Monday 6 January 2020

भारत के लिए पाकिस्तान और ईरान में कलेजा पीटो तो जानें..!


प्रभात रंजन दीन
सुनने में, कहने में और लिखते हुए बहुत बुरा लग रहा है लेकिन यह हकीकत है कि भारतवर्ष बहुतायत में अत्यंत घृणित किस्म के लोगों का देश बन कर रह गया है। यह लिखने के पहले कई देशों के बारे में पढ़ा। सोचा। अलग-अलग देश के लोगों के चरित्र और उनकी प्राथमिकताओं के बारे में जानने के लिए कई अध्याय पलटे, कई देशों में रह रहे भारतीयों से वहां के मूल नागरिकों के बारे में जाना और तब इस नतीजे पर पहुंचा कि भारत के लोगों जैसा गिरे हुए लोगों वाला देश कम ही है। जिन देशों में जहालत है, भुखमरी है, राजनीतिक अस्थिरता और मारामारी है, उन देशों के नागरिकों में चारित्रिक और नैतिक दोष है तो उसकी अपनी वजहें हैं। भारत में ऐसा कुछ भी नहीं है, लेकिन स्खलन का स्तर निकृष्टता के चरम स्तर पर है। भारत के लोगों की प्राथमिकता में धर्मांधता है, जातिवाद है, राजनीतिक दुराग्रह और पूर्वाग्रह है। अपने अधिकार के प्रति तो घनघोर आग्रह है, लेकिन देश के प्रति कोई आग्रह नहीं। अपने कर्तव्य के प्रति घनघोर लापरवाही है... आप यह कह सकते हैं कि भारत के लोगों में अपने राष्ट्रीय कर्तव्य के प्रति आपराधिक लापरवाही है। अपने देश के प्रति कोई प्रतिबद्धता नहीं। कोई प्रेम नहीं। मुसलमान हैं तो भारत कहीं प्राथमिकता पर नहीं। धनी हैं तो भारत कहीं प्राथमिकता पर नहीं। वामपंथी हैं तो भारत कहीं भी प्राथमिकता पर नहीं। मुसलमान में अगर सुन्नी हैं तो पाकिस्तान और सऊदी अरब के प्रति अगाध समर्पण और शिया मुसलमान हैं तो ईरान के प्रति सारी वफादारी केंद्रित। चोरी-चकारी करके धन कमाया तो स्विट्जरलैंड या अन्य पूंजी-परस्त देशों के चोर बैंकों के प्रति सारी वफादारी घुस गई। नक्सलपंथी हुए तो चीन की गोदी में वफादारी दुबक गई। बुद्ध-कबीर-नानक को ताक पर रख कर माओ-माओ गाने लगे। अपने देश में रहे तो कभी धर्मांधता के नाम पर जानवर बन गए तो कभी जातिवादी उन्माद में जानवर बन गए। अधिकार जता-जता कर देश को नोच-नोच कर खाते रहे। कमीने-ठगों का संगठित गिरोह धर्मनिरपेक्षता और प्रगतिशीलता के नाम पर बुद्धिजीवीपन का झोला टांग कर देश के आम लोगों को ठगता रहा, बेवकूफ बनाता रहा और ब्रेन-वॉश करता रहा। जो लोग पाकिस्तान, सऊदी अरब या ईरान के पिछलग्गू न हुए, वे उसी कमीना-सम्प्रदाय में शामिल होकर धर्मनिरपेक्ष और प्रगतिशील बन गए और दीमक, खटमल या ऐसे ही परजीवी गंदे कीड़े बन कर भारत की नसों में घुस गए। 'कमीना' शब्द पर उन लोगों को आपत्ति जरूर होगी जो इश्क को कमीना कहने वालों को बुद्धिजीवी बता कर माथे पर उठाए रहते हैं। उन 'कमीनों' को यह समझ में नहीं आता कि हमें हमारे सूफ़ी-संतों ने ईश्वर-अल्लाह से इश्क करना सिखाया है। ईश्वर से सखा-भाव रखने की सीख दी है। इश्क को अध्यात्म के उच्चतम स्तर पर स्थापित किया है। उस इश्क को 'कमीना-सम्प्रदाय' के लोग 'कमीना' कहते हैं और खुद को प्रगतिशील बता कर इतराते हैं। मीरा का कृष्ण के प्रति इश्क का उत्कृष्ट आध्यात्मिक भाव 'कमीनों' को क्या समझ में आएगा..! 'कमीना-सम्प्रदाय' के ये निकृष्ट लोग गैर-मुस्लिमों को मानव नहीं समझते। उन्हें केवल मुसलमान ही मानव नज़र आते हैं। ऐसे लोगों से केवल भारतवर्ष क्या, पूरी सभ्यता को ही खतरा है। इनके लिए और भी कई 'सारगर्भित' शब्द हैं, लेकिन अभी इन्हें 'कमीना' कह कर ही काम चलाते हैं।
पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान में धार्मिक अत्याचार के शिकार हिंदुओं, सिखों, ईसाईयों, पारसियों, बौद्धों और जैनियों को भारत में नागरिकता देने के लिए कानून लाया गया तो मुसलमानों की सुलग गई। 'कमीना-सम्प्रदाय' के प्रतिनिधि प्रगतिशील हिंदू उस सुलगन में घी डालने लगे। प्रगतिशील 'कमीनों' को पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान में अल्पसंख्यकों पर हो रहा बर्बर अत्याचार नहीं दिखता। पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान में हो रहा मानवाधिकार हनन भारत के 'कमीने' प्रगतिशीलों और धर्मनिरपेक्षों को नहीं दिखता। इन्हें सिखों के तीर्थस्थल ननकाना साहब पर हमले की खुलेआम दी जा रही धमकियां नहीं दिखतीं। इन्हें हिंदू लड़कियों का बलात्कार और उनका जबरन धर्मांतरण नहीं दिखता। इन्हें सिख युवकों की सरेआम हो रही हत्या नहीं दिखती। इन्हें बामियान में भगवान बुद्ध की विशालकाय प्रतिमाओं पर बमबारी नहीं दिखती। इन्हें उन तीन देशों से विलुप्त कर दी गई वहां की अल्पसंख्यक आबादी और उनके धर्म स्थलों का विध्वंस नहीं दिखता। इन्हें वहां की ईश-निंदा की फर्जी-कथाओं पर बहुत पीड़ा होती है, लेकिन यहां राम की सरेआम निंदा करने और सुनने में बड़ा आनंद मिलता है... ये रोहिंग्याओं के लिए रोते हैं। ये बांग्लादेशी घुसपैठियों के लिए रोते हैं। ये भारत के मुस्लिम बहुल इलाकों में छुप कर रह रहे पाकिस्तानी मुसलमानों के लिए रोते-बिलखते हैं। इनमें से किसी को भी देखा आपने पाकिस्तान में सिखों पर हो रहे अत्याचार की ताजा घटनाओं पर रोते हुए..? प्रदर्शन करते हुए..? मोमबत्तियां जलाते हुए..? प्रधानमंत्री को पत्र लिखते हुए या संयुक्त राष्ट्र का दरवाजा खटखटाते हुए..? ऐसे प्रगतिशील-धर्मनिरपेक्ष हिंदुओं को क्या कहा जाए..! इन जैसे घिनौनों के लिए संबोधन का सटीक शब्द इस्तेमाल करने में आप मेरी विवशता समझ रहे हैं न..! इसीलिए इन्हें अभी 'कमीना' कह कर काम चला रहे हैं।
अभी-अभी ईरान के एक सेनाधिकारी अमरीकी ड्रोन हमले में मारे गए। इस घटना को लेकर हम अंतरराष्ट्रीय सम्बन्धों के परिप्रेक्ष्य में समीक्षा कर सकते हैं, बहस और विचार-विमर्श कर सकते हैं, लेकिन इस पर हम अपना कलेजा क्यों पीट रहे हैं भाई..? ईरान का मसला है, ईरान समझे..! ऐसा हादसा अगर भारत में हो जाए तो क्या ईरान के लोग हमारे लिए कलेजा पीटेंगे..? क्या हमारे लिए वो जुलूस निकाल कर शोक जताएंगे, शोर बरपाएंगे..? भारत के लिए पाकिस्तान, सऊदी अरब या ईरान में किसी ने कलेजा पीटा तो वहां उसका क्या हश्र किया जाएगा, उसके बारे में उन्हें पूरा पता है जो भारत में कलेजा पीट रहे हैं। समर्पण या प्रतिबद्धता का यह कैसा दोगलापन है..! इस दोगलेपन पर हम चुप्पी क्यों साधे रहते हैं..? बेमानी कलेजा पीटने वालों को हम यह क्यों नहीं समझाते कि भाई, ईरान मेरा देश नहीं है, पाकिस्तान मेरा देश नहीं है, सऊदी अरब मेरा देश नहीं है..! अपना देश भारतवर्ष है। या हम फिर यह मान ही लें कि जो समुदाय दूसरे देशों के मसले पर चिल्लाए और बवाल करे, वह भारतवर्ष का नहीं  है..! फिर उसके साथ ऐसे ही व्यवहार हो जैसा विदेशियों या घुसपैठियों के साथ होता है। फिर वह सुविधा लेने के समय यह न जताए कि वह भारतीय है। भारतीय होने का लिए भारतीय होना जरूरी होना चाहिए। दूसरे देशों में होने वाली घटनाओं पर अपने देश में धरना-प्रदर्शन, जुलूस-मातम और अन्य ऐसी नौटंकियों पर तत्काल प्रतिबंध लगाया जाना चाहिए और ऐसा करने वालों पर राष्ट्र-द्रोह का मुकदमा चलाए जाने का सख्त कानूनी प्रावधान किया जाना चाहिए। ऐसे धरना-प्रदर्शन, जुलूस-मातम और नौटंकियां किसी भी तरह से लोकतंत्र के दायरे में नहीं आतीं। ऐसे कृत्य लोकतंत्र-विरोधी और देश-विरोधी होते हैं। इसे सख्ती से कुचला जाना चाहिए। देशद्रोहियों को हम भारतीय न मानें... भ्रष्टाचारियों को हम भारतीय न मानें... धर्मान्धों को हम भारतीय न मानें... एकपक्षीय ‘कमीने’ धर्मनिरपेक्षों और प्रगतिशीलों को हम भारतीय न मानें... गैर-राष्ट्रीय-प्रतिबद्धता वाले किसी भी समुदाय को हम भारतीय न मानें और उनसे सतर्क रहें। हम भारत को बहु-सांस्कृतिक, बहु-धार्मिक, बहु-भाषिक, बहु-वैचारिक किन्तु एकल राष्ट्रीय प्रतिबद्धता वाला भारत देश बनाएं...  चुप्पी न साधें, आगे बढ़ें...  प्रतिबद्ध और समर्पित भारतीयों को शुभकामनाएं...

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