Sunday 6 January 2019

‘प्लाएबल’ और ‘प्रेस्टिट्यूट’ में फंसी पत्रकारिता

प्रभात रंजन दीन
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का इंटरव्यू करने वाली पत्रकारा के सम्बन्ध में कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने ‘प्लाएबल’ शब्द का इस्तेमाल कर दिया तो देशभर में शोर मच गया। भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह किसी भी पत्रकार को कहीं भी डाट देते हैं और हेयता से भरा बर्ताव करते हैं तो शोर नहीं मचता। कांग्रेस नेता ‘प्लाएबल’ कहता है, ‘अपना-पत्रकार’ कहता है। भाजपा नेता ‘प्रेस्टिट्यूट’ कहता है... पत्रकारों ने अपना चरित्र और कृतित्व ही ऐसा बना लिया है, कि उसे इस तरह की अपमानजनक संज्ञाएं दी जा रही हैं। अपमान पर भी पत्रकार इस समझ-बूझ के साथ चिहुंकता है कि यह अपमान फलां पार्टी ने किया तो आपत्तिजनक और फलां पार्टी ने किया तो स्वीकार्य।

नेताओं ने पत्रकारों को भ्रष्ट करने के सिवा किया क्या आज तक..! पत्रकार नैतिक जमीन पर मजबूती से खड़े हों, तो नेताओं का उससे नुकसान होगा। सो, उन्होंने बड़े नियोजित तरीके से पत्रकारों को चुन-चुन कर भ्रष्ट बनाने का काम किया। कोई अखबार का मालिक बन गया तो कोई चैनल चलाने लगा। किसी को राज्यसभा का सदस्य बना दिया तो किसी को पद्मश्री पकड़ा दिया। फिर ‘प्लाएबल’ कह ही दिया तो केंचुआनुकूलित पत्रकारों पर क्या फर्क पड़ता है... या ‘प्रेस्टिट्यूट’ ही कह दिया तो उससे वेश्यानुकूलित पत्रकारों पर क्या फर्क पड़ता है..! ‘ट्रेंड्स जरनल’ के प्रकाशक गेराल्ड सेलेंटे ने दरअसल सबसे पहले ‘प्रेस्टिट्यूट’ शब्द का इस्तेमाल किया। खबरों के साथ बेईमानी और सौदेबाजी करने वाले पत्रकारों के लिए सेलेंटे ने ‘प्रेस’ और ‘प्रॉस्टिट्यूट’ को मिला कर ‘प्रेस्टिट्यूट’ शब्द रच दिया था।

बहरहाल, राजनीतिक दलों द्वारा पत्रकारों के लिए इस्तेमाल की जाने वाली ऐसी ही शब्दावलियों को लेकर ‘इंडिया वाच’ समाचार चैनल ने एक खास बहस आयोजित की। इस बहस में केवल दो राजनीतिक दलों को आमंत्रित किया गया, एक कांग्रेस और दूसरी भाजपा। दोनों ही पार्टियां इस मसले में पक्षकार हैं। बहस में निष्पक्ष समाजसेवी को शामिल किया गया जो राजनीतिक दलों और पत्रकारों दोनों को आईना दिखा सके। बहस में शामिल होने वालों पत्रकारों के लिए यह खास तौर पर ध्यान रखा गया कि ऐसे पत्रकार बहस के जरिए आत्ममंथन की प्रक्रिया में शरीक हों, जो सत्ता और पूंजी की दहलीज पर कभी मत्था नहीं टेकते...

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