Friday 24 February 2012

सीएम के खास नौकरशाह को बचा रहे पीएम!

प्रदीप शुक्ला ने सीबीआई को दिखाई औकात
राजनीतिक संरक्षण है या सुनियोजित साठगांठ
बहुचर्चित एनआरएचएम घोटाले के अभियुक्त प्रदेश के आला नौकरशाह प्रदीप शुक्ला कहां हैं? सीबीआई के अधिकारी भी परेशान हैं कि स्वास्थ्य विभाग के प्रमुख सचिव वरिष्ठ आईएएस अफसर प्रदीप शुक्ला आखिर गए कहां! सीबीआई अधिकारियों को भी यह समझ में नहीं आ रहा कि कहां तो तय था कि प्रदीप शुक्ला गिरफ्तार कर लिए जाएंगे, पर अचानक ऐसा कौन सा जादू चल गया कि सीबीआई के शीर्षस्थ अधिकारी ही चुप्पी साध कर बैठ गए।
पहले कहावत चलती थी कि प्रेम में और युद्ध में सब जायज है... अब यह बात बदल गई है। अब चलन में यह है कि राजनीति में और घोटाले में सब जायज है। यह बसपा और कांग्रेस में राजनीतिक मित्रता है या घोटालीय दोस्ती, विवशता है या भविष्य का झप्पी-संकेत कि उत्तर प्रदेश की बसपा सरकार के शीर्ष नौकरशाह प्रदीप शुक्ल को केंद्र की कांग्रेस सरकार का शीर्ष सत्ता-केंद्र हिफाजत दे रहा है! प्रधानमंत्री दफ्तर प्रदीप शुक्ला में आखिर क्यों रुचि ले रहा है? यह सवाल सीबीआई के उन सूत्रों का है, जो मध्यम पदाधिकारी वर्ग के हैं, जिन्हें शीर्ष गलियारे की हरकतों की भनक तो रहती है लेकिन सूत्रधारों के बारे में पता नहीं रहता। उन्हें इतना जरूर आभास और संकेत दोनों है कि अब जो कुछ भी होगा चुनाव के बाद ही होगा। यानी, अगर पीएमओ बीच में ही कोई अप्रत्याशित करवट न ले ले तो चुनाव परिणाम आने तक प्रदीप शुक्ला का कुछ नहीं बिगडऩे वाला। सीबीआई के अधिकारी भले ही लखनऊ में शिविर डाले रहें, प्रदीप शुक्ला तो राजधानी में राजछत्र के नीचे हैं। चुनाव परिणाम आने के बाद देश और प्रदेश की सियासत कौन सा शक्ल लेगी और फिर एनआरएचएम घोटाला और प्रदीप शुक्ला जैसे आरोपियों का क्या होगा, इसके बारे में अभी कैसे और क्यों कहा जाए! समझा जरूर जा सकता है। 
एनआरएचएम घोटाले के आरोपी वरिष्ठ आईएएस अधिकारी प्रदीप शुक्ला और प्रधानमंत्री के खास सलाहकार प्रजापति त्रिवेदी के अंतरंग रिश्ते हैं। अर्थ मामलों  के विशेषज्ञ प्रजापति त्रिवेदी को प्रधानमंत्री सचिवालय में खास स्थान देकर विदेश से लाया गया था। इन अर्थ विशेषज्ञ का प्रदीप शुक्ला के अनर्थ से लेना-देना भले ही नहीं हो, लेकिन रिश्ते को बचाने का अर्थ तो है ही। आप फिर से याद करते चलें कि स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण विभाग के प्रमुख सचिव और सत्ता के खास रहे प्रदीप शुक्ला एनआरएचएम घोटाले की जांच के क्रम में आरोपी बनाए जाने के लिए फिट पाए गए थे और सीबीआई उन्हें पूछताछ के लिए बुलाने का लगातार सम्मन भी जारी करती रही, लेकिन न वे सीबीआई के समक्ष गए और न कोई जवाब ही दिया। शीर्ष खुफिया एजेंसी की उपेक्षा कोई भी व्यक्ति बिना किसी शक्तिशाली छाया के थोड़े ही कर सकता है। सीबीआई ने 19 जनवरी को लखनऊ के कई ठिकानों पर छापामारी की, लेकिन प्रदीप शुक्ला कहीं नहीं मिले। न बटलर पैलेस कॉलोनी में और न कैंट के हजरत महल मार्ग स्थित 12 नंबर कोठी में। पोर्टिको की शान बढ़ाने वाली काली चमचमाती विदेशी लक्जरी ‘बीटल’ कार भी वहां खड़ी नहीं मिली। हां, सीबीआई के अधिकारी घर के भीतर की आलीशान साज-सज्जा और दिल्ली की मशहूर फर्म ‘एकेजी’ से खरीदे गए बेशकीमती प्रसाधन उपकरण और कीमती लकड़ी की बेहतरीन फर्श देखकर चमत्कृत जरूर हुए। सीबीआई ने उस समय आधिकारिक तौर पर यह कहा था कि प्रदीप शुक्ला को शीघ्र सम्मन किया जाएगा। इससे यह स्पष्ट हुआ था कि इस बार प्रदीप शुक्ला ने सीबीआई के सम्मन का सम्मान नहीं रखा तो उन्हें गिरफ्तार कर लिया जाएगा। लेकिन न तो फिर से सम्मन जारी हो सका और न गिरफ्तारी की संभावना ही बनी।
सीबीआई के एक आला अधिकारी ने कहा कि अच्छा है एनआरएचएम घोटाले की जांच के लिए सीबीआई को कुछ और समय मिल गया। प्रदीप शुक्ला को गिरफ्तार कर लिया गया तो चार्जशीट भी दाखिल करनी होगी। घोटाला इतना बड़ा और विस्तृत है कि जांच में ही पसीने आ रहे हैं। फिर डॉ. वाईएस सचान की हत्या को आत्महत्या करार देने वाले ‘सर्टिफिकेट’ की तरह प्रदीप शुक्ला को भी क्लीन चिट क्यों नहीं दे देते? इस सवाल पर उक्त अधिकारी ने स्पष्ट कहा, ऐसा भी हो सकता है। दो-दो सीएमओ की हत्या के बाद गिरफ्तार किए गए डीप्टी सीएमओ डॉ. वाइएस सचान जेल में ही किस तरह मारे गए थे, यह सब लोग जानते हैं। पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट से लेकर तमाम विशेषज्ञों ने साफ तौर पर यह माना था कि डॉ. सचान को जेल में नियोजित तरीके से मारा गया। लेकिन इन सब तथ्यों से अलग जाकर सीबीआई को यह कहते न देर लगी और न झिझक हुई कि डॉ. सचान ने जेल में आत्महत्या की थी, उनकी हत्या नहीं हुई थी। वजहें आईने की तरह साफ हैं...

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