Wednesday 10 October 2018

यूपी में फेल है… भाषण-शासन-प्रशासन

अलीगढ़ मुठभेड़, लखनऊ में पुलिस के सिपाही द्वारा की गई हत्या और भाजपा नेता के संरक्षण में चलने वाले ड्रग सिंडिकेट को पकड़ने वाली मोहनलालगंज की पुलिस उपाधीक्षक (सीओ) का 24 घंटे के अंदर तबादला... हाल में घटी घटनाओं के ये तीन टेस्ट-केस हैं जो भाषण, शासन और प्रशासन के अंतरविरोधों का कड़वा उदाहरण हैं. अपराधी, नेता और पुलिस का अंतरसम्बन्ध यह है कि ड्रग-सिंडिकेट भाजपा के नेता और योगी सरकार के एक राज्य मंत्री के संरक्षण में चलता है. मुख्य अभियुक्त दावा करता है कि 24 घंटे के अंदर सीओ का तबादला हो जाएगा और तबादला हो जाता है. मुख्य अभियुक्त पकड़ा नहीं जाता और सीओ को पुलिस मुख्यालय में ‘डंप’ किए जाने का डीजीपी का आदेश जारी हो जाता है. 
ड्रग सिंडिकेट उजागर करने के 24 घंटे के अंदर महिला पुलिस उपाधीक्षक के तबादले की घटना से बात शुरू करते हैं. खबर आई कि मोहनलालगंज की पुलिस उपाधीक्षक (सीओ) बीनू सिंह ने खुफिया सूचनाओं के आधार पर गोसाईगंज के जौखंडी गांव में ड्रग सिंडिकेट के एक ठिकाने पर छापा मार कर भारी मात्रा में स्मैक और अन्य नशीले पदार्थ बरामद किए. पुलिस को जिस शातिर ड्रग तस्कर मोहित शुक्ला की तलाश थी, वह तो भागने में कामयाब हो गया, लेकिन उसका भाई अंकुर शुक्ला रंगे हाथों पकड़ लिया गया. असली घटनाक्रम उसके बाद शुरू हुआ. मुख्य अभियुक्त मोहित शुक्ला ने पहले तो सीओ को भारी रिश्वत देकर मामला रफा-दफा करने की पेशकश की, फिर योगी सरकार के दो-तीन मंत्रियों से सीओ को फोन कराया, लेकिन सीओ द्वारा इन्कार कर देने पर उन्हीं मंत्रियों के जरिए उसने 24 घंटे के अंदर सीओ का तबादला करा देने की धमकी दिलवाई. इलाके के लोग ड्रग तस्कर और भाजपा नेता के सम्बन्ध जानते हैं, इसलिए वे तबादले को लेकर पहले से मुतमईन थे. लखनऊ पुलिस के एसएसपी या प्रदेश के पुलिस महानिदेशक की तरफ से महिला सीओ को प्रशंसा मिलने की जगह तबादले का आदेश प्राप्त हो गया. सीओ बीनू सिंह को मोहनलालगंज के सीओ पद से हटा कर उन्हें डीजीपी मुख्यालय से अटैच कर दिया गया.
तीन महीने के अंदर सीओ का तबादला करने से मोहनलालगंज क्षेत्र के लोग नाराज हो गए और पूरे इलाके में सीओ की फिर से बहाली की मांग होने लगी. तबादले की वजह के बारे में जानकारी मिलने पर मोहनलालगंज के भाजपा सांसद कौशल किशोर ने फौरन मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से मुलाकात की और उन्हें ड्रग सिंडिकेट से जुड़े तथ्यों और राज्य मंत्री स्तर के भाजपा नेता द्वारा दिए जा रहे संरक्षण के बारे में बताया. मुख्यमंत्री ने सीओ का तबादला रोकने का आदेश दिया, लेकिन इसके बावजूद पुलिस महानिदेशक ओपी सिंह ने सीओ को मोहनलालगंज सीओ की पूर्व तैनाती पर नहीं भेजा. डीजीपी ने बस इतना किया कि पुलिस उपाधीक्षक को मुख्यालय में नहीं अटैच कर उन्हें ट्रैफिक पुलिस में स्थानान्तरित करने का फरमान सुना दिया. सांसद कौशल किशोर ने डीजीपी से बात की और उन्हें इस बात के लिए आड़े हाथों लिया कि ड्रग तस्करों का साथ देकर पुलिस स्थानीय लोगों को सरकार के प्रति नाराज कर रही है. मीडिया ने भी इस पर तूल मचाया. इस संवाददाता ने भी ड्रग तस्करों के खिलाफ छापेमारी से लेकर सीओ के तबादले के बेजा आदेश को लेकर डीजीपी से सवाल पूछे, लेकिन डीजीपी ने उन सवालों का जवाब देने की जरूरत नहीं समझी. डीजीपी ने सीओ के ट्रांसफर का आदेश एक बार फिर बदला और उन्हें बख्शी का तालाब इलाके का सीओ बना कर भेज दिया.
मोहनलालगंज के भाजपा सांसद कौशल किशोर कहते हैं कि वे इस संसदीय क्षेत्र के सांसद हैं, लिहाजा अपने संसदीय क्षेत्र के नागरिकों का ध्यान रखना उनका प्राथमिक दायित्व है. ड्रग तस्करों के फैलते धंधे और उन्हें राज्य मंत्री स्तर के भाजपा नेता द्वारा मिल रहे संरक्षण और पुलिस की मिलीभगत के कारण इलाके के लोगों में काफी गुस्सा है. ड्रग के कारण नई पीढ़ी बर्बाद हो रही है. ड्रग तस्करों को पकड़ने वाली डिप्टी एसपी बीनू सिंह का 24 घंटे के अंदर तबादला पुलिस प्रशासन के आला अधिकारियों का असली चरित्र उजागर करता है. कौशल कहते हैं कि उन्होंने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से मिल कर सारी स्थिति बताई और यह भी बताया कि पुलिस का आचरण सरकार विरोधी और भाजपा विरोधी साबित हो रहा है, आने वाले चुनाव में इसका खामियाजा कौन भुगतेगा! विडंबना यह है कि सांसद को आश्वासन देने और सीओ का तबादला रोकने का आदेश देने के बावजूद डीजीपी ने मुख्यमंत्री की नहीं सुनी और उन्हें वापस पूर्व तैनाती पर नहीं भेजा. उल्लेखनीय है कि फरार ड्रग तस्कर मोहित शुक्ला और योगी सरकार के राज्य मंत्री (चेयरमैन पैक्सफेड) वीरेंद्र तिवारी की अंतरंग तस्वीर सोशल नेटवर्क पर भी खूब वायरल हुई. इसके बावजूद शासन प्रशासन की खाल पर कोई असर नहीं पड़ा.
सीओ के तबादले के पीछे वजह कुछ और भी है
मोहनलालगंज में कॉलोनियां विकसित कर रहे मशहूर एमआई बिल्डर्स को क्लीन-चिट नहीं देने के कारण भी आला पुलिस अधिकारी सीओ बीनू सिंह से नाराज हैं. सीओ कानूनी तौर पर उस दलित परिवार के साथ खड़ी हैं, जिनकी जमीन पर बिल्डर अपना कब्जा चाहता है. पुलिस मुख्यालय के ही एक अधिकारी ने कहा कि प्रदेश के कई वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों ने उस बिल्डर कंपनी में बड़ा धन निवेश कर रखा है, लिहाजा उनकी नाराजगी स्वाभाविक है. इस रियल इस्टेट कंपनी में कुछ पूर्व पुलिस महानिदेशक, मौजूदा अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक समेत कई पुलिस अधिकारियों का पैसा लगा है. हास्यास्पद विडंबना यह भी है कि रियल इस्टेट कंपनी में पैसा लगवाने का काम दो रिटायर्ड पुलिस अधिकारी बिचौलियों के रूप में करते हैं.

लखनऊः हिफाजत के बजाय हत्या कर रही है पुलिस
उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में पुलिस के सिपाही प्रशांत चौधरी द्वारा एप्पल कम्पनी के एरिया सेल्स मैनेजर (नॉर्थ) विवेक तिवारी की गोली मार कर हत्या कर दिए जाने की घटना ने केवल लखनऊ क्या पूरे प्रदेश में सनसनी फैला दी. प्रोडक्ट लॉन्चिंग समारोह के काफी देर रात तक चलने के कारण विवेक तिवारी अपनी महिला सहकर्मी सना खान को उसके घर छोड़ने जा रहे थे. सिपाही प्रशांत चौधरी और संदीप ने उनकी गाड़ी रोकने की कोशिश की और नहीं मानने पर आगे से घेर कर सीधे सिर पर निशाना लेकर विवेक को गोली मार दी. विवेक की मौके पर ही मौत हो गई. इस घटना के बाद लखनऊ पुलिस ने हत्यारे सिपाही को पकड़ने के बजाय तमाम नौटंकियां दिखानी शुरू कर दीं. घटना की चश्मदीद सना खान से मनमानी तहरीर लिखवाई और सिपाही को पहचानने के बावजूद अज्ञात के खिलाफ मामला दर्ज कर लिया. बाद में तूल मचने पर प्रशासन को नामजद एफआईआर दर्ज करने और अभियुक्त सिपाहियों को गिरफ्तार करने पर विवश होना पड़ा. सरकार ने मरहूम विवेक के परिजनों को मुआवजा और विधवा को नगर निगम में नौकरी तो दी, लेकिन पुलिस की हरकत थमी नहीं. लखनऊ पुलिस के एसएसपी कलानिधि नैथानी यही कहते रहे कि यह नहीं पता चल रहा कि विवेक तिवारी की मौत गोली लगने से हुई या गाड़ी के दुर्घटनाग्रस्त होने से. जब पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट ने विवेक के गोली से मरने की आधिकारिक पुष्टि कर दी तब जाकर पुलिस अधिकारियों का बड़बोलापन थमा, लेकिन मामले को उलझाने का सिलसिला थमा नहीं है.
हत्या करने के बाद हत्यारे सिपाही प्रशांत चौधरी ने गोमती नगर थाने में जाकर जो बवाल किया, वह भी लोगों के लिए हैरत करने वाली घटना है. प्रशांत चौधरी की पत्नी राखी चौधरी भी पुलिस में कॉन्सटेबल है. हत्यारोपी सिपाही की पत्नी के बैंक खाते में अचानक साढ़े पांच लाख रुपए का जमा होना भी संदेहास्पद है. राखी चौधरी मेरठ की रहने वाली है. उसका बैंक खाता किनौनी शुगर मिल स्थित भारतीय स्टेट बैंक में है. उसके खाते में पिछले दिनों साढ़े पांच लाख रुपए जमा हुए. उससे पहले राखी के खाते में महज 447.26 रुपए थे. बैंक का कहना है कि राखी के खाते में पैसा जमा होने का क्रम जारी है. राखी का लखनऊ से बलिया तबादला कर दिया गया है. अन्य मुद्दों पर लखनऊ पुलिस के अधिकारी चुप्पी साधे हैं. सरकार ने इतना हंगामा खड़ा होने के बावजूद विवेक तिवारी हत्याकांड की सीबीआई जांच का आदेश क्यों नहीं दिया, इस पर भी गंभीर सवाल उठ रहे हैं.

अलीगढ़ ‘लाइव’ मुठभेड़ की असलीयत कुछ और
अलीगढ़ में पिछले दिनों मुठभेड़ में दो अपराधियों के मारे जाने की खबर इस बात के लिए सुर्खियों में रही कि पुलिस ने मुठभेड़ दिखाने के लिए पहले से मीडिया वालों को जमा करके रखा था. सारे चैनेलों पर लाइव मुठभेड़ दिखाया गया. ‘लाइव’ मुठभेड़ की वीडियो रिकॉर्डिंग देखें तो उसमें गोलियां चलाते जांबाज पुलिसकर्मी फोटो के लिए ‘पोज़’ देते दिखेंगे और आपको समझ में आ जाएगा कि पहले से ही मारे जा चुके अपराधियों की लाशें रख कर मौके पर मुठभेड़ की ऐक्टिंग हो रही है. पुलिस की कहानी यह थी कि अलीगढ़ जिले के हरदुआगंज में पुलिस के साथ मुठभेड़ में दो कुख्यात बदमाश मारे गए. गोली लगने से एक पुलिस अधिकारी भी जख्मी हुआ. हास्यास्पद तथ्य यह भी है कि पुलिस अपराधियों को मारने के इरादे से गोली चला रही थी, लेकिन अपराधी पुलिस अधिकारी के पैर पर निशाना ले रहे थे. पुलिस कहती है कि पीछा करने पर अपराधी हरदुआगंज के मछुआ नहर के पास बनी सिंचाई विभाग की कोठरी में घुस गए. दोनों तरफ से एक घंटे मुठभेड़ चली, जिसमें नौशाद और मुस्तकीम मारे गए. वे दो साधुओं समेत छह लोगों की हत्या में वांछित अपराधी थे.
इस ‘लाइव’ मुठभेड़ का सच यह है कि 18 सितम्बर को प्रेस कॉन्फ्रेंस के जरिए पुलिस ने अपराधियों को गिरफ्तार किए जाने की जानकारी दी थी. यह प्रेस कॉन्फ्रेंस हड़बड़ी में बुलाई गई थी क्योंकि 16 सितम्बर को अतरौली से छह लड़कों को पुलिस द्वारा उठाए जाने के बाद से उनके परिजन परेशान थे और उन्हें तलाश रहे थे. पकड़े गए युवकों में शामिल इरफान को उसकी पत्नी समीरा ने डॉक्टर यासीन के साथ अलीगढ़ एसएसपी कार्यालय में देख लिया. इरफान की ओर वह बढ़ी, लेकिन पुलिस ने उसे रोक लिया. इरफान की पत्नी को भी पकड़ कर महिला पुलिस के हवाले कर दिया गया. इसके बाद ही प्रेस कॉन्फ्रेंस बुला कर पांच लड़कों को गिरफ्तार दिखाया गया, जिनमें इरफान और यासीन शामिल थे. पुलिस ने मुस्तकीम, नौशाद और अफसर को भगोड़ा करार देते हुए प्रत्येक पर 25 हजार रुपए के ईनाम की घोषणा की. मुस्तकीम नौशाद का रिश्ते में बहनोई था. दूसरी तरफ मुस्तकीम और नौशाद के परिजनों को पुलिस ने उनके घरों से बाहर नहीं निकलने दिया. इस पर सवाल उठाने पर ‘यूनाईटेड अगेन्स्ट हेट’ की टीम पर अतरौली थाने में हमला हुआ. रिहाई मंच का कहना है कि हाजी इमरान नामक शख्स की इस मामले में संदेहास्पद भूमिका है. उसने ही इरफान को पुलिस के हवाले कराया और उसी ने मुस्तकीम और नौशाद को भी पुलिस से पकड़वाया. बाद में मुस्तकीम और नौशाद दोनों ही फर्जी ‘लाइव’ मुठभेड़ में मारे गए. नौशाद की उम्र 17 वर्ष थी और मुस्तकीम 22 साल का था. लाशों को बिना धार्मिक रीति रिवाज के दफना दिया गया और उनके परिजनों को एफआईआर की कॉपी और पोस्टमार्टम की रिपोर्ट तक नहीं दी गई. नौशाद और मुस्तकीम दोनों का पुलिस रिकॉर्ड में कहीं किसी अपराध में नाम नहीं है. मुस्तकीम का 17 साल का भाई सलमान भी पुलिस की गिरफ्त में ही है. इसके अलावा दिमागी तौर पर विक्षिप्त 23 साल के नफीस को भी पुलिस ने पकड़ रखा है. लड़कों के संदेहास्पद तरीके से उठाए जाने की सूचना डॉक्टर यासीन की पत्नी निहानाज ने फैक्स के जरिए मुख्यमंत्री, आईजी लखनऊ, डीआईजी अलीगढ़ परिक्षेत्र, अलीगढ़ के एसएसपी, अतरौली के थानाध्यक्ष और हरदुआगंज के थानाध्यक्ष को भेज दी थी, लेकिन उस पर कोई संज्ञान नहीं लिया गया. अलीगढ़ का ‘लाइव’ मुठभेड़ अतरौली और हरदुआगंज थाने के प्रभारी और अलीगढ़ के एसएसपी अजय साहनी समेत हाजी इमरान की साजिशों का परिणाम है. मुठभेड़ में मारे गए नौशाद की मां शाहीन का कहना है कि उसका बेटा मजदूरी करता था. पुलिस ने नौशाद और मुस्तकीम को अतरौली थाना क्षेत्र से कई लोगों के सामने जबरन उठा लिया था. इससे ही मुठभेड़ की कहानी फर्जी साबित होती है. 

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