Friday 24 February 2012

जब बसपा के पक्ष में जज खरीदने गए थे खुर्शीद!

चुनाव क्या, किसी भी आचार संहिता से है कांग्रेसियों को परहेज
देश के कानून मंत्री सलमान खुर्शीद की आदत में शुमार है कानून का उल्लंघन करना और संवैधानिक मर्यादा की दहलीज लांघना। उनकी नकल पर कांग्रेस आलाकमान का खास बनने के भौंडे प्रयास में केंद्रीय मंत्री बेनी प्रसाद वर्मा इस उम्र में भी नाबालिग हरकतें कर रहे हैं। उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ के मतदाता कल जब अपने मताधिकार का इस्तेमाल करने जा रहे होंगे, उनके सामने होगा कानून की अवहेलना करने वाले कानून मंत्री और संवैधानिक अवमानना के दोषी व्यक्ति को भारतीय लोकतंत्र पर थोपे रहने की असंवैधानिक जिद रखने वाली कांग्रेस पार्टी का अनैतिक अलोकतांत्रिक दंभ। चुनाव आयोग के 15 पेज के फैसले और राष्ट्रपति को भेजी गई आयोग की चिट्ठी देखें तो कांग्रेसी प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और कांग्रेस की अध्यक्ष सोनिया गांधी के अलोकतांत्रिक चरित्र का अहसास हो जाएगा। आपको यह भी अहसास हो जाएगा कि वोट के लिए ये किसी भी स्तर पर उतर सकते हैं, फिर देश, कानून और संविधान क्या बला है।
आपको थोड़ा फ्लैश-बैक में लिए चलते हैं। बहुजन समाज पार्टी के 40 विधायकों के पार्टी छोड़ कर निकल जाने और समाजवादी पार्टी की सरकार बनाने के मामले में बसपा नेता स्वामी प्रसाद मौर्य ने दलबदलू विधायकों को अयोग्य घोषित किए जाने की याचिका दाखिल की थी। इस पर दो साल की बहस के बाद 2005 में हाईकोर्ट की खंडपीठ ने फैसला तो किया लेकिन दिया नहीं था। फैसला रिजर्व कर लिया गया था। उस समय सलमान खुर्शीद उत्तर प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष हुआ करते थे। खुर्शीद को पता चल चुका था कि बेंच के दूसरे जज एमए खान अपने फैसले में विधायकों को योग्य करार देने जा रहे हैं। जबकि कांग्रेस चाहती थी विधायकों को अयोग्य करार दिया जाए ताकि समाजवादी पार्टी की सरकार गिर जाए। सलमान खुर्शीद सोनिया गांधी के दूत के रूप में न्यायाधीश एमए खान से मिले और न्यायिक प्रक्रिया में आपराधिक बाधा डालने की कोशिश की। खुर्शीद ने एमए खान को फैसला बदलने और बदले में राज्यपाल का पद लेने के लिए मनाने का प्रयास किया। जज जगदीश भल्ला ने भी एमए खान को मनाने की कोशिश की। उस समय के केंद्रीय कानून मंत्री हंसराज भारद्वाज भी लखनऊ आए, उन्होंने भी एड़ी चोटी का जोर लगाया लेकिन बात नहीं बनी। वरिष्ठ जज होने के नाते जगदीश भल्ला ने फैसले की घोषणा की तारीख मुकर्रर नहीं की और फैसले को सीलबंद कर दिया। दलबदल करने वाले विधायकों के मामले में फिर से सुनवाई किए जाने की एक याचिका पर भल्ला को एक दिन के लिए पीठ का गठन करना पड़ा और इसी एक दिन का फायदा उठाते हुए न्यायाधीश एमए खान ने अपना फैसला सार्वजनिक कर दिया। ...और उनका फैसला था कि बसपा छोड़ गए 40 विधायकों पर दलबदल कानून लागू नहीं होता, लिहाजा वे योग्य ठहराए जाते हैं। एमए खान द्वारा फैसला सार्वजनिक किए जाने के बावजूद न्यायाधीश जगदीश भल्ला ने न्याय को ‘सील’ रखा। इस मामले में फिर तीन जजों की पीठ गठित हुई। उस पीठ में इलाहाबाद हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश एएन रे खुद शामिल थे। उनके अलावा पीठ में जगदीश भल्ला और प्रदीपकांत थे। इस बार जगदीश भल्ला और प्रदीपकांत ने बसपा छोडऩे वाले विधायकों को अयोग्य और मुख्य न्यायाधीश एएन रे ने उन्हें योग्य करार दिया। मामला सुप्रीमकोर्ट की संविधान पीठ पहुंचा, जहां इलाहाबाद हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश के फैसले पर सुप्रीमकोर्ट की संविधान पीठ ने अपनी सहमति जताई। 40 विधायकों को दलबदल कानून से अलग बताया और उन्हें योग्य करार दे दिया।
इससे दो बातें साफ होती हैं। एक न्यायिक है और दूसरी राजनीतिक। कांग्रेस हो या कांग्रेसी, न्यायिक प्रक्रिया से उसे कोई लेना-देना नहीं। दूसरे यह कि कांग्रेस और बसपा आपस में समझदारी से काम करती रही है। तभी, उत्तर प्रदेश में मुलायम सिंह यादव की सरकार गिराने के इरादे से कांग्रेस ने बसपा की याचिका के पक्ष में न्याय को प्रभावित करने की कोशिश की और कानून की ऐसी-तैसी कर रख दी। जज को रिश्वत देने और न्यायिक प्रक्रिया में बाधा डालने की आपराधिक साजिश की गई। आज भी देखिए कांग्रेस के नेता वही कर रहे हैं। देश के कानून मंत्री सलमान खुर्शीद के आचरण और प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के रवैये ने चुनाव आचार संहिता के औचित्य पर ही गहरा सवाल खड़ा कर दिया है। कानून मंत्री के खिलाफ चुनाव आयोग का निर्णय लिया जाना और उसके अनुपालन के लिए राष्ट्रपति को विवशताओं से भरा पत्र लिखा जाना वाकई दुखद है... और इससे भी त्रासद है पंगु राष्ट्रपति द्वारा एक डाकिये की तरह आयोग के उस पत्र को प्रधानमंत्री के पास भेज देना। कांग्रेस का तर्क है कि सलमान खुर्शीद ने माफी तो मांग ही ली... इस पर इलाहाबाद हाईकोर्ट के अधिवक्ता अशोक पांडेय ने अदालत से पूछा कि माफी मांगने से खुर्शीद के अपराध की पुष्टि हो जाती है, फिर उन पर आपराधिक मुकदमा और न्यायालय की अवमानना का मामला क्यों नहीं चलाया जाए? जज को लालच देने और न्याय खरीदने की कोशिश करने के मामले में सलमान खुर्शीद, तत्कालीन कानून मंत्री हंसराज भारद्वाज और कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी पर मुकदमा क्यों नहीं चलाया गया? और क्यों नहीं सलमान खुर्शीद को मंत्री पद से हटाया जाए? न्यायालय ने फिर अपना फैसला रिजर्व कर लिया है... लोकतंत्र इसी तरह जल्दी ही सीलबंद हो जाने वाला है...

2 comments: