Tuesday 6 May 2014

सूरज संकट में है...

प्रभात रंजन दीन
अभी अभी जब भीषण ठंड थी तब भी सूरज से गुस्सा था और अब जब भीषण गरमी है तब भी सूरज से गुस्सा है। जो रौशनी देता है, जो ऊर्जा देता है, जो जीवन देता है, जो ताप देता है, गुस्सा उसी पर आता है... यही शायद प्रकृति ने तय कर रखा है। जो जितना देगा उसके खिलाफ उतनी ही शिकायत होगी, उतनी ही नाराजगी होगी, उतनी ही उम्मीद होगी। यह कथा सब लोगों ने सुनी होगी कि सूरज पर मुकदमा दर्ज हुआ, अंधेरे को प्रताड़ित करने का। खूब बतंगड़ बना। अंत में न्यायालय में सूर्य को पेश होने का सम्मन किया गया। सूर्य के समक्ष आरोप रखे गए। सूर्य ने बड़ी तन्मयता से सारे आरोप सुने, बड़ी शिद्दत से सारी शिकायतें सुनीं। न्यायालय ने सूर्य से पूछा कि तुम्हें क्या अपनी सफाई में कुछ कहना है? सूर्य ने अदालत से कहा कि 'मी-लॉर्ड' अंधेरे को मेरे समक्ष अदालत में बुलाया तो जाए। उसे जरा जी भर कर देख भी तो लूं कि जो मुझपर प्रताड़ना के आरोप लगा रहा है वह देखने में कैसा है, मैंने तो अंधेरे को आज तक देखा भी नहीं है, अंधेरा देखने में कैसा है, उसे जाना ही नहीं तो उसे मैंने प्रताड़ित कैसे कर दिया! अदालत के भी होश उड़ गए। अदालत की जान सांसत में पड़ गई कि सूर्य के सामने अंधेरे को कैसे पेश किया जाए। प्रताड़ना हो या प्रेम, आरोप हो या नालिश, सही तो तभी साबित हो सकते हैं जब दो पक्षों ने एक दूसरे को देखा हो! अदालत का न्याय निलंबित हो गया। लम्बित ही है आज तक। फैसला नहीं हो पाया कि सूरज अंधकार को प्रताड़ित कर रहा है या अंधकार के बहाने साजिश है सूरज के खिलाफ। चलिए अब इस धारा को दूसरी तरफ से देखते हैं। सूर्य जब पूरे आब से निकले तब भी दिक्कत और ठंड में आम लोगों की तरह वह भी दुबक जाए, तब भी दिक्कत। तो आखिर सूरज क्या करे! हर परिस्थिति में वह क्यों झेले कि जनता त्राहिमाम कर रही है तो उसी का दोष और राजा निरंकुश है तो उसी की गलती! मायावती हों तो कह दें कि सब मनुवादी साजिश है। क्योंकि सूरज भी देवता हैं तो उन्हें उनमें भी कहीं मनु दिख जाएं। वे यह भी कह दें कि सूरज सवर्ण है और अंधकार दलित। सच सूर्य संकट में है। सूर्य की ऊंचाई को लांघने की कोशिश में साजिश के कमंद लगा कर उस पर चढ़ने की कोशिशें हो रही हैं। धूप और छांह की दरारों में सुरंगें बिछा दी गई हैं और चारों तरफ उसके पलीते छोड़ दिए गए हैं। धूप के सपनों की यात्रा को धूल में मिलाने की कलयुगी कोशिशें, उसकी उजास शाश्वतता को कैसे छीन लेंगी! यह सवाल खुद ही सूर्य खुद से ही पूछता है और अनुत्तरित रह जाता है। वह यह जानता है कि उसे सूर्य से सूर्य तक की सतत यात्रा करनी है, जलना है, भुनना है, नाराजगी झेलनी है, लेकिन बदले में अंधेरे का छिड़काव नहीं करना है, रौशनी से दुनिया को सराबोर करते रहना है। सुख को नष्ट हो जाना है। दुख को भी नष्ट हो जाना है। लेकिन रौशनी को नष्ट नहीं होना। सुख में खुश होना बहादुरी नहीं। दुख में दुखी होना कायरता नहीं। बहादुरी और कायरता दोनों भौतिक जगत का 'कॉन्सेप्ट' है, इसे झटक कर शाश्वतता के साथ समाहित होने का जतन करना ही अर्थपूर्ण है। सूरज की रौशनी से हमें यह समझ मिलती है, तभी ठंड में भी हम सूरज का महत्व समझेंगे, तभी गरमी में भी हम सूरज का शौर्य जज्ब कर पाएंगे, तभी हम सूर्य पर भरोसा कर सकेंगे, उसके खिलाफ साजिश नहीं करेंगे... 

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