Friday 24 February 2012

पर्दे के पीछे कौन? सीबीआई मौन...

अरबों रुपए का राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन घोटाला उत्तर प्रदेश के मार्फत दिल्ली या अन्य राज्यों से जुड़ा है या घोटाला यूपी में वाया दिल्ली पहुंचा है? दिल्ली की कौन-कौन सी शख्सियत घोटाले से लिंक्ड है? सीबीआई यूपी के अलावा भी कहीं कुछ कर रही है या नहीं? दिल्ली में दर्ज हुई कुछ प्राथमिकियां दिल्ली-लिंक्ड हैं या यूपी-लिंक्ड? एनआरएचएम घोटाला कहीं राजनीतिक हित साधने का जरिया तो नहीं बन रहा, जिसमें हत्याएं हो रही हैं, राजनीतिक हस्तियां निबटाई जा रही हैं या चुनाव के बाद इसी के जरिए सियासी हित साधे जाएंगे? सीबीआई ने एनआरएचएम के जो दिल्ली-यूपी-उत्तराखंड लिंक तलाशे हैं, उसके बारे में चुप्पी क्यों है? उत्तराखंड में जो हस्तियां इस घोटाले में लिप्त हैं, उन्हें बचाने के लिए चुप्पी है या फंसाने के लिए? डॉ. वाइएस सचान की हत्या का सुराग देने वाले जिस इकलौते दस्तावेज को सत्ता गलियारे में श्रेडर मशीन में डाल कर नष्ट कर दिया गया था, उसके दोषियों के खिलाफ कार्रवाई की पहल के बजाय सीबीआई की चुप्पी क्यों? ये सवाल भी हैं और स्वयं में जवाब भी...
 एनआरएचएम घोटाले के तार केवल यूपी से ही नहीं बल्कि दिल्ली और उत्तराखंड से भी जुड़े हैं। सीबीआई को ऐसे कई सबूत हासिल हुए हैं। आपके सामने हम एक बानगी पेश करेंगे। एनआरएचएम के ब्लैंक चेकबुक्स बड़ी तादाद में उत्तराखंड के लिए भी भेजे गए, जिन पर केवल राशि भरी गई और पैसे निकाल लिए गए। ऐसा ही एक ब्लैंक चेकबुक हम आपको दिखाते हैं जो ‘प्राइवेट एंड कंफिडेंशियल’ लिफाफे में बीएनपीएल दिल्ली कोड -901407 से उत्तराखंड भेजा गया था। यह एकाउंट नंबर- 30430179697 (आईएफएससी- एसबीआईएल0002523) का चेकबुक है। सीबीआई सूत्रों का कहना है कि एनआरएचएम घोटाले के सुर्खियों में आने के बाद पकड़े जाने की हड़बड़ाहट में ऐसे कई ब्लैंक चेकबुक्स और दस्तावेज बरामद हो रहे हैं, जिनसे कई महत्वपूर्ण सुराग हाथ लगे हैं। लेकिन जिन कोड नंबरों और जिन एकाउंट नंबरों से चेकबुक्स भेजे गए, वहां से कितने रुपए निकाले गए, इस बारे में पूछने पर सीबीआई के सूत्रों का कहना है कि निकाले गए रुपए का भी हिसाब-किताब किया जा रहा है, इस बारे में अभी बताना मुमकिन नहीं है। लेकिन दिल्ली और उत्तराखंड के लिंक में कौन लोग हैं, यह पूछे जाने पर सीबीआई के अधिकारी दिल्ली-यूपी-उत्तराखंड के कई नेताओं नौकरशाहों के नाम तो बताते हैं, लेकिन इन नामों को आधिकारिक शक्ल देने में हिचकते हैं। सीबीआई के पास सुराग तो हैं, लेकिन दिमाग नहीं। क्योंकि दिमाग कहीं और से संचालित हो रहा है, सीबीआई की चुप्पी या डर इसी वजह से है।
अब आते हैं फिर से अहम सुराग देने वाले दस्तावेज के ‘श्रेडर’ (कागजात को बुरादे में तब्दील करने वाली मशीन) में डाल कर नष्ट करने की घटना पर। डॉक्टर वाइएस सचान की जेल में हत्या की गई थी या वह आत्महत्या का ही मामला था, इसका खुलासा करने वाला दस्तावेज जेल विभाग के आईजी एके गुप्ता के हाथ लग चुका था। यह डॉ. सचान का खुद का लिखा बयान था, जिसमें उन्होंने हत्या की आशंका जताई थी और जेल में टॉर्चर किए जाने के बारे में तफसील से लिखा था। यह दस्तावेज गृह विभाग के कद्दावर स्वनामधन्य अधिकारी पास पहुंचा लेकिन उन्होंने उसे तत्काल श्रेडर मशीन में डाल कर नष्ट कर डाला। सत्ता गलियारे के खास होने का उन्होंने सबूत दिया। सीबीआई को इस बारे में पूरा पता है। जेल आईजी एके गुप्ता के यहां सीबीआई की छापामारी भी हुई, लेकिन ‘श्रेडर-कृत्य’ करने वाले अधिकारी को सीबीआई कानूनी घेरे में नहीं ले पाई, लिहाजा नाम भी उजागर नहीं किया जा सकता। डॉ. वाइएस सचान के लिखे हुए कागज की जेलर ने फोटोस्टैट करा ली थी। वह कॉपी सीबीआई के पास है। लेकिन अदालत में ओरिजिनल कॉपी की मांग और मान्यता होगी... पर वह श्रेडर मशीन से वापस नहीं आ सकती।

No comments:

Post a Comment