यूबीआई के ऋण
घोटाले की खबर छपते ही कई प्रमुख उद्योगपतियों ने अखबार से सम्पर्क साधा
प्रभात रंजन दीन
ऋण के बंटवारे में यूनाइटेड बैंक
ऑफ इंडिया का घोटाला उजागर करते हुए हमने 'वॉयस ऑफ मूवमेंट' के अगले अंक में यूबीआई और सहारा
के आपसी 'मेलजोल' से भी पर्दा उठाने की बात कही
थी। यूबीआई और सहारा समूह का रिश्ता इतना प्रगाढ़ रहा है कि यूबीआई के अधिकारी सहारा
समूह के लिए किए गए काम को अपने बायोडाटा में शामिल करते हुए गर्व करते हैं। यह गर्व
उन्हें अपने प्रतिष्ठान में काम करते हुए होता है कि नहीं, इस पर संदेह ही है। सहारा फाइनैंस यूबीआई के जरिए 'कॉल मनी' और 'नोटिस मनी' का धंधा भी करता है। 'कॉल मनी' के धंधे से हजारों करोड़ रुपए का 'ट्रांजैक्शन' एक ही दिन में हो जाता है।
'कॉल मनी' के धंधे की प्रक्रिया भी आप जानते चलें। मुद्रा बाजार मुख्यत:
बैंक और प्राथमिक डीलर (पीडीएस) जैसी संस्थाओं के बीच धन उधार देने और उधार लेने की
प्रक्रिया को सुलभ बनाता है। बैंक और पीडीएस अपनी निधियों की स्थिति के असंतुलन को
दूर करने के लिए रातभर के लिए अथवा अल्प अवधि के लिए उधार लेते और देते हैं। यह उधार
लेना और देना गैर-प्रतिभूत आधार पर होता है। एक दिन के लिए निधियां उधार लेने अथवा
देने को 'कॉल मनी' कहा जाता है। जब दो दिन से
14 दिन के बीच की अवधि के लिए धन उधार लिया अथवा दिया जाता है तो उसे 'नोटिस मनी' कहा जाता है। 14 दिन से अधिक की अवधि के लिए निधियां उधार लेने
या देने को 'टर्म मनी' कहा जाता है। ...तो यूनाइटेड
बैंक ऑफ इंडिया के जरिए सहारा फाइनैंस 'कॉल मनी' का बड़ा धंधा कर रहा है। यूबीआई
सूत्रों ने ही बताया कि सहारा समूह के प्रमुख सुब्रत रॉय के बहनोई अशोक रॉयचौधरी कभी
यूबीआई के कर्मचारी रहे हैं और उस समय के रिश्ते अब तक बने हुए हैं। ऋण-घोटाले में
खुद को फंसता देख कर स्वैच्छिक अवकाश लेकर परिदृश्य से गुम हो जाने वाली यूबीआई की
चेयरमैन सह प्रबंध निदेशक अर्चना भार्गव के भी सहारा प्रबंधन से मधुर रिश्ते रहे हैं।
इस नजदीकी रिश्ते के कारण ही यूबीआई के शीर्ष अधिकारी भी अपने बायोडाटा में सहारा के
लिए काम करने का विशेष जिक्र करते हैं। महाप्रबंधक स्तर की अधिकारी रही सीमा सिंह भी
उन अधिकारियों में से एक हैं जिनके व्यक्तिगत विवरण में सहारा फाइनैंस के लिए किए गए
काम का बड़े गौरव से जिक्र आता है।
खैर, यूनाइटेड बैंक ऑफ इंडिया के ऋण घोटाले की कहानी में आपने कल देखा
कि कैसे हेलीकॉप्टर खरीदने के लिए महज आठ लाख रुपए की प्रदत्त-पूंजी वाली कम्पनी हिंद
इन्फ्रा सिटी प्राइवेट लिमिटेड यूनाइटेड बैंक ऑफ इंडिया से सौ करोड़ से अधिक का ऋण
लेकर फुर्र हो जाती है और बैंक प्रबंधन न वसूली की कार्रवाई करता है और न ही उसे 'नॉन परफॉर्मिंग ऐसेट' (एनपीए) के खाते में ही डालता
है। फर्जी कम्पनी को ऋण जारी करने में सीएमडी अर्चना भार्गव और लखनऊ स्थित चीफ रीजनल
मैनेजर विनोद बब्बर की सक्रिय भूमिका थी। दूसरी तरफ स्थिति यह है कि लोन लेने के लिए
जो वाजिब लोग हैं उन्हें दौड़ा-दौड़ा कर थका दिया जाता है। हार कर वह अधिकारियों की
शर्त मान कर ऋण प्राप्त कर पाता है। विनोद बब्बर को इस काम में विशेषज्ञता हासिल है।
वाराणसी के एक उद्योगपति की 60 लाख की कैश-क्रेडिट-लिमिट के बावजूद उन्हें ऋण मंजूर
नहीं किया जा रहा है। 'वॉयस ऑफ मूवमेंट' में यह खबर प्रकाशित होने के
बाद मंगलवार को गोरखपुर क्षेत्र के भाजपा के क्षेत्रीय मंत्री व पूर्वी उत्तर प्रदेश
के प्रमुख उद्योगपति अजय सिंह ने सम्पर्क साधा। अजय सिंह ने बताया कि उनकी फर्म शक्ति
इंडस्ट्रीज को यूबीआई से 34 लाख की कैश-क्रेडिट-लिमिट मिली हुई है, लेकिन विनोद बब्बर 50 लाख का ऋण देने के लिए पिछले एक वर्ष से
दौड़ा रहा है। बस्ती में यूबीआई की जिगना ब्रांच से अनगिनत बार शक्ति इंडस्ट्रीज को
ऋण जारी करने की सिफारिश की गई लेकिन चीफ रीजनल मैनेजर अपनी शक्ति का बेजा इस्तेमाल
कर रहा है। श्री सिंह ने कहा कि खबर प्रकाशित होने के बाद उन्हें यह उम्मीद जगी है
कि ऋण का उनका आवेदन अब कहीं स्वीकृत हो जाए।
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