मेरी मदर-इंडिया डॉक्टर उषा रानी सिंह का आज जन्मदिन है। लखनऊ वाले आवास पर माँ ने जिद कर शमी का पौधा लगवाया था। एक सितम्बर 2014 को मदर-इंडिया हमें छोड़ कर चली गईं... जब मैं खोखला होकर पटना से वापस लखनऊ लौटा तो शमी के पौधे में यह फूल उगा था। चटख रंग के साथ ऐसा फूल बस एक ही बार खिला... शमी के पौधे ने भी माँ को जैसे अपनी आखिरी श्रद्धांजलि दी थी। मैंने उस फूल की फोटो खींच कर उसे माँ को अर्पित कर दिया। माँ फूल तोड़ने के सख्त खिलाफ थीं। शमी का पौधा अब भी है। पर उसमें अब फूल नहीं खिलते... शमी अब भी है, पर उसमें वह खिलखिलाहट नहीं... माँ के जाने के बाद शमी जैसे मेरे जीवन की ही असलियत खोलता हो... क्या कहूं इसके आगे..! मेरा अस्तित्व, मेरी शब्द-आराधना और मेरी कठोर नैतिक शक्ति सब उन्हीं परम् विदुषी देवी सरस्वती सरीखी माँ डॉक्टर उषा रानी सिंह के कारण है...
तुम्हारी अस्थियों के साथ मैं भी बह गया दरिया समद में,
खो गया अस्तित्व, कुछ रह नहीं मेरा गया बाकी सनद में...
- प्रभात रंजन दीन
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