कोयला घोटाले की चपेट में उत्तर प्रदेश भी
प्रभात
रंजन दीन
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जिंदल फिलहाल छाया-क्षेत्र में हैं। अभी सीबीआई की कोप-दृष्टि उद्योगपति कुमार मंगलम
बिड़ला और कोयला मंत्रालय के पूर्व सचिव वरिष्ठ नौकरशाह पीसी पारिख पर है। अभी कुछ
ही दिन पहले 'कैनविज टाइम्स' ने आपको बताया था कि सीबीआई के निदेशकों को
रिटायरमेंट के बाद जिंदल के विभिन्न प्रतिष्ठानों में शीर्ष सुविधासम्पन्न पदों पर
नौकरी दी जाती रही है। जिंदल से उपकृत करीब आधा दर्जन निदेशकों और लगभग इतने ही
अन्य बड़े नौकरशाहों के बारे में उनकी सुंदर फोटो के साथ खबर प्रकाशित हुई थी।
जिंदल पर फिलहाल सधी हुई चुप्पी की सीधी और साफ वजह है। प्रधानमंत्री भी नहीं
चाहते कि जिंदल पर कोई आंच आए और सीबीआई भी नहीं चाहती। लिहाजा, बिड़ला और पारिख पर ध्यान केंद्रित
किया गया है। अब कुछ दिन बिड़ला-पारिख चलेगा। होना-जाना किसी का कुछ भी नहीं है,
बस लोगों में यह भ्रम बना रहे कि कुछ हो रहा है। प्रधानमंत्री ने कह
ही दिया है कि जो हुआ वह सही हुआ है। तो भारतीय लोकतंत्र के ऐसे सत्ताधीशों के राज
में हम आम लोग कुछ कर तो नहीं सकते, पर यह जानते जरूर चलें
कि इन कुलीन चेहरों की कितनी-कितनी काली करतूतें हैं। जानकारी और जागरूकता बनाए
रखने की धारा के क्रम में हम यह जानते चलें कि कोयला घोटाले से हमारा उत्तर प्रदेश
भी अछूता नहीं है। कोयला घोटाले में लिप्त आदित्य बिड़ला समूह का प्रतिष्ठान
'हिंडाल्को' (हिंदुस्तान
अल्युमिनियम कॉरपोरेशन लिमिटेड) भूमाफिया की तरह उत्तर प्रदेश में जमीनें हड़प रहा
है। उत्तर प्रदेश के किसानों की जमीनें कोयले की अकूत कमाई के साम्राज्य के नीचे
दबती जा रही हैं, लेकिन
यूपी सरकार इस तरफ ध्यान नहीं दे रही है। केंद्र सरकार के सीधे संरक्षण में यह
अवैध कृत्य हो रहा है इसलिए भी उत्तर प्रदेश सरकार कुछ बोल नहीं रही। नियम कानून
ताक पर रख कर हिंडाल्को को उत्तर प्रदेश में जमीनें दिलाने और कब्जा कराने में
केंद्र सरकार के अधिकारी और केंद्र सरकार के उपक्रम तो शामिल हैं ही, प्रधानमंत्री भी जानकारी के बावजूद आंखें मूंदे रहे हैं। कोयला घोटाला
केवल कोयले के अवैध खनन-आवंटन से ही नहीं बल्कि कोयला साम्राज्य के अवैध विस्तार
से भी सम्बद्ध है। हालत यह है कि कब्जे की जमीन पर भी बोर्ड लगवा कर हिंडाल्को उसे
अपनी निजी सम्पत्ति बता रहा है।
उत्तर प्रदेश के सोनभद्र में ककरी कोल परियोजना के
रोप-वे के लिए दस किलोमीटर का क्षेत्र हिंडाल्को को लीज़ पर दिए जाने का औपचारिक
फैसला 21 फरवरी 2009 को हुआ। लेकिन गैरकानूनी तरीके से इतना बड़ा क्षेत्र 1997 में
ही हिंडाल्को को दे दिया गया था। शासनिक-प्रशासनिक अंधेरगर्दी का हाल यह है कि इस
पर सरकार ने ध्यान ही नहीं दिया। अवैध तरीके से ली गई इस जमीन पर हिंडाल्को
बाकायदा अपना रोप-वे बना कर सोनभद्र को प्रदूषित करने का धंधा करता रहा, कोयले की राख फेंकता रहा और सरकारी
अधिकारी उपकृत होते रहे। 11 साल बाद जब इसकी जानकारी केंद्रीय सतर्कता आयुक्त
(सीवीसी) को मिली और सीवीसी सक्रिय हुए तो आनन-फानन कोयला मंत्रालय के उपक्रम
नॉरदर्न कोल फील्ड्स लिमिटेड (एनसीएल) ने हिंडाल्को को एक महीने के अंदर जमीन खाली
करने की नोटिस दे दी। सत्ता को अपनी पकड़ में रखने वाले बिड़ला एनसीएल की नोटिस पर
जवाब दें या जमीन खाली कर दें, ऐसा कहां सम्भव था! हिंडाल्को
सीधे कोयला मंत्रालय के सचिव के पास पहुंच गया। ...और अब केंद्र सरकार के आला
नौकरशाह बिड़ला के नौकर में तब्दील हो गए। सात मई 2008 को हिंडाल्को की चिट्ठी
मंत्रालय पहुंचती है और आठ मई 2008 को ही फाइल भी खुल जाती है और कार्रवाई के लिए
तीव्र गति से चल भी पड़ती है। बीच में थोड़ा 'ब्रेक' लेते हुए हम इसे रेखांकित करते चलें कि सरकारी
कार्रवाइयों में इतनी ही तीव्रता आम लोगों के लिए होती तो अब तक देश दूसरी ही काया
में होता। बहरहाल, आप वह
फाइल देखेंगे तो हैरत में पड़ जाएंगे। उसमें केंद्र सरकार की यह चिंता दिखाई देती
है कि हिंडाल्को को दी गई जमीन उससे छिन न जाए। उसी फाइल में एक कोने में यह भी
स्वीकारोक्ति है कि एनसीएल ने हिंडाल्को को जमीन देने के लिए केंद्र से कोई मंजूरी
नहीं ली। कोई सूचना भी नहीं दी। आपराधिक दुस्साहस यह है कि एनसीएल ने 'कोल वियरिंग एक्वीजिशन ऐक्ट' को ताक पर रख दिया और हिंडाल्को को एक लाख 79 हजार
32 रुपए के सालाना लीज़ पर जमीन दे दी। तब कोयला मंत्रालय प्रधानमंत्री के हाथ में
ही था। ...और मंत्रालय इतना पूंजी-प्रमाद में मत्त था कि एक दशक से अधिक समय तक
ऐसे गम्भीर अपराध पर चुप्पी साधे बैठा रहा। एनसीएल और मंत्रालय का अपराध साबित
मानते हुए भी केंद्र ने दोषी अधिकारियों पर कोई कार्रवाई नहीं की। उल्टा कोयला
मंत्रालय में बैठे शीर्ष नौकरशाह शरद गोडके हिंडाल्को की चिट्ठी मिलने के छह दिन
बाद ही जमीन खाली करने वाली नोटिस रोकने का फैक्स आदेश तैयार किए बैठे थे। 21 दिन
बाद 29 जुलाई 2008 को फैक्स आदेश भेज कर जमीन खाली कराने की कार्रवाई औपचारिक तौर
पर रोक दी गई। जमीनी तौर पर कार्रवाई हो भी नहीं रही थी।
केंद्र सरकार ने गैर-कानूनी लीज़ की स्वीकारोक्ति, एनसीएल और केंद्र सरकार के अधिकारियों
की मिलीभगत की पुष्टि और सरकारी राजस्व की हानि की आधिकारिक स्थापना के बाद 21
फरवरी 2009 को हिंडाल्को के साथ लीज़ का औपचारिक करार किया। यह केंद्र सरकार का
ऐतिहासिक कुकृत्य है। इस लीज़ करार ने खुद ही यह साबित कर दिया कि पिछले 12 साल से
बना हिंडाल्को का कब्जा अवैध था। यह कब्जा अब भी अवैध है। क्योंकि ऐक्ट में किसी
गैर सरकारी संस्थान को जमीन लीज़ पर देने की स्पष्ट मनाही है। 'कोल वियरिंग एक्वीजिशन ऐक्ट' में कोई संशोधन भी नहीं किया जा सकता। लीज़ करार आठ
लाख 32 हजार 430 रुपए का हुआ। और इस तरह केंद्र ने मान लिया कि पिछले 12 साल में
78 लाख 40 हजार 776 रुपए का राजस्व नुकसान हुआ। लेकिन इससे क्या फर्क पड़ता है!
जहां लाखों करोड़ रुपए लूटे जा रहे हैं, वहां 78 लाख क्या है! पर, सफेदपोश चेहरों पर कालिख
पोतने का क्रम हम जारी रखेंगे...
Goyal Energy Solution (GES) is a leading name in the coal trading, coal mines, steel grade coal in north east India.
ReplyDeleteSteel Grade Coal