प्रभात रंजन दीन
इलाहाबाद हाईकोर्ट के निवर्तमान मुख्य
न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ ने जजों की नियुक्ति के लिए वकीलों की जो लिस्ट सुप्रीम
कोर्ट भेजी थी, उनमें
से तीन नाम छोड़ कर बाकी खारिज कर दी गई. आधिकारिक तौर पर इसकी पुष्टि हुई कि
लिस्ट में शामिल अधिकतर नाम जजों के रिश्तेदारों, नेताओं के सगों और पैरवीपुत्रों के थे. जजों की नियुक्ति के लिए भेजी
गई लिस्ट के उजागर होने के बाद उनमें से कुछ नाम तो सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिए
और बाकी की कसर केंद्र सरकार ने पूरी कर दी. ‘चौथी दुनिया’ देश
का पहला अखबार है जिसने लिस्ट के सारे नाम और उनके रिश्तेदार जजों के नाम प्रकाशित
किए थे. इस खबर के प्रकाशित होने पर देशभर से प्रतिक्रियाएं आनी शुरू हुईं. देशभर
की अदालतों से जुड़े वकीलों, बार
काउंसिल के पदाधिकारियों, विधि
विशेषज्ञों और आम नागरिकों ने बड़ी तादाद में लिखित प्रतिक्रियाएं भेजीं और जजों
की नियुक्ति में धांधली का पर्दाफाश करने पर ‘चौथी दुनिया’ के
प्रति समर्थन जताया. केंद्र सरकार ने भी इसे संज्ञान में लिया और लिस्ट को रोक कर
इंटेलिजेंस ब्यूरो से उसकी जांच कराने का आदेश दिया. इंटेलिजेंस ब्यूरो के
अधिकारियों ने इस संवाददाता से भी पूछताछ की. हालांकि आईबी के एक अधिकारी ने यह भी
कहा कि जजों की नियुक्ति के लिए सुप्रीम कोर्ट भेजी गई लिस्ट के बारे में आईबी
पहले भी केंद्र सरकार को यह संकेत दे चुकी थी कि लिस्ट में शामिल अधिकांश नाम
विभिन्न जजों के रिश्तेदारों और पैरवीपुत्रों के हैं. विडंबना यह है कि जजों की
नियुक्ति के लिए चयन सूची बनाने में इलाहाबाद हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश की
अध्यक्षता वाले कॉलेजियम को दो-दो बार मशक्कत करनी पड़ी. पहली बैठक में मुख्य
न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ के साथ वीके शुक्ला और इम्तियाज मुर्तजा शामिल थे.
दूसरी बैठक में चंद्रचूड़ के साथ वीके शुक्ला और अरुण टंडन शरीक थे. मुर्तजा के
रिटायर होने के कारण टंडन कॉलेजियम के सदस्य बनाए गए थे. इन्हीं न्यायाधीशों ने जजों
के चयन की लिस्ट तैयार की थी, जिसे
आखिरकार खारिज होना पड़ा. इलाहाबाद हाईकोर्ट के तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश डीवाई
चंद्रचूड़ अभी सुप्रीम कोर्ट में जज हैं.
बहरहाल, इलाहाबाद हाईकोर्ट को आखिरकार 11 जज प्राप्त हुए. लेकिन इनमें से
केवल तीन नाम राजुल भार्गव, सिद्धार्थ
वर्मा और संगीता चंद्रा उन वकीलों के हैं जो उस विवादास्पद लिस्ट से लिए गए. आठ
न्यायिक अधिकारी तरक्की के आधार पर हाईकोर्ट के जज बने. इलाहाबाद हाईकोर्ट में
(लखनऊ बेंच मिलाकर) जजों की नियुक्ति के लिए 44 नाम भेजे गए थे. इनकी नेपथ्य-गाथा
प्रकाशित होने पर उनमें से 17 नाम सुप्रीम कोर्ट ने खुद ही खारिज कर दिए थे. इनमें
11 वकील और 6 राज्य न्यायिक सेवा के उम्मीदवार थे. रद्द किए गए उम्मीदवार कई
वर्तमान जजों, कुछ
प्रभावशाली पूर्व जजों और बड़े नेताओं के रिश्तेदार थे. कई के खिलाफ गंभीर आरोप भी
थे. लिस्ट में सरकारी वकीलों की संख्या काफी थी, जिनके लिए भारी सिफारिशें की गई थीं. 44 नामों में से 30 नाम वकीलों
के थे. बाकी नाम राज्य न्यायिक सेवा से थे. सुप्रीम कोर्ट ने इनमें से 19 वकीलों
और राज्य न्यायिक सेवा के 8 उम्मीदवारों को चुना. लेकिन विधि मंत्रालय ने 19
वकीलों में से तीन नाम और न्यायिक सेवा के आठ नाम चुने और उन्हें जज बनाए जाने के
फैसले पर आखिरी मुहर लगा दी. बाकी नाम खारिज कर दिए गए. इस तरह आधिकारिक तौर पर यह
साबित हो गया कि जजों की नियुक्ति के लिए इलाहाबाद हाईकोर्ट से जो लिस्ट सुप्रीम
कोर्ट भेजी गई थी, वह
धांधलियों का पुलिंदा थी. यह ध्यान दिलाते चलें कि भारतीय विधि आयोग ने भी अपनी
230वीं रिपोर्ट में हाईकोर्टों में ‘अंकल’ जजों
की नियुक्ति पर तीखा प्रहार किया था और कहा था कि अगर किसी जज का कोई रिश्तेदार या
परिचित उस अदालत में बतौर वकील प्रैक्टिस कर रहा हो तो ऐसे जज को उस अदालत में
नियुक्त न किया जाए. लेकिन लिस्ट बनाने वाले जजों ने इसकी कोई परवाह नहीं की.
जिन लोगों को जज बनाने की सिफारिश की गई थी, उनका एक बार फिर से जायजा लेते चलें.
इलाहाबाद हाईकोर्ट के जज, जम्मू
कश्मीर हाईकोर्ट, आंध्र
प्रदेश हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश और सुप्रीम कोर्ट के जज रहे सगीर अहमद के बेटे
मोहम्मद अल्ताफ मंसूर को जज बनाए जाने की सिफारिश की गई थी. अल्ताफ मंसूर उत्तर
प्रदेश सरकार के मुख्य स्थायी अधिवक्ता (चीफ स्टैंडिंग काउंसिल) भी हैं. इलाहाबाद
हाईकोर्ट के जज रहे अब्दुल मतीन के सगे भाई अब्दुल मोईन को भी जज बनने योग्य पाया
गया था. अब्दुल मोईन उत्तर प्रदेश सरकार के एडिशनल चीफ स्टैंडिंग काउंसिल हैं.
इलाहाबाद हाईकोर्ट के जज रहे ओपी श्रीवास्तव के बेटे रजनीश कुमार का नाम भी जज
बनने वालों की सूची में शामिल था. रजनीश कुमार उत्तर प्रदेश सरकार के एडिशनल चीफ स्टैंडिंग
काउंसिल भी हैं. इलाहाबाद हाईकोर्ट के जज रहे टीएस मिश्रा और केएन मिश्रा के भतीजे
उपेंद्र मिश्रा को भी जज बनाने की सिफारिश की गई थी. उपेंद्र मिश्रा इलाहाबाद
हाईकोर्ट के सरकारी वकील हैं. उपेंद्र मिश्र की एक योग्यता यह भी है कि वे बसपा
नेता सतीश चंद्र मिश्रा के भाई हैं. इसी तरह हाईकोर्ट के जज रहे एचएन तिलहरी के
बेटे आरएन तिलहरी और जस्टिस एसपी मेहरोत्रा के बेटे मनीष मेहरोत्रा को भी जज बनने
लायक पाया गया था. इनके भी नाम लिस्ट में शामिल थे. लखनऊ बेंच से जिन सिफारिशी
लोगों के नाम जज के लिए चुने गए थे,
उनमें राजकीय निर्माण निगम व सेतु निगम के सरकारी वकील शिशिर जैन का
नाम भी शामिल था.
सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश रहे वीएन खरे
के बेटे सोमेश खरे का नाम भी जज के लिए भेजा गया था. इसी तरह इलाहाबाद हाईकोर्ट के
स्वनामधन्य जज रहे जगदीश भल्ला के भांजे अजय भनोट और न्यायाधीश रामप्रकाश मिश्र के
बेटे राजीव मिश्र का नाम भी जजों के लिए अग्रसारित सूची में शामिल किया गया था.
अंधेरगर्दी का हाल यह रहा कि हाईकोर्ट के जज रहे पीएस गुप्ता के बेटे अशोक गुप्ता
और भांजे राजीव गुप्ता दोनों में ही जज बनने लायक योग्यता देखी गई और दोनों के नाम
सुप्रीम कोर्ट भेज दिए गए थे. इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच के सिटिंग जज एपी
शाही के साले बीके सिंह का नाम भी चयन सूची में शामिल था. सुप्रीम कोर्ट में उत्तर
प्रदेश सरकार के चीफ स्टैंडिग काउंसिल सीडी सिंह का नाम भी जजों के लिए चयनित सूची
में शामिल था. वरिष्ठ कानूनविद्,
उत्तर प्रदेश भाजपा के वरिष्ठ नेता और पश्चिम बंगाल के मौजूदा
राज्यपाल केशरीनाथ त्रिपाठी के बेटे नीरज त्रिपाठी का नाम भी जजों के लिए चयनित
सूची में शामिल था.
इस लिस्ट को लेकर सवाल यह भी उठ रहा है कि क्या
सरकारी वकीलों (स्टेट लॉ अफसर) को भारतीय संविधान के अनुच्छेद 124 और 217 के तहत
वकील माना जा सकता है? संविधान
के ये दोनों अनुच्छेद कहते हैं कि जजों की नियुक्ति के लिए किसी वकील का हाईकोर्ट
या कम से कम दो अदालतों में सक्रिय प्रैक्टिस का 10 साल का अनुभव होना अनिवार्य
है. भेजी गई लिस्ट में कई नाम ऐसे थे जिन्होंने कभी भी किसी आम नागरिक का मुकदमा
नहीं लड़ा. वर्ष 2000 में भी 13 जजों की नियुक्ति में धांधली का मामला उठा था, जिसमें आठ नाम विभिन्न जजों के
रिश्तेदारों के थे. अटल बिहारी वाजपेयी के प्रधानमंत्रित्व काल में कानून मंत्री
रहे राम जेठमलानी ने जजों की नियुक्ति के लिए देशभर के हाईकोर्ट से भेजी गई लिस्ट
की जांच का आदेश दिया था. जांच में पाया गया कि देशभर से 159 सिफारिशों में से
करीब 90 सिफारिशें विभिन्न जजों के बेटों या रिश्तेदारों के लिए की गई थीं. जांच
में अनियमितताओं की पुष्टि होने के बाद कानून मंत्रालय ने वह सूची खारिज कर दी थी.
उस लिस्ट में शुमार कई लोग बाद में जज बन गए और अब वे अपने रिश्तेदारों को जज
बनाने में लगे हैं. इनमें जस्टिस अब्दुल मतीन और जस्टिस इम्तियाज मुर्तजा जैसे नाम
उल्लेखनीय हैं. कुछ अर्सा पहले अधिवक्ता कोटे से जो 10 वकील जज बनाए गए थे, उनमें से भी सात लोग राजीव शर्मा, एसएस चौहान, एसएन शुक्ला, शबीहुल हसनैन, अश्वनी कुमार सिंह, देवेंद्र कुमार अरोड़ा और देवेंद्र
कुमार उपाध्याय उत्तर प्रदेश सरकार के वकील (स्टेट लॉ अफसर) थे. इनके अलावा
रितुराज अवस्थी और अनिल कुमार केंद्र सरकार के लॉ अफसर थे.
इलाहाबाद हाईकोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता के रूप
में मान्यता देने में भी भीषण अनियमितता हो रही है. नागरिकों के मुकदमे लड़ने वाले
वकीलों को लंबा अनुभव हो जाने के बावजूद उन्हें वरिष्ठ अधिवक्ता की मान्यता नहीं
दी जाती, जबकि सरकारी
वकीलों को बड़ी आसानी से वरिष्ठ वकील की मान्यता मिल जाती है. इस वजह से सरकारी
वकील बनने की होड़ लगी हुई है.
जुर्माने से आवाज घोंटने की कोशिश
वर्ष 2000 में जब जजों की नियुक्ति में धांधली
का मामला उठा था और वर्ष 2016 में फिर जब जजों की नियुक्ति की विवादास्पद लिस्ट
बनी तब भी, इलाहाबाद
हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ के वरिष्ठ अधिवक्ता अशोक पांडेय ने याचिका दाखिल की थी, लेकिन हाईकोर्ट के ईमानदार जजों ने
उसपर सुनवाई नहीं की. पहले भी अशोक पांडेय पर 25 हजार का जुर्माना लगाया गया था और
इस बार भी अदालत ने एडवांस कॉस्ट के नाम पर 25 हजार रुपये जमा करने का निर्देश
देते हुए इतने संवेदनशील मसले को लंबित रख दिया. इससे अदालतों की मंशा साफ जगजाहिर
होती है. अशोक पांडेय कहते हैं कि लिस्ट के खारिज होने से प्रथम द्रष्टया यह
स्पष्ट हो गया कि उसे बनाने वाले जजों की मंशा विधि-सम्मत नहीं थी, लिहाजा उन जजों का दोष और दायित्व तो
निर्धारित होना ही चाहिए.
जज से लेकर वकील तक नाते-रिश्तेदार
जजों के रिश्तेदार जज बन रहे हैं और जजों के
रिश्तेदार उनके बूते वकालत का धंधा भी चमका रहे हैं. इलाहाबाद हाईकोर्ट की दोनों
पीठों (इलाहाबाद और लखनऊ) के दर्जनों नामी-गिरामी जजों के बेटे और रिश्तेदार वहीं
पर अपनी वकालत का धंधा चमका रहे हैं. इनमें जस्टिस अब्दुल मतीन के भाई अब्दुल मोईन, जस्टिस अभिनव उपाध्याय के बेटे रीतेश
उपाध्याय, जस्टिस
अनिल कुमार के पिता आरपी श्रीवास्तव, भाई अखिल श्रीवास्तव और बेटे अंकित श्रीवास्तव, जस्टिस बालकृष्ण नारायण के पिता ध्रुव
नारायण और बेटा ए. नारायण, जस्टिस
देवेंद्र प्रताप सिंह के बेटे विशेष सिंह, जस्टिस देवी प्रसाद सिंह के बेटे रवि सिंह, जस्टिस दिलीप गुप्ता की साली सुनीता
अग्रवाल, जस्टिस इम्तियाज
मुर्तजा के भाई रिशाद मुर्तजा और नदीम, जस्टिस कृष्ण मुरारी के साले उदय करण सक्सेना और चाचा जीएन वर्मा, जस्टिस प्रकाश कृष्ण के बेटे आशीष
अग्रवाल, जस्टिस
प्रकाशचंद्र वर्मा के बेटे ज्योतिर्जय वर्मा, जस्टिस राजमणि चौहान के बेटे सौरभ चौहान, जस्टिस राकेश शर्मा के बेटे शिवम शर्मा, जस्टिस रवींद्र सिंह के भाई अखिलेश
सिंह, जस्टिस संजय
मिश्र के भाई अखिलेश मिश्र, जस्टिस
सत्यपूत मेहरोत्रा के बेटे निषांत मेहरोत्रा और भाई अनिल मेहरोत्रा, जस्टिस शशिकांत गुप्ता के बेटे रोहन
गुप्ता, जस्टिस शिवकुमार
सिंह के बेटे महेश नारायण और भाई बीके सिंह, जस्टिस श्रीकांत त्रिपाठी के बेटे प्रवीण त्रिपाठी, जस्टिस सत्येंद्र सिंह चौहान के बेटे
राजीव चौहान, जस्टिस
सुनील अम्बवानी की बिटिया मनीषा,
जस्टिस सुरेंद्र सिंह के बेटे उमंग सिंह, जस्टिस वेद पाल के बेटे विवेक और अजय, जस्टिस विमलेश कुमार शुक्ला के भाई
कमलेश शुक्ला, जस्टिस
विनीत शरण के पिता एबी शरण और बेटे कार्तिक शरण, जस्टिस राकेश तिवारी के साले विनीत मिश्रा, जस्टिस वीरेंद्र कुमार दीक्षित के बेटे
मनु दीक्षित, जस्टिस
यतींद्र सिंह के पिता विकास चौधरी,
भतीजा कुणाल और बहू मंजरी सिंह, जस्टिस सभाजीत यादव के बेटे पीपी यादव, जस्टिस अशोक कुमार रूपनवाल की बिटिया तनु, जस्टिस अमर शरण के भतीजे सिकंदर कोचर, जस्टिस अमरेश्वर प्रताप शाही के ससुर
आरएन सिंह और साले गोविंद शरण, जस्टिस
अशोक भूषण के भाई अनिल और बेटे आदर्श व जस्टिस राजेश कुमार अग्रवाल के भाई भरत
अग्रवाल के नाम उल्लेखनीय हैं.
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