Monday 23 December 2019

किसी मुगालते में न रहें मुसलमान..!


प्रभात रंजन दीन
‘मित्रों के चेहरे वाली किताब’ (फेसबुक) में शामिल मेरे एक दोस्त हैं शाहनवाज हसन... मेरे लेख ‘मुसलमानों को आप नासमझ समझते हैं क्या?’ पर ये अकेले मुस्लिम साथी हैं, जिनकी थोड़ी सी सकारात्मक प्रतिक्रिया मिली। शाहनवाज भाई को मेरे कुछ शब्दों पर आपत्ति थी और उन्हें इस बात पर भी आपत्ति थी कि मैंने राहुल गांधी पर निशाना क्यों साधा। हालांकि उन्होंने यह भी कहा कि राहुल से उनकी कोई सहानुभूति नहीं है। शाहनवाज हसन भारतीय हैं, भारतीय की तरह सोचते हैं और एक भारतीय की तरह ही उनमें भी देश में चल रही बेमानी हिंसा को लेकर पीड़ा है। शाहनवाज हसन उन हिन्दुओं से बहुत बेहतर हैं जो हिन्दू, सिख, बौद्ध, जैन, ईसाई और पारसी समुदाय के लोगों के हित की बात करने वाले को संघी या भाजपाई करार देने लगते हैं और मुस्लिम-हित की बात करने वाले को धर्म-निरपेक्ष। ऐसा करके वे खुद को ‘प्रगतिशील’ समझने का ‘आत्मरत्यानंद’ लेते रहते हैं। यह शब्द भारी लगेगा, लेकिन इसका संधि-विच्छेद (आत्म-रति-आनंद) कर लें तो इसका अर्थ स्पष्ट हो जाएगा। ऐसे ‘धर्म-निरपेक्ष’ और ‘प्रगतिशील’ बेहूदा लोगों को बेहूदा न कहा जाए तो क्या कहा जाए शाहनवाज भाई..? इन्हें बेहूदा शब्द क्यों बुरा लगता है..? इन्होंने तो ‘इश्क कमीना’, ‘भाग बोस डीके’, ‘पप्पू कांट डांस साला’, ‘चोली के पीछे क्या है’, ‘हलकट जवानी’ जैसे तमाम बेहूदे गीतों के दु-र्बुद्धिजीवी रचनाकारों और उस पर फिल्में बनाने वाले विकृत लोगों को बौद्धिक-आइकॉन पहले से बना रखा है। जो रचनाकार ‘गंदी बात गंदी बात’ से अपनी रचना शुरू करे ऐसे लोगों की जमात से आप ‘अच्छी बात’ की उम्मीद कैसे कर सकते हैं..? ऐसों को बेहूदा न कहें तो क्या कहें..? ऐसे ही दु-र्बुद्धिजीवी लोग पुरस्कार भी लौटाते हैं और प्रधानमंत्री को नैतिकता की सीख देने वाला पत्र भी लिखते हैं। इन्हें शर्म भी नहीं आती ऐसा करते हुए।
खैर, शाहनवाज हसन की कुछ जिज्ञासाओं का जवाब, जवाब के निर्धारित खाने में समा नहीं रहा था, इसलिए इसे अलग किया, लेकिन यह हम सब लोगों के लिए पढ़ने और मंथन करने के लिए है, खास कर मुसलमान साथियों के लिए। शाहनवाज भाई, आपकी बातें मुझे भावुक करती हैं। मेरे जिन शब्दों पर आपको आपत्ति है, वे शब्द थोड़े सख्त जरूर हैं, लेकिन आप जैसे सदाशय, संवेदनशील, समझदार और सरल लोगों के लिए थोड़े ही हैं। वे शब्द तो उन लोगों के लिए हैं जो बेमानी हिंसा कर रहे हैं, जो बेमानी हिंसा करा रहे हैं और जो बेमानी हिंसा को जन-आंदोलन और छात्र-आंदोलन की परिभाषा के फ्रेम में कसने का बौद्धिक-षडयंत्र कर रहे हैं। शाहनवाज भाई, आप believe करें, नागरिकता संशोधन कानून पर मेरे दो लेख आने के बाद मेरे चारों फेसबुक अकाउंट पर ढेर सारे मुस्लिम साथियों और बहनों के फ्रेंड्स रिक्वेस्ट आए हैं। उन सब को मैं अलग-अलग अकाउंट्स में समायोजित कर रहा हूं। मेरे मुसलमान मित्रों की एक लंबी कतार है... और आपसे बातें करते हुए मुझे इतना सुकून मिल रहा है कि आपसे क्या कहूं... मुझे रौशनी दिखाई दे रही है। फ्रेंड्स रिक्वेस्ट आ रहे थे, तब मुझे अच्छा तो लग रहा था लेकिन इस प्रायोजित हिंसा के खिलाफ कोई मुखर होकर सामने नहीं आ रहा था। धर्म तो सच बोलने की हिम्मत देता है न शाहनवाज भाई..! धर्म का गलत-सलत इंटरप्रेटेशन करके लोगों को मानसिक तौर पर पंगु बनाया जा रहा है। सभी धर्मों में ऐसे 'एक्सट्रीमिस्ट-इंटरप्रेटरिस्ट' अपनी बेहूदा हकरतें करते रहते हैं, लेकिन ऐसे तत्वों को हमें अपने ऊपर हावी नहीं होने देना है, बल्कि हमें उन पर हावी होना है। इसीलिए तो मैंने बिल्कुल सोच-समझ कर लिखा कि मुझे जिस दिन लगा कि हिन्दू धर्म में ऐसे 'एक्सट्रीमिस्ट-इंटरप्रेटरिस्ट' तत्व निर्णायक तौर पर हावी हो रहे हैं, उसी दिन मैं हिन्दू धर्म त्याग कर अलग हो जाऊंगा। मैं एक व्यक्ति के रूप में धरती पर आया हूं... धार्मिक के रूप में नहीं। धर्म को व्यक्ति ने बनाया है, व्यक्ति को धर्म ने नहीं बनाया है। जबतक धर्म, व्यक्तित्व (personality) बनाने में सहायक हो, तभी तक धर्म को स्वीकार करिए, अन्यथा नहीं।
मेरे लेख में आपको मेरे कुछ शब्दों पर आपत्ति है... आपसे आग्रह है कि आप उसे एक बार फिर पढ़ें... इस बार मुस्लिम होकर नहीं पढ़ें। जैसे आपने एक सच्चे भारतीय की तरह अपनी भावना मुखर होकर व्यक्त की... वैसे ही। जहां तक राहुल पर टार्गेट करने का प्रसंग है, मैं यह कह दूं कि राहुल-सोनिया तो सिम्बॉलिक-नेम हैं। जैसा आपको लेख में भी बताया कि राहुल गांधी ब्रिटिश नागरिक हैं। ब्रिटिश कंपनी ‘बैकोप्स लिमिटेड’ के डायरेक्टर के रूप में उन्होंने जो रिटर्न दाखिल किया उसमें राहुल ने खुद को ब्रिटिश नागरिक बताया है। कंपनी के निदेशक से हटने के लिए उन्होंने जो आवेदन दिया, उसमें भी खुद को उन्होंने ब्रिटिश नागरिक ही बताया है। ब्रिटेन, इटली, स्वीडन के साथ-साथ कई अन्य देशों में राहुल गांधी की अकूत सम्पत्तियां हैं, उनका पूरा ब्यौरा ईडी के पास आ चुका है। ब्रिटिश नागरिकता के सवाल पर केंद्र सरकार द्वारा दी गई नोटिस पर अब राहुल गांधी के जवाब का इंतजार है। जैसा आपको बताया कि उनकी ब्रिटिश नागरिकता के सवाल पर संसद की एथिक्स कमेटी वर्ष 2016 में ही उन्हें कारण बताओ नोटिस जारी कर चुकी है, जिसका भी जवाब राहुल ने नहीं दिया है। राहुल ने जवाब दिया तो ताश के पत्ते से सजी ऊंची मीनार भरभरा कर गिर जाएगी। राहुल को यह तय करना होगा कि वे कहां के नागरिक हैं... फिर उन्हें यह भी बताना होगा कि विदेशों में अर्जित अकूत सम्पत्ति उन्होंने आय के किन स्रोतों से हासिल की। ऐसे तमाम नेताओं की लंबी लिस्ट है, जिनके विदेशों में फैले धंधे और घर का भेद अब खुलने ही वाला है, वे तो चाहेंगे ही कि हिंसा फसाद हो और वे किसी तरह बच पाएं। यह जो सड़क पर प्रायोजित हिंसा दिख रही है, उसके पीछे किन नेताओं की क्या मंशा है, उसे तो बताना ही पड़ेगा न शाहनवाज भाई..! आपने अपनी प्रतिक्रिया की शुरुआत में ही कहा कि आपकी राहुल गांधी से कोई सहानुभूति नहीं है। मैं भी तो यही कहता हूं कि मैं जब हिन्दू-सिख-जैन-पारसी-ईसाई-बौद्ध हित की बात करता हूं तो मैं भाजपाई या संघी नहीं होता। मैं जब मुस्लिम-हित की बात लिखता हूं तब मैं मुस्लिम-लीग का सदस्य नहीं होता। एक स्वतंत्र दिमाग वाले व्यक्ति को जिस तरह सोचना चाहिए उस तरह सोचता हूं, उसी तरह लिखता हूं और बोलता हूं। मैं किसी भी राजनीतिक दल या धार्मिक संस्था का न तो सदस्य हूं और न दलाल। और बेबाकी से लिखने-बोलने में यह मनोवैज्ञानिक भय भी नहीं रखता कि कोई मुझे संघी कह देगा कि अकाली दल का सदस्य या लीगी... मुझे इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। इसी मनोवैज्ञानिक भय के कारण तो पूरा समाज पिछले सत्तर साल से बेहूदे-प्रगतिशीलों और मक्कार-धर्मनिरपेक्षों के षडयंत्र का शिकार होता रहा... कि मुझे कोई क्या कह देगा। इसी आभासी डर की दुनिया से तो बाहर निकलना है और छद्मी परिभाषाएं गढ़ने वाले षडयंत्रकारियों के खिलाफ समवेत रूप से वैचारिक लोहा लेना है। इस लड़ाई में हिन्दू-मुसलमान समेत उन सभी धर्मावलंबियों को शामिल होना होगा, जो अपने धर्म को मानवधर्म से जोड़ कर देखते हैं, पीड़ा का धार्मिक-विभाजन नहीं करते और रक्तपात को हिकारत की नजर से देखते हैं, धार्मिक-पुण्य के भाव से नहीं...
शाहनवाज भाई, आपने लिखा कि मुसलमानों को CAA एवं NRC के नाम पर भयभीत कर राजनीतिक रोटी सेंकी जा रही है। ज़रूरत है मुसलमानों से संवाद क़ायम कर भ्रांतियों को दूर किया जाए। आपने यह भी लिखा कि जाने-अनजाने मेरा लेख उन तत्वों को ही ईंधन देने का कार्य करेगा।
भाई, मैं एक स्वाभाविक लेखक हूं, बनावटी लेखक नहीं हूं... मैं आपसे विनम्र असहमति रखता हूं कि मुसलमानों को भयभीत कर राजनीतिक रोटियां सेंकी जा रही हैं। उग्र हिंसा, भय का परिचायक थोड़े ही होती है। सरकारी-गैर सरकारी वाहनों में आग लगाना, तोड़-फोड़ मचाना, शहीद स्मारक ध्वस्त करना, महापुरुषों की मूर्तियां तोड़ना, पुलिस पर हिंसक हमला करना, मीडिया वालों के साथ हिंसक बर्ताव करना क्या मुसलमानों के भय का परिचायक है। अगर यह भय है तो फिर आपराधिक-दुस्साहस क्या होता है..? भय जानना हो तो मुस्लिम बहुल इलाकों में रह रहे गैर-मुस्लिमों से पूछिए और सुख जानना हो तो हिन्दू बहुल इलाकों में रहने वाले मुसलमानों से पूछिए। धर्म के नाम पर बने इस्लामिक देशों में जो भीषण अंदरूनी मारकाट मची हुई है, वह क्या भय या डर के कारण है..? ऐसा नहीं है। हमारे तवे पर कोई रोटी तभी सेंक पाएगा जब हम इसकी इजाजत देंगे और हमारा तवा गर्म होगा। मैं इसीलिए बार-बार कहता हूं कि नागरिकता संशोधन कानून तो महज एक बहाना है... लक्ष्य है राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर (एनआरसी) को लागू नहीं होने देना, क्योंकि एनआरसी लागू हो गया तो भारत में घुस कर अवैध रूप से रह रहे करोड़ों बांग्लादेशियों, पाकिस्तानियों और रोहिंगियाओं की आधिकारिक तौर पर शिनाख्त हो जाएगी। भारत का अधिसंख्य मुसलमान धर्म के नाम पर उन्हें बचाने का अधर्म रच रहा है। अगर धार्मिक आबादी का गुणा-गणित छोड़ कर विचार करें तो पाएंगे कि बांग्लादेश, पाकिस्तान और रोहिंगिया आबादी मुसलमानों के लिए ही भारी पड़ने वाली है। संख्या-बल के बूते धर्म के नाम पर देश बांट लेने के कबीलाई चरित्र से कब उबरेगा मुसलमान..? फिर पाकिस्तान और बांग्लादेश लेकर क्यों नहीं निश्चिंत हो गए..? फिर क्यों भागने लगे भारत की ही तरफ..? क्या धर्म के नाम पर देश बांट कर दरिद्रता और भिक्षा का पात्र बनना ही धार्मिक उपलब्धि और जेहाद है..? किस दुनिया में जी रहे हैं मुसलमान..? इनके दिमाग का ढक्कन कौन खोलेगा..? दकियानूसी बंद दिमाग की खिड़कियां खुलें और खुली ताजा हवा आ-जा सके इसके लिए शाहनवाज हसन जैसे लोगों को ही आगे आना होगा न। कब तक मुल्लों-मौलवियों और बहकाने वाले धार्मिक तत्वों के चक्कर में रहेंगे..? जब मुसलमानों में ही चिंगारी भड़काने वाले तत्वों की भरमार लगी हो तो मेरे लेख पर क्यों कहते हैं कि यह ईंधन देने का कार्य करेगा..? इस सोच से बाज आना होगा कि हम जो भी बेजा हरकतें करें उसे ठीक बताएं और उसके खिलाफ यदि कोई अपना विचार दे तो उसे आग में ईंधन देने वाला कह दें। सच यह है शाहनवाज भाई कि तीन तलाक पर पाबंदी लगने, अनुच्छेद-370 हटने और अयोध्या में राम मंदिर निर्माण का रास्ता खुलने से जो गुस्सा मुसलमानों के अंदर-अंदर दहक रहा था, नागरिकता संशोधन कानून के बहाने वह फूट पड़ा। दरअसल, ईंधन वहीं था, जहां आग लगी थी।
इसलिए कोई भय-वय नहीं है मुसलमानों में। केवल गुस्सा है... वह भी धार्मिक अंधता की वजह से। नागरिकता संशोधन कानून भारत के मुसलमानों के लिए नहीं है, यह बात देश के अनपढ़ गंवार लोगों को भी पता है। सबको पता है कि यह कानून पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान में बहुसंख्यक मुसलमानों द्वारा सताए गए वहां के अल्पसंख्यकों को भारत में नागरिकता देने से सम्बन्धित है। सबको पता है कि राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर में उन्हीं लोगों का नाम दर्ज होगा जो भारत के वास्तविक नागरिक हैं। जो भारत का नागरिक है, उसे यदि एनआरसी से भय हो तो इस भय के पीछे कोई खास वजह है। बांग्लादेशी-पाकिस्तानी-रोहिंगियाई मुसलमानों के निकाले जाने का भय भारत के अधिसंख्य भारतीय मुसलमानों को सता रहा है। शाहनवाज भाई जैसे मुसलमान भारतीयों को ही आगे आना होगा मुसलमानों के दिमाग से आबादी के लाभ-लोभ वाली सड़ियल ‘थ्योरी’ को निकालने के लिए... अब आबादी के बूते धर्म के नाम पर देश को कोई बांट नहीं पाएगा, किसी मुगालते में न रहें मुसलमान। भारत के नागरिक की तरह रहें और मौज करें... 

No comments:

Post a Comment