Monday 7 October 2013

सेना में भर्ती हो रहे हैं नेपाल के माओवादी


भारत के सैन्य ढांचे में बिछाई जा रही है 'बारूदी सुरंग'
प्रभात रंजन दीन
भारतीय सेना में नेपाल के माओवादी उग्रपंथियों की भर्ती हो रही है। गोरखा रेजीमेंट की विभिन्न बटालियनों में इनकी बाकायदा पोस्टिंग भी हो चुकी है। सेना को इसकी भनक लगी तो भर्ती की प्रक्रिया में थोड़ा रद्दोबदल किया गया। लेकिन कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई। भारतीय सेना में माओवादियों की इंट्री अब भी जारी है। सेना के सामने विकट प्रश्न यह भी है कि गोरखाओं के नाम पर जिन माओवादियों की सेना में भर्ती कर ली गई और वे देश के विभिन्न संवेदनशील सैन्य इकाइयों में तैनात हैं उन्हें निकाला कैसे जाए। सेना कहती है कि यह संवेदनशील मसला है इसलिए इस पर वह कुछ नहीं कहेगी। हम कहते हैं कि यह राष्ट्रहित का मसला है इसलिए हम उन माओवादियों का नाम भी बताएंगे जिनकी लखनऊ, वाराणसी व कुछ अन्य भर्ती केंद्रों पर बहाली हुई और उन्हें ट्रेनिंग के बाद बाकायदा सेना में शामिल कर लिया गया। इन माओवादियों की भर्ती फर्जी सर्टिफिकेट्स के आधार पर हुई। और आप यह जानकर हैरान हो जाएंगे कि लखनऊ और आसपास के स्कूलों ने उन माओवादियों को आठवीं पास के फर्जी सर्टिफिकेट प्रदान किए। नेपाली माओवादियों को फर्जी दस्तावेजों के आधार पर भारतीय नागरिक साबित कराया गया या उन्हें जिला प्रशासन की तरफ से डोमिसाइल प्रमाण पत्र देकर उन्हें सेना में भर्ती किया गया। फर्जी दस्तावेजों के आधार पर हो रही भर्ती के बारे में संदेह होने पर गोरखों की भर्ती के लिए शैक्षणिक योग्यता आठवीं पास से दसवीं पास कर दी गई। लेकिन इस फेरबदल के पहले जिन गोरखों की नियुक्तियां फर्जी प्रमाण पत्रों पर हो गईं, उनका क्या किया जाएगा? दसवीं का फर्जी प्रमाणपत्र बनवाने में मुश्किलें पेश आ रही हैं, लेकिन स्कूलों से आठवीं पास का फर्जी प्रमाण पत्र हासिल कर जो धड़ाधड़ नियुक्तियां कराई गईं, उनका क्या होगा? सेना के अधिकारी कहते हैं कि इस बारे में ठोस जानकारी हम मुहैया कराएं तो वे छानबीन करेंगे। तो लीजिए हम देते हैं ठोस जानकारी। लेकिन साथ ही यह भी बता देते हैं कि हम जो जानकारी दे रहे हैं वह चावल के कुछ दाने टटोलने के लिए हैं। असलियत यह है कि गोरखा रेजीमेंट की हांडी में माओवादी चावल पक कर भरता जा रहा है। आने वाले दिनों की हम कल्पना कर सकते हैं। 
नेपाल में माओवादी गुरिल्ला युद्ध में अग्रणी रहा यंग कम्युनिस्ट लीग का कमांडर रोम बहादुर खत्री भारतीय सेना में नेपाली माओवादियों को भर्ती कराने में सबसे अधिक सक्रिय है। आप याद करें, नेपाल में सत्ता मिलने के बाद बड़ी तादाद में हथियारबंद माओवादियों ने समर्पण किया था। उन्हें सेना की बैरकों में रखा गया था। उन माओवादियों को आत्मसमर्पण के समय आश्वासन दिया गया था कि उन्हें नेपाल की नियमित सेना में शामिल कर लिया जाएगा। लेकिन सेना में इसका भारी विरोध हुआ। अपेक्षित भर्ती नहीं होने पर माओवादियों में नाराजगी फैली और उनके फिर से हथियार उठा लेने की आशंका बनने लगी। उन माओवादियों को भारतीय सेना में भर्ती कराने का बीड़ा उठाया नेपाली माओवादी संगठन यंग कम्युनिस्ट लीग के नेता रोम बहादुर खत्री जैसे कट्टर माओवादी कमांडरों ने। उसने भारतीय सेना की मध्य कमान के अधिकारियों से अपने सम्बन्ध बनाए। नेपाल का विशाल सीमा क्षेत्र मध्य कमान के दायरे में ही आता है। नेपाल का उत्तर-पूर्व का सीमाई हिस्सा पूर्वी कमान के क्षेत्र में है। रोम बहादुर खत्री ने मध्य कमान मुख्यालय लखनऊ के साथ-साथ वाराणसी, बरेली, बाराबंकी, फैजाबाद, गोरखपुर में भी अपना जाल मजबूत किया। उसने सेना के अफसरों समेत फौजी भर्ती के धंधे में लगे दलालों और स्थानीय स्कूलों को अपने प्रभावक्षेत्र में लिया जिनसे फर्जी प्रमाणपत्र लिए जा सकें। लखनऊ में खत्री को एक ऐसा आदमी भी मिल गया जो भर्ती में दलाली करता था और हाईकोर्ट परिसर में टाइपिंग का काम भी करता था अब धंधा मंदा पडऩे पर वह काला कोट पहन कर वकालत का धंधा भी कर रहा है। 
बहरहाल, इस गिरोहबंदी में सात-आठ साल तक माओवादियों की खूब भर्तियां कराई गईं। शैक्षणिक योग्यता का पैमाना बढ़ा दिए जाने के बाद ऐसी भर्तियों की गति में थोड़ी कमी आई है। नेपाल से आने वाले माओवादियों को आठवीं क्लास पास का प्रमाणपत्र देने में लखनऊ के कई स्कूल आगे रहे और राष्ट्रद्रोह के एवज में पैसे कमाते रहे। इनमें बालागंज के कैम्पबेल रोड स्थित स्कूल, आनंद नगर स्थित एक स्कूल, उदयगंज स्थित एक स्कूल, माल में रहिमाबाद रोड स्थित एक स्कूल, इटौंजा रोड स्थित एक स्कूल अव्वल हैं। 'कैनविज टाइम्स' के पास इन स्कूलों का नाम भी है। हम इन स्कूलों का नाम भी प्रकाशित करेंगे, लेकिन सेना ने आग्रह किया है कि छानबीन तक हम उन स्कूलों का नाम न खोलें। ऐसे अनगिनत स्कूल हैं, लखनऊ के बाहर के भी हैं, जिन्होंने नेपाली युवकों को अपने स्कूल का छात्र बताया और आठवीं क्लास पास का प्रमाणपत्र देकर उनकी वैधता पर मुहर लगा कर राष्ट्र के साथ द्रोह किया। लखनऊ, गोरखपुर, गाजीपुर, वाराणसी जैसे कई जिलों की प्रशासनिक इकाइयां भी राष्ट्रद्रोह में शामिल हैं, जिन्होंने बाहरी नेपालियों को स्थाई निवास प्रमाणपत्र प्रदान किए और इस आधार पर माओवादियों ने सेना में नौकरी पा ली। 
डोमिसाइल सर्टिफिकेट देने वाली प्रशासनिक इकाइयों ने पता का सत्यापन (ऐड्रेस वेरिफिकेशन) कराने की भी जरूरत नहीं समझी। अब इसका वीभत्स रूप देखिए। बलराम गुरुंग नामके निपट अनपढ़ नेपाली ने स्थानीय स्कूल से आठवीं पास का फर्जी प्रमाणपत्र हासिल किया और अपना पता 28/बी, आवास विकास कॉलोनी, माल एवेन्यु लिखा दिया। बलराम गुरुंग मई 2010 में सेना में भर्ती होकर गोरखा रेजीमेंट में तैनाती पर भी चला गया। उसके आधिकारिक दस्तावेजों में बाकायदा माल एवेन्यु का पता दर्ज है। जब इस ऐड्रेस की छानबीन की गई तो पता चला कि वह घर सेना के ही एक कर्नल साहब का है। कर्नल साहब अब सेना से रिटायर हो चुके हैं। उनका नाम कर्नल अजित सिंह है। जब कर्नल साहब से सम्पर्क साधा गया तो उन्होंने कहा, 'मुझे क्या पता कि किसने मेरे घर का ऐड्रेस लिखा दिया! किसी ने मुझसे पूछताछ करने की जरूरत भी नहीं समझी। मैं किसी बलराम गुरुंग को जानता भी नहीं।' 
...तो देखा आपने कि देश में कैसी अंधेरगर्दी मची है! इस फर्जी ऐड्रेस के एक और रोचक प्रसंग पर हम बाद में आते हैं। अभी नेपाली माओवादियों की भर्ती के प्रकरण में सबसे सनसनीखेज पहलू पर आते हैं। माओवादी गुरिल्ला कमांडर व यंग कम्युनिस्ट लीग के नेता रोम बहादुर खत्री ने भारतीय सेना में जिन माओवादियों को भर्ती कराया, वे खत्री तक सेना की सूचनाएं पहुंचाते हैं। उसी माओवादी नेता रोम बहादुर खत्री ने अपने दो बेटों संतोष बहादुर खत्री और भोजराज बहादुर खत्री को भी भारतीय सेना में भर्ती करा दिया है। संतोष बहादुर खत्री III-9 गोरखा रेजीमेंट में भर्ती है और भोजराज बहादुर खत्री 17वीं जैक राइफल्स में भर्ती है। विचित्र और सनसनीखेज तथ्य यह है कि रोम बहादुर खत्री का एक बेटा भोजराज बहादुर खत्री पहले नेपाली सेना में था। तीन साल तक नेपाल सेना में रहते हुए वह माओवादियों के लिए मुखबिरी करता था। भोजराज की मुखबिरी पर माओवादियों ने नेपाल सेना की कई युनिटों पर हमले किए। ऐसे ही एक हमले में माओवादियों ने नेपाली सैनिकों को मारा, हथियार लूटे, लेकिन भोजराज को वहां से भगा लिया गया। नेपाल सेना से भागा हुआ माओवादी बाकायदा भारतीय सेना के महत्वपूर्ण रेजीमेंट में नौकरी कर रहा है। माओवादी कमांडर खत्री ने अपने भतीजे सुरेश बहादुर खत्री को भी भारतीय सेना की नौकरी में लगवाया। वह भी एक कर्नल साहब के जरिए। वे कर्नल साहब फिलहाल पुणे में तैनात हैं। है न विचित्र किंतु सत्य?
मध्य कमान मुख्यालय लखनऊ में सेना भर्ती के निदेशक कर्नल संदीप दहिया से इस सिलसिले में बात हुई। कर्नल दहिया कहते हैं कि ठोस जानकारी मिलने पर वे छानबीन जरूर कराएंगे। जब उनसे आठवीं पास का फर्जी सर्टिफिकेट हासिल कर सेना में भर्ती होने के बारे में पूछा गया तो उन्होंने कहा, 'हो सकता है रक्षा मंत्रालय ने इसी वजह से शैक्षणिक योग्यता का स्तर आठवीं पास से बढ़ा दसवीं पास कर दिया हो। क्योंकि दसवीं का प्रमाणपत्र तो बोर्ड से मिलेगा। इसमें फर्जीवाड़े की सम्भावना नहीं रहती।' जाली डोमिसाइल सर्टिफिकेट पर कर्नल दहिया ने कहा, 'हम लोग तो सिविल प्रशासन से जारी होने वाले डोमिसाइल और गोरखा काउंसिल से मिलने वाले प्रमाण पत्र देखते हैं और उन्हीं से वैरिफाई भी कराते हैं। अगर वे ही फर्जीवाड़ा कर रहे हों तो इसमें हम क्या कर सकते हैं। फिर भी स्पेसिफिक सूचना मिलने पर हम छानबीन कराएंगे और आवश्यक कार्रवाई करेंगे।'
...अब आप एक सेनाधिकारी से और क्या उम्मीद कर सकते हैं! कर्नल दहिया ने इतना कहा, यह कम नहीं है। क्योंकि सेना के बड़े-बड़े अफसर तक मीडिया से बातें करने से कन्नी काटते हैं। हम अपनी तरफ से उन सेनाधिकारियों को यह जानकारी देते हैं कि माओवादी कमांडर रोम बहादुर खत्री नेपाल के बरदिया जिले के तारातल गांव का रहने वाला है। वहां से उसके बारे में खुफिया जानकारियां मंगाई जा सकती हैं। खत्री के दोनों बेटों, भतीजों और तमाम माओवादी काडरों की भारतीय सेना में हुई भर्ती का भी सेना अगर चाहे तो पता लगा कर कार्रवाई कर सकती है। लेकिन इसमें संदेह है। माओवादी कमांडर के गांव के ही दो और युवकों के बारे में जान लीजिए। दीपक छेत्री फर्जी दस्तावेजों के जरिए सेना में भर्ती हो चुका है। वह III-9 गोरखा बटालियन में तैनात है। भर्ती की प्रक्रिया कितनी अंधी है कि दीपक छेत्री के दाहिने हाथ की वह उंगली कटी हुई है जिससे राइफल का ट्रिगर दबाया जाता है। ऐसे सिपाही से सेना क्या काम लेती होगी? और वह मुखबिरी के सिवा क्या करता होगा? दीपक का भाई रमेश छेत्री भी IV-9 गोरखा बटालियन में भर्ती है। यहां फिर से फर्जी ऐड्रेस का रोचक प्रसंग आता है, जिसका चर्चा हम ऊपर कर चुके हैं। रमेश छेत्री के सैन्य दस्तावेजों में 8/5 विक्रमादित्य मार्ग का पता दर्ज है। निश्चित तौर पर इसी ऐड्रेस के आधार पर उसने डोमिसाइल सर्टिफिकेट हासिल किया होगा। उस ऐड्रेस की भी 'कैनविज टाइम्स' ने छानबीन की। वह भी फर्जी पाया गया। यह पता भी कर्नल अजित सिंह के दूसरे घर का है। इस पर भी कर्नल की वही प्रतिक्रिया थी जो ऊपर दी जा चुकी है। जैसा पहले बताया कि दीपक छेत्री और रमेश छेत्री भी माओवादी कमांडर रोम बहादुर खत्री के गांव बरदिया तारातल के रहने वाले हैं। लिहाजा, उनके माओवादी कनेक्शन आसानी से समझे जा सकते हैं। रमेश छेत्री की फोटो हमने हासिल कर ली है, उसे हम इस खबर के साथ प्रकाशित कर रहे हैं। बाद के अंकों में हम आपको बताएंगे भारतीय सेना में भर्ती हो रहे नेपाली माओवादी हमारे लिए कितने भारी पडऩे वाले हैं...

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