Tuesday 15 April 2014

यूनाइटेड बैंक ऑफ इंडिया की पूर्व सीएमडी और मौजूदा सीआरएम का कारनामा

आठ लाख की कम्पनी हेलीकॉप्टर के लिए सौ करोड़ लेकर फुर्र
प्रभात रंजन दीन
आप हेलीकॉप्टर खरीदने का सपना देखते हों तो चिंता न करें, यूनाइटेड बैंक ऑफ इंडिया आपको ऋण देने के लिए तैयार है। बस आपको बैंक के सीएमडी और सीआरएम को पटाना होगा। सीएमडी और सीआरएम यानी चेयरमैन सह प्रबंध निदेशक और चीफ रीजनल मैनेजर... बस उनकी 'सेवा-भक्ति' करिए, हेलीकॉप्टर के लिए ऋण ले लीजिए। फिर आप कुछ भी खरीदिए। ऋण भी मत चुकाइये। बस मौज करिए। बैंक उस ऋण को बट्टे-खाते में भी नहीं डालेगी। मस्त रहिए। आपको यह लाइनें बहुत हल्की-फुल्की लग रही होंगी। हल्के-फुल्के तरीके से भारी-भरकम घोटाले हो रहे हैं। सीएमडी इस्तीफा देकर किनारे लग जाती है और सीआरएम को तरक्की देकर स्थानान्तरित कर दिया जाता है।
यूनाइटेड बैंक ऑफ इंडिया की सीएमडी अर्चना भार्गव को 'स्वैच्छिक अवकाश' क्यों लेना पड़ा, इसका रहस्य अब तक बरकरार है। बताया गया कि उन्होंने निजी कारणों से 'स्वैच्छिक अवकाश' लिया। लेकिन यह अवकाश पूर्व नियोजित था और बैंक के शीर्ष प्रबंधन और सत्ता के शीर्ष गलियारे की इसमें सहमति थी। ऐसी भी खबर चली कि उनके इस्तीफे के पीछे लगातार बढ़ता हुआ वह ऋण था जिसकी वसूली नहीं की गई। दिसम्बर 2013 के अंत तक यूबीआई का वसूल न हो पाने वाला ऋण (एनपीए) रिकॉर्ड 8,546 करोड़ रुपए पर था। यह कौन सा ऋण था जिसकी वसूली नहीं की गई? वसूली क्यों नहीं की गई? या कुछ ऋणों को 'नॉन परफॉर्मिंग ऐसेट' वाले खाते में डालने से शातिराना तरीके से रोक लिया गया? इसी वजह से तो नहीं अर्चना भार्गव इस्तीफा देकर दृश्य से अचानक गायब हो गईं? अभी सत्ता कांग्रेस की है, लिहाजा अर्चना भार्गव के विभिन्न बैंकों में लिए गए 'विभिन्न' फैसलों या यूबीआई के ही खातों की सीबीआई से जांच नहीं हुई, नहीं तो ऐसे-ऐसे ऋण का भेद खुलेगा जिससे रॉबर्ट वाड्रा हों या पवन बंसल या सुब्रत राय सहारा जैसे लोग सबके बड़े-बड़े ऋण जो हल्के-फुल्के तरीके से 'बांट' दिए गए, सब सामने आ जाएंगे। हम भी उसे सामने लाएंगे लेकिन अभी हेलीकॉप्टर-ऋण पर बात कर रहे हैं।
लखनऊ में हिंद इन्फ्रा सिटी प्राइवेट लिमिटेड नामकी एक कम्पनी है। इस कम्पनी के 'मास्टर डाटा' के मुताबिक इसका पता 194/18/4, लक्ष्मण प्रसाद रोड, लखनऊ है। और सैयद रईस हैदर व राना रिजवी इस कम्पनी के डायरेक्टर हैं। इसमें राना रिजवी का पता तो कम्पनी वाला ही है, लेकिन रईस हैदर का पता हुंदरही, गंगौली, जिला गाजीपुर, यूपी लिखा है। इस कम्पनी की पेड-अप कैपिटल (प्रदत्त पूंजी) आठ लाख रुपए है। महज आठ लाख रुपए की पूंजी वाली कम्पनी को यूनाइटेड बैंक ऑफ इंडिया ने सौ करोड़ से अधिक का ऋण दे दिया। इस ऋण को मंजूर करने की इतनी आपाधापी थी कि यूबीआई लखनऊ के चीफ रीजनल मैनेजर विनोद बब्बर ने प्रस्ताव को क्षेत्रीय स्तर पर स्वीकृत करते हुए उसे मुख्यालय भेज दिया और बैंक बोर्ड की आपत्ति के बावजूद अर्चना भार्गव ने चेयरमैन सह प्रबंध निदेशक होते हुए इस पर मंजूरी की मुहर लगा दी। चेयरमैन के इस एकतरफा फैसले के खिलाफ यूबीआई के 10 महाप्रबंधकों ने रिजर्व बैंक से शिकायत की। बाद में रिजर्व बैंक ने यूबीआई के ऋण अधिकारों में काफी कटौती भी की थी।
खैर, यूबीआई के सूत्रों ने कहा कि हिंद इन्फ्रा के ऋण लेने का कारण हेलीकॉप्टर खरीदना बताया गया था। इसकी आधिकारिक पुष्टि के लिए सीआरएम विनोद बब्बर को फोन किया तो पहले उन्होंने बड़ी तसल्ली से बात शुरू की। लेकिन जैसे ही हिंद इन्फ्रा सिटी प्राइवेट लिमिटेड के लोन के बारे में सवाल सुना वैसे ही बोले, 'मैं तो मीडिया से बात करने के लिए अधिकृत नहीं हूं। आप इस बारे में मुख्यालय से बात करिए।' लोन तो आपने सैंक्शन किया था, फिर उसकी वसूली में कोताही क्यों की गई? इस सवाल को भी उन्होंने कोलकाता मुख्यालय पर टालने की कोशिश की, लेकिन इतना तो बोल ही पड़े कि ये तो पुरानी कहानी हो गई। उनसे पूछा गया कि साल दो साल के दरम्यान जारी ऋण 'पुरानी कहानी' कैसे हो जाता है, जब उसके कारण ही सीएमडी को इस्तीफा देना पड़ जाए? ...और ऋण की वसूली की कार्रवाई नहीं हुई तो उसे एनपीए खाते में क्यों नहीं डाला गया? इस सवाल पर बब्बर को अचानक मीटिंग की याद आ गई। बोल पड़े, 'मैं जरूरी मीटिंग में हूं। अभी बात नहीं कर पाऊंगा।' ...और जैसा होता है, उन्होंने फोन काट दिया। बब्बर की तरक्की हो चुकी है। अब वे चीफ रीजनल मैनेजर से जीएम हो चुके हैं। उनका तबादला भी हो चुका है। कुछ ही दिन में वे भी चले जाएंगे। फिर यूबीआई की अमीनाबाद ब्रांच से उन्होंने हिंद इन्फ्रा को जो ऋण दिलवाया था, वह कहानी भी उन्हीं के शब्दों की तरह पुरानी हो जाएगी। बब्बर यह तो नहीं ही बता पाए कि सौ करोड़ का ऋण क्यों नहीं वसूला गया और उसकी किश्तें क्यों नहीं जमा हुईं। लेकिन ऋण से खरीदा गया हेलीकॉप्टर उड़ान भर रहा है, यही बता देते तो थोड़ी तसल्ली हो जाती। कम्पनी का कहीं कोई अता-पता नहीं, लेकिन उसके सौ करोड़ के ऋण का जरूरत पता है, जो बैंक के दस्तावेजों में दफ्न हो जाएगा। बब्बर कलाकार व्यक्ति हैं। यूबीआई की रायबरेली में दर्जनों शाखाओं का कई-कई बार उद्घाटन करा चुके हैं। जो राजनीतिक हस्ती दिखी, उसी से उद्घाटन करा दिया। फिर सोनिया गांधी आईं तो उनसे भी फीता कटवा दिया। लेकिन लोग कहते हैं कि शाखाएं बंद ही रहीं, उद्घाटन होते रहे। हिंद इन्फ्रा की आठ लाख की प्रदत्त पूंजी पर बब्बर ऋण देने के लिए सिर के बल खड़े हो जाते हैं, पर वाराणसी के एक उद्योगपति को 60 लाख क्रेडिट लिमिट के बावजूद ऋण के लिए दौड़ाते रहते हैं। ...यूबीआई-सहारा कांड कल... 

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