हर साल 14 और 15 अगस्त दिमाग के रेशे-रेशे में तनाव भर देता है। हम आजादी की खुशियां बनाने का प्रहसन खेलने में उस यथार्थ को भूलने का प्रयास करते हैं कि हमारा ही घर टुकड़ों में तोड़ कर हमें यह कैसी आजादी मिली? यह आजादी हमने स्वीकार क्यों की? हमारे मौलिक अखंड भारत को फिर से पाने का सपना संजोए महापुरुषों ने फांसी पर झूलते हुए भी यही सोचा होगा कि हमारी पीढ़ियां अखंड भारत में विचरण करेंगी। लेकिन उन्हें क्या पता था कि उन्हीं के बीच खंड खंड पाखंड से भरे लोभी लोग हैं जो सत्ता भोग के लिए देश को टुकड़े करने पर आमादा हैं... सत्ता लोभियों ने क्रांतिकारियों को फांसी पर झूलने दिया, रास्ते से हटने दिया... फिर जो किया, वह हमारे सामने है। हम स्वतंत्रता दिवस पर उन त्रासदियों को एक पल तो याद कर लिया करें, जो हमारे पुरखों ने झेला और भोगा..! उसी प्रयास की यह प्रस्तुति है... कृपया सुनें...