Wednesday 6 February 2019

अंदरूनी बवालों से भी हार रही सीबीआई



प्रभात रंजन दीन
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, उप राष्ट्रपति वेंकैया नायडू और देश के मुख्य सतर्कता आयुक्त केवी चौधरी और सत्ताधारी भाजपा के खास नौकरशाह की करतूतें देख कर आपको हैरत होगी... ऐसा नौकरशाह जो एक तरफ तमिलनाडु के बहुचर्चित एडविन राज हत्याकांड के अभियुक्त भाजपा नेताओं को बचाने के लिए सारे हथकंडे अख्तियार करता है तो दूसरी तरफ गुटखा व्यापारी और दाऊद इब्राहीम के माफिया सिंडिकेट के खिलाफ चल रही सीबीआई जांच की प्रक्रिया में बाधा डालता है। यह नौकरशाह केंद्रीय मंत्री के आदेश को खुलेआम ठेंगा दिखाने से भी नहीं हिचकता।

आप जानते हैं कि सीबीआई को लेकर पहले ही कितनी छीछालेदर हो चुकी है। लेकिन सरकार बाज नहीं आ रही। प्रधानमंत्री ने जिस अधिकारी को सीबीआई का कार्यकारी निदेशक बनाया, उस अधिकारी की हरकतों से सीबीआई की नेकनामी और फैल रही है, लेकिन केंद्र सरकार इस पर ध्यान नहीं दे रही। यहां तक कि सीबीआई के एक एसपी ने ही सीबीआई के कार्यकारी निदेशक एम नागेश्वर राव के भ्रष्टाचार और उनकी अराजकता के खिलाफ विद्रोह का बिगुल फूंक दिया। आलोक वर्मा और राकेश अस्थाना का प्रकरण सीबीआई में फिर दोहरा गया... अब नागेश्वर राव बनाम राजा बालाजी का बवाल सत्ता गलियारे में गूंज रहा है।

सीबीआई विवाद के प्रसंग में सुप्रीम कोर्ट ने साफ-साफ कहा था कि कार्यकारी निदेशक एम नागेश्वर राव कोई भी नीतिगत फैसला नहीं ले सकते। लेकिन राव अनाप-शनाप तबादले कर रहे हैं। तबादले प्रशासनिक दायरे में आते हैं, लेकिन इस बहाने नागेश्वर राव वे तबादले भी कर रहे हैं, जो सीबीआई की नीतियों पर असर डाल रहे हैं। इन नीतिगत तबादलों के खिलाफ सीबीआई के एसपी टी राजा बालाजी ने विद्रोह का बिगुल फूंक दिया। बालाजी का विद्रोह तो अखबारों की सुर्खियां बना, लेकिन बालाजी ने जिन संवेदनशील मसलों को उठाने की कोशिश की, उन मसलों को बड़े शातिराना तरीके से दबा दिया गया। हम उन दबे हुए मसलों को आपके समक्ष रख रहे हैं।

सीबीआई मुख्यालय दिल्ली में एंटी करप्शन ब्रांच के एसपी टी राजा बालाजी ने सेट्रल एडमिनिस्ट्रेटिव ट्राइब्यूनल की प्रिंसिपल बेंच के समक्ष करीब 80 पेज का दस्तावेज पेश किया है। यह दस्तावेज सीबीआई के मौजूदा कार्यकारी निदेशक एम नागेश्वर राव के कारनामों का पुलिंदा है। एसपी राजा बालाजी ने अपने तबादले के खिलाफ केंद्रीय प्रशासनिक न्यायाधिकरण का दरवाजा खटखटाया है। बालाजी का कहना है कि कुछ महीने पहले ही उनका तबादला बंगलुरू से दिल्ली हुआ है। बालाजी की मां कैंसर पीड़ित हैं। उनके इलाज के लिए केंद्रीय आवास एवं शहरी विकास मंत्री ने खास तौर पर एम्स के नजदीक एक फ्लैट आवंटित करने का आदेश दिया था। लेकिन नागेश्वर राव ने एक नहीं सुनी। बालाजी का तबादला भी कर दिया और तत्काल प्रभाव से उन्हें उनके पद से रिलीव भी कर दिया। दिलचस्प यह है कि जब इस मामले ने तूल पकड़ा तब सीबीआई ने आधिकारिक तौर पर कहा कि राजा बालाजी को रिलीव नहीं किया गया। यह सीबीआई का सफेद झूठ था। राव ने कुछ अन्य स्थानान्तरित अफसरों का तबादला तो रोक दिया, पर बालाजी का स्थानान्तरण नहीं रोका। आप जरूर सोचेंगे कि यह बालाजी कौन हैं? राजा बालाजी दक्षिण भारतीय हैं, लेकिन उत्तर प्रदेश से उनका गहरा कार्यकारी रिश्ता है। बहुचर्चित मधुमिता शुक्ला हत्याकांड को नतीजे तक पहुंचाने और तत्कालीन मंत्री अमरमणि त्रिपाठी और उनकी पत्नी मधुमणि त्रिपाठी को आजीवन कारावास की सजा दिलवाने वाले सीबीआई के अधिकारी राजा बालाजी ही हैं। सीबीआई के एसपी राजा बालाजी ने केंद्रीय प्रशासनिक पंचाट को जो 80 पेज का दस्तावेज सौंपा है, वह सीबीआई के कार्यकारी निदेशक एम नागेश्वर राव के कारनामों की कई परतें खोलता है। राव के भ्रष्टाचार के अध्याय तो हम अगले कुछ मिनटों में खोलेंगे, अभी हम आपको बताते हैं उनके ऐसे कारनामे जो अजीबोगरीब भी हैं और दुखद भी। सीबीआई जैसी शीर्ष खुफिया एजेंसी के मुखिया के पद पर ऐसे किसी अफसर को कैसे बिठाए रखा जा सकता है..!

तमिलनाडु के कन्याकुमारी जिले में 26 अगस्त 2012 को ईसाई समुदाय के एडविन राज की हत्या हुई थी। भाजपा नेता सी धर्मराज एडविन हत्याकांड के मुख्य अभियुक्त थे। हत्याकांड की जांच सीबीआई को दी गई थी। उस समय एम नागेश्वर राव सीबीआई के चेन्नई जोन के संयुक्त निदेशक थे। सीबीआई मुख्यालय ने एडविन राज हत्याकांड की जांच का जिम्मा एसपी राजा बालाजी को दिया था। लेकिन एम नागेश्वर राव ने हत्याकांड के भाजपाई अभियुक्तों को बचाने के लिए जांच का काम बालाजी से लेकर एडिशनल एसपी रैंक के अफसर को दे दिया। किसी सीनियर अधिकारी से जांच छीन कर जूनियर अधिकारी को दिए जाने के पीछे नागेश्वर राव की मंशा साफ थी। राव ने इसके लिए सीबीआई निदेशक से औपचारिक मंजूरी लेने की भी जरूरत नहीं समझी। पहले तो झूठ बोलते रहे कि उनकी सीबीआई निदेशक से बात हो चुकी है, लेकिन बाद में उनका झूठ पकड़ा गया। इसी तरह नागेश्वर राव ने गुटखा बैरन और माफिया सरगना दाऊद इब्राहीम नेक्सस की जांच में भी दखलंदाजी की। सीबीआई के एसपी राजा बालाजी ने राव की दखलंदाजी के बारे में ट्राइब्यूनल को विस्तार से जानकारी दी है। आप जानते ही हैं कि गुटखा किंग रसिकलाल धारीवाल और जगदीश जोशी के तार सीधे तौर पर दाऊद इब्राहीम से जुड़े पाए गए थे और गुटखा सिंडिकेट अपने गोरखधंधे के लिए दाऊद के भाई अनीस इब्राहीम से सीधे मदद लिया करता था। दाऊद और अनीस की मदद से ही धारीवाल और जोशी ने पाकिस्तान में गुटखे का कारखाना लगाया था और अपना धंधा चमकाया था। गुटखा के धंधे में धारीवाल और दाऊद, दोनों ने बेपनाह कमाई की। सीबीआई ने मामले की जांच अपने हाथ में ली और दाऊद समेत उसके तमाम रिश्तेदारों और गुर्गों, मसलन, अनीस इब्राहीम, अब्दुल हामिद अंतुले, सलीम मोहम्मद गौस समेत कई लोगों को अभियुक्त बनाया। विडंबना यह है कि पुलिस ने रसिकलाल धारीवाल और जगदीश जोशी को अभियुक्त ही नहीं बनाया था। इस पूरे मामले की ऐसी लीपापोती कर दी गई कि कोई नतीजा नहीं निकला। लीपापोती कैसे हुई और किन लोगों ने की, उसकी एक कड़ी एम नागेश्वर राव भी है।

वर्मा-अस्थाना भिड़ंत के कारण हुई फजीहत से बचने के नाम पर केंद्र सरकार ने ऐसे अधिकारी को सीबीआई का अंतरिम निदेशक बनाया, जिसने केंद्र सरकार की और किरकिरी कर दी। मन्नम नागेश्वर राव काफी विवादित आईपीएस अफसर रहे हैं। भ्रष्टाचार-विधा में भी उनका काफी नाम है। उनकी खासियत यह है कि वे उप राष्ट्रपति वेंकैया नायडू के खास और मुख्य सतर्कता आयुक्त केवी चौधरी के भी खास हैं। ओड़ीशा कैडर के आईपीएस अधिकारी नागेश्वर राव जब सीबीआई के चेन्नई जोन के संयुक्त निदेशक थे तो उन्होंने क्या-क्या गुल खिलाए, इसकी एक झलक देखते चलें।

तमिलनाडु में हुए बहुचर्चित हिंदुस्तान टेलीप्रिंटर्स लिमिटेड एचटीएल जमीन बिक्री घोटाले की जांच सीबीआई कर रही थी। जमीन बिक्री घोटाले में तत्कालीन मुख्यमंत्री जयललिता सरकार के मुख्य सचिव आर राममोहन राव, उनके सचिव निरंजन मार्डी और सिडको के तत्कालीन अध्यक्ष हंसराज वर्मा आईएएस समेत कई हस्तियां लिप्त थीं। एम नागेश्वर राव चेन्नई जोन के एंटी करप्शन ब्रांच के प्रमुख थे। राव ने इस मामले में सीबीआई की जांच आगे नहीं बढ़ने दी और घोटाले के सबूत गायब किए जाते रहे। सीबीआई ने वह दस्तावेज भी दबा दिया जिसमें विभिन्न नेताओं और अफसरों को घूस दिए जाने का ब्यौरा दर्ज था। इस घोटाले में सरकारी राजस्व को उस समय 115 करोड़ रुपए का नुकसान हुआ और स्टेट बैंक को करीब 54 करोड़ का झटका लगा। इस घोटाले में लिप्त एसबीआई के उप महाप्रबंधक लियोन थेरेटिल, चीफ मैनेजर एन रामदास, एचटीएल के सीओओ डीपी गुप्ता और वीजीएन डेवलपर्स के प्रबंध निदेशक डी प्रथीश का भी कुछ नहीं बिगड़ा। एचटीएल की जिस जमीन को खरीदने के लिए 298 करोड़ की बोली लग चुकी थी, उसे काफी कम कीमत पर बेच डाला गया। दिलचस्प यह है कि जिस दिन जमीन रजिस्ट्री हुई उसी दिन उस जमीन को एक ट्रस्ट के पास गिरवी रख कर वीजीएन डेवलपर्स ने 280 करोड़ रुपए का कर्ज ले लिया। यह बड़ा जमीन घोटाला था। क्योंकि उसकी बोली 298 करोड़ की लगी थी और जिस दिन उसे औने-पौने दाम पर बेचा गया उस दिन उस जमीन की सरकारी कीमत 387 करोड़ रुपए थी। नागेश्वर राव के खिलाफ सीबीआई के निदेशक को कई लिखित शिकायतें भी मिलीं, लेकिन राव का कोई कुछ नहीं बिगाड़ पाया। राव का दुस्साहस यह रहा कि वीजीएन जमीन घोटाले की जांच का मामला उन्होंने अपनी मर्जी से इंडियन बैंक के अधिकारी वेलायुथम को दे दिया। तमिलनाडु के तत्कालीन मुख्य सचिव समेत राम मोहन राव समेत सारे अभियुक्त आईएएस नागेश्वर राव के खास थे और राव को प्रभावित कर चुके थे, इसलिए इस मामले में राव ने जांच आगे नहीं बढ़ने दी।

बाल की खाल उधेड़ने के क्रम में हम आपको बता दें कि सीबीआई के जिस निदेशक आलोक कुमार वर्मा को बेजार करके निदेशक के पद से हटाया गया, उसके एक महत्वपूर्ण कारक नागेश्वर राव भी रहे हैं। आलोक वर्मा ने एम नागेश्वर राव के खिलाफ लगे गंभीर आरोपों की गहन जांच का आदेश दिया था। जांच में नागेश्वर राव की करतूतों की आधिकारिक पुष्टि होने के बाद वर्मा ने नागेश्वर राव को न केवल ओड़ीशा कैडर में वापस भेजने का प्रस्ताव दिया था बल्कि राव के खिलाफ अभियोजन की कार्रवाई शुरू करने के लिए भी केंद्रीय सतर्कता आयोग को लिखा था। लेकिन केंद्रीय सतर्कता आयुक्त केवी चौधरी ने सीबीआई निदेशक आलोक वर्मा की एक नहीं सुनी। विवश आलोक वर्मा ने सीबीआई के चेन्नई जोन के तहत चल रही जांच को बंगलुरू ट्रांसफर कर दिया। केंद्रीय सतर्कता आयुक्त केवी चौधरी के करीबी होने के कारण ही सीबीआई के निदेशक आलोक वर्मा द्वारा राव को सीबीआई से हटाने की कोशिशें नाकाम साबित हुईं। आखिरकार आलोक वर्मा को ही सीबीआई से हटना पड़ा।

भ्रष्टाचार की जांच करने वाली केंद्रीय खुफिया एजेंसी सीबीआई का मुखिया खुद भ्रष्टाचार के गंभीर आरोपों में घिरा हो और उसे लगातार बनाए रखने की केंद्र सरकार हट में लगी रही हो तो चरित्र का बखान करने वाली सरकार पर संदेह होगा ही... तथ्य बताते हैं कि नागेश्वर राव की पत्नी मन्नम संध्या ने आंध्र प्रदेश के गुंटुर जिले में करीब 14 हजार वर्ग फीट जमीन खरीदी, जिसे कोलकाता की फर्म एंजेला मर्केंटाइल्स प्राइवेट लिमिटेड से लोन लेकर खरीदा दिखाया गया। जबकि असलियत इसके ठीक विपरीत है। असलियत यह है कि एंजेला मर्केंटाइल्स प्राइवेट लिमिटेड एक कागजी कंपनी है। कागज पर उक्त कंपनी का पता सी-ए/39, सेक्टर-1, सॉल्ट लेक सिटी, कोलकाता दर्ज है। छानबीन की गई तो पता चला कि नागेश्वर राव की पत्नी मन्नम संध्या ने ही उक्त कंपनी को ही 38,27,141 रुपए कर्ज दे रखा है। यह अलग बात है कि दस्तावेजों पर एम. संध्या ने पति का नाम दर्ज कराने के बजाय अपने पिता चिन्नम विष्णु नारायणा लिखवाया हुआ है। एम. संध्या एंजेला मर्केंटाइल्स प्राइवेट लिमिटेड की शेयर होल्डर हैं। संध्या ने कंपनी में 60 लाख से भी अधिक का निवेश कर रखा है और जमीन खरीदने के लिए कागज पर 25 लाख रुपए का लोन ले लिया है। नागेश्वर राव पर ओड़ीशा में वन भूमि खरीदने का मामला भी लंबित है। सीबीआई के कार्यकारी निदेशक एम. नागेश्वर राव अपनी पत्नी द्वारा किए गए निवेश में अनियमितताओं को गलत बताते हैं और कहते हैं कि उनके या उनकी पत्नी मन्नम संध्या द्वारा किए गए निवेश का ब्यौरा सक्षम प्राधिकारी को दे दिया गया है।

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