योगी यह कह सकते हैं कि उनके वक्तव्य को संकेतों में ग्रहण करना चाहिए, लेकिन इसके पहले उन्हें देश के लोगों को यह बताना होगा कि वोट के नफा-नुकसान के भौतिक मोलभाव में वे ईश्वर का इस्तेमाल क्यों करते हैं? इस तुलना में उन्होंने तुलना की पात्रता और मर्यादा भी ताक पर रख दी, इसका क्या औचित्य है? हनुमान ऐसे देवता हैं जो सम्पूर्ण जीव-जगत को मनोबल देते हैं. सम्पूर्ण जीव-जगत को ‘बूस्ट’ करते हैं. सम्पूर्ण जीव-जगत की हीन भावना हरते हैं. इस जीव-जगत में केवल मनुष्य नहीं आते, इसमें चेतन शरीर, जीव शरीर और जड़ शरीर सब आते हैं. हनुमान इस समग्र जीव-जगत के देवता हैं, एक जाति नहीं हैं. इसलिए हनुमान को दलित कहना या उन्हें ब्राह्मण कहना या किसी जीव-शरीर की श्रेणी में रखना चरम मूर्खता या अवसरवादिता की चरम-चतुराई के सिवा कुछ नहीं है. देवता परम् ब्रह्म का लौकिक रूप हैं. उन्हें ईश्वर का सगुण रूप भी कह सकते हैं. उन्हें जाति, धर्म, वर्ण की क्षूद्रता में बांधना हीनता और मक्कारी की सनद है. हनुमान शिव के 11वें रूद्रावतार हैं. ऐसी परम-विराटता को चरम-संकीर्णता में बांधने का वक्तव्य है हनुमान को किसी मनुष्य-जनित जाति का प्रतिनिधि कहना.
राजस्थान की चुनावी सभा में हनुमान को दलित कहने वाले योगी आदित्यनाथ मध्यप्रदेश की चुनावी सभा में बजरंग बली को अली के समतुल्य रखने की धृष्टता भी कर चुके हैं. मुसलमानों के चौथे खलीफा हजरत अली (अली इब्ने अबी तालिब) देवतुल्य हैं, सम्माननीय हैं. लेकिन हजरत अली परा-प्राकृतिक नहीं हैं. बजरंग बली परा-प्राकृतिक हैं, परा-भौतिकीय हैं. हजरत अली 14 सौ साल पहले (13 मार्च 600) को पैदा हुए और सन् 661 में शहीद कर दिए गए. ज्योतिषीय गणना बताती है कि बजरंग बली का जन्म करीब एक करोड़ 85 लाख 58 हजार 115 वर्ष पहले त्रेतायुग के अंतिम चरण में चैत्र पूर्णिमा को मंगलवार के दिन हुआ था. शरीर बज्र की तरह होने के कारण उन्हें बजरंग बली कहा गया. प्रकृति ने देवताओं के जिन सात लौकिक रूपों को अमरत्व का वरदान दिया, उनमें अश्वत्थामा, बलि, व्यास, विभीषण, कृपाचार्य, परशुराम और हनुमान हैं. अमर्त्य बजरंग बली का मर्त्यलोक के महापुरुष हजरत अली से तुलना करना योगी आदित्यनाथ की संन्यासिक सीख के प्रति संदेह का भाव जाग्रत करता है.
योगी आदित्यनाथ शैव मत के प्रतिनिधि संन्यासी हैं. योगी आदित्यनाथ गोरक्षधाम (गोरखधाम) शैव-पीठ के मुख्य महंत भी हैं. शैव मतावलंबी शिव को इष्ट मानते हैं और वैष्णव मतावलंबी विष्णु को. हनुमान भगवान शिव के 11वें अवतार हैं, यह जानते हुए भी शैव मत के प्रतिनिधि संन्यासी योगी आदित्यनाथ ने पृथ्वी के एक छोटे से हिस्से में रहने वाले जातियों में खंडित समुदाय के किसी एक समूह से हनुमान को कैसे जोड़ दिया? यह घोर आश्चर्य और दुख का विषय है. राजनीतिक महत्वाकांक्षा किसी भी राजनीतिक व्यक्ति को किसी भी स्तर तक गिरा देती है, यह आधुनिक-भारत के लोगों का अनुभव तो है, लेकिन बहुत सात्विक उम्मीदों से सत्ता पर स्थापित किए गए साधु-संन्यासी योगी भी ऐसी ही ‘सद्गति’ को प्राप्त होंगे, इसकी लोगों को कल्पना भी नहीं थी...
बेहतरीन समीक्षा
ReplyDeleteVampandhi shantidoot primi sai koi salah nahi chaheye hindu ki bat is ko deshvirodhi lagta hai
ReplyDeleteबहुत अच्छी जानकारी दी आपने🙏🙏🙏
ReplyDeleteअत्यन्त रोचक तथ्य बहुत ही प्रसंशनीय समीक्षा
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