कोयला घोटाले में लिप्त प्रतिष्ठान के हेलीकॉप्टर से सोनिया गांधी कर रहीं चुनाव प्रचार
घोटाले
के उडऩखटोले पर उड़ते हुए रोकेंगे भ्रष्टाचार!
प्रभात रंजन दीन
घोटाले के उडऩखटोले पर विचरण करते हुए सोनिया-राहुल और
उनकी कांग्रेस पार्टी भ्रष्टाचार रोकेगी। चुनाव आचार संहिता का छोटा-मोटा उल्लंघन तो
चलता रहता है। आरोप-प्रत्यारोप भी चलते रहते हैं। लेकिन यह खबर आचार संहिता के छोटे-मोटे
उल्लंघन या आरोप-प्रत्यारोप का हिस्सा नहीं है। यह गम्भीर अपराध है, जिस पर चुनाव आयोग को ध्यान देना चाहिए।
वैसे, इसकी कोई उम्मीद नहीं है, फिर भी
भारतवासियों को उम्मीद करने और नाउम्मीद हो जाने की आदत है।
अब यह साबित हो रहा है कि कांग्रेसनीत सरकार में पिछले
दस साल के दौरान जो महाघोटाले हुए उसकी बड़ी धनराशि को चुनाव पर खर्च होना था और घोटाले
में जो नेता, नौकरशाह, विभाग, उद्योगपति और दलाल लिप्त थे, उन्हें चुनाव के दरम्यान कांग्रेस के लिए कंधा लगाना था। तभी कोयला घोटाले
काएक प्रमुख अभियुक्त सरकारी उपक्रम एनटीपीसी कांग्रेस के प्रचार-प्रसार में जुटा पड़ा
है। उसके हेलीकॉप्टर सोनिया गांधी के चुनाव प्रचार अभियान में जोर-शोर से लगे हुए हैं!
चुनाव प्रचार में नेशनल थर्मल पावर कारपोरेशन (एनटीपीसी) के हेलीकॉप्टर का सोनिया गांधी
द्वारा इस्तेमाल किए जाने की तस्वीर हम यहां प्रकाशित कर रहे हैं। विचित्र विडम्बना
है कि कोयला घोटाले या अन्य प्रमुख घोटालों में लिप्त लोग और पूंजी प्रतिष्ठान भी चुनाव
में कांग्रेस की मदद में सुविधाएं बिछा रहे हैं, जो उन्होंने
कांग्रेस के शासनकाल में लूटे।
एनटीपीसी, जिसका हेलीकॉप्टर कांग्रेस के चुनाव प्रचार में धूल-गर्द उड़ा रहा है,
वह कोयला घोटाले का प्रमुख अभियुक्त है। यह ज्यादा दिन की बात भी नहीं
है, लेकिन कांग्रेसियों की धृष्टता पर आश्चर्य है। अभी चार जनवरी
को ही एनटीपीसी और उसकी सखा-संस्था एनएसपीसीएल के खिलाफ सीबीआई ने मुकदमा दर्ज किया
है। कोल-ब्लॉक का आवंटन होने के बावजूद एनटीपीसी विदेशों से घटिया कोयला महंगे आयातित
दर पर खरीद रहा था। सीबीआई ने एनटीपीसी के जिन दो आला अधिकारियों को मुख्य अभियुक्त
बनाया है, वे दोनों सोनिया गांधी के संसदीय क्षेत्र रायबरेली
के ऊंचाहार स्थित एनटीपीसी प्रतिष्ठान के शीर्ष अधिकारी हैं। इनमें से एक एके श्रीवास्तव
ऊंचाहार प्रतिष्ठान के प्रमुख हैं और दूसरे उमाशंकर वर्मा उसी प्रतिष्ठान में डिप्टी
मैनेजर हैं। ये अधिकारी इंदौर, कोलकाता और इंडोनेशिया की कम्पनियों
के साथ आपराधिक साठगांठ करके घटिया कोयले का आयात कर रहे थे। सीबीआई ने दूसरा केस भी
एनटीपीसी की सहायक संस्था एनटीपीसी सेल पावर कारपोरेशन लिमिटेड (एनएसपीसीएल) के शीर्ष
अफसरों और कुछ कम्पनियों पर ठोका है। दक्षिण पूर्वी एशियाई देशों से घटिया कोयला भी
सोनिया के संसदीय क्षेत्र स्थित ऊंचाहार एनटीपीसी में ही गिर रहा था। मात्र दो साल
की अवधि में इन लोगों ने मिल कर 116 करोड़ सात लाख 94 हजार 162 रुपए का घपला कर दिया।
यह तो सीधा घपला था जिस पर सीबीआई को सीधे एफआईआर दर्ज
करानी पड़ी। कोयला घोटाले में जिंदल और टाटा जैसे तमाम पूंजीपति घरानों के साथ मिल
कर भी एनटीपीसी ने जो गोरखधंधे फैलाए, उसकी जांच सीबीआई कर ही रही है। लेकिन महत्वपूर्ण यह है कि घोटाले के दायरे
में फंसे प्रतिष्ठान के हेलीकॉप्टर का इस्तेमाल सोनिया गांधी क्यों कर रही हैं?
कोयला घोटाले में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह का ही नाम क्यों आया,
सोनिया का क्यों नहीं? एनटीपीसी के हेलीकॉप्टरों
का इस्तेमाल चुनाव आचार संहिता के उल्लंघन से अधिक गम्भीर है और यह बड़े घोटाले से
जुड़े होने का सूत्र है। चुनाव आयोग की पहल पर इसके भीतरी परदे भी उठ सकते हैं। आयोग
को इस उल्लंघन की सूचना दी जा चुकी है, लेकिन आयोग की कोई प्रतिक्रिया
अभी तक नहीं आई है। कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी एनटीपीसी के हेलीकॉप्टरों का चुनाव
प्रचार में जो इस्तेमाल कर रही हैं उस पर चुनाव आयोग को जवाब-तलब करना चाहिए था। लेकिन
ऐसा नहीं हुआ। इसी वजह से आम नागरिकों के बीच अब आम चर्चा होती है कि चुनाव आयोग को
आचार संहिता के 'बड़े' उल्लंघन नहीं दिखते। एनटीपीसी से भी चुनाव आयोग यह नहीं
पूछ रहा कि सरकारी उपक्रम होते हुए उसने अपने हेलीकॉप्टर राजनीतिक इस्तेमाल के लिए
कैसे दे दिए? एनटीपीसी ने आदर्श चुनाव आचार
संहिता का ध्यान रखते हुए इसके लिए क्या आयोग से इजाजत ली थी? या किसके आदेश से एनटीपीसी प्रबंधन ने अपने हेलीकॉप्टर कांग्रेस को चुनाव प्रचार
के लिए दे दिए?
बहरहाल, केंद्र सरकार के सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के तहत आने वाले 'डिपार्टमेंट ऑफ एडवर्टाइजिंग एंड विजुअल पब्लिसिटी' (डीएवीपी) द्वारा भी केंद्र सरकार की योजनाओं के प्रचार-प्रसार
पर धुआंधार खर्च किया गया। इस पर भी किसी ने आपत्ति नहीं उठाई। इन विज्ञापनों और प्रचार-प्रसार
में सोनिया और राहुल गांधी कैसे शामिल हैं, जब इनके पास कोई सरकारी पद नहीं है? इसका जवाब किसी के
पास नहीं है। इस पर चुनाव आयोग का ध्यान भी नहीं है। डीएवीपी से पूछा गया कि विज्ञापनों
में सोनिया गांधी की फोटो लगाने का क्या कोई सरकारी आदेश है? विभाग ने कहा इसकी सूचना उपलब्ध नहीं है। कितना फूहड़ और गैर-जिम्मेदाराना
जवाब है यह! आरटीआई कार्ययोद्धा महेंद्र अग्रवाल ने डीएवीपी से यह भी पूछा कि क्या
सोनिया गांधी किसी सरकारी या संवैधानिक पद पर आसीन हैं? इस सवाल
पर डीएवीपी ने कहा कि सोनिया गांधी यूपीए अध्यक्ष हैं और आदेश की प्रति विभाग में उपलब्ध
नहीं है। प्रचार-प्रसार पर हुए अंधाधुंध खर्चे का विवरण देने से भी विभाग ने कन्नी
काट ली। सूचना एवं प्रसारण मंत्री मनीष तिवारी और डीएवीपी के आला अधिकारियों को भी
यह पता होगा कि यूपीए का अध्यक्ष कोई सरकारी या संवैधानिक पद नहीं है। लेकिन नियम-कानून
और लोकतांत्रिक मर्यादा की बातें केवल मनीष तिवारी जैसे प्रवक्ताओं के 'बक-राज'
(बकवास-राजनीति) के लिए रह गई हैं।
अंग्रेजी में बहुत बोला जाता है 'लास्ट बट नॉट द लीस्ट'... यानी आखिरी है, पर कम नहीं। तो लीजिए आज की इस खबर का आखिरी हिस्सा भी देखते चलिए जो अंतिम
तो है, पर बहुत दमदार है। कांग्रेस की राष्ट्रीय अध्यक्ष सोनिया
गांधी को कोयला घोटाले के अभियुक्तों का हेलीकॉप्टर इस्तेमाल करने में परहेज नहीं तो
उत्तर प्रदेश में कांग्रेस की पूर्व प्रदेश अध्यक्ष और लखनऊ संसदीय सीट की उम्मीदवार
रीता बहुगुणा जोशी को हाईकोर्ट की अधिकृत गाड़ी का चुनाव प्रचार में इस्तेमाल करने
में क्या और क्यों परहेज हो? रीता बहुगुणा जोशी ने हाईकोर्ट के
वाहन को ही अपने प्रचार कार्य में झोंक दिया और हाईकोर्ट ने भी जोशी की खैरख्वाही में
संवैधानिक मर्यादा का ध्यान नहीं रखा। केंद्र में सरकार कांग्रेस की तो सरकारी विभाग
और न्यायालय सब उनके। चुनाव आचार संहिता के उल्लंघन की धृष्टता देखिए कि हाईकोर्ट की
जिप्सी पर आगे बाकायदा 'हाईकोर्ट' लिखा है और उसी गाड़ी के पीछे कांग्रेस प्रत्याशी रीता
बहुगुणा जोशी के प्रचार के पोस्टर भी बाकायदा चस्पा हैं। भई, भारतीय लोकतंत्र की वाह बोलिए... सुन
रहे हैं न वीएस सम्पत साहब और उमेश सिन्हा साहब!
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