Sunday 30 December 2018

योगी सीएम हैं या जज..?

प्रभात रंजन दीन
‘पुलिस वीक’ समारोह में आला पुलिस अधिकारियों को संबोधित करते हुए उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा कि अपराधियों का कोई मानवाधिकार नहीं होता। मुख्यमंत्री का यह बयान सुर्खियों में आया। अपराधी जिसे निशाना बनाता है उसका मानवाधिकार नहीं देखता तो अपराधी का मानवाधिकार क्यों देखा जाए? मुख्यमंत्री का आशय यही था। लेकिन क्या कोई अपराधी अपराध करते समय ऐन मौके पर पुलिस की गोली से ढेर होता है कभी? ऐसा कभी नहीं होता। फिर पुलिस-इन्काउंटर की ‘नीति’ पर सार्वजनिक मुहर लगाते हुए मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ यह कैसे कह सकते हैं कि अपराधी का कोई मानवाधिकार नहीं हो सकता। जब पुलिस घटनास्थल पर होती ही नहीं तो यह कौन तय करेगा कि कौन अपराधी है और कौन नहीं? किसी व्यक्ति को गोली मार कर ढेर कर रही पुलिस यह कैसे तय करेगी कि वह अपराधी है कि नहीं? मुख्यमंत्री ने यह कैसे तय कर लिया कि वे न्यायाधीश भी हैं? मीडिया-ट्रायल की दुहाई देकर पत्रकारों को जज न बनने की सलाह देने वाले योगी या इन जैसे नेता, खुद न्यायाधीश बन कर यह कैसे तय कर देते हैं कि कोई अपराधी है या साधु? पुलिस अगर अपराध होते समय घटनास्थल पर पहुंचने का चरित्र निभाए तो अपराध होगा ही नहीं। अधिकतर समय पुलिस इन्काउंटर ‘मैनेज्ड’ होता है, यानि फर्जी होता है। तभी साढ़े बारह सौ फर्जी मुठभेड़ के मामलों में से साढ़े चार सौ से अधिक मामले उत्तर प्रदेश के पाए जाते हैं। जिस देश में आजादी के बाद अंग्रेजों का मध्यकालिक कानून लागू कर दिया जाता है। जिस देश में हत्यारा भी 302 का मुजरिम होता है और सेल्फ-डिफेंस में गोली चलाने वाला व्यक्ति भी 302 का मुजरिम होकर जेल जाता है, उस देश के एक राज्य का मुख्यमंत्री यह कैसे कह सकता है कि अपराधी कौन है? ...और किसका मानवाधिकार है और किसका नहीं है? फिर क्यों नहीं सरकारें राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग या राज्य मानवाधिकार आयोग भंग कर देतीं? जजों की कुर्सियों पर नेता ही बैठ कर सब क्यों नहीं तय कर देते? इस ज्वलंत विषय पर ‘इंडिया वाच’ न्यूज़ चैनल ने चर्चा आयोजित की। आप भी सुनें, विचार करें, उद्वेलित हों और अपना विचार भेजें...

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