Friday 18 January 2019

चंदा है पर गंदा है ये...

प्रभात रंजन दीन
राजनीतिक दलों का चंदा देश के नागरिकों के ध्यान-केंद्र में है। चंदा का गंदा धंधा राजनीतिक दलों का असली चारित्रिक सत्य है। ये दुकान खोले बैठे हैं। जिस पार्टी की सत्ता, उसे अधिक मिलेगा चंदा, बाकी का धंधा मंदा। इस देश के राजनीतिक-धंधे का यही तौर-तरीका है। इसीलिए सारे राजनीतिक दल किसी तरह सत्ता मिल जाए, उसी लीचड़-रेस में लगे रहते हैं। अभी केंद्र में भाजपा की सरकार है तो सिक्के भाजपा की दहलीज पर खनखना रहे हैं। जब कांग्रेस की सत्ता थी तो सिक्के कांग्रेस की दहलीज पर नाचते थे। सारे राजनीतिक दल अलग-अलग किस्म के वोटर के लिए अलग-अलग किस्म के पशुओं की तरह लड़ते दिखते हैं, लेकिन मुद्रा-हड्डी चूसने के लिए सब एक हो जाते हैं। तभी तो सूचना के अधिकार से राजनीतिक दलों को परे रखने के लिए सब एक हो जाते हैं। विदेश से धन प्राप्त करने के लिए संसद में एक होकर ध्वनिमत से विदेशी मुद्रा अधिनियम में संशोधन करा लेते हैं और तभी 20 हजार रुपए के चंदे का जुगाड़ कर बचाव का समवेत सुर से रास्ता निकाल लेते हैं। चंदा लेने के लिए कारपोरेट और औद्योगिक घरानों का बाकायदा ट्रस्ट गठित कर लेते हैं और लोकतंत्र-लोकहित के नाम पर हर तरफ आम लोगों को धोखा देते फिरते हैं। राजनीतिक पार्टियां चौर्य-कला-केंद्र बन चुकी हैं और इस कला के माहिर लोग राजनीति के धंधे में खूब फल-फूल रहे हैं। पार्टियों को मिल रहा चंदा ‘इंडिया वाच’ पर चर्चा का विषय था। आप भी सुनें... 

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