Tuesday 26 September 2017

योगी सरकार का छह महीनाः न ख़ुदा ही मिला, न विसाल-ए-सनम

प्रभात रंजन दीन
निंदा और प्रशंसा प्रस्तावों के लोकार्पण के दो दिवसीय आयोजन के साथ योगी सरकार के छह महीने का पूर्णाहुति-यज्ञ सम्पन्न हुआ. उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने सरकार के छह महीने पूरे होने पर 18 और 19 सितम्बर को दो दिन का कार्यक्रम रखा. पहले दिन उन्होंने पूर्ववर्ती सरकारों का निंदा-पत्र जारी किया, उसे उन्होंने श्वेत-पत्र कहा. दूसरे दिन उन्होंने अपनी सरकार का प्रशंसा-पत्र जारी किया, जिसे उन्होंने उपलब्धि-पत्र नाम दिया. पूर्ववर्ती सरकार की निंदा से शुरू हुआ आयोजन योगी सरकार के छह महीने के क्रियाकलाप की प्रस्तुति के पहले पेशबंदी की तरह सामने आया. प्रदेश के लोगों को मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से जिस तरह की साफगोई की उम्मीद थी, वह पूरी नहीं हुई. छह महीने पहले की योगी की जो छवि रही है उससे बिल्कुल अलग उन्होंने आम चलताऊ नेता की तरह अपना काम बताने के बजाय दूसरों की बखिया उधेड़ने से कार्यक्रम की शुरुआत की. योगी ठीक से बखिया भी नहीं उधेड़ पाए. घोटाले और भ्रष्टाचार करने वाली पूर्ववर्ती सरकारों के मुखिया का नाम तक नहीं लिया. यहां तक कि पार्टी का भी नाम नहीं लिया. योगी का श्वेत-पत्र पूर्ववर्ती सरकारों की पारदर्शिता से सटीक आलोचना भी नहीं कर पाया, वह नौकरशाहों के सेंसर-बोर्ड से नपुंसक होकर बाहर निकला. श्वेत-पत्र की जगह वह संकोच-पत्र होकर रह गया. इससे तो अच्छा होता कि योगी आदित्यनाथ सच्चाई और साफगोई से जनता के समक्ष पहले अपनी सरकार की उपलब्धियां और कार्यक्रम प्रस्तुत करते, फिर वे पूर्ववर्ती सरकारों की निंदा करने के बजाय उनके भ्रष्टाचारों के खिलाफ की गई ठोस कार्रवाइयों का ब्यौरा रखते. यह सार्थक होता. सत्ता गलियारे की गतिविधियों पर नजर रखने वाले जानकार कहते हैं कि पूर्ववर्ती सरकारों के भ्रष्टाचार के खिलाफ कोई ठोस कार्रवाई हुई ही नहीं तो सरकार उसका ब्यौरा क्या रखे! मुख्यमंत्री जब चाटुकार नौकरशाहों और अवरसवादी सिपहसालारों के चंगुल में फंस जाएगा, तो ऐसा ही होगा. नौकरशाह उसे भरमाए रखेगा और पांच साल बाद जनता इस भरमाहट को दूर कर देगी. ऐसा ही अखिलेश के साथ हुआ, ऐसा ही मायावती के साथ हुआ और ऐसा ही योगी के साथ होने का लक्षण दिख रहा है.
भाजपा सरकार की छह महीने की उपलब्धियां गिनाने में जिस तरह आंकड़ों की बाजीगरी की गई, उसकी हम समीक्षा करेंगे. गन्ना किसानों के बकाये के भुगतान की जो सरकारी तस्वीर पेश की गई, उसके बरक्स हम आपको जमीनी असलियत दिखाएंगे. एक लाख क्विंटल आलू की खरीद की योगी सरकार की घोषणा पर क्या कार्रवाई हुई, उसकी भी हम परतें खोलेंगे. इन्काउंटर के आंकड़े पेश कर कानून व्यवस्था दुरुस्त करने के दावे कितने खोखले हैं, उसका भी हम जायजा लेंगे और यह भी देखेंगे कि योगी सरकार राजधानी लखनऊ समेत प्रदेश की तमाम सड़कों पर गड्ढे तो नहीं भर सकी, लेकिन सरकार खुद कितने गड्ढों से भर गई. मुख्यमंत्री जब अपने ही उप-मुख्यमंत्री (जो सड़कों का गड्ढा भरने के लिए जिम्मेदार थे) का ‘गड्ढा’ नहीं भर पा रहे तो सड़कों का गड्ढा कैसे भर पाएंगे. खैर, पहले हम पूर्ववर्ती सरकारों के अश्वेत-कारनामों पर जारी श्वेत-पत्र का अवलोकन करते चलें. मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने 18 सितम्बर को ‘श्वेत-पत्र-2017’ जारी करते हुए कहा कि पिछले 15 वर्षों के दौरान सत्ता में रही सरकारों के कार्यकाल में यूपी पूरी तरह कुव्यवस्था में रही. उनका स्पष्ट इशारा मुलायम-मायावती-अखिलेश कार्यकाल की तरफ था. साफ-साफ तौर पर तीनों कार्यकाल के मुखिया का नाम लेने से जो सरकार हिचकती हो, वह उनके कारनामों पर कार्रवाई क्या करेगी, यह समझा जा सकता है. योगी सरकार ने श्वेत-पत्र के जरिए इतना ही कहा कि पिछली सरकारों ने जनता के प्रति असाधारण संवेदनहीनता का परिचय देते हुए असामाजिक तत्वों और भ्रष्टाचारियों को प्रश्रय दिया और एक के बाद एक घोटाले किए. उन घोटालों पर योगी सरकार ने क्या कार्रवाई की, यह योगी ने श्वेत पत्र में नहीं बताया.
मुख्यमंत्री ने इतना ही कहा कि पिछले 15 साल में उत्तर प्रदेश के सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम (पीएसयू) बदहाल हो गए. पीएसयू का वर्ष 2011-12 का नुकसान 6489.58 करोड़ रुपए से बढ़ कर 2015-16 में 17789.91 करोड़ रुपए हो गया. राज्य के पीएसयू की संचित हानि 2011-12 में 29380.10 करोड़ रुपए थी जो 2015-16 में बढ़कर 91401.19 करोड़ रुपए हो गई. वर्ष 2011-12 में पीएसयू का ऋण 35952.78 करोड़ रुपए था, वह 2015-16 में बढ़कर 75950.27 करोड़ हो गया. सार्वजनिक उपक्रमों के संचालन में वित्तीय अनुशासनहीनता और घोटालों के कारण ऐसा हुआ. पूर्ववर्ती सरकारों की इन गैर-जिम्मेदाराना हरकतों के कारण प्रदेश की वित्तीय स्थिति डंवाडोल हो गई. सरकारों ने कर-राजस्व बढ़ाने का कोई उपाय नहीं किया, जबकि अनाप-शनाप तरीके से राजस्व व्यय बढ़ा दिया. इसका नतीजा यह हुआ कि जब प्रदेश में भाजपा की सरकार आई तो उसे राज-खजाना खाली मिला. सरकार पर कर्जे का बोझ अत्यधिक था. 31 मार्च 2007 को सरकार पर कर्ज का बोझ 1,34,915 करोड़ रुपए था, जो 31 मार्च 2017 तक बढ़कर 3,74,775 करोड़ रुपए हो गया. मुख्यमंत्री ने पूर्ववर्ती सरकारों के दरम्यान बदहाल कानून-व्यवस्था से लेकर किसानों की तबाही, चीनी मिलों की बर्बादी, लोक निर्माण विभाग (पीडब्लूडी) की बेजा कार्य-प्रणाली, सरकारी नौकरियों में भेदभाव और पक्षपात समेत तमाम विभागों के अराजक कामकाज का जिक्र किया और कहा कि 19 मार्च 2017 को सत्ता सम्भालने के साथ ही उन्हें अराजकता, गुंडागर्दी, अपराध, भ्रष्टाचार और वित्तीय अराजकता विरासत में मिली. ध्वस्त कानून-व्यवस्था का जिक्र करते हुए मुख्यमंत्री ने जून 2016 में मथुरा के जवाहरबाग हत्याकांड का हवाला दिया लेकिन मथुरा के जिस तत्कालीन जिलाधिकारी राजेश कुमार की गैर-जिम्मेदारी के कारण जवाहरबाग हत्याकांड घटित हुआ उस अधिकारी को उन्होंने सपा नेता रामगोपाल यादव की सिफारिश पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की फ्लैग-शिप योजना ‘कौशल विकास मिशन’ का निदेशक क्यों बना दिया, इस पर योगी ने कुछ नहीं कहा.
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने पूर्ववर्ती सरकारों की किसान-विरोधी नीतियों के कारण किसानों को उनकी उपज का सही मूल्य न मिलने और चीनी मिलों द्वारा किसानों के बकाये का भुगतान न करने का मुद्दा भी उठाया. योगी ने निजीकरण के नाम पर प्रदेश की चीनी मिलों को कौड़ियों के भाव बेचे जाने का जिक्र किया और इसमें अनियमितता बरते जाने की भी बात कही, लेकिन मायावती का नाम नहीं लिया. योगी ने श्वेत-पत्र में पूर्व के शासनकाल में गेहूं की खरीद में दलाली और आलू किसानों की बदहाली का मसला भी उठाया और कहा कि मजबूरी के कारण किसानों को अपनी फसल सड़कों पर फेंक देनी पड़ी और किसानों ने आलू की खेती छोड़ दी. योगी ने उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग समेत अन्य संस्थाओं में तैनाती से लेकर भर्ती तक जातिवाद और भ्रष्टाचार का उल्लेख किया, लेकिन कहीं भी इसके लिए दोषी निवर्तमान मुख्यमंत्री अखिलेश यादव का नाम नहीं लिया. योगी को पूर्ववर्ती शासनकाल में विधानसभा अध्यक्ष माता प्रसाद पांडेय द्वारा विधानसभा सचिवालय में की गई हजारों अवैध नियुक्तियों का गंभीर घोटाला याद नहीं रहा. योगी को उस शासनकाल की सड़क से लेकर सिंचाई तक की बदहाली याद रही, लेकिन पूर्ववर्ती सरकार के मंत्री शिवपाल यादव का नाम याद नहीं रहा. लखनऊ मेट्रो रेल से लेकर आगरा-लखनऊ एक्सप्रेस-वे,  जय प्रकाश नारायण अन्तरराष्ट्रीय शोध केंद्र, गोमती रिवर फ्रंट, अन्तरराष्ट्रीय क्रिकेट स्टेडियम, कैंसर इंस्टीट्यूट, एसजीपीजीआई ट्रॉमा सेंटर जैसी आधी-अधूरी योजनाओं का उन्होंने जिक्र किया, लेकिन अखिलेश यादव का नाम नहीं लिया. पूर्ववर्ती शासनकाल में चिकित्सा और स्वास्थ्य सेवा के चरमरा जाने की बात कही, लेकिन अपने जमाने में हुए गोरखपुर जैसे हादसे का नाम तक नहीं लिया. गोरखपुर के बीआरडी मेडिकल कॉलेज अस्पताल में 60 से अधिक बच्चों और फर्रुखाबाद के लोहिया अस्पताल में 50 बच्चों की ऑक्सीजन की कमी के कारण हुई मौत स्वास्थ्य क्षेत्र में योगी सरकार की पहली छह-मासिक उपलब्धि के बतौर दर्ज हो चुकी है. श्वेत-पत्र में योगी ने अखिलेश का नाम लिए बगैर कहा कि पूर्ववर्ती शासन में अल्पसंख्यकों के कल्याण के लिए कुछ नहीं किया गया. अल्पसंख्यक कल्याण के लिए वर्ष 2012-13 से वर्ष 2016-17 तक बजट में मंजूर 13,804 करोड़ रुपए भी खर्च नहीं किए जा सके. सरकार केवल अल्पसंख्यकों के कल्याण का ढोल बजाती रही.
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने श्वेत-पत्र में वर्ष 2007-08 से वर्ष 2009-10 के दरम्यान लखनऊ और नोएडा में बनाए गए स्मारकों के निर्माण में हजारों करोड़ रुपए के घोटाले की बात तो कही, लेकिन कहीं भी मायावती का नाम नहीं लिया. यहां तक कि स्मारक घोटाला का हवाला देने के लिए योगी को महालेखाकार की रिपोर्ट का सहारा लेना पड़ा. उन्होंने कैग-रिपोर्ट का हवाला देते हुए कहा कि स्मारक-परियोजना की मूल वित्तीय स्वीकृति 944 करोड़ रुपए थी, लेकिन उस पर चार हजार 558 करोड़ रुपए खर्च किया गया. मायावती के शासनकाल में स्मारकों के निर्माण पर मंजूर धनराशि से 483 प्रतिशत अधिक खर्च किए जाने पर पूर्ववर्ती अखिलेश सरकार ने कोई कार्रवाई नहीं की और न योगी ने अपने शासनकाल में किसी ठोस कानूनी कार्रवाई की संभावना जताई.

सरकार का उपलब्धि-पत्र बनाम जमीनी-सचः बढ़ता ही जा रहा है अपराध का आंकड़ा
योगी सरकार के छह महीने के दो-दिवसीय बखान-आयोजन के अगले दिन यानि, 19 सितम्बर को मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने अपने काबीनाई सहयोगियों के साथ सरकार के छह महीने के किए-धरे का लेखा-जोखा पेश किया. इस लेखे-जोखे में भी योगी ने किसानों की कर्ज-माफी और कानून व्यवस्था के मसलों पर बिना नाम लिए अखिलेश सरकार पर निशाना साधा. योगी ने प्रदेश में कानून व्यवस्था में सुधार का दावा किया और छह महीने में हुई 430 मुठभेड़ों में 17 खूंखार अपराधियों के मारे जाने के संदर्भ से अपने दावे में दम भरा. योगी ने 868 इनामशुदा बदमाशों को मिला कर कुल 1106 अपराधियों की गिरफ्तारी का पुलिसिया आंकड़ा भी पेश किया. सब जानते हैं कि प्रदेश में भाजपा की सरकार बनने के फौरन बाद शुरुआती दिनों में पुलिसिया सख्ती और गश्ती की सरगर्मी कितनी दिखी. एंटी रोमियो स्क्वायड का भौकाल दिखा. लेकिन यह जितनी तेजी से दिखा उतनी ही तेजी से विलुप्त भी हो गया. सरकार की चालाकी देखिए कि अपराध के आंकड़ों में चोरी की घटनाओं का जिक्र नहीं करती. योगी सरकार जब महज दो महीने की हुई थी, तब प्रदेश के संसदीय कार्यमंत्री सुरेश खन्ना ने विधानसभा में आधिकारिक आंकड़ा पेश करते हुए कहा था कि वर्ष 2017 के प्रथम चार महीनों में यूपी में 729 हत्याएं, 803 बलात्कार, 60 डकैती, 799 लूट और 2682 अपहरण की घटनाएं हुईं. अपराध के इन आंकड़ों में योगी सरकार की हिस्सेदारी 60 दिनों की थी. लेकिन योगी शासन के शुरुआती सौ दिन का हिसाब-किताब भी हम सामने रखें तो अपराध का ग्राफ कहीं नीचे जाता नहीं दिखा. हत्या, बलात्कार, साम्प्रदायिक हिंसा और यौन हिंसा की घटनाएं खूब हुईं. यहां तक कि नौकरशाहों और सिपसालारों ने योगी को एक सुरक्षा सलाहकार रखने तक की सलाह दे डाली. खैर, योगी सरकार के पहले सौ दिन में अपराध के कुल 22297 मामले दर्ज हुए. पूर्ववर्ती अखिलेश सरकार के शुरुआती सौ दिन में अपराध के 13062 मामले दर्ज हुए थे. आप याद करें कि अपराध का ग्राफ बढ़ता देख कर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने गृह विभाग के प्रमुख सचिव से लेकर डीजीपी तक को सख्त हिदायत दी थी. योगी सरकार के पहले 90 दिन में डकैती के मामलों में 13.85 फीसदी की बढ़ोत्तरी हुई, लूट की घटनाएं 20.46 फीसदी बढ़ीं, फिरौती के लिए अपहरण की घटनाओं में 44.44 फीसदी की बढ़ोत्तरी हुई और बलात्कार के मामलों में 40.83 फीसदी का इजाफा हुआ. शुरुआती तीन महीनों में एंटी रोमियो स्क्वायड की खूब शोशेबाजी चली. लेकिन छेड़छाड़ की घटनाओं को रोकने के लिए बनाया गया पुलिस का यह दस्ता विवादों में आ गया और इसके बाद यह ढीला ही पड़ गया. सरकार ने अपराध के आंकड़ों में चोरी और राहजनी की घटनाओं को शुमार नहीं किया, जबकि चोरी और राहजनी की घटनाएं राजधानी लखनऊ समेत प्रदेश के सभी शहरी इलाकों में बहुत तेजी से बढ़ी हैं. चोरी का आलम तो यह है कि घर का ताला दो दिन के लिए बंद तो चोरी सुनिश्चित. इसकी रोकथाम में पुलिस फेल है, क्योंकि चोरों के साथ पुलिस का मेल है.

भू-माफियाओं के बजाय किसानों की ही जमीनें छीन लीं
योगी सरकार ने अपनी उपलब्धियों में भू-माफियाओं के खिलाफ चलाए गए अभियान को भी शामिल किया और दावा किया कि एंटी भू-माफिया टास्क फोर्स ने प्रदेशभर में भू-माफियाओं की 35 करोड़ की सम्पत्ति जब्त की. सरकार ने कहा कि भू-माफियाओं के कब्जे से 8038.38 हेक्टेयर भूमि मुक्त कराई गई. इस सरकारी दावे के समानान्तर तथ्य यह है कि मू-माफियाओं के कब्जे से जमीन मुक्त कराने का टार्गेट प्रशासन ने किसानों और ग्राम समाज की जमीनें छीन कर उसे भू-माफियाओं के खिलाफ की गई कार्रवाई बताया और सरकार को झांसे में रखा. लखनऊ के नजदीक हरदोई जिले के कसमंडी (गोपामऊ) गांव का नायाब उदाहरण सामने है. तहसीलदार और कानूनगो ने भू-माफियाओं से साठगांठ करके इस गांव के दर्जनों गरीब किसानों की खेती की जमीनों को जंगल की भूमि पर कब्जा बता दिया और किसानों को उन जमीनों से बेदखल कर दिया. जंगल की जमीन पर कब्जा करने का मुकदमा भी किसानों पर लिखवा दिया गया और भूमिधर किसान बेदखल होकर हरदोई जिला प्रशासन के अधिकारियों के दरवाजे-दरवाजे भटक रहे हैं. हरदोई के कसमंडी गांव के वे छोटे किसान क्या भू-माफिया हैं? अराजक सरकार का कोई भी नुमाइंदा इस सवाल का जवाब नहीं दे रहा. खबर मिलने पर ‘चौथी दुनिया’ ने हरदोई की जिलाधिकारी और वहां के उप जिलाधिकारी दोनों को पूर्व में ही कानूनगो की हरकतों के बारे में इत्तिला की थी, लेकिन डीएम और एसडीएम किसी पर कोई फर्क नहीं पड़ा और किसानों को उनकी ही जमीनों से बेदखल कर दिया गया. ऐसी घटनाएं पूरे प्रदेश में हुईं और इसी तरह भू-माफियाओं के कब्जे से जमीनें मुक्त कराई गईं.
उल्लेखनीय है कि पुलिस में दर्ज शिकायतों और राजस्व अभिलेखों के मुताबिक यूपी में एक लाख हेक्टेयर से अधिक सरकारी जमीन पर अवैध कब्जा है. प्रदेश के प्रत्येक थाने में कम से कम 50 भू-माफियाओं के नाम दर्ज हैं. इन माफियाओं से जमीन मुक्त कराने का अभियान फर्जी सियासी जुमलों से पूरा नहीं हो सकता. मथुरा के जवाहरबाग की जमीन और पूर्ववर्ती सरकार के मंत्री गायत्री प्रजापति व शारदा प्रताप शुक्ला के कब्जे से कुछ जमीनें छुड़ाने के अलावा योगी सरकार ने भू-माफियाओं के कब्जे से जमीन छुड़वाने का कोई शिनाख्त में रखने लायक काम नहीं किया है. राजस्व के दस्तावेज बताते हैं कि केवल राजधानी लखनऊ में ही करीब पांच हजार हेक्टेयर सरकारी जमीन पर भू-माफियाओं का कब्जा है. सरकार इन्हें जानती है, लेकिन इनके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं करती.

यह कर्ज-माफी है या किसानों के साथ क्रूर मजाक!
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने किसानों की कर्ज-माफी को प्रदेश सरकार की बड़ी उपलब्धि के बतौर पेश किया. योगी ने कहा कि सरकार ने 86 लाख किसानों का फसली ऋण माफ किया. किसानों का कर्ज माफ हुआ और उन्हें कर्जमाफी के सर्टिफिकेट भी बांट दिए गए. आप याद करें कि योगी सरकार ने एक लाख रुपए तक का कर्ज माफ करने का ऐलान किया था, लेकिन जमीनी हकीकत क्या है? कर्ज माफी के तहत किसानों का एक पैसा, 9 पैसा, 18 पैसा, 1 रुपया, 20 रुपये जैसी छोटी रकम के कर्ज माफ हुए. इस तरह की कर्ज-माफी से योगी सरकार की काफी किरकिरी हुई. इस ऐतिहासिक कर्ज-माफी के प्रमाणपत्र भी किसानों को दे दिए गए. सोशल मीडिया पर ऐसे हास्यास्पद प्रमाणपत्र बड़े पैमाने पर दिखने लगे तब आनन-फानन योगी सरकार ने ऐसे प्रमाणपत्र दिए जाने को रोका और आदेश जारी किया कि दस हजार से कम की कर्ज माफी का सर्टिफिकेट जारी नहीं किया जाए.
इस नायाब कर्ज माफी पर कटाक्ष करने का विपक्ष को मौका मिल गया. निवर्तमान मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने फौरन ही योगी सरकार पर निशाना साधा. अखिलेश ने मथुरा के गोवर्धन तहसील के एक किसान की कर्ज-माफी का सर्टिफिकेट ट्वीटर पर पोस्ट कर दिया, जिसमें कर्ज-माफी योजना के तहत उक्त किसान के खाते में एक पैसा क्रेडिट किए जाने की बात लिखी गई थी. अखिलेश ने अपने ट्वीट में लिखा, 'भूल चुके जो अपना 'संकल्प पत्र', 'श्वेतपत्र' तो उनका बहाना है.' छोटे किसानों की कर्ज-माफी के लिए 36 हजार करोड़ रुपए की व्यवस्था करने का दावा करने वाली योगी सरकार ने अब तक किसानों का एक पैसा, एक रुपया और 10 रुपए से लेकर हजार रुपए तक का कर्ज माफ किया है. सरकार के इस रवैये से गरीब किसानों में क्षोभ है. कर्ज के बोझ से दबे लाखों किसान खुद को ठगा हुआ महसूस कर रहे हैं.

आलू किसानों को मिला समर्थन मूल्य का झुनझुना
उत्तर प्रदेश में पहली बार आलू का समर्थन मूल्य घोषित हुआ. इसका श्रेय निश्चित तौर पर योगी सरकार को जाता है. सरकार ने 487 रुपए क्विंटल की दर से एक लाख मीट्रिक टन आलू खरीदने का लक्ष्य तय किया. यह तय हुआ कि आलू की खरीद केंद्र की संस्था नेफेड, यूपी की संस्था पीसीएफ, यूपी एग्रो और नैफेड के जरिए होगी. कैबिनेट मंत्री श्रीकांत शर्मा और तत्कालीन मुख्य सचिव राहुल भटनागर ने बड़े उत्साह से कहा कि इन संस्थाओं के माध्यम से किसानों का फेयर एवरेज क्वालिटी (एफएक्यू) का आलू खरीदा जाएगा, जिसे प्रदेश के 1708 शीतगृहों में रखे जाने की व्यवस्था की जाएगी, जिनमें 130 लाख मीट्रिक टन आलू की भंडारण क्षमता है. शर्मा ने कहा था कि योगी सरकार का उद्देश्य आलू उत्पादकों को पर्याप्त कीमत देना है. लेकिन सरकार का दावा हवा-हवाई ही रह गया. किसानों से एक लाख मीट्रिक टन आलू खरीदने की योजना बुरी तरह फेल हो गई. सरकार 13 हजार क्विंटल आलू भी नहीं खरीद सकी. जबकि इस साल यूपी में 15.5 करोड़ क्विंटल से अधिक आलू पैदा हुआ. सरकार इसका एक फीसदी भी नहीं खरीद सकी. सरकार बमुश्किल 12 हजार क्विंटल आलू खरीद पाई. सरकार द्वारा आलू के आकार का मानक 33 एमएम से 55 एमएम के बीच तय करने के कारण आलू खरीद नहीं हो सकी. सौ क्विंटल आलू में करीब 20 क्विंटल आलू ही इस मानक के तहत पास हुआ. आलू बेचने आए किसान को सौ में से 80 क्विंटल आलू वापस ले जाना पड़ा, जो किसानों के लिए मरण साबित हुआ. लिहाजा, किसानों ने उसे कौड़ियों के भाव वहीं बेच डाला या सड़क पर फेंक कर वापस लौट गया.

चीनी मिलों पर गन्ना किसानों का बकाया अब भी बाकी है
छह महीने की उपलब्धियां गिनाते हुए मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कह दिया कि किसानों के गन्ना बकाये का 95 फीसदी भुगतान कराया जा चुका है. योगी ने मुख्यमंत्री बनते ही गन्ना किसानों के बकाये के भुगतान के लिए चीनी मिलों को सख्त आदेश जारी किए थे और भुगतान के लिए दो महीने का समय निर्धारित कर दिया था. सरकार कभी कहती है कि 85 फीसदी भुगतान हो गया तो कभी 90 फीसदी भुगतान की बात कहने लगती है. उपलब्धियां गिनाते हुए तो योगी ने 95 फीसदी तक भुगतान होने की बात कह दी. लेकिन असलियत यही है कि भुगतान का बड़ा हिस्सा अभी भी बाकी है. मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का दावा भाजपा के ही सांसद हुकुम सिंह के पत्र से झूठा साबित हो जाता है. कैराना के सांसद और भाजपा के वरिष्ठ नेता हुकुम सिंह ने संसद में यह तथ्य प्रस्तुत किया है कि योगी आदित्यनाथ सरकार के बनने के पांच महीने बाद भी चीनी मिलों ने किसानों के लगभग दो हजार करोड़ रुपए के बकाये का भुगतान नहीं किया. गन्ना आयुक्त कार्यालय के दस्तावेज भी बताते हैं कि 22 अगस्त तक यूपी की गन्ना मिलों ने 25,386.77 करोड़ रुपए के बकाये में से 23,442.94 करोड़ रुपए का भुगतान किया था. इस बकाये का एक बड़ा हिस्सा तीन बड़े उद्योग समूहों पर है. इनमें बजाज हिंदुस्तान पर 779.35 करोड़ रुपए बकाया, यूके मोदी पर 390.93 करोड़ रुपए बकाया और सिम्भौली शुगर्स लिमिटेड पर 140.30 करोड़ रुपए का बकाया है. वर्ष 2016-17 के खाते में शादीलाल एंटरप्राइजेज लिमिटेड पर 70.12 करोड़ रुपए का बकाया, मवाना शुगर्स पर 58.04 करोड़ रुपए बकाया, राणा शुगर्स पर 33.44 करोड़ रुपए बकाया, गोविंद शुगर मिल्स पर 29.13 करोड़ बकाया, नवाबगंज शुगर मिल्स पर 21.71 करोड़ रुपए बकाया, कनोरिया शुगर मिल पर 10.95 करोड़ रुपए बकाया और यदु शुगर मिल पर 10.16 करोड़ रुपए बकाया हैं. इनमें 19 चीनी मिलें सरकारी नियंत्रण की हैं. इन पर 398.98 करोड़ रुपए का बकाया है. बलरामपुर चीनी मिल्स, त्रिवेणी इंजीनियरिंग, धामपुर शुगर मिल्स, केके बिड़ला ग्रुप, डीसीएम श्रीराम लिमिटेड, द्वारिकेश शुगर इंडस्ट्रीज, डालमिया भरत शुगर्स, उत्तम शूगर, इंडियन पोटाश लिमिटेड, दौरलाल चीनी वर्क्स और वेव ग्रुप ने किसानों के बकाये का भुगतान कर दिया है.
पश्चिमी उत्तर प्रदेश के कैराना से भाजपा सांसद हुकुम सिंह ने पत्र लिख कर संसद में गन्ना बकाये का मसला उठाया और कहा कि प्रत्येक मिल मालिक ने उत्तर प्रदेश में अरबों रुपए का लाभ कमाया, लेकिन वही उद्योगपति गन्ना किसानों का भुगतान दबाए बैठे हैं. हुकुम सिंह ने कहा कि गन्ना किसानों के बकाये का भुगतान चीनी मिलों की प्राथमिकता पर नहीं है. योगी सरकार ने गठन के 15 दिनों के भीतर ही गन्ना किसानों के बकाये के पूर्ण भुगतान का दावा किया था. लेकिन ऐसा नहीं हुआ. गन्ना किसान अपनी सालभर की कमाई गन्ना मिलों में झोंक देते हैं लेकिन उसके वाजिब भुगतान से भी वंचित रह जाते हैं. भाजपा सांसद ने कहा कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश में शामली सबसे छोटा जनपद है, जहां की चीनी मिलों पर 200 करोड़ से भी अधिक का गन्ना भुगतान बकाया है. प्रदेश के गन्ना मंत्री सुरेश राणा ने करीब दो महीने पहले विधानसभा को यह जानकारी दी थी कि पेराई सत्र 2016-17 के तहत 14 जुलाई तक कुल बकाया 25386.46 करोड़ रुपए के सापेक्ष 22807.53 करोड़ रुपए का भुगतान हो चुका है. मंत्री ने कहा कि भुगतान की राशि कुल बकाये की 89.84 फीसदी है. जबकि तथ्य यह है कि गन्ना पेराई सीजन खत्म होने के साथ ही उत्तर प्रदेश की चीनी मिलें बंद हो गईं, लेकिन गन्ना किसानों के बकाये का भुगतान नहीं हुआ. चीनी मिलों पर यूपी के गन्ना किसानों का 2755 करोड़ रुपए अभी भी बकाया हैं.

पूर्वांचल बीमारी और बुंदेलखंड भूख से त्रस्त है, सरकार मस्त है
उत्तर प्रदेश का पूर्वांचल बीमारी से ग्रस्त है और बुंदेलखंड भूख से त्रस्त है. गोरखपुर के बीआरडी मेडिकल कॉलेज अस्पताल में 60 से अधिक बच्चों की मौत तो महज एक उदाहरण है. उस हादसे के बाद भी सैकड़ों बच्चों की मौत हो चुकी है. बच्चों की दुखद मौत का यह सिलसिला पिछले लंबे अर्से से चल रहा है. योगी आदित्यनाथ जब गोरखपुर के सांसद थे, तब इस मसले पर उनकी तल्खी सड़क से संसद तक अभिव्यक्त होती थी, लेकिन आज जब वे खुद प्रदेश के मुख्यमंत्री हैं तो बचाव की मुद्रा में हैं. पूर्वांचल की बीमारी पर वे राजनीतिक तो करते रहे, लेकिन आज सत्ता में आए तो सवालों से कन्नी काट रहे हैं. मुख्यमंत्री होने के बावजूद योगी आदित्यनाथ गोरखपुर के बीआरडी मेडिकल कॉलेज जैसे प्रमुख अस्पताल को पीजीआई का दर्जा देकर उसे स्तरीय बनाने की पहल क्यों नहीं कर रहे, इसमें उनकी क्या विवशता है, इसका गैर-सियासी जवाब तो उन्हें ही देना पड़ेगा. पूर्वांचल में हर साल मौत का कहर बन कर आने वाली बीमारी को रोकने में सरकार पहले भी अक्षम थी और अब भी अक्षम ही साबित हो रही है. मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने छह महीने के अपने काम-काज में पूर्वांचल की बीमारी का जिक्र नहीं किया. पूर्वांचल की बीमारी और बुंदेलखंड की भूख का जिक्र करने के बजाय योगी यहां की बदहाल सड़कों का ही रोना रोते रहे. योगी ने ढांचागत विकास पर जोर दिया, पलायन की चर्चा की, लेकिन बुंदेलखंड से पलायन जिस भूख की वजह से हो रहा है उसका त्वरित उपाय किए जाने पर कुछ नहीं कहा. इस बार भी आपने देखा कि किस तरह पूरा पूर्वांचल भीषण बाढ़ से आक्रांत रहा और बुंदेलखंड सूखे में सूखता रहा. बुंदेलखंड के लोगों की नियति ही बन चुकी है साल दर साल सूखा, अकाल और भुखमरी की त्रासदी झेलना. सियासत भी इन्हीं बदहाल लोगों के बूते फल-फूल रही है. बुंदेलखंड की सबसे विकराल पीड़ा यहां से पानी का विलुप्त होना है. सरकार इसका कोई ठोस उपाय नहीं कर रही है, वह सड़क पर ही उलझी पड़ी है. गांवों में हैंडपंपों से पानी निकलना बंद हो गया है. कुएं सूखे हैं. भूगर्भजल का स्तर पाताल में चला गया है. बुंदेलखंड के 80 प्रतिशत किसान कर्ज में डूबे हैं. रोजी-रोटी की तलाश में शहरों में मजदूरी के लिए भाग चुके हैं. गांव के गांव खाली पड़े हैं. केंद्र सरकार की संसदीय समिति की रिपोर्ट तक यह बता चुकी है कि बुंदेलखंड से लोगों का अंधाधुंध पलायन हो रहा है. केंद्र की रिपोर्ट कहती है कि बांदा से सात लाख 37 हजार 920, चित्रकूट से तीन लाख, 44 हजार 920, महोबा से दो लाख, 97 हजार 547, हमीरपुर से चार लाख, 17 हजार 489, उरई से पांच लाख, 38 हजार 147, झांसी से पांच लाख, 58 हजार 377 और ललितपुर से तीन लाख 81 हजार 316 लोग पलायन कर चुके हैं. केंद्र सरकार की यह रिपोर्ट दो साल पहले की है. अब यह आंकड़ा और ऊपर बढ़ गया है.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बुंदेलखंड आकर यह कह चुके हैं कि पांच-पांच नदियां होते हुए भी बुंदेलखंड का प्यासा होना दुर्भाग्यपूर्ण है. प्रधानमंत्री ने यह माना कि असली समस्या पानी के प्रबंधन की अराजकता है. लेकिन समस्या जानने के बावजूद उसे सुधारा नहीं गया. यमुना, चंबल, धसान, बेतवा और केन जैसी नदियों के होते हुए लाखों लोगों का पानी के लिए पलायन दुर्भाग्यपूर्ण है. यह अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण इसलिए भी है कि बुंदेलखंड के सात जिलों झांसी, हमीरपुर, बांदा, महोबा, जालौन और चित्रकूट की सभी 19 विधानसभा सीटें भाजपा के पास हैं. जिस इलाके के 19 विधायक सत्ताधारी हों, उस क्षेत्र की बदहाली दुर्भाग्यपूर्ण भी है और शर्मनाक भी. 

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