Monday 7 October 2013

सीबीआई के निदेशकों को जिंदल देता है नौकरियां

सीबीआई जांचों के फेल होने की वजहों का भयानक सच
प्रभात रंजन दीन
सीबीआई के निदेशक रहे अश्वनी कुमार सीबीआई से रिटायर होने के बाद और नगालैंड के राज्यपाल बनाए जाने के पहले नवीन जिंदल के प्रतिष्ठान में नौकरी कर रहे थे। सीबीआई के कई पूर्व निदेशक व वरिष्ठ नौकरशाह जिंदल संगठन में अभी भी नौकरी कर रहे हैं। सीबीआई के निदेशकों को रिटायर होते ही जिंदल के यहां नौकरी कैसे मिल जाती है? सत्ता के गलियारे में पैठ रखने वाले वरिष्ठ नौकरशाहों को जिंदल से जुड़े प्रतिष्ठानों में प्रभावशाली ओहदों पर क्यों बिठाया जाता है? ताकतवर नौकरशाह जिंदल के संस्थानों से महिमामंडित और उपकृत क्यों होते रहे हैं? और उन पर केंद्र सरकार ध्यान क्यों नहीं दे रही? कोयला घोटाले में जिंदल समूह की संलिप्तता और घोटाले की सीबीआई जांच से जुड़ी फाइलों की रहस्यमय गुमशुदगी को देखते हुए इन सवालों को सामने रखना जरूरी हो गया है। उद्योगपति व ताकतवर कांग्रेसी सांसद नवीन जिंदल की कोयला घोटाले में भूमिका जगजाहिर है। सत्ता से उनकी नजदीकियां और उन नजदीकियों के कारण कोयला घोटाले की हो रही लीपापोती भी उजागर है। घोटाले में लिप्त हस्तियों की साजिशी पहुंच कितनी गहरी है, यह घोटाले से जुड़ी फाइलें गायब होने के बाद देश को पता चल रहा है। लेकिन अब आप इस खबर के जरिए देखेंगे कि पर्दे के पीछे पटकथाएं कैसे लिखी जाती हैं और कौन लोग लिखते हैं!
कोयला घोटाले में प्रमुख भूमिका निभाने वाले जिंदल समूह के जरिए केंद्र सरकार के वरिष्ठ नौकरशाहों को उपकृत कराने का सिलसिला लंबे अरसे से चल रहा है। आप तथ्यों को खंगालें तो आप पाएंगे कि सत्ता के अंतरंग जिन नौकरशाहों को केंद्र सरकार खुद उपकृत नहीं कर पाई, उन्हें जिंदल के यहां शीर्ष पदों पर नौकरी मिल गई। ऐसा भी हुआ कि नौकरी करते हुए भी कई नौकरशाहों को जिंदल के मंच से महिमामंडन का 'सुअवसर' प्रदान किया जाता रहा।
कांग्रेस के बेहद करीबी रहे अश्वनी कुमार उस समय सीबीआई के निदेशक थे, जब कोयला घोटाला पूरे परवान पर था। दो साल की निर्धारित सेवा अवधि में चार महीनों का विस्तार अश्वनी कुमार की सत्ता-अंतरंगता का ही प्रमाण है। कुमार दो अगस्त 2008 को सीबीआई के निदेशक बनाए गए थे और उन्हें दो अगस्त 2010 को रिटायर हो जाना चाहिए था, लेकिन उन्हें एक्सटेंशन दिया गया और सत्ता की मंशा पूरी होने के बाद कुमार नवम्बर 2010 को सीबीआई के निदेशक पद से रिटायर हुए। ...और अश्वनी कुमार जैसे ही सीबीआई के निदेशक पद से रिटायर हुए, उन्हें जिंदल समूह ने लपक लिया। सीबीआई के पूर्व निदेशक अश्वनी कुमार को जिंदल समूह के ओपी जिंदल ग्लोबल बिजनेस स्कूल का प्रोफेसर नियुक्त कर दिया गया। केंद्र सरकार ने अश्वनी कुमार को ओपी जिंदल ग्लोबल बिजनेस स्कूल के प्रोफेसर के रूप में महिमामंडित कराने के बाद मार्च 2013 में उन्हें नगालैंड का राज्यपाल मनोनीत कर दिया। कोयला घोटाला, घोटाले की लीपापोती, जिंदल की भूमिका और जिंदल समूह में सीबीआई निदेशकों की नियुक्ति के सूत्र आपस में मिलते हैं कि नहीं, इसकी पड़ताल का काम तो जांच एजेंसियों का है। हमारा दायित्व तो उन सिरों को रौशनी में लाने भर का है।
अश्वनी कुमार को सीबीआई का निदेशक बनाए जाने के पीछे की अंतरकथा भी कम रोचक नहीं है। 17 साल से अधिक समय से सीबीआई को अपनी सेवा दे रहे खांटी ईमानदार 1972 बैच के राजस्थान कैडर के आईपीएस अधिकारी एमएल शर्मा का निदेशक बनना तय हो गया था। चयनित निदेशक को प्रधानमंत्री के साथ चाय पर बुलाने की परम्परा के तहत शर्मा को पीएमओ में आमंत्रित भी कर लिया गया। उधर, सीबीआई कार्यालय तक इसकी सूचना पहुंच गई और वहां लड्डू भी बंट गए। लेकिन अचानक केंद्र सरकार ने एमएल शर्मा का नाम हटा कर हिमाचल प्रदेश के डीजीपी व 1973 बैच के आईपीएस अधिकारी अश्वनी कुमार को सीबीआई का निदेशक बना दिया। जबकि शर्मा उनसे सीनियर थे। शर्मा ने प्रियदर्शिनी मट्टू हत्याकांड और उपहार सिनेमा हादसा जैसे कई महत्वपूर्ण मामले निपटाए थे। लेकिन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने उन्हें आखिरी वक्त पर सीबीआई का निदेशक बनने लायक नहीं समझा, क्योंकि शर्मा वह नहीं कर सकते थे जो केंद्र सरकार सीबीआई से कराना चाहती थी। आपको मालूम है कि सीबीआई की नियुक्ति को देश के मुख्य सतर्कता आयुक्त, कार्मिक एवं प्रशिक्षण मंत्रालय के सचिव और केंद्रीय गृह सचिव हरी झंडी देते हैं। शर्मा के लिए यह तीन सदस्यीय समिति अपनी सहमति दे चुकी थी। प्रधानमंत्री भी इसकी मंजूरी दे चुके थे आखिरी वक्त में प्रधानमंत्री ने अपनी मर्जी या किसी पर्दानशीन-मर्जी के दबाव में शर्मा का नाम ड्रॉप कर अश्वनी कुमार को सीबीआई का निदेशक बना दिया। अचानक एमएल शर्मा को हटा कर अश्वनी कुमार को सीबीआई का निदेशक कैसे और क्यों बनाया गया, यह देश के सामने आए बाद के घटनाक्रम ने स्पष्ट कर दिया है। अश्वनी कुमार ऐसे पहले सीबीआई निदेशक हैं जो राज्यपाल बने। आरुषि हत्याकांड की लीपापोती करने और सोहराबुद्दीन मुठभेड़ मामले में अमित शाह को घेरे में लाने वाली सीबीआई को अश्वनी कुमार ही नेतृत्व दे रहे थे। लिहाजा, कोयला घोटाले में उनका रोल क्या रहा होगा, इसे आसानी से समझा जा सकता है।
सीबीआई के पूर्व निदेशक डीआर कार्तिकेयन जिंदल समूह के ओपी जिंदल ग्लोबल यूनिवर्सिटी की एकेडेमिक काउंसिल के वरिष्ठ सदस्य हैं। कार्तिकेयन 1998 में सीबीआई के निदेशक रह चुके हैं। सीबीआई के अलावा सीआरपीएफ के विशेष डीजी और राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के महानिदेशक जैसे महत्वपूर्ण पदों पर रहने के बाद कार्तिकेयन अभी जिंदल की सेवा कर रहे हैं। इसी तरह चार जनवरी 1999 से लेकर 30 अप्रैल 2001 तक सीबीआई के निदेशक रहे आरके राघवन भी जिंदल समूह की सेवा में हैं। जिंदल समूह ने राघवन को ओपी जिंदल ग्लोबल यूनिवर्सिटी के बोर्ड ऑफ मैनेजमेंट का वरिष्ठ सदस्य बना रखा है।
जैसा ऊपर भी बताया कि सीबीआई के जिन निदेशकों को जिंदल अपने समूह में नियुक्त नहीं कर पाया उन्हें अपने शैक्षणिक प्रतिष्ठान से महिमामंडित कराता रहा। 30 नम्बर 2010 से 30 नवम्बर 2012 तक सीबीआई के निदेशक रहे और टूजी स्पेक्ट्रम जैसे बड़े घोटाले की जांच से जुड़े रहे अमर प्रताप सिंह को रिटायर होने के महज महीने डेढ़ महीने के अंदर केंद्र सरकार ने लोक सेवा आयोग का सदस्य मनोनीत कर दिया। उधर जिंदल अपने संस्थान के जरिए इनके भी प्रतिष्ठायन में पीछे नहीं रहा। ओपी जिंदल ग्लोबल विश्वविद्यालय के कई शिक्षण-प्रशिक्षण कार्यक्रमों में एपी सिंह शरीक रहे हैं। यहां तक कि राष्ट्रीय पुलिस अकादमी तक में अपनी घुसपैठ बना चुका जिंदल वहां भी सैकड़ों वरिष्ठ आईपीएस अधिकारियों के विशेषज्ञीय प्रशिक्षण का प्रायोजन कराता रहता है और उसी माध्यम से शीर्ष नौकरशाही को उपकृत करता रहता है। ऐसा ही सीबीआई के पूर्व निदेशक पीसी शर्मा के साथ भी हुआ। 30 अप्रैल 2001 से लेकर छह दिसम्बर 2003 तक सीबीआई के निदेशक रहे पीसी शर्मा भी अपने रिटायरमेंट के महीने भर के अंदर राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के सदस्य मनोनीत कर दिए गए। जिंदल ने पीसी शर्मा को भी अपने समूह से जोड़े रखा और शैक्षणिक प्रतिष्ठानों; ओपी जिंदल ग्लोबल यूनिवर्सिटी व जिंदल ग्लोबल लॉ स्कूल के जरिए उनका महिमामंडन करता रहा।
सत्ता से जुड़े रहे वरिष्ठ नौकरशाहों के जिंदल से नजदीकियां वाकई रेखांकित करने लायक हैं। राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के पूर्व सदस्य, भारत सरकार की नीति बनाने और उसे कार्यान्वित कराने की समिति के पूर्व निदेशक, प्रधानमंत्री, कैबिनेट सचिवालय और राष्ट्रपति तक के मीडिया एवं संचार मामलों के निदेशक रह चुके वाईएसआर मूर्ति को जिंदल ने ओपी जिंदल ग्लोबल यूनिवर्सिटी का रजिस्ट्रार बना रखा है। मूर्ति न केवल विश्वविद्यालय के रजिस्ट्रार हैं बल्कि वे मैनेजमेंट बोर्ड और एकेडेमिक काउंसिल के भी सदस्य हैं। वर्ष 2002 से 2007 तक देश के ऊर्जा सचिव रहे राम विनय शाही और भारतीय स्टेट बैंक के चेयरमैन रहे अरुण कुमार पुरवार जिंदल स्टील्स प्राइवेट लिमिटेड के डायरेक्टर हैं। ऐसे कई उदाहरण हैं। जिंदल देश का अकेला ऐसा पूंजी प्रतिष्ठान है जिसने सत्ता से जुड़े शीर्ष नौकरशाहों को अपने समूह में सेवा में रखा। खास तौर पर सीबीआई के पूर्व निदेशकों को अपनी सेवा में रखने में जिंदल का कोई सानी नहीं है।
आपको याद होगा कि कोयला घोटाले की जांच से जुड़े एक सामान्य अधिकारी विवेक दत्त को कुछ महीने पहले 15 लाख रुपए घूस लेते हुए पकड़ा गया था। विवेक दत्त को तत्काल प्रभाव से निलम्बित भी कर दिया गया और उसका पूरा करियर दागदार भी कर दिया गया। ऐसे जिन भी दागी अफसरों पर आपकी निगाह जाए, वे सभी मामूली अफसर ही होंगे। इनमें कोई भी आईपीएस अधिकारी नहीं होगा। जिंदल से उपकृत सीबीआई के पूर्व निदेशकों या वरिष्ठ नौकरशाह हस्तियों पर किसी की निगाह नहीं जाती। अगर वह अधिकारी सत्ता का करीबी, खास तौर पर सोनिया-राहुल-प्रियंका का अंतरंग रहा हो तो ऐसे अधिकारी पर कोई हाथ नहीं रख पाएगा। ऐसा अफसर जिंदल जैसे घोटालेबाज पूंजीपति सियासतदानों के यहां नौकरी भी पा जाएगा, आयोगों में पीठासीन भी हो जाएगा और राज्यपाल भी बना दिया जाएगा। ट्रान्सपैरेंसी इंटरनेशनल ने 2010 में कहा था कि भारत में 100 में से 54 लोग भ्रष्ट हैं। यह 2010 में कहा था। तीन साल में 54 की संख्या अब 94 हो चुकी होगी। बहरहाल, हम आंकड़ों पर न जाएं। नेता-नौकरशाह इन आंकड़ों से कहीं ऊपर खड़े हैं और कुकृत्यों के गंदे दलदल में कहीं गहरे धंसे हैं।

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