनीति के अनवार्य अवयव हो चुके हैं। अपने देश में संविधान और कानून केवल आम नागरिकों को अंकुश में रखने का उपकरण है। नेताओं को संविधान और कानून से क्या लेना-देना..? यह उपकरण उनका क्या बिगाड़ लेगा..? आज तक क्या बिगाड़ पाया..? जो थोड़े से लोग संविधान और कानून को नैतिकता और राष्ट्रीय-दायित्व के प्रिज़्म से देखते हैं, उन्हें न केवल यह विश्लेषण देखना चाहिए, बल्कि व्यापक जन-जागरूकता बनाने की पहल भी करनी चाहिए...
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