Friday 11 April 2014

मध्य कमान ने नेताओं के आगे घुटने टेके छावनी के बंगलों पर 'बगुलों' का कब्जा

जी हां, सीएम के भाई का घर है यहां!
प्रभात रंजन दीन
सेना ने अपनी सम्पत्ति नेताओं के हाथ गिरवी रख दी है। संवेदनशील सैन्य क्षेत्र की कोठियां धड़ल्ले से बिक रही हैं या कब्जा की जा रही हैं, सेना के अधिकारी इस 'धंधे' में लिप्त हैं, इसलिए सब मस्त हैं। सेना की जमीन, कोठियां व अन्य सम्पत्ति रक्षा मंत्रालय की होती है और उनका प्रबंधन छावनी परिषदें देखती हैं। सेना का कानून कहता है कि उन सम्पत्तियों को बेचने या लीज़ पर देने के लिए रक्षा मंत्रालय का अनापत्ति प्रमाण पत्र अनिवार्य है, लेकिन सेना के आला अधिकारी ही सैन्य कानून को ताक पर रखे हुए हैं। इस बारे में इलाहाबाद हाईकोर्ट का भी सख्त निर्देश है। लेकिन उसका उल्लंघन हो रहा है। लिहाजा, यह सीधे तौर पर कहा जा सकता है कि सेना की मध्य कमान और छावनी परिषदें हाईकोर्ट की अवमानना की दोषी हैं। छावनी कानून कहता है कि सेना की कोठी या जमीन न कोई बेच सकता है और न कोई उसे गिरवी रख कर बैंक ऋण ले सकता है। इसके बावजूद सेना की अचल सम्पत्ति को चल बना कर चलता करने का धंधा बेतहाशा चल रहा है।
सेना ने नेताओं और धनपतियों के आगे किस तरह घुटने टेक रखे हैं, इसके कुछ नायाब उदाहरण आपके सामने प्रस्तुत हैं। महात्मा गांधी मार्ग स्थित 223 नम्बर कोठी प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के भाई प्रतीक यादव की है। यह कोठी 1996 में ही ली गई थी। तब प्रतीक यादव नाबालिग थे और उनकी मां साधना गुप्ता अभिभावक थीं। तब से लेकर आज तक इस कोठी के लिए सेना से 'नो ऑब्जेक्शन सर्टिफिकेट' (एनओसी) नहीं लिया गया और सेना ने भी इसकी कोई चिंता नहीं की। सेना के 'एनओसी' के बगैर ही कोठी की रजिस्ट्री भी हो गई। यह कोठी पहले कैलाशनाथ एडवोकेट की थी। बाद में उनके बेटे रविनाथ, जो हाईकोर्ट के जज भी रहे, को इसका स्वामित्व मिला था। कोठी के चारो तरफ जंगल उग आए हैं। इस बियाबान कोठी पर एक कर्नल और एक किराएदार का दावा बरकरार है।
छावनी के कस्तूरबा गांधी मार्ग स्थित 24 नम्बर कोठी नरेश अग्रवाल की है। इस कोठी को गिरवी भी रख दिया गया था। बाद में मध्य कमान के जीओसी इन सी रहे लेफ्टिनेंट जनरल डीएस चौहान ने इसे खरीदने की कोशिश की, पर बात नहीं बन पाई। फिर सेना ने कोठी अपने कब्जे में ले ली। अब कोठी कानूनन सेना के पास है पर मालिकाना नरेश अग्रवाल का है। सेना के ही सूत्र कहते हैं कि नरेश अग्रवाल उस कोठी को बेचने की गुपचुप जुगाड़ सेट कर रहे हैं। महात्मा गांधी मार्ग की 225 नम्बर कोठी लालता प्रसाद वैश्य की थी। सेना ने गैर कानूनी तरीके से उस कोठी को केबिल टीवी चलाने के लिए 'ट्रांस वल्र्ड इलेक्ट्रॉनिक्स' को किराए पर दे दिया था। सुप्रीम कोर्ट को कोठी पर लगे बोर्ड की फोटो मुहैया कराई गई तो सेना को धंधा बंद करना पड़ा। लालता प्रसाद ने वह कोठी गुपचुप जगदीश अग्रवाल को बेच डाली। अब जगदीश अग्रवाल उसे बेचने की तैयारी में हैं। लेकिन कोठी के दस्तावेजों से सेना की आपत्ति या अनापत्ति दोनों लापता है।
कस्तूरबा रोड की 23 नम्बर कोठी की कहानी फर्जीवाड़े का रोचक एपिसोड है। यह कोठी मेहरुन्निसा के नाम पर थी। मेहरुन्निसा के मरने के बाद कोठी खाली पड़ी थी। मेहरुन्निसा के रिश्तेदार सदर स्थित पत्थर वाली गली में रहते थे। लेकिन सैयद सिद्दीकी को मेहरुन्निसा का रिश्तेदार बना कर खड़ा कर दिया गया और कोठी उनके नाम पर करा दी गई। इसमें सेना प्रशासन से जुड़े रहे कर्नल एसएफ हक खूब सक्रिय रहे। बाद में उन्हीं ने कोठी पर कब्जा जमा लिया। अब यह भी जानते चलें कि सैयद सिद्दीकी कौन हैं? सैयद सिद्दीकी मायावती के खास नसीमुद्दीन सिद्दीकी के रिश्तेदार हैं। दोनों सिद्दीकी साथ-साथ कभी जेल में भी रहे हैं। इस मदद के पुरस्कार में नसीमुद्दीन थिमैया रोड स्थित 12 नम्बर वाली घोर विवादास्पद कोठी पर काबिज हैं। सिद्दीकी की बेगम के नाम की नेमप्लेट उस कोठी की शोभा बढ़ा रही है। थिमैया रोड की 12 नम्बर कोठी का मालिकाना हक ही विवाद में है। उस पर लेफ्टिनेंट जनरल डीएस चौहान ने भी कब्जा करने की कोशिश की थी। इस कोशिश में उनकी बड़ी फजीहत भी हुई। अब वही कोठी नसीमुद्दीन सिद्दीकी के कब्जे में है।
महात्मा गांधी रोड स्थित 215 नम्बर की कोठी मेजर सेवा सिंह की थी। वह बिना सेना की इजाजत के बिक गई। इस कोठी को भी एक मेजर जनरल के नाम पर मरम्मत के लिए लिया गया और शालीमार बिल्डर्स वाले संजय सेठ कब्जा जमा कर बैठ गए। इसी तरह थिमैया रोड पर मेजर टीएस चिमनी की 16 नम्बर की कोठी गैर कानूनी तरीके से बिक गई और बनारस ग्लास हाउस के खालिद मसूद ने वह कोठी हथिया ली। सेना ने यह भी ध्यान नहीं दिया उसी कोठी पर गैरकानूनी ध्वंस का मुकदमा सेना ने ही ठोक रखा है। मुकदमा मेजर टीएस चिमनी पर चल रहा है और कोठी का मालिक कोई और बना बैठा है। महात्मा गांधी मार्ग की 213 नम्बर कोठी और 226 नम्बर कोठी, दोनों ही गुटखा बनाने वाली कम्पनी के मालिक ने खरीद रखी है। इसी कोठी में छापामारी भी हो चुकी है, और यह खाली पड़ी है। अटल रोड स्थित एक नम्बर कोठी शस्त्र व्यापारी पाली सरना की थी, लेकिन अब यह कोठी बसपा सांसद डॉ. अखिलेश दास की है। छावनी में डॉ. दास की यह दूसरी कोठी है। सरदार पटेल मार्ग पर तीन नम्बर की कोठी फैजाबाद के तत्कालीन जिलाधिकारी एमवी नायर की थी। अयोध्या के कारण श्री नायर जीवनकाल में विवादों में रहे तो उनकी मृत्यु के बाद कोठी विवाद में आ गई। नायर के बेटे और डॉ. बीआर टंडन कोठी-विवाद जारी है। कोठी वीरान पड़ी है। लेकिन अंदर जाएं तो आपको डॉ. टंडन की वृद्धा मां अकेली जरूर मिल जाएंगी।
इस तरह की अनगिनत कोठियां हैं जो गैरकानूनी हैं। सेना क्षेत्र में कभी भी किसी बड़े हादसे के लिए आप तैयार रहें, क्योंकि सेना को ही नहीं पता कि कौन सी कोठी किसके स्वामित्व है और किसके कब्जे में है। अभी हाल ही 'वॉयस ऑफ मूवमेंट' ने आपको बताया था कि मायावती ने अपनी कोठी किस तरह गुपचुप बेच डाली थी और रातोरात ट्रकों से सामान गायब कर दिया गया था। आज की कहानी में ऊपर जिन कोठियों का जिक्र किया गया ये तो सेना के भ्रष्टाचार की हांडी में पक रहे चावल के कुछ दाने थे, जो आपके सामने रखे गए। इस हांडी के साथ खास बात यह है कि इसमें चावल पकता रहता है, उतरता रहता है, फिर कच्चा चावल डलता रहता है, लेकिन हांडी कभी नहीं उतरती। अब हांडी के उतरने का वक्त आ गया है... 

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